Thursday 31 March 2022

नास्तिक

तुम्हारी अधिकाँश व्यवस्थायें भगवान/अल्लाह/गॉड के इर्द-गिर्द बुनी गई हैं.

जन्म-मरण, शादी-ब्याह, खुशी-ग़म सब स्थितियों में तथाकथित धर्म घुसा है.

किन्तु नास्तिक पूरी व्यवस्था को नकार देता है. सो नास्तिक बर्दाश्त नहीं होता.

वाल्मीकि रामायण में नास्तिक को चोर कहा गया है. इस्लाम में तो नास्तिक के लिए मृत्युदंड है.

लेकिन इंटरनेट के आने के बाद चीज़ें छुपानी मुश्किल हो गई हैँ. सोशल मीडिया पर अनवरत बहस चलती है अब. नास्तिक, संशयवादी, अज्ञेयवादी बढ़ रहे हैं. यह शुभ है.संशय से विचार पैदा होता है. विचार शुभ है. ~ तुषार कॉस्मिक

ग़रीब कौन?

रोज़ाना पहाड़ी पगडंडियाँ नापने वाली औरत
या
गाँव की पतली सड़कों पे साईकल से चलने वाला आदमी,

बड़े शहर के Gym में treadmill पे चलने वाले आदमी
और
Stationary Bike पर पैडल मारने वाली औरत से गरीब कैसे है,
यह मुझे अभी तक समझ नहीं आया.

~तुषार कॉस्मिक

Wednesday 30 March 2022

सिख-मुस्लिम-हिन्दू :-- समानताएं-विषमताएं-- By Zoya Mansoori of Facebook

शाहीन बाग के लंगर से लेकर गुड़गांव के गुरुद्वारों में हो रही नमाज तक सिख मु.स्लिम गठजोड़ की खबरें सोशल मीडिया से लेकर मेंन स्ट्रीम मीडिया तक खूब बिखरी हुई हैं। मु.स्लिमों से सिखों की बढ़ती नजदीकी और हिंदुओं से उनकी लगातार बढ़ती घृणा किसी से छिपी नहीं है।

हिंदू अभी भी यह मानते हैं कि सिख सनातन हिंदू धर्म का ही एक पंथ, एक हिस्सा है जबकि कट्टरपंथी सिख यह दावा करते हैं कि वह हिंदू धर्म से अलग एक स्वतंत्र धर्म है। हिंदू मु.स्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई भाई, यह नारा वीर सावरकर ने आजादी से पहले दिया था।

इस नारे में सिख पंथ को हिंदू मुस्लिम और ईसाई धर्मों की तरह एक अलग धर्म के रूप में उल्लिखित किया गया है। अगर सिख पंथ हिंदू धर्म का ही एक हिस्सा था तो क्या सावरकर को यह नहीं पता होगा? अगर पता था तो सही नारा होना चाहिए था, हिंदू मुस्लिम यहूदी ईसाई आपस में सब भाई भाई।

हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख यह सभी सनातन परंपरा के ही हिस्से हैं लेकिन वीर सावरकर ने अपने नारे में सनातन बौद्ध या सनातन जैन धर्म के बजाय सिख धर्म को जगह दिया। क्या वीर सावरकर सेकुलर थे?

मेरे ख्याल से तो नहीं, तो फिर उन्होंने सिख धर्म के हिंदू सनातन धर्म से अलगाव को महसूस कर लिया था, वह भी आजादी से पहले जब खालिस्तान नाम की चिड़िया का अता पता भी नहीं था। 

सिखों का सनातन परंपरा से अलगाव तब शुरू होता है जब इनमें अंतिम का कांसेप्ट आ जाता है। दसवें और अंतिम गुरु...! सनातन में कहीं भी अंतिम का कांसेप्ट नहीं है। सनातन हिंदू, सनातन जैन और सनातन बौद्ध तीनों ही अनंत के कांसेप्ट में विश्वास करते हैं। अंतिम का कांसेप्ट इस्लामिक कॉन्सेप्ट है, अंतिम पैगंबर,  अंतिम किताब।

