Sunday 29 May 2022

Flipkart की ऐसी की तैसी/ Online शॉपिंग के नुक्सान

फायदे भी हैं, वो फिर कभी. आज नुक्सान और दिक्कतें. 

मेरे व्यक्तिगत अनुभव के साथ.

Flipkart से जूते मँगवा लिए भई. Adidas. पैसे दिए गए. डिलीवर हो गए. जब पहने तो टाइट. तुरत  return के लिए डाल दिए. 

Pickup करने जो आया तो वो ले ही नहीं गया. बोला इस में जो बार कोड है, वो मैच नहीं कर रहा. हम ने फिर pickup के लिए डाला. 

अब एक लड़की आई. वो तो over-smart. बोली इस में original डब्बा नहीं है कंपनी का. हम ने कहा. "डब्बा जो मिला उसी पर स्टीकर लगा है, जिस पर सारी राम कहानी छपी है." लेकिन नहीं, वापिस छोड़ गयी.

फिर Flipkart को सम्पर्क करने का प्रयास किया. तो आप सीधा तो फ़ोन कर ही नहीं सकते. आप रिक्वेस्ट डालते हो callback की और फिर वो वापिस फोन करते हैं.  मैंने सारी कथा बांच दी. अगले ने कहा, Higher Authority बात करेगी. मैंने कहा, "करवाओ बात." उस ने कहा, "Callback आएगा. " 

ठीक है. मतलब आप सीधा तो बात भी नहीं कर सकते. अगलों को जब सुविधा होगी, वो फोन करेंगे. उन का फोन आया, तो मैं स्कूटी चला रहा था, नहीं हुई बात. फिर complaint की.  लेकिन बात हो ही नहीं पाई Higher Authority  से. 

मैं हैरान! "क्या बात करनी है, उन्होंने मुझ से?" मैं सब तो बता चुका. जूतों की, डब्बों की फोटो तक भेज चुका था. 

फिर मुझे इ-मेल आया कि मैं अपना id भेजूं, फिर पैसे रिफंड मिलेंगे. बढ़िया! बैंक अकाउंट डिटेल पहले ही ले चुके थे वो. अब id भी चाहिए थी. 

खैर, मैंने वोटर कार्ड भेज दिया. Pickup करने वही लड़की आई , लेकिन फिर छोड़ गयी. वो लोग अब सिर्फ ड्रामा कर रहे थे. जूता वापिस नहीं लेना था. सो नहीं लिया.

मैंने लिखा, "मैं सोशल मीडिया पर लिखूंगा."
लेकिन उन को कतई कोई परवा थी ही नहीं. मेरे पैसे मिटटी हो गए. 

अब पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि  Flipkart Seller ने जानबूझ कर गलत Bar Code लगाया होगा, जानबूझ कर Original Box नहीं दिया होगा ताकि प्रोडक्ट वापिस न हो पाए. Flipkart ने जानबूझ कर ऐसा कर रखा है कि ग्राहक डायरेक्ट इन को e-mail न कर पाए, फोन न कर पाए.  सब  कण्ट्रोल अपने हाथ में रख रखा है. 

कुल कहानी यह है कि हमारे पैसे पहले चले जाते हैं. अब प्रोडक्ट खराब निकले तो हम इन की दया दृष्टि पर निर्भर होते हैं. पैसे वापिस मिलें न मिलें. ऐसे में नतीजा यह निकाला कि ऑनलाइन शॉपिंग बहुत ही ध्यान से करो और बहुत ही कम करो. 

आप अपना एक्सपीरियंस लिखें. मुझे बहुत ही गुस्सा है flipkart के खिलाफ. इन कि तो ऐसी की तैसी. 

तुषार कॉस्मिक

Monday 23 May 2022

व्यायाम और ध्यान (Meditation) का सम्बन्ध

व्यायाम और ध्यान (Meditation) का क्या कोई सम्बन्ध है?
तो जनाब, है और बिलकुल है.

आप योगा किसे समझते हैं?
योगासनों को. राईट?
हालाँकि यह 100% ग़लत है.
योग के आठ अंग हैं और उन में मात्र एक है योगासन.
और
एक और है ध्यान.
लेकिन योगासन सिर्फ योगासन हैं, यह मैं नहीं मानता.
योगासनों में ध्यान भी शामिल है.

कैसे?

आप शीर्षासन में हैं. कितनी देर आपको इधर-उधर की बात सूझेंगी?
नहीं सूझेगी.
आप को बैलेंस बनाये रखने के लिए पूरी तरह से अपने शरीर के साथ रहना होगा. तन और मन को जुड़े रहना होगा.
और ध्यान क्या है?
वर्तमान में रहना.
यही तो ध्यान है.

ध्यान की गंगा हमेशा बाहर की और बहती रहती है, जब वो गोमुख पर ही रहे, तो वो असल ध्यान है.

आप आरती सुनते हो?
“जय जगदीश हरे.....विषय विकार मिटाओ”.

