Wednesday 20 February 2019

!!!! सावधान !!!!

सुना है भारत -पाक सीमा पर तनाव बढ़ गया है, दोनों तरफ से मूंछों पर ताव दिया जा रहा है, जवान मारे जा रहे हैं, कोई मित्र कह रहे हैं कि टमाटर के बढे भाव की शिकायत मत करो, मोदी को बस पाकिस्तान की अक्ल ठिकाने लगाने दो.......टमाटर के भाव की शिकायत करने वाली कौमें क्या जवाब देंगी जंगी हमलों का.......... एक दम बकवास निरथर्क तर्क हैं, आपने डिफेन्स मिनिस्ट्री सुनी होंगी, कभी अटैक मिनिस्ट्री सुनी हैं...अब सब यदि डिफेन्स ही करते हैं तो अटैक क्या इनके भूत करते हैं? असल बात यह है कि झगड़ा आम पब्लिक का तो होता ही नही आम पब्लिक तो बेचारी अपने दाल रोटी से ही नहीं निबट पाती, जालंधर में रिक्शा चलाने वाला बेचारा क्यों मारेगा, लाहौर में ठेले वाले को कराची के दिहाड़ी मज़दूर का असल दुश्मन उसकी गरीबी है न कि पंजाब का खेत मजदूर झगड़ा किसका है फिर? झगड़ा तो इन बड़े लोगों का है भाई, बड़ी मूंछ वालों का, बड़े पेट वालों का, बड़ी तिजोरी वालों का... सिर्फ अपने वर्चस्व को बढ़ाने की हवस है......पब्लिक का ध्यान बटाने का टूल है....... जंग इनके लिए......... सावधान!! सियासती चाहता है कि वहां की जनता असल मुद्दे कभी न सुलटे, सुलट गए तो वो खुद भी सुलट जाएगा....और जंग ताकत देती है मौजूदा सियासती को, वो दुश्मन का डर दिखा पूरी ताकत हथिया लेता है.... सो यह जो पाकिस्तान को फ़ौजी जवाब दिया जा रहा है, वो तो ठीक है...लेकिन ज्यादा ज़रूरी यह है कि जंग को ही जवाब दे दिया जाए.....पाकिस्तान के आवाम को मेसेज दिया जाए कि जंग नही होनी चाहिए, वहां के आवाम-वहां के लेखक-वहां के सोचने-समझने वाले लोगों को मेसेज दिया जाए कि वहां की सरकार पर दबाव बनाएं, पब्लिक ओपिनियन बनाएं, जंग नही होनी चाहिए.......पूरी दुनिया में ओपिनियन बनाई जाए कि जंग नही होनी चाहिए....किसी भी तरह का कत्ल-ए-आम नही होना चाहिए........लगातार कोशिश करें.. लेकिन करेगा कौन?.....सरकारों से उम्मीद कम है, सो हम, हम जो बेचारी जनता हैं, हमें प्रयास करना होगा......लेकिन यहाँ तो देखता हूँ, लगभग सब शिकार हैं नकली देशभक्ती के, शिकार हैं राजनेता के......तो मित्रवर जागें, और पहचाने असली दुश्मन कौन है, उससे लड़ें न कि बेवकूफ बनें सीमा पर कोई जवान मरेगा, तो सरकारी अमला सलाम ठोकेगा उसकी लाश को, शायद उसे कोई तगमा भी दे दे मरणोंपरांत, हो सकता है उसके परिवार को कोई पेट्रोल पंप दे दे या फिर कोई और सुविधा दे दे. शहीदों को सलाम. नमन. किसी दिन कूड़ा उठाने वाली निगम की गाड़ी न आई हो तो झट से कूड़े को ढक दिया जाता है, बहुत अच्छे से, ताकि बदबू का ज़र्रा भी बाहर न आ सके. यह शहीदों का सम्मान-इनाम-इकराम