विभाजन थोड़ा और बढ़ जाता है, जब सिखों के बीच किताब महत्वपूर्ण हो जाती है। किताब इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि 'गुरु ग्रंथ साहब' को ही अंतिम गुरु मान लिया जाता है। सनातन परंपरा श्रुति परंपरा रही है, सुनना, याद करना और अगली पीढ़ी तक पहुंचाना। लिखने की परंपरा बहुत देर से शुरू हुई, वह भी पत्तों और ताम्र पर। 

वेद खो गए, साढ़े तीन चार हज़ार साल पहले फिर से कंपोज करने पड़े। ढाई- तीन हजार साल पहले तक रामायण-महाभारत की कहानियां लोक परंपरा में ही सीमित थी। मूल रामायण महाभारत कहाँ है, किसी को नहीं पता। दो हज़ार साल पहले भगवद गीता को पूछने वाला कोई नहीं था। कटु लग सकता है, अविश्वसनीय लग सकता है, पर ऐतिहासिक रूप से सत्य है।

िताब महत्वपूर्ण है इस्लाम में, किताब महत्वपूर्ण है सिखों में। किताबों का महत्व सिखों को इस्लाम के करीब और सनातन परम्परा से दूर ले जाता है। 

फिर आता है कॉन्सेप्ट बेअदबी का। बेअदबी की सजा है हिंसा! हाथ काट दो, पैर काट दो, जान से मार दो। संस्कृत का पूरा शब्दकोष छान मारिए, कहीं भी आपको बेअदबी या ईशनिंदा का समानार्थी शब्द ही नहीं मिलेगा। ईशनिंदा जैसा कोई कांसेप्ट सनातन में है ही नहीं। 

ईशनिंदा, तौहीन-ए-रिसालत ये सब इस्लामिक कांसेप्ट है और 'बेअदबी' सिखों का कॉन्सेप्ट। दोनों की सजा मौत।

यह चीज भी सिखों को इस्लाम के करीब और सनातन से दूर ले जाती है। और भी कुछ असमानताएं है, पर ये मुख्य वजहें हैं जिन्हें शायद वीर सावरकर ने अपनी दूरदृष्टि या अध्ययन से देख लिया था, बाकी सारी वजहें राजनैतिक और क्षणिक है।

सवाल यह है किस सिख-मु.स्लिम गठजोड़ क्या लंबे समय तक चल सकता है? जवाब है नहीं। इतनी समानताओं के बावजूद कुछ विरोधाभास भी है। सिखों में कीर्तन-संगीत उनके धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जबकि इस्लाम में संगीत पूरी तरह हराम है। हलाल और झटका मीट भी दोनों के बीच असमानता पैदा करता है। 

जहां हिंदू बहुसंख्यक होगा, वहां सिख हमेशा रहेंगे लेकिन जहां इस्लाम बहुसंख्यक होगा, वहां से सिखों को भाग कर फिर से हिंदुओं की शरण में आना पड़ेगा। बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान इसके सबसे ताजा और ज्वलन्त उदाहरण हैं।

Written by
 Zoya Mansoori of Facebook

Sunday 27 March 2022

सरकारी नौकर समाज के मालिक बने बैठे हैं. काले अंग्रेज़.

यदि कोई राजनेता तुम्हें रोज़गार देने के नाम पर सरकारी नौकरी देने का वादा करे तो उसे कभी वोट मत दो. चूँकि सरकारी नौकरी तो होनी ही बहुत कम चाहिए.

सरकारी नौकर समाज के मालिक बने बैठे हैं.
काले अंग्रेज़.

मोटी तनख्वाह, अनगिनत छुट्टियाँ, भत्ते, ज़ीरो ज़िम्मेदारी, पक्की नौकरी, पेंशन. इन्हें तो GPL मार दफ़ा करना चाहिये. ये समाज की तरक्की मे Roadblock हैं. जो नेता सरकारी नौकर खत्म करने का, कम करने का वादा करे, इन की तनख्वाह, भत्ते, छुटियाँ घटाने का वादा करे, इन की नौकरियां कच्ची करने का वादा करे, काम के प्रति इन्हें ज़िम्मेदार बनाने का वादा करे, उसे वोट दो.

~ तुषार कॉस्मिक

पीछे किसी ने कहा कि मैं Mental हूँ.

पीछे किसी ने कहा कि मैं Mental हूँ. कहा तो derogatory ढँग से है लेकिन कथन सही है.

