Tuesday 29 May 2018

रमज़ान है. मौका है

आपको पता हो कि अमेरिका में ट्रम्प के आने के पीछे विचारकों की एक लॉबी थी, जो खुल कर इस्लाम का विरोध करती रही है.

रमज़ान है. पूरा दम लगाना चाहिए कि इस्लाम विदा हो दुनिया से.

सब धर्म बकवास हैं. इस्लाम सबसे बड़ी बकवास है.


पूरी दुनिया के विचारकों को दम लगाना चाहिए. नए बच्चे बीस साल की उम्र तक किसी पुराने धर्म की शिक्षा न लें.

धर्म सब नशों से ज़्यादा ज़हरीला है. दुनिया की सौ बीमारियों में से निन्यानवे के पीछे धर्म है. और बची एक, उसके आगे भी धर्म है.

धर्म की विदाई के बिना यह दुनिया कभी सुखी नहीं हो सकती. धर्म ने जीवन का हर पहलु अपंग कर दिया है.

धर्म सबसे बड़े अधर्म हैं.

बाकी धर्म गिरोह हैं.  इस्लाम माफिया  है.  इसकी ईंट से ईंट बजा दो. सवाल पूछो. हर शब्द पर सवालों की बारिश कर दो. हर जवाब पर सवाल दागो.

ज़्यादा देर नहीं टिक पायेंगे ये मुल्ले. यह तभी तक हावी हैं जब तक तुम्हारे सवाल खामोश हैं.

कभी कोई एक बन्दा सवाल उठाता है, उसके अंग-भंग कर देते हैं, गोली मार देते हैं.

न..न. और नहीं.

सवाल पूछो कि सवाल क्यों नहीं पूछ सकते? सवाल पूछो कि जवाब तार्किक क्यों नहीं? सवाल पूछो कि जवाब का सबूत कहाँ है? नहीं टिकेंगे. धोती-टोपी छोड़ सब भागेंगे.

इस दुनिया से उस दुनिया तक की छलांग तुम्हें सवाल का जम्पिंग बोर्ड ही लगवा सकता है.

रमज़ान है. मौका है. हिम्मत करो.

तुषार कॉस्मिक

ऑनलाइन तमीज़

इन्सान महा बेवकूफ है.  उसे दूसरों के साथ तमीज़ से जीना आया ही नहीं. तभी तो इतने सारे कायदे हैं-कानून हैं. इतना सारा नैतिक ज्ञान है. इत्ती सारी धार्मिक बक-झक है.

सोशल मीडिया पर भी यही हाल है. जरा तमीज़ नहीं. अगर किसी ने लिख दिया, बोल दिया, जो अपने स्वार्थों के खिलाफ है या फिर जमी-जमाई धारणाओं के खिलाफ है तो हो गए व्यक्तिगत आक्रमण पर उतारू. या फिर गाली-गलौच चालू.  Cyber bullying कहते हैं इसे. अधिकांश लोगों को यहाँ लगता है कि छुपे हैं एक आवरण के पीछे. कौन क्या बिगाड़ लेगा?

वैसे तो सीधी समझ होनी चाहिए कि हर कोई स्वतंत्र है, अपनी बात रखने को. क्या ज़रूरत है कि आपके मुताबिक कोई लिखे या कहे? और क्या ज़रूरी है कि आपके किसी कमेंट का, सवाल का कोई जवाब दे?

आप कोई बाध्य हो किसी का लेखन पढ़ने को? नहीं न.

तो फिर सामने वाला भी कोई बाध्य थोड़ा है कि आपसे कुश्ती करे. फिर हरेक के पास अपनी समय सीमाएं हैं. हरेक की अपनी रूचि है. ज़रूरी नहीं कि वो आपके साथ अपना समय लगाना भी चाहे.

सबसे बढ़िया है कि आपको अगर नहीं पसंद किसी का लेखन-वादन तो आप पढ़ो मत उसका लिखा. आप सुनो मत उसका बोला. आप अमित्र करो उसे या फिर ब्लाक करो.

यह कुश्ती किसलिए?

अगर कोई लिखता-बोलता है तो उसने कोई अग्रीमेंट थोड़ा न कर लिया पढ़ने-सुनने वाले से कि अगले दस दिन तक उसी के साथ सवाल -जवाब में उलझा रहेगा.

थोड़ा तमीज़ में रहना सीखें. थोड़ा गैप बनाए रखें. दूजे के सर पर सवार होने की कोशिश न करें.

वैसे सोशल मीडिया की तीन खासियत हैं.

