लगभग सब तुम्हें अपनी अक्ल उनके पास गिरवी रखने को बोलते हैं.
सिक्खी में मनमत (मन मति) नहीं, गुरमत (गुरु की मति) से चलने पर जोर है.
इस्लाम तो कहता ही है कि मुसलमान वही है जो क़ुरान में लिखे पर चले और मोहम्मद को रोल मॉडल माने.
कृष्ण कहते हैं, "मामेकम शरणम व्रज मतलब सिर्फ मेरी शरण में आ."
छोटे-मोटे गुरु भी कहते सुने जाते हैं, "गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु......"
सब बकवास हैं. वो कुदरत पागल नहीं है, जिसने तुम्हे खोपड़ दिया और उस खोपड़ में दिमाग दिया. अगर वो चाहती कि तुम्हें किसी और गुरु, किसी पैगम्बर, किसी अवतार के नक्शे-कदम पर चलना है तो कभी दिमाग नाम की चीज़ नहीं देती.
चेक करो वैसे .....दिमाग नाम की चीज़ कुदरत ने तुम्हें दी भी है या कहीं पिछलग्गू होने का कोड ही फीड किया है?
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