विषय (subject), कैसा भी बढ़िया, कैसा भी घटिया....... विकार है.... कुछ ग़लत है...इसे मिटाओ.
कैसे मिटाओगे?
सब विषयों से ध्यान हटा कर केंद्र पर टिकाओगे......घर वापिसी.....धारा को राधा बनाओगे......यही ध्यान है.
और

यह दौड़ाक को भी महसूस होता है.
बाकायदा टर्म है अंग्रेज़ी में.
Runner’s High.
आप ने कभी तो बहुत-बहुत तेज दौड़ा ही होगा. ऐसे में आप का दिमाग क्या-क्या बकवास सोच सकता है?
कुछ भी नहीं.

पूरा दम जब दौड़ने में ही लगा हो तो बकवास कौन सोचेगा, कैसे सोचेगा?
तभी ध्यान घटित होता है.

असल में सिर्फ दौड़ते हुए या आसन करते हुए ही नहीं किसी भी intense किस्म के, engaging किस्म की शारीरिक क्रिया में ध्यान घटित होता है. ओशो तो बाकायदा सक्रिय ध्यान चलाते थे.

याद करें, मार्शल आर्ट को विस्तार देने वाले बौद्ध भिक्षु थे. ध्यान और युद्ध कला दोनों का सम्मिश्रण ही असल मार्शल आर्ट है.

यह सब मैं कोई किताबी ज्ञान नहीं लिख रहा हूँ. मैं लगभग रोज़ पग्गलों वाला व्यायाम करता हूँ.

मैंने देखा है लोग व्यायाम को सजा की तरह कर रहे होते हैं. मेरे लिए यह मज़ा है. ध्यान है.

तुषार कॉस्मिक

Thursday 19 May 2022

हिन्दू लोग खुद को शांतिप्रिय मानते हैं. ...सच में क्या?

with Public
Public क्या हिन्दूओं ने कभी किसी पे आक्रमण नहीं क्या?
हिन्दू यह कहते हैं कि उन्होंने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया तो झूठ बोलते हैं........खूब लड़ते-मरते थे.
राम और रावण में मुसलमान तो कोई नहीं था. दोनों के इष्ट एक ही थे. शिव. किसी ने किसी पर आक्रमण नहीं किया तो यह युद्ध क्यों हुआ?
क्या आप को पता है, युद्ध के दौरान राम की सेना ने लंकावासियों को जिन्दा जला दिया था? Ram's army burnt and killed Civilians of Lanka (Yudha Kand/Sarg-75)
राम ने अपने राज्य की सीमा बढ़ाने को ही तो अश्व छोड़ा था. जहाँ-जहाँ अश्व जाता था, वहां के राजा को यह मेसेज था कि युद्ध करो या फिर राम की अधीनता स्वीकार करो. यह युद्ध-पिपासा नहीं तो और क्या था?
महाभारत में न सिर्फ भारत बल्कि आस-पास के राजा भी लड़े मरे थे....तभी तो नाम महाभारत हुआ....कौन थे ये लोग? कौरव पांडव? यह एक गृहयुद्ध था जो देश-विदेश तक फ़ैल गया था और हम कहते हैं कि हिन्दुओं ने कभी कोई आक्रमण नहीं किया. किसी ने भी आक्रमण नहीं किया तो फिर यह युद्ध हो ही कैसे गया?
कलिंग के युद्ध में घोर रक्त-पात कोई मुसलमानों ने नहीं किया था.....पृथ्वीराज चौहान भरे दरबार में से संयोगिता को उठा लाया था और खूब युद्ध हुआ था जयचंद और उसका.............बात सिर्फ इतनी है कि यदि तैमूर-लंग तबाही मचाये तो वो विदेशी आक्रान्ता है, निंदनीय है और यदि अशोक राज्य फैलाए तो वो सम्माननीय है, सड़कों को उसका नाम दिया जा सकता है, अशोक चक्र को तिरंगे में लगाया जा सकता है.
मार-काट तो शैव और वैष्णवों में भी हुई.
मैंने सुना है कि बुद्ध धर्म के लोग के मुताबिक बुद्ध मन्दिर तोड़े गए, उन को भगाया गया, हिन्दू लोगों द्वारा. शायद ये जो साधुओं के अखाड़े है, ये इसी लिए बनाये गए थे. इन को वहां शस्त्र चलाना सीखाया जाता था ताकि ये बौद्ध लोगों को मार भगा सकें चूँकि बुद्ध की शिक्षाएं हिन्दुओं की जमी जमाई दूकान खराब कर रही थीं.
कुम्भ के शाही स्नान में कौन पहले करेगा इसलिए भी खूनी लडाइयां होती थी नागा बाबा अखाड़ों में. यह लडाईयाँ अंग्रेजों ने बंद करवाई थीं.
गुरु गोबिंद सिंह के बच्चे और परिवार जो शहीद हुए तो वजह सिर्फ़ मुग़ल हुक्मरान ही नहीं थे, पहाड़ी हिंदू राजे भी थे. कोई 50 के करीब थे ये राजे, जिन्होंने मुग़लों के साथ मिल कर गुरु साहेब पे आक्रमण किया था. नतीजा हुआ अनेक सिंहों और गुरु साहेब के परिवार की शहीदियाँ.
हिन्दू महासभा के ही किसी व्यक्ति ने तो ओशो पर भी हमला किया था.
दाभोलकर, पनसारे, कलबुरगी, Gauri Lankesh आदि लेखकों का मारा जाना निश्चित ही हिंदुत्व वादी सोच का नतीजा हैं
असल में हमारी दुनिया ही सीमित थी. हम बहुत दूर तक लड़ने जा नहीं पाए. जहाँ तक लड़ सकते थे लड़ते रहे.
इस के अलावा हिन्दुओं में जो जाति प्रथा है, वो क्या है? समाज के एक बड़े हिस्से को शूद्र (क्षुद्र) कर दिया गया, यह क्या कम हिंसक है? अभी भी खबरें आती रहतीं है कि छोटी जाति वाले ने बड़ी जात में शादी कर ली तो उस की हत्या कर दी गयी. यह है हिन्दू सहिष्णुता.
किसी रेखा को छोटा करना हो तो उस के बगल में बड़ी रेखा खींच दो. और वो रेखा इस्लाम ने खींच दी. सो अब वो छोटी रेखा नज़र ही नहीं आती.
इतिहास ठीक से समझिये, वर्तमान सही सही समझने में मदद मिलेगी.
~ तुषार कॉस्मिक

