Tuesday 10 September 2019

क़ुतुब मीनार की सच्चाई

मुसलमान बहुत दुखी हैं कि बाबरी मस्ज़िद तोड़ दी गई. और ओवेसी बंधु अकसर एक्शन के रिएक्शन की बात करते हैं. क्या कोई मुसलमान यह देखने को राज़ी है कि कितने ही मंदिर तोड़-तोड़ कर मस्जिदें बनाई गईं.

क़ुतुब मीनार असल में क्या है?


सपरिवार क़ुतुब मीनार जाना हुआ. बहुत पहले पी. एन. ओक. साहेब की किताब पढ़ी थी, "भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें", जिसमें वो ज़िक्र करते हैं कि बहुत सी ऐतिहासिक इमारतें जो मुगलों की बनाई कही जाती हैं, वो असल में हिन्दू राजाओं ने बनवाई थी. इन्हीं इमारतों में वो क़ुतुब मीनार का ज़िक्र भी करते हैं. मुझे उनके दिए कोई भी तर्क याद नहीं. लेकिन आज जब वहां जाना हुआ तो उनकी बहुत याद आई.


"लौह स्तम्भ" के प्रांगण में घुसने से पहले ही जो 'परिचय पत्थर' पर लिखा है उसी ने दिमाग में उथल-पुथल मचा दी.

लिखा है, “कुवुतल इस्लाम ( इस्लाम की शक्ति) नाम से प्रसिद्ध यह इमारत भारत में प्राचीनतम मस्ज़िद है. इसके दालान में प्रयुक्त खम्बे और दूसरी सामग्री सताईस हिन्दू और जैन मंदिर ध्वस्त करके प्राप्त की गई. मुख्य इमारत के सामने पांच मेहराबों की पंक्ति बाद में लगाई गई. ताकि इसमें इस्लामिक वास्तुकला की विशेषता दृष्टिगोचर हो. इन मेहराबों पर अंकित धार्मिक लेख अरबी ढंग का अलंकरण है पर इनके गठन में हिन्दू शिल्प की छाप स्पष्ट है.”

यानि कि इतिहासकार मानते हैं कि मंदिर ध्वस्त करके मस्ज़िद बनाई गई. सबसे पहली मस्ज़िद ही भारत में मंदिर ध्वस्त करके बनाई गई, यह थी इस्लाम की शक्ति यानि 'कुवुतल इस्लाम'.

और हिन्दू शिल्प को अरबी वास्तुकला दर्शाने की बदमाशी की गई, यह थी इस्लाम की शक्ति यानि 'कुवुतल इस्लाम'.

और वो मस्ज़िद कहाँ से हो गई, उसके बीचों-बीच तो दो कब्रें हैं, कौन सी मस्ज़िद में ऐसा होता है? और अगर वो मस्ज़िद थी तो उसके बीचो- बीच "लौह स्तम्भ" का क्या काम? इस्लाम की शक्ति यानि 'कुवुतल इस्लाम' दिखाने को क्या?

और कौन सी मस्ज़िद ऐसे खम्बों पर बनाई जाती है जिन पर मंदिर की घंटियाँ उकेरी गई हों? इस्लाम की शक्ति यानि 'कुवुतल इस्लाम' दिखाने को क्या?

जब कभी आपका जाना हो वहां, तो सेल्फी लेने और फोटो निकालने से थोड़ा ज़्यादा दिमाग लगाइयेगा. ध्यान दीजियेगा, वहां क़ुतुब मीनार के इर्द- गिर्द जो प्रांगण खड़ा है, वो क़ुतुब मीनार से सदियों पुराना दिख रहा है, उसकी शिल्प कला बिलकुल भिन्न है. और 'लौह स्तम्भ' पर कोई भारतीय लिपि लिखी है, शायद ब्राह्मी और 'लौह स्तम्भ' के इर्द-गिर्द प्रांगण है वो भी क़ुतुब मीनार के समय से बहुत पुराना लगता है. और ध्यान से देखना, अर्ध- निर्मित या अर्ध- ध्वस्त मेहराबों के ऊपर-ऊपर जो पत्थर लगे हैं, सामने की तरफ, जिन पर अरबी/ उर्दू की इबारत लिखी हैं, वो साफ़ ऐसा प्रतीत होते हैं कि बाद में लगे हैं और उनके पीछे के पत्थर कहीं पुराने हैं. और शायद यही इतिहासकार ऊपर कह रहे हैं.

