Thursday 30 April 2020

हिन्दू फल की दूकान लिखने पर FIR -सही है क्या?



बिहार और झारखण्ड से खबरें हैं कि फल की दुकान पर भगवा झंडे लगने पर या हिन्दू शब्द का बैनर लगाने पर FIR लिख दी गईं. चूंकि इससे समाज में शांति भंग हो सकती ही। समाज के विभीन्न  हिस्सों में दुशमनी बढ़ सकती है। धार्मिक भावनाएँ आहत हो सकती हैं। और पता नहीं क्या क्या? 


कमाल है भाई! धन्य हैं कंप्लेंट देने वाले और धन्य-धन्य हैं कंप्लेंट लिखने वाले. मैं  हैरान हूँ सामान्य बुद्धि का इस्तेमाल भी नहीं किया गया. किसी ने झंडा लगाया अपने ठेले पे, या बैनर लगाया अपने ठेले पे या अपनी दुकान पे हिन्दू फल की दुकान लिख दिया तो उससे किसी की धार्मिक भावनाएं आहात हो रही हैं या दंगा बलवा होने का खतरा है. वाह! शाबाश कल यह भी तय कर देना कि कौन से रंग की शर्ट कब पहननी है चूंकि उससे भी तो भार्मिक भावनाएं हर्ट हो सकती हैं. 

यदि कोई मुस्लिम से सब्ज़ी फल नहीं नहीं ले रहा तो वो वो अफसरान से मिल रहा है, ज्ञापन दे रहा है. देखिये ..... 

मतलब मजबूर करोगे कि तुम से सब्ज़ी फल लिया ही जाए? 

और मुस्लिम जो सिर्फ हलाल प्रोडक्ट ही प्रयोग कर रहे हैं, तो किसी जैन, किसी बौध, किसी सिक्ख ने रिपोर्ट कराई क्या कि हमारे प्रोडक्ट प्रयोग क्यों नहीं कर रहे? क्या किसी गैर-मुस्लिम ने  डिमांड की  कि मुस्लिम हलाल प्रोडक्ट बंद कर दें चूँकि उनके ऐसा करने से गैर-मुस्लिम भावनाएं हर्ट हो रही हैं. क्या किसी सिक्ख ने FIR करवाई कि उसकी झटका खाने वाली भावना हर्ट हो रही है? या जैन ने कहा कि चूँकि वो मांस खाने का विरोध करते हैं तो उनकी धार्मिक भावना हर्ट हो रही है?  

मुस्लिम बड़े शान से हलाल सर्टिफिकेशन  कर रहे हैं. आपको लगता होगा हलाल सिर्फ मीट-मुर्गे  पर ल्गू होता है। गलत लगता है हलला सर्टिफिकेशन आटा, दाल, चावल चीनी पर भी होता है। हलाल सर्टिफिकेशन तो रेस्त्रौरेंट  को भी दिया जा रहा है और टौरिस्म  को भी और मेडिकल टौरिस्म को भी दिया जाता है ।  लेकिन गैर-मुस्लिम ने जरा सा सब्ज़ी-फल पर अपनी मर्ज़ी दिखानी शुरू की तो FIR करवाने लगे. यह तब है जब भारत एक गैर-मुस्लिम प्रधान मुल्क है. 

Facebook के एक लेखक हैं।  मुझे किसी ने tag किया उनके लेख पर। वो लिखते हैं कि “मुस्लिम ढाबा” इसलिए लिखा जाता है ताकि गैर-मुस्लिम ने यदि मीट-मुर्गा नहीं खाना तो कहीं उसका धर्म भ्रष्ट न हो। वो आगे लिखते हैं कि हलाल सर्टिफिकेशन इसलिए है कि चूंकि मुस्लिम को उसकी मान्यताओं के मुताबिक product और सर्विस मिल सके। मुझे यही समझ आया उनके लेखन से। और वो हिन्दू फल की दुकान लिखने वालों को सख्त सजा देने की भी हिमायत करते हैं चूंकि यह सिर्फ नफरत फैलाने के लिए किया जा रहा है। उनका कहना यह था कि फल थोड़ा न हिन्दू-मुस्लिम होते हैं, जो हिन्दू फल की दुकान लिखा जा रहा है, मुझे यह तर्क बिलकुल समझ नहीं आया, जब दाल-चावल-चीनी हलाल हो सकता है तो फिर फल की दुकान पर हिन्दू क्यों नहीं लिखा जा सकता? जब मीट-मुर्गा हलाल हो सकता है, झटका हो सकता है तो फल-सब्ज़ी भी हिन्दू क्यों नहीं हो सकती? जब रेस्त्रौरेंट, होटल,  टौरिस्म  हलाल certified हो सकता है  फल सब्जी की दुकान विश्व हिन्दू परिषद द्वारा अनुमोदित क्यों नहीं हो सकती? ठीक है मुस्लिम को अपनी मान्यताओं के हिसाब से जीने का हक है तो गैर-मुस्लिम को भी तो वो आज़ादी हासिल होनी चाहिए कि नहीं? 