है क्या कि अधिकांशतः इंसान सिर्फ़ Physical है. शरीर मात्र. खाना-पीना-सोना-बच्चे जनना और मर जाना. सब शरीर के तल के काम. मन का यंत्र प्रयोग करना उस ने जाना ही नहीं. वो उसे यंत्रणा लगता हूँ. मन जंग खाये जाता है.

फिर कोई आये और उस की जमी-जमाई मान्यताओं को हिला दे, झकझोर दे तो वो उसे मेन्टल (पगगल) लगता है. लेकिन अनजाने में शब्द सही प्रयोग हुआ जा रहा है. Mental. मेन्टल. जो mind का प्रयोग करे, वो तो Mental होगा ही. जो सिर्फ फिजिकल रह गए, उन को चिंतित होने की ज़रूरत है, उन्हें Mind प्रयोग करने की ज़रूरत है, उन्हें Mental होने की ज़रूरत है.~ तुषार कॉस्मिक

क्या आप ने अक्सर सुना कि फलाँ ग्रेजुएट है लेकिन फिर भी रेहड़ी लगा रहा है?

क्या आप ने अक्सर सुना कि फलाँ ग्रेजुएट है लेकिन फिर भी रेहड़ी लगा रहा है?
या
सोशल मीडिया पर अक्सर पोस्ट देखी कि बाप मोची है लेकिन बेटी अफसर बन गयी?

लोग वाह-वाह करने जुटते हैं.

चलिए, आप को कुछ अलग बताता हूँ. क्या आप को पता है कि रविदास मोची थे और उन  की शिष्या थी मीरा बाई? मीरा बाई, जो कि रानी थी. क्या आप को पता है कबीर जुलाहा थे. अपने हाथ से कपड़ा बुनने वाले.  क्या आपको पता है नानक किसान थे? Mercedes पर चलने वाले ज़मींदार नहीं. खुद हल चलाने वाले किसान. समझे?

ये जो समाज में काम के प्रति छोटे-बड़े का भेद-भाव आ गया है न, गलत है.

समाज को एक मोची की, एक गटर साफ़ करने वाले की, एक कूड़ा इकट्ठा करने वाले की, पंचर लगाने वाले की, बाल काटने वाले की भी उतनी ही ज़रूरत है जितनी किसी अफसर की. फिर यह छोटा-बड़ा क्या? फिर यह कमाई का इत्ता बड़ा फर्क क्या?
ठीक करो इसे. ~तुषार कॉस्मिक

Thursday 24 March 2022

सरकार बनाने के लिए तमाम ताम-झाम होता है. क्या ज़रूरत है इन सब आडम्बरों की?

चुनाव पीछे सरकार बनाने के लिए तमाम ताम-झाम होता है. बड़े आयोजन. करोड़ों रुपैये का फूंक जाना होता है. कितना ही समय और ऊर्जा व्यर्थ बह जाती है.

क्या ज़रूरत है इन सब आडम्बरों की?

आप देखते हैं, अक्सर विरोध किया जाता है कि ब्याह-शादियों पर अनाप-शनाप खर्च किया जाता है. गैर-ज़रूरी है. शादी सादी भी हो सकती है. और फेल होनी होगी तो मेगा-मैरिज भी हो सकती है.

तो सीखो. ये जो झोल-झाल करते हो न सरकारी, इस सब से जनता को असल में कोई मतलब है नहीं. जनता का नुक्सान है इस से. चूँकि पैसा जनता का बह जाता है पानी में. किसी नेता की जेब से तो कुछ जाता है नहीं.

सो यह सब शपथ ग्रहण आदि से जनता को क्या मतलब. रवायत है बस यह. बेमतलब. जिस ने हेर-फेर करना होता है, वो कसम खा के भी करता है. बेहतर है इन से एफिडेविट लो. और बेहतर है, इन का पॉलीग्राफ टेस्ट भी करवाओ ताकि थोडा अंदाजा हो सके कि ये जो कह रहे हैं, वही इन के मन में है भी कि नहीं. .

और इस सारी प्रक्रिया का विडियो बना Youtube पे डाल दो. खत्म बात. जिस ने देखना होगा देख लेगा. इतना ड्रामा काहे रचते हो? इडियट.