सब वो ढक्कन है जो संस्कृति के नाम पर खड़ी की गई विकृति की बदबू को बाहर नहीं फैलने देता. "ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो क़ुरबानी." शहीद! वतन के लिए मर मिटने वाला जवान!! गौरवशाली व्यक्तित्व!!! है न? गलत. कुछ नहीं है ऐसा. जीवन किसे नहीं प्यारा? अगर जीवन जीने लायक हो तो कौन नहीं जीना चाहेगा? जो न जीना चाहे उसका दिमाग खराब होगा. और यही किया जाता है. दिमाग खराब. वतन के लिए शहीद हो जाओ. असल में तुम्हारे सब शहीद बेचारे गरीब हैं, जिनके पास कोई और चारा ही नहीं था जीवन जीने का इसके अलावा कि वो खुद को बलि का बकरा बनने के लिए पेश कर दें. एक मोटा 150 किलो का निकम्मा सा आदमी फौज में भर्ती होता है और जी जान से देश सेवा करता है। जी हाँ, शहीद होकर, वो और कुछ नहीं कर पाता लेकिन दुश्मन की एक गोली जरूर कम कर देता है. तुमने-तुम्हारी तथा-कथित महान संस्कृति ने उन गरीबों के लिए कोई और आप्शन छोड़ा ही नहीं था सिवा इसके कि वो लेफ्ट-राईट करें और जब हुक्म दिया जाए तो रोबोट की तरह कत्ल करें और कत्ल हो जायें. बस. तो अगली बार जब कोई जवान शहीद हो और उसे सम्मान दिया जाए तो कूड़े-दान के ऊपर पड़े ढक्कन को याद कीजियेगा. कितने जवान अमीरों के, बड़े राजनेताओं के बच्चे होते हैं, कितने प्रतिशत, जो फ़ौज में भर्ती होते हों, जंग में सरहद पर लड़ते हों...शहीद होते हैं? नगण्य यदि शहीद होना इतने ही गौरव की बात है तो क्यों नही आपको अम्बानी, अदानी, टाटा, बिरला आदि के बच्चे फ़ौजी बन सरहद पर जंग लड़ते, मरते दीखते? यदि शहीद होना इतने ही गौरव की बात है तो क्यों नही आपको गांधी परिवार के बच्चे, भाजपा के बड़े नेताओं के बच्चे या किसी भी और दल के बड़े नेताओं के बच्चे फ़ौजी बन सरहद पर जंग लड़ते, मरते दीखते? नहीं, इस तरह से शहीद होना कोई गौरव की बात नहीं है असल में यदि सब लोग फ़ौज में भर्ती होने से ही इनकार कर दें तो सब सरहदें अपने खत्म हो जायेंगी सारी दुनिया एक हो जायेगी लेकिन चालाक लोग, ये अमीर, ये नेता कभी ऐसा होने नहीं देंगे, ये शहीद को Glorify करते रहेंगे, उनकी लाशों को फूलों से ढांपते रहेंगे, उनकी मूर्तियाँ बनवाते रहेंगे और खुद को और अपने परिवार को और अपने बच्चों को AC कमरों में सुरक्षित रखेंगे समझ लें, असली दुश्मन कौन है, असली दुश्मन सरहद पार नहीं है, असली दुश्मन आपका अपना अमीर है, आपका अपना सियासतदान है वो कभी आपको गरीबी से उठने ही नही देगा, वरना आप अपने बच्चे कैसे जाने देंगे फ़ौज में मरने को वो कभी आपको असल मुद्दे समझ आने नही देगा, वरना आप अपने बच्चे कैसे जाने देंगे फ़ौज में मरने को लेकिन यहाँ सब असल मुद्दे गौण हो जाते हैं, बकवास मुद्दों