Saturday 30 May 2020

कुत्ता श्री की कथा




"कुतिया देवी का मन्दिर". झाँसी  में है "कुतिया देवी का मन्दिर". मतलब अब किसी लड़की को, किसी औरत को गाली देते हुये  कुतिया यानि bitch मत कहिएगा, चूंकि कुतिया भी देवी है।

छतीस गढ़  में एक मंदिर है, "कुकुर देव का मन्दिर". यानि कुत्ता देव का मंदिर।  धर्मेंदर को पता होता तो वो कभी नहीं कहता, "कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा। "

चीन में कुत्ता उबाल के खा जाते हैं, आप हैरान हो सकते हैं,  भारत में गोमूत्र पी जाते हैं लोग, दुनिया हैरान हो सकती है।

भारत में गली के कुत्ते ने आपको काटा तो आप कुछ नहीं कर सकते कुत्ते के खिलाफ, आप ने कुत्ते को काट दिया मुकद्दमा हो जाएगा आपके खिलाफ।

मुर्गा काट लो सरे-आम
, कुछ नहीं होगा, कुत्ता काटोगे, जेल में सड़ोगे।
लेकिन उत्तर प्रदेश में सीतापुर में 2018 में कुत्तों ने कुछ  बच्चे मार दिये, गुस्से में लोगों ने सैंकड़ों कुत्ते मार दिये

इस वहम में मत रहें कि कुत्ता इन्सान का बढ़िया दोस्त होता है।
होता है, लेकिन सिर्फ मालिक नाम के इन्सान का।
बाकी तो किसी को भी, कभी भी काट सकता है।

भारत में कुत्तों द्वारा इन्सानो के काटने के इतने ज़्यादा केस होते हैं कि rabbies की vaccine की shortage बनी रहती है। सरकारी अस्पताल तो हाथ खड़े कर देते हैं। लिख के लगा देते हैं, हमारे पास न है वाककिने।

इंसान का कुत्ता प्रेम अनूठा है, विचित्र है। कुत्तों से प्रेम बहुत है लेकिन कुत्ता-कुतिया अगर प्रेम करें,  सड़क किनारे सम्भोग करते दिख जाएँ तो लोग उनको पत्थर मारने लगते हैं। शायद इसलिए चूंकि इंसान ने अपना सेक्स तो खराब कर ही दिया है, दूषित कर दिया है, सेक्स को गाली में बदल दिया सो कुत्तों का कुदरती कृत्य कैसे बरदाश्त हो?

कुत्ता मुझे खाने-पीने के मामले में भी इंसान से ज़्यादा समझदार  लगता
है। उसकी चॉइस फिक्स है कुदरती है। वो फल नहीं खाता। मांस दे दो, खा लेगा। इंसान कुछ भी खा लेता है॥ मैक-डोनाल्ड का बर्गर मुझे लगता है कि कुत्ता भी न खाए, इतना बेस्वाद और बासा सा ..निरा मैदा...लेकिन बाज़ारवाद....दिमाग खराब. हमारे यहाँ जो वडा पाव बिकता है......ताज़ा बनाया जाता है आपके सामने, वो उससे लाख गुणा बेहतर है, लेकिन हमें बर्गर खाना है, बर्गर जो कुत्ता भी न खाये   

आपने सुना ही होगा आबादी बहुत बढ़ गई है.....मैं इंसानों की नहीं
, कुत्तों की आबादी की बात कर रहा हूँ. वैसे तो कुत्तो की आबादी भी इसलिए बढ़ी है क्योंकि बेवकूफ इंसानों की आबादी बढ़ी है। आज शहरों में कुत्ता इन्सान का बेस्ट फ्रेंड नहीं बल्कि एक जबर्दस्त दुश्मन भी बन चुका है।
ये दीगर बात है कि इन्सान भी खुद का सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका है...

किसी ज़माने में जब घर बड़े थे और गाँव छोटे तो, जगह थी इन्सान के पास..... और ज़रूरत भी थी। कुत्ता एक साथी की तरह, चौकीदार की तरह इन्सान की मदद करता था। लेकिन अब जब.. शहर बड़े और घर छोटे हो गए तो अब कुत्ते मात्र सजावट के लिए रखे जाते हैं, शौक के लिए रखे जाते हैं। भला तेरा कुत्ता मेरे कुत्ते से ज्यादा कुत्ता कैसे?

