Monday 8 June 2015

संघ यानि आरएसएस यानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

भारत ने बहुत सी विचार धारायों को जनम दिया..........विज्ञान तो न दिया...लेकिन जीवन दर्शन बहुत दे दिए...सब एक से एक बकवास.....संघ भी उनमें से एक है....मैंने समय समय पर कई आर्टिकल लिखे और छापे...उनको जोड़ प्रस्तुत कर रहा हूँ....आशय विचार विमर्श के लिए प्रेरित करना है ...स्वागत है आप सबका

(1)  मैंने संघ क्यों छोड़ा------


संघ मतलब आरएसएस, मतलब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. 

मुस्लिम या इसाई आदि को छोड़ शायद ही कोई लड़का हो जो अपने लड़कपन में एक भी बार संघ की शाखा में न गया हो....शायद मैं आठवीं में था.....ऐसे ही मित्रगण जाते होंगे शाखा...सो उनके संग शुरू हो गया जाना.....अब उनके खेल पसंद आने लगे...फिर शुरू का वार्मअप और बहुत सी व्यायाम, सूर्य नमस्कार, दंड (लट्ठ) संचालन बहुत कुछ सीखा वहां........जल्द ही शाखा का मुख्य शिक्षक हो गया..वहीं थोड़ा दूर कार्यालय था ...वहां बहुत सी किताबें रहती थी.......पढ़ी भी कुछ......संघ की शाखा का सफर जो व्यायाम और खेल से शुरू हुआ वो संघ की विचारधारा को समझने की तरफ मुड़ गया..........

लेकिन दूसरों में और मुझमें थोड़ा फर्क यह था कि मैं सिर्फ संघ की ही किताबें नही पढ़ता था, उसके साथ ही वहां बठिंडा की दो लाइब्रेरी और रोटरी रीडिंग सेंटर में बंद होने के समय तक पड़ा रहता था.......बहुत दिशायों के विचार मुझ तक आने लगे......


बस यहीं आते आते मुझे लगने लगा कि संघ की विचारधारा में खोट है....


मैं अक्सर सोचता, यह राष्ट्रवाद , यह अपने राष्ट्र पर गौरव करना, दूसरे राष्ट्रों से बेहतर समझना, यह तो सरासर घमंड है, ऐसा ही कोई जापानी भी समझ सकता है, ऐसा ही कोई भी अन्य मुल्क का वासी भी समझ सकता है लेकिन यह तो गलत है.....और फिर भारत तो मुझे कोई महान लगता भी न था...सब जानते थे कि अमरीका, इंग्लैंड और कितने ही मुल्क हम से आगे थे....फिर काहे की महानता..किस्से कहानियों की, इतिहास की.....पहली बात तो इतिहास का सही गलत कुछ पता नही लगता..फिर लग भी जाए तो वो सिर्फ इतिहास है..वर्तमान नही.....मुझे संघ की अपने पूर्वजों पर, अपनी पुरातनता पर गर्व करने वाली बात भी कभी न जमती थी...मुझे हमेशा लगता कि यदि हम इतने ही महान थे तो फिर अंग्रेजों के गुलाम ही क्योंकर हुए.......मुझे लगता था कि खुद पर खोखला मान करने से बेहतर है अपनी कमियों को स्वीकार करना, बल्कि खोजना ताकि हम खुद को सुधार सकें.


और फिर मुझे लगता था कि संघ सिर्फ हिन्दुओं को जैन, बौध, सिख आदि पर थोपना चाहता है......मेरा परिवार हिन्दू सिख है.........तो संघ तो सिक्ख को भी हिन्दू कहता था जबकि बाबा नानक तो जनेऊ को इनकार कर चुके थे अपने बचपन में.....लगा नहीं, यह ज्यादती है ...यह गलत है.....जो लोग बिलकुल हिन्दू मान्यताओं के विरोध में थे, उनको भी हिन्दू कहा जा रहा था......और फिर साफ़ समझ आया कि संघ भारत की हर पुरातन रीत, हर रिवाज़ का पोषक है.......संघ समाज में कोई वैज्ञानिक विचारधारा का पोषक नही है, यह तो बस चाहता है कि समाज पर हिन्दू पुरातनपंथी हावी रहे....