से भरा पड़ा सारा अखबार, सारा संसार और यह भी साज़िश है, साज़िश है इन्ही लोगों की है अभी अभी एक अंग्रेज़ी फिल्म देखी थी हंगर गेम्स, उसमें टीचर अपनी शिष्या को समझाता है कि हर दम ध्यान रखो, असली दुश्मन कौन है क्योंकि असली दुश्मन बहुत से नकली दुश्मन पेश करता है और खुद पीछे छुप जाता है इनके . सावधान. मेरा भी आपसे यही कहना है कि ध्यान रखें असली दुश्मन कौन है. "इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें गरीब ही रहें, तभी तो कमअक्ल रहेंगे गरीब ही रहें, तभी तो गटर साफ़ करेंगे गरीब ही रहें, तभी तो फ़ौजी बन मरेंगे गरीब ही रहें, तभी तो जेहादी बनेंगे इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें और सब शामिल हैं सियासत शामिल है कारोबार शामिल है तालीम शामिल है मन्दिर शामिल है मस्जिद शामिल है इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें कब कोई बच्चा गरीब पैदा होता है कब कोई कुदरती फर्क होता है इक सारी उम्र एश करे दूजा घुटने रगड़ रगड़ मरे इक सवार, दूजा सवारी इक मजदूर, दूजा व्योपारी इक साज़िश है, गरीब गरीब ही रहें" अब तुम भी जागो. विचारों. अक्ल का घोडा दौड़ाओ. कोई ठेका नहीं लिया कुछ चुनिन्दा लोगों ने शहीद होने का. तुम तो अपने बकवास सदियों पुराने विचार शहीद करने को तैयार नहीं ....ज़रा सी चोट पड़ते ही....लगते हो चिल्लाने ...लगते हो बकबकाने...गालियाँ देने. और दूसरे कोई लोग होने चाहिए जो अपने आप को शहीद करें और तुम पूजोगे बाद में अपने शहीदों को. तुम उनकी मूर्तियाँ बना के पूजा करने का नाटक करते रहोगे. नहीं, कुछ न होगा ऐसे ...ये सब नहीं चलना चाहिए........तुम्हे बलि देनी होगी अपने विचारों की.....तुम्हें शहीद करना होगा अपनी सड़ी गली मान्यताओं को. कोई फायदा न होगा व्यक्ति शहीद करने से. फायदा होगा विचार शहीद करने से...फायदा होगा समाज की, हम सब की कलेक्टिव सोच ..जो सोच कम है अंध विश्वास ज़्यादा...उस सोच पे चोट करने से...फायदा होगा इस अंट शंट सोच को छिन्न भिन्न करने से. फायदा होगा धर्म के नाम पे, राजनीती के नाम पे, कौम के नाम पे, राष्ट्र के नाम पे और नाना प्रकार के विभिन्न नामों पे जो वायरस इंसानों में, आप में , मुझ में, हम सब में पीढी दर पीढी ठूंसे गए हैं, उन वायरस के विरुद्ध जंग छेड़ने से. फायदा होगा विचार युद्ध छेड़ने से....फायदा होगा तर्क युद्ध छेड़ने से...फायदा होगा जब यह युद्ध गली गली, नुक्कड़ नुक्कड़ छेड़ा जाएगा. नमन....तुषार कॉस्मिक
कुरान अल्लाह से नाज़िल हुई...मेरे ख्याल में हर लेखक जब लिखना शुरू करता है तो लेख/कहानी नाजिल होना शुरू हो जाती है.....शुरू वो करता है, खत्म कहानी के पात्र खुद करते हैं

