Your phone is not your phone only.
It is a Bazaar for many.
They go on calling and messaging you. You rebuke them, you block them.
No matter.
They shall come to you via another number.
It is a Bazaar for them.
Hell with your privacy.
Hell with your life, in fact.
Thoughts, not bound by state or country, not bound by any religious or social conditioning. Logical. Rational. Scientific. Cosmic. Cosmic Thoughts. All Fire, not ashes. Take care, may cause smashes.
Tuesday 7 May 2024
Your phone is a Bazaar for many.
Sunday 24 March 2024
Why anonymous complaints are not taken by the Government?
You cannot lodge a complaint to any of the Government Department anonymously these days.
"पश्चिम बंगाल"-???
क्या आप जानते हैं, भारत के पूर्व में होने के बावजूद इसे "पश्चिमी" बंगाल क्यों कहा जाता है?
स्पैम कॉल और संदेश
स्पैम कॉल और संदेश एक वास्तविक समस्या हैं। और जीनियस सरकार ने एक विनियमन तैयार किया है कि उपभोक्ता ही दूरसंचार विभाग को सूचित करेगा कि वे परेशान नहीं होना चाहते हैं। कितना बेवकूफ़! अगर मैंने किसी को निमंत्रित नहीं किया है तो इसका सीधा सा मतलब है कि मैंने उसे निमंत्रित नहीं किया है. लेकिन यहां मैं बिन बुलाए कॉल करने वालों/संदेशवाहकों को सूचित करना चाहता हूं कि उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया है। उल्टी गंगा.
आम आदमी पार्टी दिल्ली की प्रत्येक महिला को 1000 रुपये देगी।
क्यों?
अमेज़न ने बेची गई वस्तुओं को "वापसी योग्य" से "बदली जाने योग्य" में बदल दिया है---BEWARE
इंद्रलोक में साप्ताहिक बाज़ार
दिल्ली के इंद्रलोक में हर गुरुवार को एक साप्ताहिक बाज़ार लगता है और न केवल दिल्ली बल्कि आसपास के शहरों से भी लोग shopping के लिए आते हैं। इस बाज़ार में खतरनाक तरीके से भीड़ होती है। अब इस बाजार को किसी नजदीकी सुरक्षित स्थान पर स्थापित करने के बजाय इस बाजार पर प्रतिबंध लगाने के लिए पुलिस और सशस्त्र बलों को तैनात किया गया है। बेवकूफ़! कोई सरकार कितनी मूर्ख हो सकती है, इसका जीवंत उदाहरण है।
Saturday 27 January 2024
मैं बीमार होना नहीं चाहता, मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ,
मैं बीमार होना नहीं चाहता,
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ,मुझे दवा, टीकों और डॉक्टरों से बहुत डर लगता है,
मुझे लाखों रुपये के खर्च से डर लगता है,
मुझे अस्पतालों से, दवाखानों से बहुत डर लगता है
मुझे घिसटती-सिसकती ज़िंदगी से डर लगता है
मैं बीमार नहीं होना चाहता.
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ.
मैंने देखे हैं हैरान-परेशान रिश्तेदार,
बेचारे अपना भार नहीं ढो पा रहे होते,
ऊपर से घर में कोई बीमार इंसान.
पूरा घर बीमार-बीमार सा हो जाता है.
हवा बीमार, पानी बीमार, सब बीमार
मैं बीमार नहीं होना चाहता,
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ.
मैनें पढ़े हैं चेहरे अनमने से सेवा करते हुए,
बीमार की मौत का इंतज़ार करते हुए,
ज़बरन दुनियादारी निभाते हुए,
बीमार के साथ बीमारी झेलते हुए
मैं बीमार नहीं होना चाहता,
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ.
ज़िंदगी जितनी भी हो, बस ठीक-ठाक हो,
चलती-फिरती हो, मुस्कराती, हंसती हो,
ज़िंदगी ज़िंदा हो,
मैं मरी-मरी सी ज़िंदगी नहीं चाहता,
मैं बीमार नहीं होना चाहता,
मैं सीधे मर जाना चाहता हूँ.