असल में यह सब बहस ही बचकानी है। बस चली आ रही मान्यताओं के खिलाफ खड़े होने का नतीजा है आप गली में कुत्ते की टांग तोड़ दो आप पर मुक़द्दमा हो सकता है, आप सरे आम मुर्गा कटवा लो कोई मुक़द्दमा नहीं। लेकिन कुछ मुल्कों में  कुत्ते साँप भी बड़े आराम से खाये जा रहे हैं, कोई दिक्कत नहीं। हलाल चला आ रहा है तो चला आ रहा है हिन्दू फल की दुकान  नया नया आया है तो घबराहट पैदा हो रही है। मैंने तो इंटरनेट पर “100% हराम” के बोर्ड भी देखे। आपको क्या चुनना है आपकी मर्ज़ी। मैं विश्व बंधुत्व और वसुधेव कुटुंबकम में यकीन रखता हूँ और इस तरह से लगे बंधे दीन-धर्मों में कोई यकीन  नहीं रखता। यह सारी बहस मात्र इसलिए थी कि फिलहाल जैसा समाज है उसमें किसी के साथ भी undue भेदभाव न हो जाए, न मुस्लिम के साथ और न ही गैर- मुस्लिम के साथ ।

विडियो अगर पसंद आय तो LIKE ज़रूर कीजिएगा, कमेंट कीजिएगा और अपनी राय के साथ  share कीजिएगा 



Wednesday 29 April 2020

जीवन क्या है, कुदरत का खेल

मेरा पंजाबी पॉडकास्ट है. महान एक्टर इरफ़ान खान की मृत्यु पर यह और भी प्रासंगिक हो गया है. ज़रूर देखिये, सुनिए. और पूरा सुनिए. अपनी राय कमेंट में ज़रूर लिखिए और विडियो शेयर कीजिये और अगर बात पसंद आती हो तो LIKE भी कीजिये.

Saturday 25 April 2020

भक्त कौन है?



भक्त गोबर-भक्त अंध-भक्त  अँड-भक्त, मोदी-भक्त ... बहुत से शब्द है जो भाजपा  को, मोदी को  सपोर्ट करने वालों के  खिलाफ प्रयोग होते  हैं।  कहा जाता है कि भक्ति-काल चल रहा है.

हर हर महादेव सुना था लेकिन हर-हर मोदी, घर-घर मोदी भी सुना फिर। 


भक्त मतलब जड़बुद्धि. जिसे तर्क से नहीं समझाया जा सकता. जो तर्क समझता ही नहीं.

और  कौन कहता है इनको भक्त?

मुस्लिम....... तथाकथित सेक्युलर. लिबरल.  विरोधी पोलिटिकल दल. और कोई भी जिसका मन करे। 

गुड. वैरी गुड.

तो सज्जन और सज्जननियो।  आईये खुर्दबीनी कर लें.

सबसे पहले मुस्लिम को देख लेते हैं. भाई आप से बड़ा भक्त कौन है दुनिया में?  आप तो क़ुरआन, इस्लाम और  मोहम्मद श्रीमान  के खिलाफ  कुछ सोच के, सुन के राज़ी ही नहीं होते. मार-काट हो जाती है. बवाल हो जाता है. दंगा हो जाता है.  पाकिसतन में ब्लासफेमी कानून है.  इस्लाम, क़ुरान, मोहम्मद श्रीमान के खिलाफ बोलने, लिखने पर मृत्यु दंड  है. आप किस मुंह से यह भक्त भक्त चिल्ल पों मचाये रहते हो भाई?