इन्सान अपनी लानतें अपने कुत्तों पे भी भेज रहा है.

खाना कम नहीं करो ....शारीरिक श्रम बढ़ाओ...फिर खाना खाते हुए भी सोचोगे कि बहुत मेहनत करनी पड़ती है.....सो थोडा हिसाब से खाओ.....यह है तरीका...वो भी खाना घटाने का नहीं, बस बदलने का होता है.....जैसे घास फूस बढ़ाओ खाने में........फल-फूल-पत्ते ज़्यादा खाओ....जैसे चौपाये खाते हैं......फिर मिला जुला अनाज खाओ....जैसे पक्षी खाते हैं...तुम ने कोई जानवर, कोई पक्षी मोटा देखा?.. जो हैं, तो वो इंसानों की कुसंग की वजह से. मैंने देखें हैं पालतू कुत्ते जिन से चला तक नहीं जाता, इतने मोटे हैं. इन्सान अपनी लानतें अपने कुत्तों पे भी भेज रहा है. जानवरों से, पंछियों से सीखो. वो अभी इंसानी मूर्खताओं से दूर हैं. ~ तुषार कॉस्मिक

Tuesday 17 May 2022

ज्ञानवापी मस्जिद???

भसड़ मची है. काशी की ज्ञानवापी मस्जिद मंदिर तोड़ के बनाई गयी थी या नहीं. मेरी राय. देखिये पहली तो बात यह है कि मुस्लिम मूर्तिभंजक है. सबूत देता हूँ. 2001 में बामियान में बुद्ध की विशालकाय मूर्तियाँ डायनामाइट लगा तोड़ीं गईं. कुतब मीनार के पास मस्जिद है, वो कई जैन मंदिर तोड़ बनाई गयी. अजमेर में "अढाई दिन का झोपड़ा" नाम की मस्जिद है. अढाई दिन में मन्दिर तोड़ मस्जिद में तब्दील की गयी थी. मंदिर के अवशेष अभी रखे हैं वहां. ये बस चंद मिसाल हैं.....


आप ने मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि देखी है, इस की ठीक साथ सटा के मस्जिद बनाई गयी है. ऐसी ही ज्ञान वापी मस्जिद दिखती है, मंदिर से सटा के बनाए गयी. मस्जिद का नाम "ज्ञानवापी" ही एक हिन्दू नाम है. दूसरी बात ऐसा हो नहीं सकता कि एक कौम जो मूर्तिभंजक है, वो मूर्ती पूजकों के पूजा स्थलों को बख्श दे. मेरी मोटा-मोटी समझ यह है कि निश्चित ही बहुत से मन्दिर तोड़ मस्जिद बनाए गयी होंगीं.

तो अब क्या किया जाए? मेरी समझ के मुताबिक मंदिर और मस्जिद का धर्म से तो कोई लेना-देना है नहीं. यह मंदिर-मस्जिद की लड़ाई गिरोहों के वर्चस्व की लडाई. इन में इस्लाम सब से ज़्यादा आक्रामक है. सो इस्लाम की क्रिया की प्रतिक्रिया तो ज़रूरी है ही.

जबरन किये गए कृत्य, चाहे कभी भी किये गए हों, किसी ने भी किये हों, किसी भी गिरोह ने किये हों, अब इस दुनिया में बर्दाश्त नहीं होंगें, यह संदेश इस्लाम को ही नहीं, पूरी दुनिया को जाना ज़रूरी है. ~ तुषार कॉस्मिक

Wednesday 11 May 2022

रोटी कपड़ा और मकान, जीवन की तीन पहली ज़रूरतें हैं~ सच में?