जिस तरह मेट्रो सिटी में आजकल लोग कुत्तों को सोफों पर बिठाते हैं, बेड पर अपने साथ सुलाते हैं, अब कुत्तों को कुत्ता कहना उनकी इज्ज़त हत्तक माना जाना चाहिए. उन्हें "कुत्ता जी" ही कहना चाहिए, वरना सजा होनी चाहिए.

हिंदु के कुत्ते को कुत्ताराम जी कहा जाना चाहिए

मुस्लिम के कुत्ते को कुत्ता खान जी,

फिर कुत्ता सिंह जी,

कुत्ता फर्नाडीज जी . . . वगैरा वगैरा ... ना अगर कोई कहे तो कोर्ट केस तो बनना चाहिए। नहीं?

ग़लत कहा था शेक्सपियर ने कि नाम में क्या रखा है. अगर नहीं रखा
, तो क्यूँ नहीं लोग अपना नाम 'कुत्ता' रख लेते? हाँ, कुत्ते का नाम 'टाइगर' ज़रूर रखते हैं, “शेरु” ज़रूर रख लेते हैं. नाम में बहुत कुछ रखा है, तभी तो लोग अपने ब्च्चे का नाम तमूर रखते हैं।  इसीलिए  कुत्तों को कुत्ता कहने पर सजा तो होनी ही होनी चाहिए।  
इंसान के कुत्ता प्रेम को देखते हुये मैंने लिखा था एक बार, अगर अगला जनम है तो मैं कुत्ता बनना चाहूंगा, अच्छी नसल का कुत्ता" अगले जन्म मोहे कुत्ता कीजो। इस नाम से  किताब भी है, amazon से ले सकते हैं।
समाज में कुत्ता प्रेम की एक वजह है. खास करके हिन्दू समाज में. हिन्दू औरतों को कोई भी बाबा, पंडित, मौलवी आसानी से बहका सकता है.......घर में बरकत नहीं, पति बीमार है, बच्चा बार-बार फेल होता है तो जाओ काले कुत्ते को रोज़ दूध पिलाओ.....जाओ, पीले कुत्ते को रोज़ खिचड़ी खिलाओ.....बस ये महिलाएं गली-गली कटोरे ले के कुत्ते ढूंढती हैं....बीमार कुत्तों को दवा देती हैं..... इन बाबा बाबियों की करामात से औरतें कुत्तों की मदर टेरेसा बन जाती हैं और मर्द कुत्तों के godfather

खैर
, इन्सान हो चाहे कुत्ते......आज ये सब अल्लाह की देन कम हैं डॉक्टर की देन ज्यादा हैं.....अल्लाह तो अगर पैदा करता था तो फिर बीमारी भेज के मार भी देता था...इन्सान ने अल्लाह के नेक काम में दवा बना के बाधा डाल दी.....वो अब मरने नहीं देता......न अपनी औलाद को और न कुत्तों की.....वो बीमार नहीं होने देता...... वो भूखा नहीं मरने देता...    अल्लाह के नेक काम में बाधा डालता है........वैसे  अल्लाह, भगवान, गॉड के काम में दखल नहीं देना चाहिए सो इन्कलाब/जिंदा-बाद कहिये ...... और आने दीजिये संतानों को निरन्तर...चाहे आप की हों चाहे कुत्तों की.....लेकिन बीमारी भी आने दीजिये न.....बीमारी से मौत भी तो आने दीजिये तभी तो बैलेंस बनेगा......

या फिर दूसरा काम कीजिये, बच्चों के जन्म पर रोक लगाएं ................ अल्लाह के नेक काम में थोडा और बाधा डालिए, चाहे कुत्तों का जन्म  हो, चाहे इंसान  का,  इनके जन्म पर रोक लगाएँ।  कुत्तों  के मामले तो फिर बंध्याकरण कर दिया जाता है, इंसान के मामले तो बड़ी दिक्कत है. तमाम सामाजिक, धार्मिक दिक्क़ते हैं. अभी जनसंख्या कानून आने दीजिये, देखना  खास लोग  फिर सड़क पे होंगे. 

गली में कालीन या दरी बिछते ही बच्चे दौड़ना-खेलना शुरू कर देते हैं. धमा-चौकड़ी. आप पार्क में बैठ कर लौटते हैं तो पहले से कुछ जीवंत हो उठते हैं. जीवन जीने के लिए स्पेस की ज़रूरत है पियारियो. बंदे पर बन्दा न चढाओ.