और बाकी धर्म-पंथ को मानने वाले भी भक्त ही होते हैं. ज़्यादातर. कोई नहीं सुन के राज़ी अपने देवी, देवता, गुरु, ग्रंथ के खिलाफ. बचपन से दिमाग में जो जड़ दिया गया सो जड़ दिया गया. माँ ने दूध के साथ धर्म का ज़हर भी पिला दिया, बाप ने चेचक के टीके के साथ मज़हब का टीका भी लगवा दिया ? दादा ने प्यार-प्यार में ज़ेहन में मज़हब की ख़ाज-दाद डाल दी ? नाना ने अक्ल के प्रयोग को ना-ना करना सिखा दिया? बड़ों ने लकड़ी की काठी के घोड़े दौड़ाना तो सिखाया लेकिन अक्ल के घोड़े दौड़ाने पर रोक लगा दी? 

अब सब भक्त हैं, सब तरफ भक्त हैं, कोई छोटा, कोई बड़ा और कोई सबसे बड़ा.

भक्त सिर्फ मोदी के ही नहीं है. भक्ति असल में खून में है लोगों के. आज तो सचिन तेंदुलकर को ही भगवान मानने लगे. अमिताभ बच्चन, रजनी कान्त और पता नहीं किस-किस के मंदिर बन चुके. 

 सो सवाल मोदी-भक्ति नहीं है, सवाल 'भक्ति' है. सवाल यह है कि व्यक्ति अपनी निजता को इतनी आसानी से खोने को उतावला क्यूँ है? 

जवाब है कि इन्सान को आज-तक अपने पैरों पर खड़ा होना ही नहीं आया, बचपन से ही उसके पैर कुछ दशक पहले की चीन की औरतों की तरह लोहे के जूतों में बांध जो दिये। 

खैर, भक्त कैसा भी हो. आज़ाद सोच खिलाफ है. और जो भी ज्ञान-विज्ञान आज तक पैदा हुआ है, वो भक्तों की वजह से पैदा नहीं हुआ है, भक्तों के बावजूद पैदा हुआ है.

भक्त होना सच में ही गलत है लेकिन दूसरों पर ऊँगली उठाने से पहले देख लीजिये चार उंगल आपकी तरफ भी उठती हैं.
राइट?

थैंक्यू.

#भक्त, #गोबरभक्त, #अंधभक्त, #अँडभक्त, #मोदीभक्त,  #भक्तिकाल

Thursday 23 April 2020

मुस्लिम सब्ज़ी बेचने वालों का बहिष्कार- सही है क्या?



थोड़ी सी हवा बहने लगी गैर-मुस्लिम समाज में कि मुस्लिम से सब्ज़ी नहीं लेनी. मुस्लिम सब्ज़ी बेचने वालों का बहिष्कार- सही है क्या? #सांप्रदायिकता #मुस्लिम_सब्ज़ी_बेचने_वाले #Commulanism #भगवा_तो_लहराएगा #काफिर_झटका_माँगेगा

फल सब्ज़ी बेचने वालों की ID मांगना सही है क्या?




कल से खबर  तैर रही है  वो यह है कि इंग्लैंड में कोई रेस्टॉरेंट था, जिसके खाने में मानव मल पाया गया और इसे खा कर  कई लोग बीमार हो गए. मूल बात इस रेस्त्रां के मालिक दो मुस्लिम थे, पकड़े गए और इनको सज़ा भी मिली. मैंने  देखा  बीबीसी की साइट पर है. खबर पुराणी है. २०१५ की. अभी क्यों ऊपर आई. सिम्पल चूँकि भारत में कई वीडियो आए जिनमें मुस्लिम सब्ज़ी-फल पर थूकते दिख रहे हैं. कुछ विडियो सच्चे कहे जा रहे हैं, कुछ झूठे.


अब आप इस वीडियो देखें.

देखा आपने?  मुस्लिम सब्ज़ी विक्रेता डेप्युटी CM को ज्ञापन दे रहे हैं कि लोग उनके मुस्लिम होने की वजह से उनसे सब्ज़ी  नहीं खरीद रहे.

मैं  कुछ पॉइंट रख रहा हूँ, आप सोचें, विचारें कि बात कहाँ तक सही है.

जिस ने पैसे खर्च करने है, क्या उसका कानूनी अधिकार नहीं कि वो जाने कि  उसने कहाँ खर्च करने हैं कहाँ नहीं?

क्या उसका अधिकार नहीं कि वो जाने कि उसने किसे बिज़नेस देना है किसे नहीं?

क्या आपको पता नहीं होना चाहिए  कि किस से डील करना है किस से नहीं?


क्या होटल में रुकने से पहले हमारी ID  नहीं मांगी जाती?