पुलवामा-- कारण और निवारण

"#पुलवामा-- कारण और निवारण" मुझे यह दुर्घटना बिलकुल भी खास नहीं लग रही सिवा इसके कि अब हरेक के हाथ में फोन उबाले मार रहा है पहले लोग बामुश्किल अखबार/ मैगज़ीन पर भड़ास निकाल पाते थे एडिटर भी एडिट करता था अब क्या है?...जो मर्ज़ी बकवास पेल दो...सोशल मीडिया..ज़िंदाबाद मुझे लगता है कि बीजेपी के नेता नेपाल सिंह ने बिलकुल सही कहा है, "फौजी मरने के लिए ही होता है. और हरेक मुल्क में, हर समय में फौजी मरते ही हैं. यह उनका जॉब ही है. पहले से ही तय है.इसमें क्या इत्ता हो-हल्ला करना?यह भी युद्ध ही है, गुरिल्ला युद्ध है." हालांकि गुरिल्ला ऐसी मूर्खता-भरी वजहों से युद्ध करता होगा, इस पर गहन शंका है मुझे. वैसे ऐसा ही कुछ ॐ पुरी ने भी कहा था तो उसे माफी मांगनी पड़ी थी बाद में वो मर गया/मारा गया मेरा तो मानना ही यह है कि कोई तुक नहीं कि मारे गये फौजी की बेटी/बीवी/माँ को दिखाया जाये मुल्क को.... वो सब पहले से ही तय है कि कोई विधवा होगी/कोई अनाथ होगा/ कोई बेटा खोएगा अब जब तय है तो फिर काहे का बवाल? बवाल करना ही है तो करो न कि फौजी क्यों है/ फ़ौज क्यों है/ हथियार क्यों हैं? करो एतराज़! और जब एतराज़ करोगे तो उसकी वजह समझनी होगी... वजह है REGION और RELIGION क्षेत्र-वाद और धर्म-वाद जब तक ये दोनों हैं दुनिया मुल्कों और धर्मों में बंटी रहेगी...और जब तक दुनिया बंटी रहेगी इंसानियत लाशें ढोती रहेगी. "शहीद अमर रहे" "वीर जवान अमर रहे" यह सब बकवास सुनते रहना होगा....कोई शहीद नहीं होना चाहता.....सब जीना चाहते हैं......जीवन जीने के लिए खुद को पैदा करता है न कि इस तरह से मर जाने के लिए... न तो इसका इलाज पाकिस्तान पर हमला है, न कुछ कश्मीरियों का कत्ल.....इस सब का एक ही इलाज है दुनिया को REGION और RELIGION की बीमारी से मुक्त करना तो अगली बार जब आप अपने पंजाबी, हरियाणवी, भारतीय, पाकिस्तानी, अमेरिकी होने का गर्व महसूस करें तो चौंक जाना.....यह खतरनाक है मैंने बहुत पहले एक विडियो बनाया था...."SINGH IS NOT KING" मेरा बहुत विरोध हुआ था. मैंने बहुत समझाया कि जब गुरु कहते हैं, "मानस की जात सबै एको पहचानबो" तो फिर कौन सिंह? कौन किंग? लेकिन मेरी बात किसी के पल्ले नहीं पड़ी. खैर, इंसानियत को "क्षेत्रीयता" से छुटकारा पाना ही होगा और समझना ही होगा कि धर्म से बड़ा कोई अधर्म है ही नहीं.....चूँकि यह दुनिया को टुकड़ों में बांटता है अब जो लोग हाय-तौबा मचा रहे हैं न इन फौजियों की मौत पर.....उनमें से शायद ही कोई हो जो कारण और निवारण तक जाने की सोच-समझ और हिम्मत रखता हो..... सो सावधान हो जाईये....मौका परस्त लोगों से.....अगर सच में बदला चाहते हैं इन लाशों का तो अपनी बेवकूफियों की बली दीजिये कहिये कि आप हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख नहीं हो कहिये कि आप इस धरती के वासी हो कहिये कि आपका भारतीय होना, चीनी, नेपाली होना सिर्फ आपके तथा-कथित नेताओं की मूर्खताओं की वजह से है इससे ज्यादा कुछ भी नहीं जब तक आप खुद पर लेबल उतार फेकने को तैयार नहीं होंगे, लाशों के दर्शन करते रहेंगे... और एक बात.....जो आपको बात सीधी सी ही लगे तो बता दूं कि वो सिर्फ इस लिए कि वो होती ही सीधी है....बस चतुर-सुजान लोगों द्वारा उलझा दी गईं हैं...... और अगली बात. जब आपको यह न पता हो कि आपका असल दुश्मन कौन है तो आप कैसे जीतोगे? जब बीमारी को ही इलाज समझेंगे तो कैसे बीमारी से छुटकारा पायेंगे? साइकोलॉजी में एक चैप्टर पढ़ाया जाता है......HEREDITY & ENVIRONMENT.... मतलब एक इन्सान की शख्सियत घड़ने में उसके बाप-दादा-पडदादा......यानि पूर्वजों का कितना हाथ है और जिस एनवायरनमेंट में, चौगिरदे में वो रहता है उसका कितना हाथ है....इसकी विषय की स्टडी. और जहाँ तक मुझे याद पड़ता है......साइकोलॉजी में कहीं नहीं पाया गया कि किसी व्यक्ति कि मान्यताएं HEREDITY की वजह से आती हैं...