शायर साहेब लगे हैं, माइक कस कर पकड़े हैं. कईओं को तो माइक खूबसूरत महबूबा से भी ज़्यादा अज़ीज़ होता है, मिल जाए बस, छोड़ना नहीं फिर.

तो शायर साहेब लगे हैं. "कुत्ते की दम पर कुत्ता. कुत्ते की दम पे कुत्ता. फिर उस कुत्ते की दम पे कुत्ता. बोलो वाह!" जनता चिल्ल-चिल्लाए,"वाह! वाह, वाह!!" वो आगे फरमाते हैं, "उस कुत्ते की दम पे एक और कुत्ता., अब उस कुत्ते की दम पे एक और कुत्ता..."

भीड़ में से किसी के बस से बाहर हो गया, वो चिल्लाया, पिल-पिल्लाया,"बस करो भाए, बस करो. दया करो, ये सब गिर जाएंगे."

हम में से कब कोई चिल्लाएगा? "बस करो भाई, ये गिर जायेंगे."
चलिये ये सारी बक.... बक  तो हो गई॥  सोल्यूशंस क्या है? समाज तो सुधरने से रहा, कुत्ता भैरों अवतार था, है, बना रहेगा। खास करके काला कुत्ता।  बहु काली किसी को नहीं  चाइए, काला कुत्ता पूजनीय है। काली माता पूजनीय है। खैर, वो अलग बात है।  तो सोल्यूशंस की तरफ आते हैं  ....
एक सोल्यूशंस है कि कुत्तों की Godmother Godfather जो गली-गली इनको ढूंढ खाना खिलते हैं, वो इनको अपने घर ले जाएँ, इनको गोद ले लें। लेकिन आज कल अपने रहने की तो जगह होती नहीं शहरों में कुत्तों को कहाँ रख लेंगे?

“जानते हैं जन्नत की हकीकत हम भी ए ग़ालिब
, मगर दिल के बहलाने को ख्याल अच्छा है।
दूसरा सोल्यूशंस है कि कुत्तों  की सिर्फ दो कैटेगरी होनी चाइए। एक घरेलू डॉग, दूसरा यतीम डॉग ...लेकिन यतीम डॉग नामकरण डॉग लवर को पसंद नहीं आयेगा। सो दूसरी श्रेणी सोश्ल dogs कही जा सकती है।  घरेलू डॉग घर में रहें, मालिक उसकी टट्टी, पेशाब, उल्टी अगर सड़क पर गिरे तो साफ करे। और सोश्ल डॉग रहे डॉग shelter होम में। सब के सब। सड़क पर एक भी कुत्ता नज़र न आए।

लेकिन क्या हमारी सरकार इतनी सक्षम है कि कुत्ते manage कर सके? इंसान तो होते नहीं manage इनसे। कुत्ते कैसे करेंगे manage?

खैर, हर गली मोहल्ले, कॉलोनी में कोई भी सार्वजनिक जगह पर गौशाला की तर्ज पे कुत्ता-शाला खोल देनी चाइए।  डॉग लवर उनको वहीं खाना-पीना  दें, दूध दें।  गर्मी में कूलर लगवा दें, हो से तो AC भी लगवा सकते हैं, सर्दी में हीटर भी दे सकते हैं ।

वहाँ रहे कुत्ते शान-आन-बान से।

बाकी इंसान? इंसान मरते रहें सड़कों पर। उनके बारे में हम फिर सोचेंगे।

विडियो पसंद आया तो LIKE करें, नहीं पसंद आया तो भी LIKE करें। शेर करें, कुत्ता नहीं शेर करें, बबर शेर करें। और कमेंट करें, कुत्ते-कुत्ते, प्यारे प्यारे कमेंट करें। फॉर दी सके ऑफ डॉग। नहीं फॉर थे सेक ऑफ गोड। ओ... माइ डॉग। ये क्या हो गया मुझे। ओ... माइ गोड...डॉग.... गोड ..... डॉग...   Tik tok... Tik- Tok....बाइ बाइ बाइ बाइ