मैं प्रॉपर्टी के धंधे में हूँ. किराए पर अपना घर देने से पहले मालिक सब पूछते हैं, किरायेदार जाट है, सिक्ख है, मुस्लिम है, पुलिस वाला है, वकील है कौन है? फिर तय करते हैं कि  मकान दिखाना भी है कि नहीं. फिर किरायेदार की बाकायदा पुलिस वेरिफिकेशन होती है. यह बहुत पहले नहीं होता था. लेकिन जब कुछ अपराध हुए, आतंकवादी घटनाएं हुईं तो mandatory कर दिया गया.


यहाँ दिल्ली में जो सोसाइटी फ्लैट हैं, वहां हरेक को थोडा न घुसने दिया जाता है अंदर। गेट-कीपर रजिस्टर में हमारी जन्म कुंडली लिखवाता है. फोन नम्बर लिखवाता है. कौन आ रहा  है अंदर। क्या गलत करता है?

तो अब अगर सब्ज़ी-फल बेचने वाले की ID  माँगी जा रही है तो क्या गलत है? वो तो हिन्दू-मुस्लिम एंगल से न भी किया जाए, तो भी करना चाहिए ताकि कल यदि कोई और तरह का क्राइम हो जाए तो पूछ-ताछ करने में मदद मिले। हर रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के पास रेहड़ी पटड़ी वालों का नाम पता ठिकाना होना ही चाहिए। क्या बड़ी दुर्घटना का इंतज़ार किया जायेगा?

क्या खाने की आइटम पर हरा और लाल निशान नहीं लगाया जाता ताकि खाने वाले को पता रहे कि खाना वेज है या नहीं?  क्या दुनिया भर में हलाल का निशान खाने पर नहीं होता?

क्या मुस्लिम ऐसा मीट खा लेगा जो हलाल न हो? झटका मीट खा लेगा क्या मुस्लिम? नहीं खायेगा। तो जब वो झटका खाने से इनकार करता है तो क्या हम यह कहें कि वो नफरत फैला रहा है? तो  गैर-मुस्लिम को भी हक़ नहीं कि  वो तय कर सके कि उसे किससे  फल-सब्ज़ी-मीट-भोजन खरीदना है नहीं खरीदना?  यह नफरत फैलाना कैसे हो सकता है?

जैसे मांस न खाने वालों के लिए पैक्ड आइटम पर हरा गोल चिन्ह लगा होता है ऐसे ही जिनको हलाल आइटम न प्रयोग करना हो तो उनके लिए भी कोई निशान होना चाहिए, जिससे पता लगे कि आइटम हलाल नहीं है.  इसके लिए तमाम गैर-मुस्लिम समाज को मिल कर प्रयास करना चाहिए

मैं नहीं कह रहा कि आप किस से सब्ज़ी लें न लें. किसे किराए पर घर दें न दें. कौन सी आइटम खाएं न खाएं. वो सब आपका अपना फैसला होना चाहिए. मैं बस आइडेंटिफिकेशन हो न हो इस पर विचार पेश कर रहा हूँ.

बाकी आप मुद्दे के तमाम पहलु कानूनी, सामाजिक, व्यवहारिक  पहलु  सोचें, विचारें. कमेंट करें, अगर विडियो पसंद आया तो LIKE करें और  शेयर करें, अपनी व्यक्तिगत राय के साथ शेयर करें.  और मेरा प्रयास है कि हर विडियो में कुछ विचार करने के लिए दिया जाए. सो मेरी फेसबुक टाइम लाइन पर आते रहिये। बाकी विडियो भी देखते रहिये।

नमस्कार 

Tuesday 21 April 2020

धर्म क्या है




धर्म का हिन्दू-मुसलमान से क्या मतलब? 
धर्म का ईशान-सुलेमान से क्या मतलब?
धर्म का कुरआन -पुराण से क्या मतलब? 

धर्म है विज्ञान ... 
धर्म है प्रेम..... 
धर्म है नृत्य..... 
धर्म है गायन ..... 
धर्म है नदी का बहना.... 
धर्म है बादल का टिप टिप बरसना... 
धर्म है पहाड़ों का  झर-झर झरना.... 
धर्म है बच्चों का हँसना...... 
धर्म है बछिया का टापना..... 
धर्म है प्रेम-रत युगल...... 
धर्म है चिड़िया का कलरव...... 

धर्म है खुद की खुदाई
धर्म है खुद की सिंचाई
धर्म है दूसरे का सुख दुःख समझना..... 
धर्म है दूसरे में खुद को समझना.... 
धर्म है कुदरत से संवाद
धर्म है कायनात को धन्यवाद... 