एक तो मित्र बनाने की सुविधा.

दूजी अमित्र बनाने की सुविधा.

और तीसरी, सबसे बड़ी, ब्लाक करने की सुविधा.


ये तीनों सुविधा सब सिखाती हैं अपने आप में. लेकिन लोग कहाँ सीखते हैं? मित्र-सूची में आयेंगे. फिर कुश्ती करेंगे. फिर शिकायत करेंगे कि हमें अमित्र कर दिया. हमें ब्लाक कर दिया.

भैये, तुम्हें तमीज ही नहीं थी. तुम्हें असहमत होते हुए अगले की मित्र सूची में बने रहने की अक्ल नहीं थी.

तथागत. जैसे आये, वैसे विदा हो गए.

दफा हो--स्वाहा.

नमन ...तुषार कॉस्मिक

Belief without system

There is a term used for 'religion' and that is 'Belief System', which is actually 'Belief without system' i.e. 'Bundle of Superstitions'. Shit.

Thursday 17 May 2018

मर्द ने औरत के साथ अभी तक सोना‌ ही सीखा है, जागना नहीं, इसलिए मर्द और औरत का रिश्ता उलझनों का शिकार रहता है| - Amrita Pritam. मेरी टिप्पणी:-- यह एक फेमिनिस्ट किस्म का ख्याल भर है. मैं अमृता जी के इस कथन से असहमत हूँ. औरत भी मर्द को ATM समझती है. Sex दोनों की ज़रूरत है. औरत भी कम बकवास नहीं है. जरा पलड़ा एक तरफ झुका और मर्द की ऐसी की तैसी फेर देती है. लाखों झूठे दहेज़ प्रताड़ना केस और दशकों पहले के यारों के ऊपर बलात्कार के केस, सबूत हैं. अभी कुछ दिन पहले ही फोन था. किसी फेसबुक मित्र का. पैसे देने थे किसी के. दिए नहीं. उल्टा अपनी बीवी से उसके खिलाफ छेड़-छाड़ का केस डलवा दिया. अब इसमें जल्दी जमानत भी नहीं. अगले को घर छोड़ भागना पड़ गया. स्थिति आदमी की भी खराब है और बहुत बार औरत ही खराब करती है. झूठे केस डाल कर. स्थिति खराब दोनों की है और वो समाज के बुनियादी ढाँचे के गलत होने की वजह से है. जैसे ट्रैफिक लाइट खराब हो तो एक्सीडेंट हो जाये और लोग एक दूजे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगें. एक दूजे को गाली देने लगें. जबकि बड़ी वजह यह है कि ट्राफिक लाइट ही काम नहीं कर रही. मर्द और औरत का रिश्ता अगर गड़बड़ होता है तो वो इसलिए नहीं कि आदमी ने औरत के साथ सिर्फ सोना सीखा, जागना नहीं. उसकी वजहें और हैं. और उनमें प्राइवेट प्रॉपर्टी के कांसेप्ट का सब समाजों में स्वीकृत होना एक है. आज निजी प्रॉपर्टी खत्म करो, फॅमिली खत्म. फॅमिली खत्म तो मर्द औरत दोनों आज़ाद. सो वजहें, वो नहीं जो अमृता जी ने लिखा है, वजहें अलग हैं. बीमारी अलग है और इलाज भी अलग है.
दुनिया जो धार्मिक कट्टरता से आज़ाद हो सकती थी, वो इस्लाम की वजह से अपनी बकवास-धार्मिक मान्यताओं को और ज्यादा कस कर पकड़ बैठी है. वैज्ञानिकता न फैलने के पीछे इस्लाम प्रत्यक्ष और परोक्ष मिला कर सबसे ज़्यादा गुनहगार है. और सबसे ज़्यादा गुनाह इस्लाम मुसलमानों के साथ करता है.
ये जो एक-तरफा प्रेम और अहिंसा सिखा गए न महात्मा. मूर्ख हैं. दुनिया छितरों की भी यार है.
EVM अगर शंका पैदा करती है तो बैलट पेपर से क्या दिक्कत है? मुझे समझ नहीं आता. वहीं शाम को लेबर लगा गिनती शुरू करवा दें. विडियो रिकार्डेड. फ़ौज की पहरेदारी में.
Always remember 'patriotism' is a dangerous concept. The second most. The first most dangerous concept is 'religion'.