Friday 18 March 2022

तुम्हारे लीडर तुम्हारे पिछलग्गू हैं

तुम्हारे लीडर तुम्हारे पिछलग्गू हैं, वो तुम्हें नया रास्ता दिखाने का, तुम्हें सुधारने का रिस्क ले ही कैसे सकते हैं? तुम ने सड़ी-गली मान्यतायें चमड़ी की तरह चिपका रखी हैं. जंज़ीरों को जेवरात समझ रखा है. कौन पंगा ले? और जो पंगा लेगा, उसे तुम वोट दोगे? नहीं, तुम उसे सूली चढ़ाओगे, ज़हर दोगे, काट दोगे. सुकरात, जीसस, मंसूर जैसे लोगों के साथ क्या किया तुम ने? इन को कौन जिताएगा चुनाव? इन्हें वोट नहीं मौत दोगे तुम. लेकिन यकीन जानो, यही असल नेता हैं. बाकी सब बकवास. जो तुम्हें, तुम्हारी सोच को झकझोरता नहीं, वो तुम्हारा नेता हो ही नहीं सकता. ~ तुषार कॉस्मिक

"कश्मीर फाइल्स"- वजह क्या है इस की

जब से "कश्मीर फाइल्स" रिलीज़ हुई है, सोशल मीडिया पटा है, इस से जुड़े विडियो और लेखन से.

कश्मीरियों के तो आंसू नहीं रुक रहे इस फिल्म को देखने के बाद.

बहस छिड़ी हुई है. कश्मीर किस का? हिन्दु का या मुस्लिम का या दोनों का. बहस है, कश्मीर भारत का है या नहीं है.

संक्षेप में बता रहा हूँ, धरती माँ ने आज तक किसी के नाम रजिस्ट्री नहीं की कि वो किस की है. वो सब की है.

दूसरी बात, बहस है कि हिन्दुओं का पलायन हुआ क्यों? कौन ज़िम्मेदार था?

तो असल ज़िम्मेदार कोई इन्सान है ही नहीं. एक किताब है ज़िम्मेदार. "कुरान".

यह किताब जहाँ रहेगी, वहां मार-काट रहेगी ही. इस को मानने वाले न सिर्फ न मानने वालों को मारते-काटते हैं बल्कि आपस में भी मार-काट करते हैं. मुस्लिम से नहीं, इस्लाम से लड़ो, किताब से लड़ो.~ तुषार कॉस्मिक

Sunday 13 March 2022

उधार चाहिए. दो शर्तों पर. पहली शर्त, रकम पे कोई ब्याज नहीं मिलेगा. दूसरी शर्त, रकम भी नहीं मिलेगी

कल कहीं पढ़ा, "उधार चाहिए. दो शर्तों पर. पहली शर्त, रकम पे कोई ब्याज नहीं मिलेगा. दूसरी शर्त, रकम भी नहीं मिलेगी."

वाह! वल्लाह!! गजब ईमानदारी है. ऐसे ईमानदार को तो रकम मिलनी ही चाहिए. वैसे भी ब्याज है ही झगड़े की जड़. सुना है, इस्लाम में तो ब्याज हराम है.

और  ग़ालिब ने भी लिखा था, "क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां, रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन."

चार्वाक ने भी कहा है, "
यावज्जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत." अर्थात उधार ले कर भी घी पी लेना चाहिए. 

मैं उधार लेने वाले साहेब जिन का ज़िक्र किया मैंने ऊपर, ग़ालिब और चार्वाक से बिलकुल सहमत हूँ. ~ तुषार कॉस्मिक