हम्म.......मैं असहमत हूँ. कुछ-कुछ.
"रोटी"
रोटी नहीं, फल हैं जीवन की ज़रूरत. कुदरती खाना. धो लो बस और खा लो. यह क्या है पहले गेहूं उगाओ, फिर पीसो, फिर गूंथों, फिर रोटी बनाओ, फिर घी लगाओ, फिर खाओ? इतना लम्बी प्रक्रिया! फिर ऐसे ही तो खा भी नहीं सकते. उसके लिए सब्ज़ी अलग से पकाओ. फिर साथ में अचार और पता नहीं क्या-क्या.....यह सब अप्राकृतिक है. खाना है ज़रूरत, लेकिन वो खाना रोटी ही है, इस से मैं असहमत हूँ. मेरे गणित से इन्सान न माँसाहारी है और न ही शाकाहारी. इन्सान फलाहारी है.
और इन्सान ने खेती कर कर ज़मीन चूस ली है. मैंने सुना है, पंजाब, हरियाणा जैसे प्रदेशों में धरती की उपजाऊ शक्ति काफी घट गयी है.
इसीलिए ज़हरीली खाद डाल-डाल धरती को चूसा जाता है, धरती माता का रस निकाला जाता है, ठीक वैसे ही जैसे भैंस मौसी या गाय माता का अतिरिक्त दूध निकालने के लिए इंजेक्शन ठोके जाते हैं.
बेहतर यही था कि इन्सान धरती पर जंगल रहने देता. थोड़ी ज़मीन अपने रहने के लिए साफ़ करता बाकी जगह पेड़-पौधे रहते तो ज़मीन कहीं ज़्यादा खुश-हाल होती. पेड़-पौधों पर उगे, फल-फूल से काम चलाता तो कहीं स्वस्थ भी रहता.
"कपड़ा" कपड़ों की ज़रूरत है लेकिन उतनी नहीं जितनी समझी जा रही है. मुझे लगता है कि तमाम इंसानियत कपड़ों के प्रति बहुत आसक्त है, मोहित है, पग्गल है. कपड़ा तुम्हें सर्दी से बचा सकता है. धूल-धक्कड़ से बचा सकता है, तेज धूप से भी बचा सकता है. तुम्हारे मल-मूत्र विसर्जन के अंग-प्रत्यंग, तुम्हारे जनन अंग ढक सकता है. इस सब के लिए कपड़ों का प्रयोग किया जा सकता है. लेकिन तुम क्या करते हो? तुम हर वक्त कपड़ों में लिपटे रहते हो.

मैं पार्क में भयंकर किस्म की एक्सरसाइज करता हूँ. बस लोअर स्पोर्ट्स-वियर पहन कर. मुख्य वजह सूरज की रौशनी का सेवन. कहते हैं विटामिन-डी सिर्फ सूरज की रौशनी से ही मिलती है. मुझे नहीं पता? लेकिन मुझे यह ज़रूर पता है कि सूरज है तो हम हैं. मुझे यह पता है कि हम हर सर्दियों में रजाई-गद्दे धूप में रखते हैं ताकि वो dis-infected हो जाएँ. हम अचार धूप में रखते हैं ताकि वो लम्बे समय तक चलें. मुझे यह पता है कि जितना कुदरत के नज़दीक जायेंगे, उतना सेहत-मंद रहेंगे, उतना तन-मन प्रफुल्लित रहेगा.

मैंने सुना कि गोरों के मुल्कों में चूँकि धूप एक नियामत है सो उन्होंने एक दिन रखा हफ्ते में ताकि वो धूप सेक सके अपने तन पर. उस दिन का नाम रखा गया Sunday. और इस दिन को छुट्टी का दिन रखा गया, इस दिन को पवित्र दिन कहा गया. Sunday is the Holiday.

और यहाँ भारत में लोग लड़ने आ जायेंगे यदि बनियान उतार कर धूप में बैठ गए तो. यहाँ भारत में तो सामाजिक मर्यादा भंग हो जाएगी. यहाँ भारत में रंग काला हो जायेगा यदि धूप में बैठे तो. बैठेंगे भी तो पूरे कपड़े पहन कर और सूरज की तरफ़ पीठ कर के.

यह मुल्क तो गाता ही है,"गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा....."
न तो किसी को काली का गाँव प्यारा लगता और न ही काली लड़की.

"गोरी हैं कलाईयाँ, हरी-हरी चूड़ियाँ....."
यह तो गाया जा सकता है
लेकिन
क्या किसी ने गाया, "काली है कलाईयाँ, पीली-पीली चूड़ियाँ..?"

मैंने तो यह तक सुना कि Sunscreen भी बकवास सी चीज़ है. सूरज की रोशनी से तो सारा जीवन है, वो क्या नुक्सान करेगी? ज़्यादा धूप लगे, गर्मी लगे तो सहज सुलभ ही प्राणी छाया में चला जाता है, चले ही जाना चाहिए.