तेरा तुझ को अर्पण, क्या लागे मेरा.
Tushar Cosmic
Thursday 25 January 2024
धर्म - मेरी आपत्तियां
1. हम इतिहास का केवल कुछ अंश ही जानते हैं। बुद्ध और महावीर से परे मानव इतिहास स्पष्ट नहीं है। बुद्ध और महावीर से पहले, इतिहास पौराणिक कथाओं के साथ मिश्रित है।
श्री राम और उन का मंदिर - मेरी कुछ आपत्तियां
स्त्रियों को चाहिए कि वो राम को नकार दें। क्या वो राम जैसा पति चाहेगी, जिसके साथ वो तो जंगल-जंगल भटकें लेकिन पति उन्हें जंगल में छोड़ दे? वो भी तब, जब वो प्रेग्नेंट हो. हालाँकि मैं "जय श्री राम" के नारे का विरोध करता हूँ क्योंकि यह राम की विजय की घोषणा करता है और राम अब नहीं रहे, इसलिए ऐसे नारे लगाने का कोई मतलब नहीं है लेकिन मैं एक अन्य आधार पर "जय सिया राम" के नारे का विरोध करता हूँ। सीता को राम के साथ जोड़ना तथ्यात्मक नहीं है। राम ने स्वयं सीता को जंगल में छोड़ दिया था। उसके बाद वह जंगल में रहती है, जंगल में ही उन की मृत्यु हो जाती है। और यहां हिंदू सीता को राम से जोड़ रहे हैं?
राम मंदिर
मैं राम का घोर विरोधी हूँ, इस के बावजूद मैं इस पक्ष में हूँ कि राम मंदिर बनाया जाना चाहिए था और मुसलमानों को बहुत पहले माफी के साथ यह जगह तथाकथित हिन्दुओं को दे देनी चाहिए थी. न सिर्फ यह बल्कि "कृष्ण जन्म भूमि" और "काशी ज्ञानवापी" वाली जगह भी दे देनी चाहिए थी.
लेकिन मुसलमानों ने संघर्ष का रास्ता अपनाया. राम मंदिर वो हार चुके हैं. बाकी भी हार जाएंगे. चूँकि यह जग-विदित है कि मुसलमान मूर्ती-भंजक है. ताजा बड़ा उदाहरण तालिबान द्वारा बामियान में बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ना था. ये मूर्तियां असल में पहाड़ों में ही खुदी हुई थीं. डायनामाइट लगा कर इन को उड़ाया गया. वैसे अक्सर खबर आती रहती है कि मुस्लिम ने दूसरे धर्मों के धार्मिक स्थल ढेर कर दिए.
मुझे कोई संदेह नहीं कि भारत में भी मुसलमानों ने मंदिर नहीं तोड़ें होंगे. कुतब मीनार पे जो मस्जिद बनी है, "क़ुव्वते-इस्लाम" वो कई जैन मंदिर तोड़ कर बनी है. ऐसे वहां Introductory पत्थर पर लिखा था. "क़ुव्वते-इस्लाम" यानि इस्लाम की कुव्वत. ताकत. यह थी इस्लाम की ताकत. दूसरों की इबादत-गाहों को तोडना. ऐसा ही कुछ अजमेर की "अढ़ाई दिन का झोपड़ा" नामक आधी-अधूरी मस्जिद के बाहर लगे पत्थर पर भी लिखा था कि यह मस्ज़िद मंदिर तोड़ कर बनाई गई थी, वहाँ तो प्राँगण में मंदिर के भग्न अवशेष भी रखे हुए थे. बुत-परस्ती के ख़िलाफ़ है मुसलमान.