Saturday 12 March 2022

Corona Fraud-- Real Reason- GREAT RESET

क्या किसी ने आज तक भगवान देखा? वैसे ही जैसे हम रोज़ पेड़, पौधे, स्कूटर, कार देखते हैं?
नहीं, तर्क-वितर्क नहीं चाहिए.
तर्क से न समझायें कि परमात्मा है.
कोई तो सुप्रीम शक्ति है. कोई तो चला रहा है दुनिया....न ..न. वैसे नहीं.
कुत्ते-बिल्ली को जैसे देखते हैं वैसे.
Can we see God as we see Dog?
The answer is NO.
मेरे अनुसार उत्तर नकारात्मक है.
लेकिन बहुत लोग मानते हैं भगवान को.
बहुत लोग भूत-प्रेत मानते हैं.
मुस्लिम जिन्न मानते हैं.
बहुत लोग तो एलियन के साथ सेक्स भी कर चुके.
क्या करें इन्सान को कैसी भी अनुभूति हो सकती है. उस की अनुभूतियाँ बहुत विश्वसनीय नहीं हैं.
उसे पता ही नहीं लगता कि जो वो सोच रहा है, जो वो अनुभव कर रहा है, वो उसे सोचवाया जा रहा है, अनुभव करवाया जा रहा है.
इन्सान तार्किक प्राणी है लेकिन वो बहुत आसानी से प्रोग्राम भी हो जाता है, किया जा सकता है.
मेरी नजर में कोरोना के लिए इन्सान को प्रोग्राम किया गया है. तमाम मीडिया प्रयोग कर के हौव्वा खड़ा किया गया.
आज भी किया जा रहा है. हौव्वा. इस से इन्सान का पेशाब निकल सकता है, दिल फेल हो सकता है, दिमाग की नस फट सकती है, अधरंग हो सकता है.....कुछ भी हो सकता है.
एक भी मौत कोरोना से हुई इस का एक भी सबूत पूरी दुनिया में नहीं है. लाश की चीर-फाड़ हुई नहीं. कैसे पता?
बिना लक्ष्ण के भी कोरोना घोषित कर दिया. कैसे पता?
लक्ष्ण जो बताये, वो नजले वाले को होते ही हैं. कैसे पता?
मौत का आंकड़ा कुल मिला के बढ़ा नही, कैसे पता?
जो मौत कोरोना से हुई बताई गईं, वो किसी और बीमारी से नहीं हुई, कैसे पता?
जो मौत कोरोना से हुई बताई गईं, वो डॉक्टरों की लापरवाही से नहीं हुई, कैसे पता?
जो मौत कोरोना से हुईं कही गईं, वो मर्डर नहीं थे, किसे पता?
जो मौत कोरोना से हुईं कही गईं, वो मेडिकल सिस्टम Collapse होने की वजह से नहीं हुईं, किसे पता?
जो मौत कोरोना से हुईं कही गईं , वो पूरा मेडिकल, सामाजिक, न्यायिक, सिस्टम Collapse होने से नहीं हुईं, किसे पता?
लेकिन Lockdown, वैक्सीन, मास्क के प्रयोग के नुक्सान सब को पता हैं.
इस पूरे ड्रामे के पीछे बिल गेट्स, Fauci जैसे कई लोग हैं, यह ज़ाहिर हैं इन की स्टेटमेंट से और कृत्यों से.
मन्तव्य मात्र वैक्सीन बेचना नहीं है. मन्तव्य गहरे हैं. आबादी कण्ट्रोल, इन्सान की आज़ादी कण्ट्रोल, इन्सान की आर्थिक आज़ादी कण्ट्रोल..........
मन्तव्य तमाम व्यवस्था परिवर्तन है.
GREAT RESET
~Tushar Cosmic ~

Friday 11 March 2022

Kashmir Files

Watch 

"Kashmir Files"

and 

watch 

in 

Cinema 

Halls.


And if you can afford, send tickets to your near and dear.

And promote this film online and offline as much as you can.

~ Tushar Cosmic

Punjab Files

क्या आप को पता है, खुशवंत सिंह ने भिंडरावाले की खुली ख़िलाफ़त की थी और वो भिंडरवाले की हिटलिस्ट पर रहे थे? और आपरेशन ब्लू स्टार को लीड करने वाले फौजी अफसरों में सिक्ख भी थे? और KPS Gill को Butcher of Punjab कहा गया चूँकि आरोप था गिल पर कि बहुत सिक्खों को गिल ने मरवा दिया, जिन्हें आतंकवादी समझा गया.


एक फ़िल्म Punjab Files नाम से भी बने, जिस में 1980 के बाद से जो बसों से उतार-उतार हिन्दू मारे गए, फिर 84 में सिख जलाए गए, फिर इंदिरा मारी गई,फिर उस के बाद भी बहुत कुछ हुआ , वो सब दिखाया जाए...

~ तुषार कॉस्मिक

Thursday 10 March 2022

मास्क और वैक्सीन और lockdown से नुकसान के हज़ारों सबूत हैं, फायदे का तिनका सबूत नहीं. राजनीति करनी थी इस मुद्दे पर, जीत जाते...