अगर कभी अजमेर जाएँ तो देखें , वहां "अढाई दिन का झोंपड़ा" नाम से एक ऐसी ही आधी अधूरी सी इमारत है. यह एक मंदिर था जिसे तोड़ कर अढाई दिन में मस्ज़िद जैसा रूप देने का प्रयास किया गया. जो न मंदिर रहा न मस्ज़िद. इसके प्रांगण में तो मंदिर के भग्न- अवशेष भी रखे हैं. और लिखा है वहां के परिचय पत्थर पर कि यह निर्माण मंदिर तोड़ कर किया गया.

क्यूँ ज़िक्र कर रहा हूँ "अढाई दिन का झोंपड़ा" का? वजह है. क़ुतुबमीनार के साथ खड़े लौह स्तम्भ के गिर्द निर्माण को देखिये और "अढाई दिन का झोंपड़ा" को भी. 


आपको Dejavu जैसा कुछ अहसास होगा. ऐसा लगेगा कि आप ने जो देखा है, वैसा ही कुछ आप फिर से देख रहे हैं. और इन निर्माण के पीछे की कहानी? वो तो इतिहासकार मान रहे हैं कि काफी कुछ एक जैसी है.

सवाल यह है कि लौह-स्तम्भ हिन्दू निर्माण, उसके इर्द गिर्द प्रांगण हिन्दू निर्माण, क़ुतुब मीनार के इर्द गिर्द का प्रांगण हिन्दू निर्माण तो फिर क़ुतुब मीनार कैसे इस्लामिक निर्माण हो सकता है? सोच के देखिये. मुझे यहीं P.N. Oak साहेब की ज़रूरत महसूस हो रही है. मुझे पूरी-पूरी शंका है कि क़ुतुब मीनार भी कहीं बहुत पहले भारतीय राजाओं ने बनवाया हो सकता है और बाद में इसे इस्लामिक दिखाने के लिए ऊपर से अरबी/ उर्दू लिखे पत्थर जड़ दिए गए. यहाँ ध्यान रहे, क़ुतुब के सामने खड़े बड़े-बड़े मेहराबों के साथ ऐसा ही किया गया, इतिहासकार मान चुके हैं कि ऐसा किया गया था और इंट्रोडक्टरी पत्थर पर लिख चुके हैं.

तो क्या किया जाए? मेरे ख्याल में विज्ञान की मदद ली जाए, P.N. Oak साहेब क्या कहते हैं, वो पढ़ा जाए. पत्थरों के कार्बन टेस्ट या फिर कोई भी टेस्ट जो उनकी उम्र बता सकें, वो किये जाएं, कुछ नया निकल सकता है. याद रखियेगा मेरी बात.

अगर हिन्दू मांग रहे हैं कोई दो-चार मस्जिदें कि यह हमारे राम, कृष्ण, शिव से जुड़ी हैं, तो दे क्यूँ नहीं दी सहर्ष मुसलमान ने? नहीं, इनको तो विरोध करना है. फिर कहते हैं कि गुजरात क्यूँ हुआ? वो तीन मस्जिद दे दोगे तो बड़ा कोई तोप चल जायेगी, इस्लाम खतरे में आ जाएगा? उल्टा इस्लाम की शान बढ़ती. हिन्दू मुस्लिम में प्रेम बढ़ता. हिन्दू खुद तुम्हें कितनी ही मस्ज़िद बना के अपने हाथ से देता. 


नहीं, मुसलमान को मिला ओवेसी जैसा कचरा. जो पन्द्रह मिनट में हिन्दूओं को खत्म करने की बात करता है.

कभी मुसलमानों ने थाणे जलाए, कि ओवेसी ने गलत कहा है? बस कमलेश तिवारी ने कुफ्र तौल दिया है.

"बाबरी गिरने पर खूब परेशान हैं मुसलमान
कभी बोलते तो जब तोडा गया था बामियान"

नमन......तुषार कॉस्मिक