Friday 22 May 2020

मज़हब ही है सिखाता आपस में बैर रखना




जब तक हिन्दू मुसलमान रहेगा

कहाँ कोई इंसान रहेगा

कब तक सदियों पुरानी लाशें ढोयेंगे

कब तक मरे अलफ़ाज़ में ज़िन्दगी खोयेंगे

कब तक गिरवी रखेंगे अक्ल

कब तक खोयेंगे असली शक्ल

कब तक बूढों के जाल में गवाएंगे रवानी

कब तक  पुरखों के जंजाल में फसायेंगे जवानी

मरी इमारतों में कब तक ज़िन्दा इंसान दफन करेंगे

जिंदा इंसानों में कब तक मरी इमारते दफन करेंगे

कब तक करेंगे बच्चों के कपड़ों को कफ़न

कब तक करेंगे जवानी को, रवानी को दफन

न  कोई ज़बरदस्ती, न कोई ज़िद

मैं तोडू मंदिर, तुम तोड़ो मस्ज़िद

जब तक हिन्दू मुसलमान रहेगा

कहाँ कोई इंसान रहेगा

 हिन्दू, मुस्लिम, सिख इसाई, आपस में सब भाई भाई

भाई भाई तो फिर क्यों हैं हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई

जब तक हिन्दू मुसलमान बने रहोगे

बारूद की दूकान बने रहोगे

सियासत ...लगाएगी इक तिल्ली

उड़ाएगी तुम्हारी अक्ल की खिल्ली

कब आएगी तुम को अक्ल

कब पहचानोगे अपनी शक्ल

तुम न हिन्दू हों, न मुसलमान हो

तुम, तुम बस इंसान हो

बारूद नहीं, मोहब्बत की दूकान हो

खुद अल्लाह हो, भगवान हो

उतार फेंको यह हिन्दू मुसलमान का जूआ

क्या कभी कोई बच्चा गुलाम पैदा हुआ

आज़ाद तुम पैदा हुए थे, आज़ाद हो जाओ

मौलवी पंडित के पिंजरे से परवाज़ हो जाओ

जिन्हें खैर ख्वाह मानते हो,शैतान हैं

खूनी हैं, दरिन्दे हैं, हैवान हैं,

कब तक हिन्दू मुसलमान बने रहोगे

बारूद की दूकान बने रहोगे

पहचानो, तुम बारूद नहीं, मोहब्बत की दूकान हो

तुम खुद अल्लाह हो, भगवान हो

पिंजर के पिंजरे को छोड़ने से पहले, आज़ाद हो जाओ

परवाज़ हो जाओ...परवाज़ हो जाओ......परवाज़ हो जाओ

पागलों की कमी नहीं, इक ढूँढो हज़ार मिलतें हैं

हर गली, हर मोहल्ला, हर बाज़ार मिलतें हैं

रोम, काबा, हरिद्वार मिलतें हैं

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वार मिलतें हैं

ईद, दिवाली,क्रिसमस, हर त्यौहार मिलतें हैं

गले मिल, गला काटने को, मेरे यार मिलतें हैं

इक बार, दो बार नहीं, बार बार मिलतें हैं

पागलों की कमी नहीं, इक ढूँढो हज़ार मिलतें हैं

सोचने लगे गर आवाम तो निजाम गिर जाएगा

ज़मीन ही नहीं आसमान गिर जाएगा

आंधी ही नहीं, तूफ़ान घिर जाएगा

पांडा ही नहीं इमाम गिर जाएगा

हिन्दू गिर जाएगा, मुसलमान गिर जाएगा

सियासत और सरमाया तमाम गिर जाएगा

नंगा और नंगे का हमाम गिर जाएगा

सोचने लगे गर आवाम तो निजाम गिर जाएगा

आसमानी किताबों का सबसे पंगा है

ज्ञान से, विज्ञान से, संविधान से

सबसे पंगा है.... नंगा है, दंगा है

दुनिया हर कदम आगे बढ़ना चाहती है

आसमानी बापों से बंध, नहीं सड़ना चाहती है

सो मुल्ले, पुजारी, पादरी पाद रहे हैं

चेले चांटे यहाँ वहां सरपट भाग रहे हैं

कायम अभी जलाल है
अंदर बहुत मलाल है

कर रहे कतल हैं
उल्टी सीधी मसल हैं

कुछ भी न असल हैं
सब बस नकल हैं

सब बस नकल हैं
सब बस नकल हैं

ये धरम नही भरम है ...
बहुत ही गरम है

उधर से भी गरम है
इधर से भी गरम है

तेरा धरम भरम है
मेरा धरम धरम है

कट्टरता चरम है
खूनी करम है

न कोई शरम है
दुनिया हरम है

कोई न नरम है
न कोई मरहम है

ये धरम नही भरम है ...
बहुत ही गरम है

उधर से भी गरम है
इधर से भी गरम है

हम्म...तो तुम्हें परमात्मा के होने का सबूत चाहिए....
ज़िंदगी बिखरी है हर जगह, फिर भी ताबूत चाहिए