न...कोई हिन्दू माँ-बाप का बच्चा अगर मुस्लिम घर में पलेगा तो वो मुस्लिम ही बनेगा न कि हिन्दू.....और मुस्लिम माँ-बाप का बच्चा यदि हिन्दू घर में पलेगा तो वो हिन्दू ही बनेगा न कि मुस्लिम........तो कुल मामला सिखावन का है.....एनवायरनमेंट का है. इसमें आजकल लोग DNA की बकवास भी जोड़ देते हैं.......अबे, DNA रंग-रूप, कद-बुत आदि पर लागू होता है...सोच-समझ पर नहीं. नानक साहेब के पिता हिन्दू थे...नानक को जनेऊ पहनाने ले गए...नहीं पहना जनेऊ नानक ने.......विरोध किया......उन्होंने हरिद्वार जाकर सूरज की उलटी दिशा में पानी दिया....उन्होंने जगन्नाथ जाकर हो रही आरती का विरोध किया...कहा कि यह पूरा आसमान ही थाल है, और सूरज-चाँद-तारे इसके दीपक है और पूरा नभ-मंडल ही उस परमात्मा की आरती कर रहा है. मूर्ख हैं वो लोग जो यह समझते हैं कि यह ज़रूरी है कि अगर बाप हिन्दू है तो बेटा भी हिन्दू ही होना चाहिए. तो कुल मतलब यह कि सब 'सिखावन' है, ऊपर से थोपी गई.....बच्चा कोरी स्लेट है..जो लिखा गया बाद में लिखा गया. और जो लिखा गया वो सदियों की लिखवाट है...वो शास्त्रों की लिखवाट है...बाप-दादा से चली आ रही....चूँकि आपके बाप-दादा मूर्ख थे...उन्होंने कभी सोचा ही नहीं कि सही क्या और गलत क्या है...उन्होंने बस यही सोचा कि चूँकि हमारे बाप-दादा भी ऐसे ही सोचते थे, ऐसे ही जीते थे सो यही सब सही है.....लेकिन असल में यही सब "गलत" है......यही सब आपको सिखाता है कि आप का धर्म सही है, आपका कल्चर सही है, आपका मुल्क सही है.....बाकी सब गलत.....असल में अगर आपको लड़ना है तो इस सिखावन के खिलाफ़...असल में आप जिसे इलाज समझते हैं वो ही आपकी बीमारी के वजह है...असल में आपको अपने शास्त्र से लड़ना है.....असल में आपको हर शास्त्र से लड़ना है....यह लड़ाई शास्त्र को हराने से ही जीती जाएगी...शस्त्र का तो कोई काम है ही नहीं....असल में आपका दुश्मन कोई मुस्लिम, कोई हिन्दू है ही नहीं.......असल में आपका दुश्मन कोई पाकिस्तान, कोई हिंदुस्तान है ही नहीं...असल में आपका दुश्मन कुरान है, पुराण है.... इनको हरा दो, जंग आप जीत ही जायेंगे. फिर समझ लीजिये.... यदि आपको लगता है कि ये कोई तीर तलवार की जंग थी तो आप गलत हैं यदि आपको लगता है कि ये कोई तोप बन्दूक की लड़ाई है तो आप गलत हैं यदि आपको लगता है कि ये कैसे भी अस्त्र-शस्त्र की लड़ाई है तो आप गलत हैं न...न......फिलोसोफी की लड़ाई है...आइडियोलॉजी की लड़ाई है.....किताब की लड़ाई है.....शास्त्र की लड़ाई है.. ये कुरआन और पुराण की लड़ाई है...... ये आपकी अक्ल पर सवार हैं सवार है कि किसी भी तरह आपकी अक्ल का स्टीयरिंग थाम लें सिक्खी में तो कहते है कि जो मन-मुख है वो गलत है और जो गुर-मुख है वो सही है.....आपको पता है पंजाबी लिपि को क्या कहते हैं? गुरमुखी. मतलब आपका मुख गुरु की तरफ ही होना चाहिए. असल में हर कोई यही चाहता है. इस्लाम तो इस्लाम से खारिज आदमी को वाजिबुल-कत्ल मानता है....समझे? क्या है ये सब? इस सब में आपको लगता है कि 42 सैनिक मारे जाने कोई बड़ी बात है? इतिहास उठा कर देखो. लाल है. और वजह है शास्त्र. दीखता है अस्त्र-शस्त्र. चूँकि आप बेवकूफ हो. चूँकि जब शास्त्र पर प्रहार होगा तो आपकी अपनी अक्ल पर प्रहार होगा...वो आप पर प्रहार होगा....वो आपको बरदाश्त नहीं. इसलिए आप नकली टारगेट ढूंढते हो. अगर सच में शांति चाहते हो तो कारण समझो. तभी निवारण समझ में आयेगा. कारण क़ुरान-पुराण-ग्रन्थ-ग्रन्थि है. ये सब विलीन करो. बाकी इंसान ने काफी कुछ भौतिक-रसायन विज्ञान और मनो-समाज-विज्ञान में तरक्की की है. इन सब की मदद से दुनिया काफी-कुछ शांत हो जाएगी. नमन....तुषार कॉस्मिक नोट:--यदि शेयर कर रहे हैं तो बेहतर है कि कॉपी पेस्ट करें...अन्त में मेरा नाम (तुषार कॉस्मिक) दे दीजिये बस, हो सके नीला कर दें.