धर्म का मोहम्मद से, राम से क्या मतलब? 
धर्म का मुर्दा इमारतों, मुर्दा बुतों से क्या मतलब? 

धर्म है अभी.... 
धर्म है यहीं.... 
धर्म है ज़िंदा होना... 
धर्म है सच में जिंदा होना....

धर्म का हिन्दू-मुसलमान से क्या मतलब? 
धर्म का ईशान-सुलेमान से क्या मतलब?
धर्म का कुरआन-पुराण से क्या मतलब?

नमस्कार 

Thursday 16 April 2020

आत्मा क्या है? परमात्मा क्या है? आत्मा परमात्मा में क्या अंतर है? क्या आत्मा परमात्मा एक हैं?

आत्मा का अस्तित्व है क्या कुछ? आत्मा परमात्मा में कोई फर्क है क्या? मेरे ख्याल से नहीं। क्यों कह रहा हूँ मैं ऐसा? यदि आत्मा अपने आप में कुछ भी नहीं तो फिर हम और आप कौन हैं? #आत्मा #परमात्मा

अफगानिस्तान.... गुरुद्वारे पर अटैक..कौन ज़िम्मेदार?

अफगानिस्तान.... गुरुद्वारे पर अटैक... कोइ तीस  सिख मार दिए गए..     

कौन है ज़िम्मेदार.    कोई इस्लामिक संग़ठन ? 

मैं आपको बिना किसी लाग-लपेट के कहना चाहता हूँ कोई इस्लामिक संगठन ज़िम्मेदार नहीं है.  सीधा-सीधा इस्लाम ज़िम्मेदार है .     

ये जो अटैक हुआ गुरूद्वारे पर, ये कोई पहला  है? ऐसे कई अटैक पहले किये जा चुके हैं. फिर भी बहुत कम लोगों की हिम्मत होती है  कि  साफ़-साफ़ इस्लाम को ज़िम्मेदार ठहरा सकें। इस्लाम में बाकी किसी भी तरह की आइडियोलॉजी के लिए कोई जगह ही नहीं है. अल्लाह-हू-अकबर. अल्लाह सबसे ऊपर है. और वो अल्लाह वही नहीं है, जिसे आप भगवान या इश्वर कहते हैं. वो अल्लाह बिलकुल अलग है. उस अल्लाह के पैगम्बर हैं, श्रीमान मोहम्मद. और उनके ज़रिये अल्लाह ने अपना पैगाम भेजा है, जिसे क़ुरआन कहा जाता है. जो यह सब मानता है, वो मुसलमान है, जो नहीं मानता, वो काफिर है और काफिर के खिलाफ है क़ुरआन. एक से ज़्यादा आयते हैं क़ुरआन में काफिर के खिलाफ. इसीलिए दुनिया भर में मुस्लिम अटैक करते फिरते हैं. 

इनको सारी दुनिया में इस्लाम फैलाना है, चाहे जैसे मर्ज़ी फैले. सीधी-सीधी बात है. 

एक्शन बाद में होता है, पहले विचार आता है.  फल-फूल बाद में आते हैं, पहले ज़मीन में बीज पड़ते हैं. बिल्डिंग  बाद में बनती है, पहले नक्शा तैयार होता है. ये विचार, ये बीज, ये नक्शा क़ुरआन से आता है. आपको समझना है, गूगल कीजिये सब मिल जायेगा. मिनटों का काम है. 

अगर इस दुनिया को इस तरह के अटैक से आज़ाद करना है तो क़ुरआन को पढ़ें, क़ुरआन के एक शब्द को वैचारिक स्तर पर चैलेंज करें.  गाली-गलौच न करें. तर्क दें. फैक्ट्स दें. आंकड़े दें. 

यह सब भी करना  इस्लामिक मुल्कों में संभव नहीं है. पाकिस्तान में ही ब्लासफेमी कानून है. आप इस्लाम के खिलाफ, क़ुरान के खिलाफ,  श्रीमान मोहम्मद के खिलाफ बोल तक नहीं सकते. 

भारत जैसे मुल्क में यह सब फिर संभव है. लेकिन यहाँ भी ग्रुप बन गए हैं. कुछ लोग दिन-रात मुस्लिम के खिलाफ लिखते-बोलते हैं, कुछ सिर्फ हिन्दू के खिलाफ. Marvel  Vs  DC. 