हैरानी है, तुम्हें परमात्मा नज़र न आया,
या शायद नज़र तो आया लेकिन तुम्हारा नजरिया कुछ और है,

मेरी नज़र में जो परमात्मा है वो तुम्हारी नज़र में कुछ और है
और तुम्हारी नज़र में जो परमात्मा है  मेरी नज़र में वो कुछ और है

परमात्मा

समन्दर से बना है ,
हवाओं में बहा  है,
बादल बन उड़ा है
पेड़ बन खड़ा है

ये बच्चा जो  खेल रहा
जो पह्लवान दंड पेल रहा

ये परमात्मा नहीं तो और कौन है
ये जो संगीत है, ये जो मौन है
ये परमात्मा नहीं तो और कौन है
ये परमात्मा नहीं तो और कौन है

मज़हब ही है सिखाता, आपस मैं बैर रखना
सीखो अक्ल, सीखो आपस में खैर रखना

धर्म का धंधा ...
बनाए अँधा.......
दो इसे कन्धा......
रफा करो...
इसे दफा करो

बिन खुद की खुदाई, खुदा कहीं न मिलेगा
और खुदा मिले न मिले, जो मिलेगा वो खुदा होगा

Saturday 16 May 2020

इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें


इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें गरीब ही रहें, तभी तो कमअक्ल रहेंगे गरीब ही रहें, तभी तो बदशक्ल रहेंगे गरीब ही रहें, तभी तो कमअक्ल रहेंगे गरीब ही रहें, तभी तो बदशक्ल रहेंगे गरीब ही रहें, तभी तो बजायेंगे ताली गरीब ही रहें, तभी तो साफ़ करेंगे नाली गरीब ही रहें, तभी तो बजायेंगे ताली गरीब ही रहें, तभी तो साफ़ करेंगे नाली इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें गरीब ही रहें तभी तो मटन-चिकन फाड़ा जाएगा, तभी तो फल--काजू-किशमिश-खजूर खाया जाएगा गरीब ही रहें तभी तो मटन-चिकन फाड़ा जाएगा, तभी तो फल--काजू-किशमिश-खजूर खाया जाएगा गरीब ही रहें तभी तो काम वाली बाई को नोचा जाएगा , तभी तो चौक पे बैठा मजूर खाया जाएगा गरीब ही रहें तभी तो काम वाली बाई को नोचा जाएगा , तभी तो चौक पे बैठा मजूर खाया जाएगा इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें और सब शामिल हैं राजनीति शामिल है देश-नीति शामिल है विदेश-नीति शामिल है सब शामिल हैं इलम शामिल है मजहबी चिलम शामिल है सब शामिल हैं राजनीति शामिल है देश-नीति शामिल है विदेश-नीति शामिल है इलम शामिल है मजहबी चिलम शामिल है सब शामिल हैं इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें कब कोई बच्चा गरीब पैदा होता है, कब कोई कुदरती फरक होता है कब जीवन एक के लिए स्वर्ग, एक के लिए नरक होता है कब जीवन एक के लिए स्वर्ग, एक के लिए नरक होता है इक सारी उम्र एश करे दूजा घुटने रगड़ रगड़ मरे, इक सारी उम्र एश करे दूजा घुटने रगड़ रगड़ मरे, इक सवार, दूजा सवारी इक सवार, दूजा सवारी इक मजदूर, दूजा व्योपारी इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें इक रहे आलिशान कोठी में इक एडियाँ रगड़े कोठरी में इक रहे आलिशान कोठी में इक एडियाँ रगड़े कोठरी में इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें #Indian_labour #Indian_Poor #Poverty_in_India #भारतीय_गरीब #गरीब #भारतीय_मज़दूर_संघ #भारत_में_गरीबी

Sunday 10 May 2020

मादर चोद की गालियों से मदर डे की बधाइयों तक


मदर डे स्पेशल- -भविष्य में  माँ-बाप का रोल नगण्य होगा- कैसे? देखें.