खैर, आशंका थी मुझे, कोई न कोई एतराज़ करेगा. और बहुत ही ज़बरदस्त एतराज़ किया गया, आर-एस-एस की शाखा लगाने वालों द्वारा. मैं खुद यह शाखा लगाता रहा हूँ. बहुत ही बेसिक किस्म का फलसफा है आर-एस-एस का. भारतीय संस्कृति ही महानतम है. आर-एस-एस इस्लाम की प्रतिछाया है कुछ अर्थों में. इस्लाम तो बहुत-बहुत हिंसक है. आर-एस-एस उस तरह से हिंसक तो कतई नहीं है लेकिन इसे कुछ भी नया स्वीकार नहीं है. नवीनता, वैज्ञानिकता के नाम पर इन के पास ऋषि-मुनि ही है. इन्हें भारतीय कूड़े की भी आलोचना पसंद नहीं है.

खैर, बाबा रामदेव हजारों लोगों के सामने अर्ध-नग्न हो कर एक्सरसाइज कर लें, टी.वी. के माध्यम से घर-घर आ जाएँ तो ठीक है, लेकिन मैं ऐसा कर लूं तो वो बर्दाश्त नहीं है. एक अर्ध-नग्न आदमी जिस्म पर चाबुक मारता हुआ, गली-गली घूम भीख मांगे, वो मंज़ूर है, लेकिन मेरा एक्सरसाइज करना मंज़ूर नहीं है. इन की लड़कियां और औरतें शिव-लिंग, गौर करें 'लिंग' की पूजा करें, वो मंज़ूर है, लेकिन मेरा एक्सरसाइज करना मंज़ूर नहीं है. ये लोग अपनी शाखाओं में "सूर्य नमस्कार" सिखाते हैं. जिस का अर्थ ही है सूर्य को नमन करते हुए योगासन करना. सूर्य को भी नहीं पता होगा कि उस के और इन्सान के बीच कपड़ों का आना ज़रूरी है. काश कुदरत नंगे-पुंगे बच्चे न पैदा कर के कपड़ों में लिपटे बच्चे पैदा करती. कम से कम निकर बनियान तो पहना के ही भेजती बच्चों को. यह बहुत ही गलत है. नंग-धड़ंग बच्चे. मर्यादा भंग होती है ऐसे समाज की.

खैर, मेरा मानना यह है कि आप जितना बिना कपड़ों के रहेंगे, उतना तन और मन से स्वस्थ रहेंगे. कुछ दशक पहले की बात है, हम लोग छत्तों पर सोते थे रात को. तारे गिनते हुए. खुली हवा में. जैसे सूर्य स्नान है, वैसे ही वायु स्नान है. शरीर को खुली हवा भी लगनी चाहिए. लेकिन उस के लिए भी नग्न होना चाहिए तन.