मेरा संदेश यह है कि यदि आपको दुनिया को बेहतर बनाना है तो आपको क़ुरआन को तर्क पे लाना होगा लेकिन पुराण को भी तर्क पे लाना होगा और गुरूद्वारे के केंद्र बिंदु पर रखे  ग्रंथ को भी। 

क़ुरआन को, इस्लाम को चैलेंज करने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत इसलिये है चूँकि इस्लाम आक्रामक है. अग्रेसिव है. इस्लाम में वैचारिक आज़ादी की कोई गुंजाइश नहीं है.  बाकी समाजों में फिर क्रिटिकल थिंकिंग पैदा हो सकती है. लेकिन इस्लाम क्रिटिकल थिंकिंग की कत्लगाह है. बाकी समाज में फिर खिड़की, रोशन दान हैं, इस्लाम एक बंद घुटा हुआ सा अँधेरा  कमरा है. बाकी समाजों में सामजिक व्यवस्था के लिए कोई बहुत जिद्द नहीं है कि  किसी ख़ास धर्म-ग्रंथ से ही बंधी होनी चाहिए, लेकिन इस्लाम में ऐसा ही है, इसलिए मुस्लिम अपने हिसाब से कानून तक बनवा लेते हैं. भारत में ही मुस्लिम पर्सनल लॉ अलग हैं.  मुस्लिम जहाँ संख्या में थोड़े ज़्यादा होते हैं तो उस मुल्क के कायदा-कानून बदलने के लिए जलसे जुलुस करने लगते हैं. 

इस्लाम को चैलेंज करने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत इसलिए है चूँकि इस्लाम की वजह से ही रोज़ दुनिया के अलग-अलग कोने में गैर-मुस्लिम पर इस तरह के अटैक होते रहते हैं, जैसा ये पीछे गुरूद्वारे पर हुआ.   

मेरा संदेश सीधा-सीधा यह है कि सब तथाकथित धर्म ज़हर हैं, लेकिन इस्लाम पोटासियम साइनाइड है. 

तो हल क्या है? हल सीधा है.  क्रिटिकल थिंकिंग का प्रसार. क्रिटिकल  थिंकिंग एंटी-डॉट  है. एंटी-डॉट फैलाएं. 


शुक्रिया  ...   धन्यवाद..   थैंक्यू

Wednesday 15 April 2020

लॉकडाउन बढ़ते ही मुंबई बांद्रा में इकट्ठे हुये मज़दूर. आख़िर प्र्वासी मज़दूर जाए तो जाए कहाँ?

सुबह मंगलवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा की और शाम को बांद्रा में प्रवासी मज़दूरों की भीड़ इकट्ठा हो गई. कुछ दिन पहले इसी तरह के सीन दिल्ली के आनंद विहार में देखने को मिले थे. कोरोना वायरस के दौर में ये भीड़ कितनी ख़तरनाक हो सकती है, देखने का है। मज़दूर जाए तो जाए कहाँ? कोरोना से मरे या फिर भूख से, बस यही सवाल है? लॉक डाउन ज़रूरी है , बहुत ज़रूरी है. ठीक है सरकार जी, रखिये, रखिये,   हमें क्या है? साल भर रखिये,
लेकिन  हमें खाना-दाना देते रहिये, 
दवा दारु का खर्च देते रखिये, 
हमारे बच्चों की फीस देते रखिये. 
बिजली पानी के बिल, फोन इंटरनेट का बिल देते रखिये. 
हमारे तमाम खर्चे भरते रहिये  बस. हम आम लोग हैं बई. 
अमीर का क्या है? उसे दस साल लॉक-डाउन में रोक लो.

ठीक है सरकार जी, तो मान रहे हैं न आप?

ठीक है ओये  सरकार जी मान जाएंगी . अब तुम मत इकट्ठ  जमा करना न आनदं  विहार, दिल्ली में और न बांद्रा मुंबई में. और न ही कहीं और।  
ठीक? राइट? 


जी सरकार जी, आम आदमी राइट बोल रिया है।  सुन लीजिये बस.

Thursday 9 April 2020

भक्ति

भक्ति अगर गलत है तो मुस्लिम होना भी गलत है। चूंकि मुस्लिम होना ही कट्टर होना है सो उसके मुक़ाबले में भक्त हो गए हिन्दू लोग। बिना क्रिया समझे आप प्र्तिक्रिया नहीं समझ सकतीं। कल कोई अफगानिस्तान में मुस्लिम के खिलाफ खड़ा हो जाए अगर तो आप को वो भी भक्ति लगेगी लेकिन आप समझेंगे नहीं कि वो भक्ति क्यों पैदा हुई? नहीं होनी चाहिए, लेकिन मोहम्मद के प्रति भी नहीं होनी चाहिए।

Wednesday 1 April 2020

कोरोना है करुणा ..... सामाजिक विकृतियों का इलाज है



कोरोना है करुणा। सामाजिक विकृतियों का इलाज है। Corona is a Bliss. Corona is Cure of social Disbalance......