स्वस्थ कैसे रहें? कुछ बकवास टिप्स

पञ्च तत्व....हवा, पानी, मिट्टी, अग्नि, आकाश...

हवा---यदि हवा शुद्ध न हो, पूर्ण न मिले तो इन्सान बीमार... इलाज है....गहरी सांस, ताकि ऑक्सीजन मिले ज्यादा और कार्बन-डाई-ऑक्साइड हो बाहर ज़्यादा... यानि किया जाये शुद्ध हवा में प्राणायाम.

पानी--पानी पीयें खूब...लेकिन सिर्फ पानी.... चाय, काफी, कोल्ड-ड्रिंक नहीं.....नीबूं पानी भी चलेगा.

मिटटी--मिटटी से मतलब....हम जो अनाज और फल-सब्जी खा रहे हैं वो मिटटी का ही रूप है..... है उसमें जल भी, हवा भी.....लेकिन ज्यादा मिटटी का ही रूप है....अब मिटटी जाये तन में लेकिन शुद्ध रूप में...सो हो सके तो कच्चा खाएं... जो भी हो सके.

अग्नि....अग्नि से मतलब रसोई की अग्नि से बचें, जहाँ तक हो सके सूरज की अग्नि का प्रयोग करें...धूप में रहें, कुछ समय ज़रूर-गर्मी हो चाहे सर्दी.....और सूरज की अग्नि से पके फल और सब्जियां खाएं-पीयें.

और आकाश.....तो आकाश को निहारें.....पतंग उड़ायें या उड़ती पतंग देखें...रात को तारे देखें...चाँद देखें.....और आकाश को निहारते हुए भीतर के आकाश में उतर जायें....मतलब ध्यान पर ध्यान करते हुए.....आकाश-मय हो जायें...स्वस्थ हो जायें.

तुषार कॉस्मिक

गुरिल्ला युद्ध

धर्मों का विरोध मत कीजिये... करेंगे तो सब आपके खिलाफ हो जायेंगे.....आप धर्मों के सदियों के किले को ढहा नहीं पायेंगे...खुद ढह जायेंगे शायद.... 

आप को ट्रोजन हॉर्स याद है।एक नकली बड़ा सा घोड़ा...जिसके अंदर सैनिक छुपा दिए गए थे ..वो किसी तरह दुश्मन के किले में घुसा दीजिये.....दुश्मन खुद पस्त हो जायेगा।आप बस वैज्ञानिकता पर जोर दीजिये, तर्क पर जोर दीजिये, दलील पर जोर दीजिये, प्रयोगिकता पर जोर दीजिये........धर्म अपने आप गायब हो जायेंगे....यह गुरिल्ला युद्ध है...अँधेरे से मत लड़ें.....बस मशाल जला दें....मशाल तर्क की, मशाल तर्क युद्ध की.......