जिन के पास निजी स्थान की सुविधा हो उन को तो कतई निर्वस्त्र हो कर धूप ग्रहण करनी चाहिए. बिना अंडर वियर के. उन को बाकयदा एक Sun Room (सूर्य कक्ष) बनाना चाहिए. जिस का फ्रंट सूर्य की तरफ खुला हो और जिस पर छत न हो. हैरान मत होईये, जब "खाना कक्ष", "पाखाना कक्ष" हो सकता है तो सूर्य कक्ष भी हो सकता है.
आप को ध्यान है, महाभारत की कथा? दुर्योधन जा रहा था माँ के सामने निर्वस्त्र चूँकि माँ गांधारी ने ता-उम्र जो आँख पर पट्टी बंधी थी, वो खोलने जा रही थी और उन की आँख के तेज से दुर्योधन का जिस्म वज्र जैसा मज़बूत होने जा रहा था. लेकिन रास्ते में कृष्ण बहका देते हैं, "अरे, माँ के सामने ऐसे जाओगे? बच्चे थोड़ा न हो? कम से कम यौन अंग ही ढक लो." और दुर्योधन यौन अंग ढक लेता है. और युद्ध में यौन अंग पर जब भीम वार करता है तो दुर्योधन मारा जाता है. Beaches पर भी जो लोग धूप लेने जाते 100% नंगे तो वो भी नहीं होते. जननांग तो वो भी ढके रहते हैं. हमारे यौन अंग तो ता-उम्र धूप देख ही नहीं पाते. तो यह जो Sun Room का कांसेप्ट दिया न मैंने, इस से यौन अंग भी धूप पा लेंगे और वज्र तो न भी हों लेकिन स्वस्थ ज़रूर हो जायेंगे. आप देखते हो, जंघा और यौन अंग के बीच की चमड़ी पसीना मरते रहने की वजह से गल-गली सी हो जाती है. यदि Sun Room का प्रयोग करेंगे तो इस तरह की कोई भी दिक्कत नहीं होगी. प्रॉपर्टी डीलर हूँ. Sun-facing प्रॉपर्टी की डिमांड सब से ज़्यादा रहती है. आप जानते हैं, घरों में, दुकानों में, गोदामों में धूप,अगरबत्ती, हवन करने का क्या कारण है? आप शब्द देख रहे हैं? "धूप अगरबत्ती". सूर्य की धूप की कमी को इस तरह से "धूप अगरबत्ती" पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है. नहीं? खैर, मेरा नजरिया यह है कि ये Closed Premises के अंदर की बासी,अशुद्ध हवा को शुद्ध करने का प्रयास होता है. तो फिर इस धूप से क्या बचना?
उल्लू के ठप्पे हैं लोग जो 'सूर्य-नमस्कार' भी करते हैं तो छाया में. तुम्हें पता ही नहीं, तुम्हारे पुरखों ने जो सूर्य-भगवान को पानी देने का नियम बनाया था न, वो इसलिए कि सूर्य की किरणें उस बहाने से तुम्हारे बदन पे गिरें. और तुम हो कि डरते रहते हो कि कहीं त्वचा काली न पड़ जाए. कुछ बुरा न होगा रंग गहरा जायेगा तो. बल्कि ज़ुकाम-खांसी से बचोगे. हड्ड-गोडे सिंक जायेगें तो पक्के रहेंगे. ठीक वैसे ही जैसे एक कच्चा घड़ा आँच पर सिंक जाता है तो पक्का हो जाता है. बाकी डाक्टरी भाषा मुझे नहीं आती. विटामिन-प्रोटीन की भाषा में डॉक्टर ही समझा सकता है. मैं तो अनगढ़-अनपढ़ भाषा में ही समझा सकता हूँ. हम जो ज़िंदगी जीते हैं वो ऐसे जैसे सूरज की हमारे साथ कोई दुश्मनी हो. एक कमरे से दूसरे कमरे में. घर से दफ्तर-दूकान और वहां से फिर घर. रास्ते में भी कार. और सब जगह AC. एक करेला ऊपर से नीम चढ़ा. कोढ़ और फिर उसमें खाज. कल्पना करो. इन्सान कैसे रहता होगा शुरू में? जंगलों में कूदता-फांदता. कभी धूप में, कभी छाया में. कभी गर्मी में, कभी ठंड में. इन्सान कुदरत का हिस्सा है. इन्सान कुदरत है. कुदरत से अलग हो के बीमारी न होगी तो और क्या होगा? उर्दू में कहते हैं कि तबियत 'नासाज़' हो गई. यानि कि कुदरत के साज़ के साथ अब लय-ताल नहीं बैठ रही. 'नासाज़'. अँगरेज़ फिर समझदार हैं जो धूप लेने सैंकड़ों किलोमीटर की दूरियां तय करते हैं. एक हम हैं धूप शरीर पर पड़ न जाये इसका तमाम इन्तेजाम करते हैं. "धूप में निकला न करो रूप की रानी.....गोरा रंग काला न पड़ जाये." महा-नालायक अमिताभ गाते दीखते हैं फिल्म में. खैर, स्वयंभू ने मुझे बताया है:- "हम ने सर्द दिन बनाये और सर्द रातें बनाई लेकिन तुम्हारे लिए नर्म नर्म धूपें भी खिलाई जाओ, निकलो बाहर मकानों से जंग लड़ो दर्दों से, खांसी से और ज़ुकामों से."
"जादू" याद है. अरे भई, ऋतिक रोशन की फ़िल्म कोई मिल गया वाला जादू. वो 'धूप-धूप' की डिमांड करता है. शायद उसे धूप से एनर्जी मिलती है. आपको भी मिल सकती है और आप में भी जादू जैसी शक्तियाँ आ सकती हैं. धूप का सेवन करें. मैं पैदाईश हूँ वीडियो गेम के पहले की.
हम पतंग उड़ाते थे, गलियों में कंचे खेलते थे, कभी ताश भी, कभी गुल्ली डंडा. धूप, गर्मी, हवा में. और कभी बारिश में भी.
आज बच्चे वीडिओ गेम खेलते देखता हूँ तो मन खिन्न हो जाता है. आँखें और हाड-गोड्डों के जोड़ ही नहीं बुद्धि भी खराब कर लेंगे.
कल आप को रोबोट मिल जायेंगे सेक्स तक करने के लिए. लेकिन याद रखना नकली खेल, नकली सेक्स, नकली प्रेम नकली ही रहेगा.
विडियो गेम से यदि ड्राइविंग सीखने में मदद मिलती हो तो ठीक है लेकिन इसे असल ड्राइविंग समझने की भूल करेंगे तो मारे जायेंगे.
खुली हवा में, धूप रहिये, खेलिए, नकली को असली की जगह मत लेने दीजिये.
"मकान" इन्सान को मकान चाहिए, चाहिए भी या नहीं, इस पर मेरे अपने कुछ तर्क हैं.