खैर, मेरा मानना है कि समाज ऐसा होना चाहिए कि जहाँ सब को अपने हिसाब से सोचने, बोलने और मानने की आज़ादी होनी चाहिए। और ज़ोर ज़बरदस्ती कतई नहीं होनी चाहिए.
मुस्लिम की ज़बरदस्ती का ही जवाब था कि बाबरी मस्जिद/ढाँचा गिराया गया और उस पर फिर से मंदिर बनाया गया. ज़बरदस्ती का जवाब ज़बरदस्ती ही हो सकता है. ताकत का जवाब ताकत ही हो सकता है.
अब रही बात मेरे जैसे लोगों की, तो हम इस्लाम का, मुस्लिम ज़बरदस्ती का विरोध करते हैं और राम का भी विरोध करते हैं. तार्किक आधार पर. बस. कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है. जिस को राम को मानना है, मानता रहे. हम को विरोध करना है तो हम करते रहेंगे. हम सोचने-विचारने और बोलने की आज़ादी का समर्थन करते हैं.
मेरी नज़र में राम पूजनीय नहीं हैं, लेकिन बहुत लोगों के लिए हैं. मेरी नज़र में ऐसे लोग गलत हैं, लेकिन फिर उन को गलत होने की भी आज़ादी होनी चाहिए। यह बात कंट्राडिक्ट्री लग सकती है लेकिन सीधी सपाट है. कौन जाने मैं ही गलत साबित हो जाऊं कभी. आई समझ में? इस लिए सब को अपने ढंग से भगवान मानने न मानने की आज़ादी. यही सच्चा सेकुलरिज्म है. और मेरा इसी सेकुलरिज्म में विश्वास है. इसीलिए मैंने लिखा कि राम मंदिर बनना चाहिए था. बावज़ूद इस के कि मैं सब धर्मों का विरोध करता हूँ और इन धर्मों के धर्म स्थलों का भी. और ultimately सब धर्मों के स्थलों को विदा होना चाहिए ही. लेकिन मैं नहीं चाहता कि इन धर्म स्थलों की विदाई ऐसे होनी चाहिए जैसे इस्लाम ने प्रयास किये दूसरे धर्मों के स्थलों पर प्रहार कर कर के. अपना रास्ता तर्क का है.
मैं कतई नहीं चाहूँगा कि भारत हिन्दू राष्ट्र बने. असल में कोई भी मुल्क, कोई भी समाज किसी भी एक तरह की मान्यता में जकड़ा होना ही नहीं चाहिए. यह जकड़न समाज की सोच की उड़ान को थाम लेती है, पकड़ लेती है. इस जकड़न-पकड़न से आज़ादी के लिए ज़रूरी है कि न कोई समाज, न मुल्क हिन्दू होना चाहिए और न ही इस्लामी और न ही ईसाई। और न ही पाकिस्तानी और न ही खालिस्तान. वैसे पाकिस्तानी आज रो रहे हैं कि मज़हब के नाम पर उन का मुल्क बनाया ही क्यों गया.
आशा है मैं अपनी बात समझाने में सफल हुआ होऊंगा
Tushar Cosmic
Friday 5 January 2024
Sarkar Chor hai, सरकार षड्यंत्र-कारी है, सरकार दुश्मन है
सरकार ने न सिर्फ जान-बूझ कर जनता को कानून नहीं पढ़ाया बल्कि कानून की भाषा भी जटिल रखी:-
इस के अलावा आप के कानूनों के मतलब तो सुप्रीम कोर्ट तक तय नहीं हो पाते। आज एक कोर्ट कुछ मतलब निकालता है, कल कोई और कोर्ट कुछ और मतलब निकालता है। एक मुद्दे पर एक कोर्ट कुछ जजमेंट देता है, कल उसी मुद्दे पर कोई और कोर्ट कोई और जजमेंट दे देता है। और आम आदमी से यह तवक्को रखी जाती है कि उसे हर कानून पता होगा। चाहे खुद कानून के विद्वानों को पता न हो, कौन सा कानून क्या मतलब रखता है।
यकीन मानिये, मैं अंग्रेज़ी का कोई विद्वान् तो नहीं लेकिन फिर भी ठीक-ठाक अंग्रेजी लिख, पढ़ लेता हूँ, बोल भी लेता हूँ लेकिन मज़ाल कि मुझे कोई Bare Act आसानी से समझ आ जाए. डिक्शनरी खोल-खोल देख लुं, तब भी ठीक-ठीक पल्ले न पड़े, ऐसी तो भाषा है. आम-जन जिसे हिंदी या फिर अपनी क्षेत्रीय भाषा का ही ज्ञान उस बेचारे को क्या समझ आना है?