Friday 4 May 2018

हम......मैं......तुषार कॉस्मिक..... बुल्ले शाह ने कहा, "बुल्ला की जाणा मैं कौण" पर मैं हूँ तुषार कॉस्मिक ...ਜਿਸਦੇ ਮੋਢ਼ੇਆਂ ਉੱਤੇ ਧੋਣ


लगभग सब तुम्हें अपनी अक्ल उनके पास गिरवी रखने को बोलते हैं.

सिक्खी में मनमत (मन मति) नहीं, गुरमत (गुरु की मति) से चलने पर जोर है.

इस्लाम तो कहता ही है कि मुसलमान वही है जो क़ुरान में लिखे पर चले और मोहम्मद को रोल मॉडल माने.

कृष्ण कहते हैं, "मामेकम शरणम व्रज मतलब सिर्फ मेरी शरण में आ."

छोटे-मोटे गुरु भी कहते सुने जाते हैं, "गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु......"

सब बकवास हैं. वो कुदरत पागल नहीं है, जिसने तुम्हे खोपड़ दिया और उस खोपड़ में दिमाग दिया. अगर वो चाहती कि तुम्हें किसी और गुरु, किसी पैगम्बर, किसी अवतार के नक्शे-कदम पर चलना है तो कभी दिमाग नाम की चीज़ नहीं देती.

चेक करो वैसे .....दिमाग नाम की चीज़ कुदरत ने तुम्हें दी भी है या कहीं पिछलग्गू होने का कोड ही फीड किया है?
तुम्हारे धर्म धर्म नहीं हैं.....गिरोह हैं. Mafia.

तुम्हारा जनतंत्र जनतंत्र नहीं है ......धनतंत्र है. Game of Corporate Money.

तुम्हारे सेकुलरिज्म पर धर्म अच्छादित हैं.....वो छद्म-सेकुलरिज्म बन चुका है. Pseudo-secularism.

तुम्हारे नेता बिना नैतिकता के हैं, वो तुम्हारे लीडर नहीं हैं, तुम्हारे पिछलग्गू हैं. Followers.

तुम्हारे पास सिर्फ मेरे जैसे चंद लोग हैं. वरना तुम्हारा कोई भविष्य नहीं. बस.
जलजले आयेंगे. तूफ़ान. बाढें. सूखा. और ये सब तुम्हारी औलादों को खा जायेंगे. चूँकि तुम ने उनकी माँ की आबरू पर हाथ डाला. धरती माँ.

अविश्वसनीय कविवर कुमार विश्वास जी

कुमार विश्वास:--- इनको संघी भक्त "कुमार बकवास" कहते हैं. और इन्होनें साबित कर दिया कि सही कहते हैं.

केजरीवाल अपनी बकबक के लिए कोर्ट में माफी मांग चुके हैं. अजी वही, जो उन्होंने मजीठीया और जेटली के खिलाफ की थी. अब वही बकबक कुमार विश्वास ने भी की थी. इन्होने बाकायदा माफी नहीं माँगी है. लेकिन इनका तर्क है, "मैंने वही दोहराया जो उन्होंने (केजरी ने) कहा. पार्टी ने कहा."


मेरा इनको कहना है, "कुमार बिस्वास भैया, यह कोई तर्क नहीं है. मतलब आपकी अपनी कोई अक्ल नहीं थी. किसी पार्टी में होने का मतलब यह है क्या कि पार्टी में प्रचलित हर बकवास अपने ऊपर ओढ़ लो? मैंने तो यह भी सुना था, आपका अपना ही कहा हुआ कि हर आदमी का अपना एक सरोकार हो सकता है, जो पार्टी की सोच से अलग हट के हो. मैं असहमत हूँ, पूरी तरह से. आपका तर्क कोई तर्क नहीं है. रोबोट थे क्या आप? जिसका रिमोट पार्टी नामक entity के हाथ था? न. आपको माफी नहीं मिलनी चाहिए. वैसे तो केजरी को भी नहीं मिलनी चाहिए. मेरा शुरू से मानना रहा है कि आप सब कच्चे खिलाड़ी हो. कोई गहन सोच नहीं. मुल्क को नया नेतृत्व चाहिए, लेकिन वो आप जैसे लोग तो नहीं हो सकते. मैं हो सकता हूँ. गूगल कीजिये. मेरा लेखन पढ़िए. समझ आएगा. 

यह कुमार विश्वास जी के कथन का विडियो है:--  
ps://www.youtube.com/watch?v=j91ex_ez3Xg

और यह मेरा विडियो है इनके कथन के खिलाफ :-

https://www.facebook.com/tushar.cosmic/videos/10211348690854442/