प्रॉपर्टी के कांसेप्ट को दुनिया का निकृष्टतम कांसेप्ट मानता हूँ. धरती माता ने किसी के नाम रजिस्ट्री आज तक की नहीं है. इन्सान आते-जाते रहते हैं. धरती वहीं रहती है. यदि इन्सान निजी सम्पति का कांसेप्ट छोड़ दे तो सारी धरती सब इंसानों के लिए available रहेगी. यह धरती सब की है और सब इस धरती के हैं. सिवा इन्सान के कोई भी प्राणी इस धरती पर रहने के लिए किराया नहीं देता. इन्सान को छोड़ किसी भी प्राणी के घर वैध-अवैध नहीं होते.

मकान हमें गर्मी-सर्दी से बचाते हैं. मल-मूत्र विसर्जन की निजता देते हैं. सम्भोग करने की निजता देते हैं. सो मकानों की ज़रूरत तो है लेकिन वो मकान निजी सम्पतियाँ हों, यहाँ मैं सहमत नहीं हूँ. आप देखते हैं, अनेक मकान खाली पड़े रहते हैं, और उधर लाखों लोग सड़क पर होते हैं. आधे से ज्यादा अपराध और मुकदमे तो प्रॉपर्टी से ही जुड़े होते हैं.

और निजी प्रॉपर्टी के कांसेप्ट की वजह से ही इन्सान अधिकांशत: घरों के अंदर ही अंदर घुसा रहता है. यह घर-घुस्सापन अपने आप में ही बीमारयों की जड़ है. जब मेरे जैसे लोग निजी सम्पति के कांसेप्ट के खिलाफ लिखते-बोलते हैं तो हमें वामपंथी बोला जाता है, कम्युनिस्ट (कौम-नष्ट) लिखा जाता है. हमें कहा जाता है कि पहले अपनी सम्पत्तियों की बली हम दें. ठप्पा मात्र इस लिए लगाया जाता है ताकि हमारी विश्वसनीयता ही खत्म की जा सके. दूसरी बात, जब तक आप किसी को वर्तमान व्यवस्था से बेहतर व्यवस्था में डालने का विश्वास नहीं दिला पायेंगे कौन अपनी वर्तमान व्यवस्था छोड़ेगा? हम आप को एक कांसेप्ट दे रहे हैं. उस कांसेप्ट पर काम कीजिये. उस पर प्रयोग कीजिये. जब प्रयोग सफल होने लगेंगे तो निश्चित ही बड़े स्तर पर उन प्रयोगों को उतार दीजिये.

तो निकलो बाहर मकानों से, जंग लड़ो .....किस से? अब आगे यह आप खुद तय कर लीजिये.

तुषार कॉस्मिक

आपकी धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाएँ आहत होना इस बात का सबूत नहीं है कि आप सही हैं।

क्योंकि लोगों की धार्मिक भावनाएँ तो तब भी आहत हुई थी, जब गैलीलियो ने कहा था कि पृथ्वी गोल है, जब राजाराम मोहन राय ने सती प्रथा का विरोध किया था, जब ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन किया था और जब सावित्रीबाई फुले एक भारतीय विदुषी ने लड़कियों और दलितों के लिये पहले -पहल स्कूल की स्थापना की थी।

-By Jyoti Pethakar Ji from Facebook

गहरे में देखें तो श्रीलंका संकट पूरी दुनिया के लिए शुभ है

श्रीलंका में यह जो मंत्री पीटे जा रहे हैं न, बिलकुल सही किया जा रहा है. नकली महामारी से आम-जन का जीना हराम कर दिया. सब मिले हुए हैं मंत्री से लेकर संतरी. ये क्या अंधे थे जिन्होंने बिना कोई सबूत, बिना कोई सोच-समझ पूरे मुल्क को lockdown में झोंक दिया? Lockdown का नतीजा ही है आर्थिक संकट. वो संकट जो इन नेता लोगों की मूर्खताओं की वजह से पूरी दुनिया के आम-जन को झेलना पड़ रहा है. इन के साथ ऐसा ही होना चाहिए. दुनिया भर में.

गहरे में देखें तो श्रीलंका संकट पूरी दुनिया के लिए शुभ है. यह नकली महामारी की विदाई का कारण बनेगा. Tushar Cosmic

इन दो सवालों से सारी सामाजिक व्यवस्था भरभरा कर गिर जायेगी

मात्र 2 सवाल और एक तिहाई दुनिया की व्यवस्था गिर जाएगी.
क्या हैं वो सवाल?

समझिये, अधिकांश दुनिया मानती है कि कोई शक्ति है जिसने दुनिया बनाई है, जो दुनिया को चला रही है. और ध्यान, प्रार्थना, आरती, अरदास, नमाज़ से इस शक्ति से मदद ली जा सकती है.

इन से पूछिए, यदि दुनिया को बनाने वाला कोई है तो फिर उस बनानें वाले को बनाने वाला कौन है, फिर उस बनाने वाले को बनाने को बनाने वाला कौन है.....?

और

यदि ईश्वर/गॉड अपने आप अस्तित्व में आ सकता है तो यह दुनिया, यह कायनात क्यों नहीं? यह है पहला सवाल.