लॉकडाउन (Lockdown/ Quarantine) तो ठीक है. चला लीजिये छह महीने. लेकिन  गरीब और मध्यम वर्गीय तबके का क्या होगा? उनको खाना-दाना कौन देगा?  उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतें कैसे पूरी होंगी? वीडियो देखिये और समझिये वो, जो कोई नहीं बोल रहा, हल जिसे कोई नहीं सुझा रहा.   

प्रधानमंत्री ने लॉक डाउन के आदेश  दिया. लेकिन उस आदेश के साथ उनको बहुत कुछ और आदेश नहीं दिए जो की उनको देने चाहिए थे. 

मैं आपको एक-एक कर के  बता रहा हूँ और वो आदेश उनको क्यों देने चाहिए  थे यह भी बताऊंगा. 

कोरोना का शोर शराबा  जब तक है तब तक यदि किसी के घर या दूकान का किराया पंद्रह  हज़ार रुपये तक है तो उसे वो किराया देने से छूट  मिलनी चाहिए थी. 

बस ट्रैन का किराया माफ़ करना चाहिए था. 

स्कूल कॉलेज की फीस माफ़ होनी चाहियें. 

जितना आपका एवरेज बिल आता है, कम से कम उतना बिजली पानी का बिल माफ़ होना चाहिए.  

जिस किसी ने कैसे भी पैसा उधार लिया हो, चाहे सोना रखकर चाहे घर रख कर, अगर उसका ब्याज पंद्रह  हज़ार रुपये  माह तक का है तो वो ब्याज माफ़ होना चाहिए  था. 

गाड़ी, घर की EMI  पोस्टपोन कर देनी चाहिए  थी, जब तक कोरोना का हो हल्ला शांत नहीं होता. . 
और 
जिन लोगों ने व्यक्तिगत  प्रयोग हेतु कार रखी हैं, उनको छोड़ कर बाकी सब को प्रति व्यक्ति गृह खर्चे के लिए कम से कम सात हज़ार रुपये  महीना देना  चाहिए थे. 

यह सब मैं सिर्फ उनके लिए कह रहा हूँ जिनकी आमदनी इस लॉक-डाउन में लॉक हो गयी है. 

जिनको इस समय में भी कहीं से सैलरी मिल रही है या ब्याज आ रहा है या फिर कोई और आमदनी आ रही है, उनके लिए यह सब बिलकुल नहीं दिया जाना चाहिए. 

और यह सब उस क्ष्रेणी के लिए तो बिलकुल नहीं है जो अमीर है, सुपर रिच है. न...न. वो तो यह सब खर्चा वहां करेंगे. 


सीधा सा सवाल है कि  यह सब देगा कौन? तो यही अमीर वर्ग देगा. 

जो रिच है, जो सुपर रिच है उससे छीना  जायेगा. आप कहेंगे कि  यह कैसे संभव है?

तो मेरा जवाब है कि  यह सब बहुत आसानी से संभव है. सिर्फ आपको समझ आ जाये कि  यह संभव है तो यह संभव है. 

मैं एक  मिसाल से समझाता हूँ. 
सोना ज़्यादा कीमती है या लोहा? 
सोना. जवाब होगा. 
लेकिन काम क्या ज़्यादा आता है. लोहा. 
तो फिर जो चीज़ कुछ ख़ास काम ही नहीं आती उसे क्यों इतना कीमती माना है?
वो सिर्फ इसलिए चूँकि हमने ऐसा माना है.  
यदि इंसान सोने को कीमती मानना छोड़ दे तो फिर सोना कीमती रहेगा क्या लोहे के मुकाबले में? 
नहीं न?

तो यह है ताकत मानने की. 

तुमने मान रखा है कि  एक आदमी अमीर रखा जा सकता है, बहुत अमीर और दूजे को भिखारी रखा जा सकता है. 

तुमने मान रखा है बस. वरना  कुदरत थोड़ा न किसी को अमीर गरीब पैदा करती है. 

कोई बच्चा गरीब पैदा नहीं होता. सब एक जैसे  पैदा होते हैं. 
सबको दो हाथ, दो पैर, दो कान मिलते हैं.  