मादर चोद यह तकिया कलाम है हमारा.  

लेकिन आप फिर भी  मदर-डे की बधाई लीजिये. अब आगे चलते हैं. मेरा मानना है कि भविष्य में माँ-बाप का रोल जैसा आज है वैसा बिलकुल नहीं होना चाहिए.

औलाद पैदा करने का हक़ जन्म-सिद्ध (birth राईट, पैदईशी हक़)  न हो के, earned  राईट होना चाहिए. आज हर किसी  को हमने औलाद पैदा करने का अधिकार दे रखा है. और  जितनी मर्जी औलाद पैदा करने का हक़  दे रखा है. कई बार तो साफ़ दिख रहा होता है कि यह बच्चा स्वस्थ जीवन  नहीं जी पायेगा फिर भी माँ बाप की जिद्द पर उसे इस दुनिया में लाया जाता है और वो बेचारा सारी उम्र नरक भोगता रहता है. दिख रहा होता है कि पैरेंट अभी आर्थिक रूप से खुद का वज़न नहीं झेल सकते, लेकिन उनको बच्चे पैदा करने देते हैं हम. फूटपाथ पर जीवन घसीटने वाले को औलाद पैदा करने देते हैं हम.  

न, न यह सब नही चलेगा आगे. अब डिटेल में सुनिए 

पहली बात. आपने जैसे किसी पशु की नस्ल सुधारनी हो तो बेस्ट मेल फेमेल लिए जाते हैं. उनका संगम होता है और उनके बच्चे होते हैं. सेम हियर. स्वस्थ तीव्र-बुद्धि बच्चे होने चाहियें  बस. उसके लिए  हरेक को बच्चा पैदा करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती. पेरेंट्स  की मेंडिकल कुंडली मिलाई जानी चाहिए, देखना चाहिए कि इनके बच्चे  स्वस्थ  होंगे भी नहीं। आज काफी-कुछ  पता किया जा सकता है।  कई मेल-फीमेल के बच्चे कभी स्वस्थ नहीं हो सकते, वो चाहे  खुद स्वस्थ हों तब भी, इनसे  बच्चे पैदा नहीं होने चाहिए । बहन-भाई और  मा-बेटे बाप-बेटी में बच्चे नाजायज क्यों है सारी दुनिया में. चूँकि बच्चे स्वस्थ नहीं होते उनके. ठीक  वैसे ही. 

दूसरी बात. जब तक एक लेवल तक कमाने न लगे कोई पेरेंट्स, तब तक उनको बच्चा पैदा करने का हक़ ही नहीं होना चाहिए। कुछ तो  निश्चित हो बच्चे का आर्थिक वज़न समाज पर नहीं पड़ेगा। 

तीसरी बात और सबसे खतरनाक बात. वो बात जिससे बहुत लोगों की नाक को खतरा हो जायेगा अभी का अभी. . बच्चा माँ-बाप से कैसी भी सामाजिक बेड़ियाँ  विरासत में नहीं  लेगा। कौन सी हैं वो बेड़ियाँ? वो बेड़ियाँ  हैं जिन्हें तुम हीरे-जवाहरात समझते हो. कीमती आभूषण समझते हो. वो हैं तुम्हारे संस्कार, तुम्हारा धर्म। तुम्हारा दीन-मज़हब, पंथ. 

देखते हो आप एक बच्चा  हिन्दू  घर में पैदा हुआ तो वो हिन्दू  है, सिक्ख घर में पैदा हुआ तो सिक्ख है, मुस्लिम का बीटा  मुस्लिम है. देखते हैं आप?