क्यों नहीं सरकार ने कानूनी भाषा को सुगम बनाया? क्यों नहीं सरकार ने, निज़ाम ने कानून की बेसिक जानकारी को स्कूलों में ही जरूरी विषय की तरह पढ़ाया?
कारण यह है कि यदि आम-जन कानून को समझेगा तो पुलिस, कोर्ट और बाकी की नौकर-शाही उस पर अपना डण्डा कैसे रखेगी?
कानून न समझने का नतीजा है कि आम-जन इन्साफ से कोसों दूर है:-
इसी का नतीजा है कि जरा सड़क पर, मोहल्ले में झगड़ा हो जाए, और पुलिस बुला ली जाए तो सही व्यक्ति के भी हाथ-पांव फूल जाते हैं। क्यों? क्यों कि उसकी कानून की जानकारी लगभग शून्य होती है. वो अब झगड़े से ज़्यादा पुलिस से डर रहा होता है. वो जानता है, पुलिस कैसी है.
आप लाख सही होते रहो, पुलिस आप को ही धमका के पैसे ऐंठ ही लेगी.
और थाने में तो पुलिस का एकछत्र राज ही चल रहा है. आप बतायेंगे कुछ, पुलिस सुनेगी कुछ और लिखेगी कुछ. मैंने तो यहां तक देखा है कि थाने में मेन गेट ही बंद कर देते हैं, यार-रिश्तेदार को घुसने तक नहीं देते।
आप थाने में अपने साथ वकील ले जाओ, पुलिस वाले खफा हो जाएंगे. क्यों? चूँकि अब वो आप को आसानी से बरगला न पाएंगे.
कई दफ्तरों में-थाने में लिख कर लगा दिया गया कि अंदर मोबाइल फोन लाना मना है. क्यों? ताकि आप रिकॉर्डिंग न कर लें, जो इन अफसरों की बदतमीजियों की पोल खोल दे.
थाना-कोर्ट, ये सब कोई इंसाफ के लिए थोड़ा न बने हैं. इंसाफ लेने के लिए तो आप को सात जन्म लेने पड़ेंगें. कोई झगड़ा-झंझट हो जाये, पुलिस का पहला काम होता है दोनों तरफ से पैसे ऐंठ कर "मेडिएशन" करवाना. कोर्ट भी मेडिएशन को बढ़ावा देता है. ख्वाहमख़ाह मेडिएशन में केस भेज देते हैं. ज़बरदस्ती. मेरे साथ हुआ ऐसा एक बार, बिना मेरी मर्ज़ी पूछे आनन-फानन मेरा केस मेडिएशन में भेज दिया गया.
ऐसा लगता है पूरा निज़ाम इंसाफ का मरकज़ नहीं, "मेडिएशन सेंटर" है.
इसीलिये लिखता हूँ, तुम्हारी sarkar chor hai, sarkar shadyantrakari hai.
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सरकारी नौकर समाज के मालिक बने बैठे हैं. काले अंग्रेज़.
सरकारी नौकरियाँ जितनी घटाई जा सकें, घटानी चाहियें.
लेकिन अभी तो सरकार sarkar chor hai, sarkar shadyantrakari hai.