भारतीय राजनीति में पक्ष-विपक्ष दोनों चुटिया है. आज भजप्पा औंधे मुंह गिरती यदि  विपक्ष नकली बीमारी कोरोना के ख़िलाफ़ खड़ा होता. कोरोना की आड़ में जो जन-जीवन की ऐसी-तैसी हुई, जो मौतें हुईं, जो आर्थिक नुकसान हुआ, वो दुनिया का सब से बड़ा राजनीतिक अपराध है, उस के खिलाफ जो खड़ा होता जीत जाता. कोरोना वायरस या इस से मौत का किसी के पास घण्टा सबूत नहीं. मास्क और वैक्सीन और lockdown से नुकसान के हज़ारों सबूत हैं, फायदे का तिनका सबूत नहीं. राजनीति करनी थी इस मुद्दे पर, जीत जाते.~ तुषार कॉस्मिक

हमारा कुत्ता.. कुत्ता, तुम्हारा कुत्ता टॉमी.

तुम करो तो व्यापार, होशियार, तेज-तर्रार.

हम करें तो बे-ईमान, हरामखोर, चोर.

हमारा कुत्ता.. कुत्ता, तुम्हारा कुत्ता टॉमी.

वाह भइये! ई न चलबो!!

आप मुस्लिम नहीं हैं तो आप बेईमान हैं, हरामखोर हैं. कैसे?

आप मुस्लिम नहीं हैं तो आप बेईमान हैं, हरामखोर हैं. कैसे?

ईमान सिर्फ एक है और वो है इस्लाम और वो आप ने कबूला नहीं, सो आप हैं "बे-ईमान".

हलाल सिर्फ वो है, जिस की इस्लाम इजाज़त दे औऱ अगर इस्लाम के हिसाब से आप खाते नहीं, पीते नहीं, जीते नहीं तो आप हो गए "हरामखोर".

Gotcha?

~ तुषार कॉस्मिक

Tuesday 8 March 2022

जो लोग भारत से हर हाल में पिंड छुड़वाना चाहते हैं, भारत को भी चाहिए कि उन से पिंड छुड़वा ले.

अपने गिर्द देखता हूँ तो हर दूजे चौथे घर का बच्चा या तो इंग्लैंड-कनाडा जा चुका है या जाने की तैयारी में है. और माँ-बाप बड़े ही गर्व से बताते हैं, "हम ने तो बच्चा सिर्फ़ PR (Permanent Residency) के लिए भेजा है जी, नौकरी तो बस शौकिया करता है जी हमारा बच्चा." हालाँकि बच्चे विदेश में जॉब्स कमाने के लिए ही करते हैं, पढ़ना बहाना मात्र होता है. लेकिन PR पाना ही इन का शिखर उद्देश्य होता है, यह भी सत्य है. 

ठीक है, जिसे जहाँ रहना हो, रहे, लेकिन याद रहे युक्रेन जैसी स्थिति में फँसने पर भारत से कैसी भी उम्मीद न रखें और भारत को इन की कैसी भी मदद करनी भी नहीं चाहिए. जो लोग भारत से हर हाल में पिंड छुड़वाना चाहते हैं, भारत को भी चाहिए कि उन से पिंड छुड़वा ले.~ तुषार कॉस्मिक

तुम ठीक से साँस न ले पाओ, तो तुम मूर्ख नहीं चूतिया हो, अखण्ड चूतिया.

युक्रेन और रूस जंग में तुम्हें कोई मुंह पर डायपर बांधे दिखा?

भारत में 'किसान आन्दोलन' में किसान मुंह पर कच्छा पहने थे क्या?

राजनितिक रैलियों में तुम्हें लोग मुंह बांधे दिखे क्या?

अभी भी तुम्हें अगर समझ नहीं आया कि मास्क षड्यंत्र मात्र है कि तुम ठीक से साँस न ले पाओ, तो तुम मूर्ख नहीं चूतिया हो, अखण्ड चूतिया.

~ तुषार कॉस्मिक


मरने और मारने वाले दोनों मुसलमान. अल्लाह-हु-अकबर.

जो लोग पाकिस्तान से आये थे, उन में मेरे पिता भी थे. 

वो "पिशोरी जुत्ती" याद करते थे, "पिशोरी लाल" नाम भी होते थे, पश्चिम पुरी, दिल्ली में आज भी "पिशोरियाँ दा ढाबा" है.