यदि साबित हो भी जाये कि राम कोई भगवान नहीं, मोहम्मद कोई रसूल नहीं...... तो भी उतना समय बच्चों का व्यर्थ न करवाया जाये, बच्चों को रिस्क में न डाला जाये....

मतलब डिटेल में न भी पड़ें वो तो भी वैज्ञानिक सोच रख सकते हैं.। सीधे ही तार्कीक जीवन जी सकते हैं.

आबादी

आबादी बहुत बढ़ गई है.....मैं इंसानों की नहीं, कुत्तों की आबादी की बात कर रहा हूँ. वैसे तो कुत्तो की आबादी भी इसलिए बढ़ी है क्योंकि बेवकूफ इंसानों की आबादी बढ़ी है। आज शहरों में कुत्ता इन्सान का बेस्ट फ्रेंड नहीं बल्कि एक जबर्दस्त दुश्मन बन चुका है।
ये दीगर बात है कि इन्सान भी खुद का सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका है...तो मैं कुत्तों को कूट रही थी...

किसी ज़माने में जब घर बड़े थे और गाँव छोटे तो, जगह थी इन्सान के पास और ज़रूरत भी थी। कुत्ता एक साथी की तरह , चौकीदार की तरह इन्सान की मदद करता था। लेकिन अब जब चौकीदार ही चोर हो....मतलब जब शहर बड़े और घर छोटे हो गए तो अब कुत्ते मात्र सजावट के लिए रखे जाते हैं। भला तेरा कुत्ता मेरे कुत्ते से ज्यादा कुत्ता कैसे?

एक और वजह है. खास करके हिन्दू समाज में. हिन्दू औरतों को कोई भी बाबा, पंडित, मौलवी आसानी से बहका सकता है.......घर में बरकत नहीं, पति बीमार है, बच्चा बार-बार फेल होता है तो जाओ काले कुत्ते को रोज़ दूध पिलाओ.....जाओ, पीले कुत्ते को रोज़ खिचड़ी खिलाओ.....बस ये महिलाएं गली-गली कटोरे ले के कुत्ते ढूंढती हैं....बीमार कुत्तों को दवा देती हैं.....पुण्य का काम है? नहीं. पाप कर रही हैं. इनको worms पडेंगे अगले जन्म में, वो भी जो कुत्तों को पड़ते हैं वो वाले. चूँकि इन्सान हो चाहे कुत्ते......ये सब अब अल्लाह की देन कम हैं डॉक्टर की दी दवा की देन ज्यादा हैं.....अल्लाह तो अगर पैदा करता था तो फिर बीमारी भेज के मार भी देता था...इन्सान ने अल्लाह के नेक काम में दवा बना के बाधा डाल दी.....वो अब मरने नहीं देता......न अपनी औलाद और न कुत्तों की.....वो बीमार नहीं होने देता......अल्लाह के नेक काम में बाधा......इसलिए कीड़े पड़ेंगे.....

खैर, आप मत करिये ऐसा पापकर्म .बीमारी का इलाज करना छोड़ दीजिये, कोई टीकाकरण मत कीजिये. न कुत्तों का न इनसान का.

कुत्ता काट ले इन्सान को, स्वागत कीजिये. भैरों के अवतार ने आप पर कृपा बरसाई है. शुकराना कीजिये. रैबीज़ कुछ नहीं होती... खोखला शब्द है. जय भैरों बाबा की. मौत भी आये तो कोई दिक्कत नहीं है.. और अपने बच्चों को भी वैक्सीन वगैहरा मत दीजिये...चेचक तो वैसे भी "माता" होती है.....स्वागत कीजिये.....पीलिये का धागा तो पंडित जी ही बांध देंगे......सब बढ़िया है.....

क्योंकि आपने अल्लाह, भगवान, गॉड के काम में दखल नहीं देना सो इन्कलाब/जिंदा-बाद...... आने दीजिये संतानों को निरन्तर...चाहे आप की हों चाहे कुत्तों की.....लेकिन बीमारी भी आने दीजिये न.....बीमारी से मौत भी तो आने दीजिये तभी तो बैलेंस बनेगा...... वरना worms पडेंगे आपको.....कुत्तों वाले.....

नमन..तुषार कॉस्मिक