ठीक है दो कानों के बीच दिमाग सबके अलग हैं लेकिन यह भी तो समझिये कि  जो भी इस धरती पर आता है उसे खाने, पीने, रहने का हक़ है.
कौन जानवर किराया देता है इंसान के अलावा? अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम. 

मतलब पागलों की तरह कौन चाकरी करता है? सिर्फ काम ही काम कौन करता है? सुबह से शाम तक काम ही काम कौन करता है?

ऐसा सिर्फ इडियट  इंसान करता है. 

असल में जो कुछ भी जीवन के लिए बहुत ज़रूरी हैं, वो सब लगभग मुफ्त होना चाहिए या फिर बहुत थोड़े प्रयास से मिलना चाहिए. यह सब संभव है. बिलकुल संभव है.  

हमने कानून बनाया न कि कोई कितना ही अमीर हो उसे एक से ज़्यादा बीवी या  एक से ज़्यादा पति नहीं मिल सकते. बनाया न कानून? 

इसी तरह से हम कानून बना सकते हैं कि  एक सीमा के बाद पैसा पब्लिक डोमेन में आ जायेगा, चाहे किसी का भी हो. 

एस करते ही आपको सुपर रिच नहीं दिखेंगे. और आपको अथाह गरीब नहीं दिखेंगे. 

मैं हैरान होता हूँ कि गरीबी रेखा से नीचे भी कोई होता है. तो फिर वो होता ही क्यों है भाई?
कत्ल कर दो न उसे. 

यह तुम्हे अमानवीय लगता है?
 तो फिर उसे इत्ता गरीब क्यों रखा है?

तो यह मौका है अमीर, बेइंतेहा अमीर से पैसा छीनने का और ज़रूरतमंद को देने का. 

मौका है और दस्तूर न भी तो बनाया जा सकता है  ......   

यह मौका है यह सोचने का कि  क्या हमने जो संस्कृति बनाई है, वो संस्कृति है?

 तीन शब्द  हैं. प्रकृति..संस्कृति...विकृति

इंसान को फ्रीडम है. 

वो प्रकृति से ऊपर उठ सकता है. वो प्रकृति से नीचे भी गिर सकता है. 

ऊपर उठा तो संस्कृति... 
नीच गिरा तो विकृति. 

तो जो समाज बनाया है हमने, जिसमें गरीब बड़े शहर छोड़ हज़ारों किलोमीटर पैदल ही चल पड़े, भूखे-प्यासे चल पड़े हों, इस समाज को संस्कृति कह सकते हैं? 

यह सिर्फ और सिर्फ विकृति है. 

संस्कृति तो ऐसी कृति को कहते हैं जिसमें कुछ बैलेंस हो, कुछ सौंदर्य हो. कुछ समन्वयता हो. 

जो कृति टेडी-मेढ़ी हो उसे संस्कृति कैसे कहेंगे? 

जिस संस्कृति में कोई बहुत अमीर और कोई बहुत बहुत गरीब हो, उसे संस्कृति कैसे कहेंगे?

यह मौका है कि समझने का कि समाज के बड़े हिस्से को अथाह गरीब रखने का दुष्परिणाम पूरे समाज को भुगतना पड़  सकता है. 
यह मौका है गहन अध्ययन करने का, ब्रेन स्टॉर्मिंग का कि  गरीबी अमीरी के बड़े फासले को काम कैसे किया जा सकता है?
यह मौका है यह सोचने का कि अथाह अमीरी को, अथाह गरीबी को  कैसे सीमित किया जाए.
यह मौका है यह सोचने का कि अथाह आबादी को कैसे सीमित किया जाए. 

यह मौका है सोचने का कि सामजिक फासलों  कैसे कम किया जाये?

वकती दिक्क्तें, इमीडियेट खड़ी समस्याएं आपको मौका दे रही हैं, सदा सदा से मौजूद समस्यायों को हल करने का. 
कोरोना ने इंसान के  दूषित किये नदी नाले, हवा पानी ही साफ़ नहीं किया, समाजिक डिस-बैलेंस, विकृत समाज को भी सही  करने का मौका दिया है.  

आप भी सोच कर देखिये. 

वीडियो देखने के धन्यवाद, जहा भी देख रहे हों, जिस भी प्लाटफॉर्म पर कमेंट ज़रूर कीजिये शेयर ज़रूर कीजिये और अपनी राय के साथ शेयर  कीजिये.,

नमस्कार