तो साहेबान, कद्रदान, मेहरबान, जिगर थाम कर आगे पढ़िए.

उसी पिशोर की मस्ज़िद में फटा बम. 70 से ज़्यादा बन्दे हलाक. 


मरने और मारने वाले दोनों मुसलमान.

अल्लाह-हु-अकबर.


~ तुषार कॉस्मिक

वैसे भी अंग्रेजी डॉक्टर करते क्या हैं? जनता की उलटे उस्तरे से खाल उतरने के अलावा.

यूक्रेन जैसे मुल्कों से जो छात्र डॉक्टरी पढ़ के आते  हैं, उन में से ज़्यादातर भारत का डॉक्टरी टेस्ट पास ही नहीं कर पाते. फेल हो जाते हैं.

फिर क्या करते होंगे?

चोरी छुपे प्रैक्टिस, आधी-अधूरी. 


वैसे भी अंग्रेजी डॉक्टर करते क्या हैं? जनता की उलटे उस्तरे से खाल उतरने के अलावा. ये कोई जन कल्याण नहीं करते. शुद्ध व्यापार करते हैं.  

इस तरह के लोग जो विदेश पढने जाते हैं, या फिर किसी भी तरह भारत से पिंड छुड़ा बसने जाते हैं, उन के मुसीबत में फँसने पर जिन की छातियों में दूध उमड़ता हो, चूतिया हैं. ~ तुषार कॉस्मिक

इंडिया में कुछ नहीं रखा जी, यहाँ कोई फ्यूचर नहीं है जी.

क्या आप को पता है आधे से ज़्यादा पँजाब रेलवे के मुसाफिरखाना में बैठे लोगों की तरह इंतेज़ार में है, कब कनाडा की ट्रेन आये और वो इस गन्दे,गलीज़, भ्रष्ट मुल्क से विदा, नहीं-नहीं, अलविदा हो सके? इस के लिए बहुत लोग तो अंट-शंट तरीके भी अख्तियार करते हैं. नदी, नाले, पहाड़ पार करते हैं. एक ही धुन,"इंडिया में कुछ नहीं रखा जी, यहाँ कोई फ्यूचर नहीं है जी."

गुड, वेरी गुड. यह मुल्क घटिया है, मुल्क के बाशिंदे घटिया. लेकिन फिर विदेश में मुसीबत में फँसने पर इस मुल्क से हमदर्दी की उम्मीद भी न रखो..घटिया मुल्क के घटिया लोग क्या मदद करेंगे? नहीं?~तुषार कॉस्मिक

मुस्लिम काले कुत्ते को वोट देगा, योगी को नहीं, मोदी को नहीं, भाजपा को नहीं

मुस्लिम काले कुत्ते को वोट देगा, योगी को नहीं, मोदी को नहीं, भाजपा को नहीं. भाजपा मतलब आरएसएस. आरएसएस मतलब हिन्दू. हिन्दू मतलब दुश्मन. 

मुस्लिम को भारत को हर हाल में इस्लामिक करना है. संतरा हरा करना है. हिंदुस्थान को पाकिस्तान करना है, अफगानिस्तान करना है, चाहे खाने को दाने न हों, चाहे जँगली सभ्यता में लौटना पड़े. चाहे स्कूलों में, अस्पतालों में, मस्जिदों में बम फटते रहें. विकास से मुस्लिम को कोई मतलब है नहीं, चाहे सोने की सड़कें क्यों न बनवा दो. वो इस बकवास में नहीं पड़ता. 

सो वो हर सम्भव प्रयास कर रहा है कि योगी हार जाए. क्यों? क्योंकि योगी सिर्फ UP का CM ही नहीं, अगला PM प्रोजेक्ट किया जा रहा है.~ तुषार कॉस्मिक

Tuesday 1 March 2022

Allopathy is a Fraud

Allopathy is a Fraud.

Doctors are touts of Big Pharma.

Allopathy is for surgery and emergency (accidents etc) only.

Better go back to Yogasans, Pranayam, Ayurved, Naturopathy, Homeopathy, Yunani etc. You may scarcely need Allopathy.

Allopathy has no treatment for Lifestyle diseases. Such diseases come from a dis-eased life, can be cured by an eased life, easy life. ~ Tushar Cosmic