 फिर वो उसी ढंग से सोचता है सारी उम्र। 

क्या  समझते हो आप कि वोट देने का अधिकार बालिग़ होने पर मिलता है, इसलिए ताकि इंसान  सही से सोच समझ सके. यही न. सरासर झूठ बात है यह. वोट कौन कैसे देगा, यह पैदा होते ही तय कर दिया जाता है. अरे भाई उसकी राजनितिक, सामजिक सोच तो आपने उसके पैदा होते ही तय कर दी.  वोट भी वो उसी सोच से देता है. यह क्राइम है. जो माँ बाप ने किया बच्चे  के खिलाफ । 

हर धर्म के लोग बकवास करते हैं कि वो ज़बरन धरम  के खिलाफ हैं. कानून भी हैं कि जबरन किसी का धर्म नहीं बदला जायेगा। लेकिन कैसा लगेगा आपको यदि मैं कहूं कि हर इन्सान पर धर्म-दीन जबरन  ही लादा जाता है, उसके पैदा होते ही जबरन लादा जात है.  माँ  दूध के साथ धर्म का ज़हर भी पिला देती है , बाप ने चेचक के टीके के साथ मज़हब का टीका भी लगवा देता है , दादा ने प्यार-प्यार में ज़ेहन में मज़हब की ख़ाज-दाद डाल  देता है,  नाना ने अक्ल के प्रयोग को ना-ना करना सिखा देता है,  लकड़ी की काठी के घोड़े दौड़ाना तो सिखाया जाता है लेकिन अक्ल के घोड़े दौड़ाने पर रोक लगा दी जाती है.   

इसके इलाज के लिए ज़रूरी है कि स्कूलों में ही रहे बच्चा बालिग़ होने तक। माँ-बाप को बस सीमित समय तक ही बच्चे से मिलने का समय दिया जाना चाहिए । या फिर माँ-बाप खुद को धर्म-मज़हब के विषाणु से मुक्त करें तभी बच्चे को अपने साथ रखें। वो भी उनका पाली-ग्राफ टेस्ट होना चाहिए बार बार। झूठ बोले  तो सजा होनी चाहिए और बच्चा वापिस स्कूल में जाना चाहिए। यह मुश्किल है लेकिन कोरोना काल में आपने देखा मुश्किल फैसले भी लेने पड़े इन्सान को. धर्म-मज़हब का वायरस अगली पीढ़ी तक न जाए इसके लिए उनको पिछली पीढ़ी से बचाना ही होगा। वरना यह चैन कभी न टूटेगी। 

इससे तमाम  और तरह की समाजिक-वैचारिक बीमारियाँ भी छटेंगी। मेरा मानना है कि बीमारी, उम्र की सीमा (Longevity)  यह सब भी समाज की सामूहिक सोच से प्रभावित होती है, तय होती है. 

एक समाज जिसने सोच रखा है कि पचास साल का आदमी बूढा होता है उस समाज  में पचास साल का आदमी जवान हो ही नहीं सकता। एक समाज ने सोच रखा है कि साठ साल के बाद आदमी बस मौत के करीब चला जाता है तो वहां आदमी आपको नब्बे  साल-सौ साल के स्वस्थ, जवान आदमी  मिल ही नहीं सकते । वहां आपको फौज सिंह, बर्नार्ड शॉ  कैसे मिलेंगे, जो शतक लगाते ऐन उम्र के भी और क्रिएटिविटी के भी. 

तो सिर्फ धर्म की ही नहीं, और भी सामाजिक बीमारियां हैं जो हर पिछली पीढ़ी, अगली पीढ़ी पर थोपती चली जाती है. शिक्षा के नाम, संस्कृति के नाम पर. किसी बीमारी को आप बढ़िया नाम दे दो, लेकिन रहेगी तो वो बीमारी ही. 

आखिरी बात.   कोरोना काल ने सिद्ध किया है  सिजेरियन से ज्यादा नार्मल डिलीवरी हो रही हैं. तो भैया वो कुदरत कोई पागल नहीं है. उसने बच्चे के आने का रास्ता बनाया है उसके लिए हर मा का पेट काटा जाए यह  मेडिकल वर्ल्ड का एक फ्रॉड लगता है मुझे। इस पर और रिसर्च होनी चाहिए । मुझे  लगता कि कोई इक्का दुक्का ही डिलीवरी होनी चाहिए  जो नार्मल न हो, बाकी माँ यदि ढंग से जीएगी तो बच्चा कुदरती ढंग से ही हो जायेगा.  


मुझे पता है इसमें बहुत कुछ हज़म नहीं होगा मेरे मित्रों को, लेकिन सोच कर देखिये. वीडियो देखने के लिए शुक्रिया. साथी हाथ बढ़ाएं, वीडियो शेयर करते जाना.

नमस्कार