दूसरा सवाल यह है, तुम्हारे पास क्या सबूत है कि तुम्हारे कीर्तन, तुम्हारी प्रार्थना, नमाज़, आरती, विनती, उस परम शक्ति तक पहुँचती है और वो परम शक्ति उस के मुताबिक कोई रिस्पांस देती ही है?

तुम देखोगे, तुम्हारे इन दो सवालों का इन के पास कोई जवाब नहीं  होगा.

तुम देखोगे, इन दो सवालों से सारी सामाजिक व्यवस्था भरभरा कर गिर जायेगी. और यह गिर ही जानी चाहिए. ~ तुषार कॉस्मिक

Monday 9 May 2022

लड़का हिन्दू और लड़की मुस्लिम. प्रेम. शादी. यह बरदाश्त ही नहीं है, इस्लाम में

नागराजू का क़त्ल कर दिया गया सुल्ताना के भाई द्वारा. दिन दिहाड़े. हैदराबाद की सड़क पर.

लड़का हिन्दू और लड़की मुस्लिम. प्रेम. शादी. यह बरदाश्त ही नहीं है, इस्लाम में. चूँकि अब बच्चे हिन्दू हो जायेंगे. मुस्लिम समाज की संख्या कमतर हो जाएगी. इस्लाम तो पलता-पनपता ही संख्या बल पर है.

हां, यदि उल्टा होता तो स्वागत है. लड़की ब्याह लायें हिन्दू की तो स्वागत है. चूँकि अब बच्चे मुस्लिम होंगें. संख्या बल बढ़ेगा. अल्लाह-हू-अकबर !

~ तुषार कॉस्मिक

Saturday 7 May 2022

आज बच्चे वीडिओ गेम खेलते देखता हूँ तो मन खिन्न हो जाता है

मैं पैदाईश हूँ वीडियो गेम के पहले की. हम पतंग उड़ाते थे, गलियों में कंचे खेलते थे, कभी ताश भी, कभी गुल्ली डंडा. धूप, गर्मी, हवा में. और कभी बारिश में भी. आज बच्चे वीडिओ गेम खेलते देखता हूँ तो मन खिन्न हो जाता है. आँखें और हाड-गोड्डों के जोड़ ही नहीं बुद्धि भी खराब कर लेंगे. कल आप को रोबोट मिल जायेंगे सेक्स तक करने के लिए. लेकिन याद रखना नकली खेल, नकली सेक्स, नकली प्रेम नकली ही रहेगा. विडियो गेम से यदि ड्राइविंग सीखने में मदद मिलती हो तो ठीक है लेकिन इसे असल ड्राइविंग समझने की भूल करेंगे तो मारे जायेंगे. नकली को असली की जगह मत लेने दीजिये.~तुषार कॉस्मिक

Sunday 1 May 2022

सोशल मीडिया और उल्लू के ठप्पे लोग

सोशल मीडिया ने सब को अपनी बात-बकवास कहने का मंच दिया है.

कोई सुबह शाम गुड मोर्निंग, गुड इवनिंग कर रहे हैं.

कोई होली दीवाली, ईद-बकरीद की बधाई दे रहे हैं.

कोई उधार की सूक्तियां आगे पेलने को ही महान ज्ञान समझ रहे हैं.

कोई सिर्फ अपना धार्मिक या राजनीतिक एजेंडा ही पेले जा रहे हैं.

कोई अपनी भोंडी आवाज़ के साथ बेसुरे गायन को karaoke पर गाये जा रहे हैं.

कोई गाने पर हेरोइन जैसी सिर्फ़ भाव-भंगिमा दिखा के एक्टर बनने का शौक पूरा किये जा रही हैं.

ये सब सस्ते तरीके हैं. इन से आप को कोई नाम-दाम मिलने से रहा. और गलती से दो-चार दिन के लिए आप मशहूर हो भी गए तो वापिस गुमनाम होने में भी देर नहीं लगेगी."सेल्फी मैंने ले ली आज " वाली ढीन्ठक पूजा कितने लोगों को याद है आज?

कुल जमा मतलब यह कि कचरा लोग सोशल मीडिया पर कचरा ही फैला रहे हैं.

अबे, कुछ क्रिएटिविटी लाओ, कुछ बुद्धि लगाओ, कोई कला पैदा करो पहले. फिर आना सोशल मीडिया पर. वरना सीखो. सोशल मीडिया बहुत कुछ सिखाता भी है. सीखो पहले.

याद रहे, तुम्हारा कूड़ा दूसरों को साफ़ करने में भी मेहनत लगती है. होली दीवाली के अगले दिन जैसे गलियों में गन्दगी बढ़ जाती है, ऐसे ही फोन और कंप्यूटर पर भी कूड़ा बढ़ जाता है, जिसे डिलीट करना अपने आप में समय खाऊ काम होता है.
कूड़ा मत बढ़ाओ.

तुषार कॉस्मिक