संघ बाबा नानक को भी महान कहता था और हिन्दू मान्यताओं को भी...अरे भाये, किसी एक तरफ तो आओ, या तो कहो कि जनेऊ बकवास है, या तो कहो कि सूरज को पानी देना गलत है या फिर कहो कि बाबा नानक गलत हैं...न, दोनों ठीक हैं, दोनों महान हैं और यही है हिंदुत्व.....जिसका न मुंह, न सर, न पैर


जल्द ही समझ आ गया कि यह हिंदुत्व की धारणा संघ की बकवासबाजी से ज्यादा कुछ नही....."जो इस भारत भूमी को अपनी पुण्य भूमी मानता हो, यहाँ के पूर्वजों को अपने पूर्वज मानता हो , यहाँ कि संस्कृति को अपनी संस्कृति मानता हो वो हिन्दू है"....क्या बकवास है, अरे भाई, हम तो इस धरती को अपनी भूमी मानते हैं, हम तो पूरी इंसानियत को अपने पूर्वज मानते हैं, कौन कहाँ से आया था, कहाँ चला गया, किसे पता है........और यहाँ कि संस्कृति को ही अपना मानते होने से क्या मतलब....शेक्सपियर हमारी लिए क्यों अपना नहीं हो और कालिदास क्यों हो? मात्र इसलिए कि शेक्सपियर भारत का नही था.............


"हर आविष्कार पहले ही भारत में हो चुका था, हमारे ग्रन्थों में लिखा था".....मैं अक्सर सोचता कि विज्ञान कोई रुक थोड़ा ही गया है.....जहाँ तक हो चुका हो चुका, अब कर लो दुनिया को अचम्भित, अपने ग्रन्थ उठाओ और ताबड़ तोड़ आविष्कार कर दो....और दिनों में ही भारत को अमरीका से भी आगे बना दो....चलो और कोई नही तो संघ के लोग तो संस्कृत समझने वाले लोग थे, वो तो ऐसा आसानी से कर ही सकते थे......


और भी बहुत सी बातें


जल्द ही समझ आया कि संघ सिर्फ व्यायाम कराने के लिए, खेल खिलाने के लिए नही बनाया गया और न ही सिर्फ ट्रेन दुर्घटना में लोगों को बचाने के लिए और न सिर्फ बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने के लिए...नही...संघ की अपनी एक थ्योरी है, वो भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से को अच्छी लगेगी लेकिन असल में वो थ्योरी उसी समाज के खिलाफ है, उसके नुक्सान में है.......


किसी भी समाज का सही खैर-ख्वाह वो व्यक्ति या वो संस्था होती है जो उस समाज की कमियां बताने की हिम्मत कर सके...जो उसके अंध-विश्वास दूर करें का प्रयास करे....जो उस समाज में वैज्ञानिक सोच कैसे बढ़े इसकी चिंता लेता हो.........लेकिन यह सब करने के लिए तो समाज की नाराज़गी झेलने पड़ती है, समाज गुस्सा होता है उसे जगाया क्यों जा रहा है...... संघ ही हिन्दू समाज का सबसे बड़ा दुश्मन है क्योंकि संघ हिन्दू समाज को अंध-विश्वासों का पोषक है, क्योंकि संघ हिन्दू समाज में वैज्ञानिकता आने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है.....


यह सब दसवीं, ग्यारवीं क्लास तक आते समझ आ गया था...


सो तभी संघ छोड़ दिया....


कभी कभी याद आ जाता है शरद पूर्णिमा की रात को शाखाओं का इकठा होकर खीर खाना.......संघ कार्यालय में मुफ्त ट्यूशन पढ़ाया जाना......वहीं पर सहभोज का आयोजन., जिसमें सब अपने घर से खाना लाते थे और मिल बाँट खाते थे........वो कसरतें, वो खेल.........सब बढ़िया.....लेकिन वो तो सतही था......भीतरी तो थी संघ की विचारधारा जो बिलकुल ही सतही दिखी मुझे....


और आज सालों बाद, मेरा वो संघ को छोड़ने का कदम मुझे और भी ठीक प्रतीत होता है 


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सादर नमन

(2) !!!! संघ कहाँ गलत है, आईये, देखते हैं !!!!


संघ की प्रार्थना है....नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे.....त्वया हिन्दुभूमे सुखम्वार्धितोहम...(हे परम वत्सला मातृभूमि! तुझको प्रणाम शत कोटि बार।हे हिन्दुभूमि भारत! तूने, सब सुख दे मुझको बड़ा किया;) संघ को शुरू से ही एक वहम रहा है कि कोई भूमि हिन्दू -अहिंदू होती है......


मज़ा तो इस बात का है कि इस प्यारी धरती माँ को भी नहीं पता होगा कि उसका कोई भाग हिन्दू है और कोई अहिंदू.....लेकिन हाँ, वीर सावरकर को पता था, गुरु गोलवलकर को पता था, संघ को पता है,.....है न कमाल......अरे भाई कैसी बचकानी बात करते हो, भूमी कोई हिन्दू-अहिंदू हो सकती है क्या........भूमी कोई टुकड़ों में बंटी है क्या........?


बात करेंगे वसुधैव कुटुम्बकम की...लेकिन प्रार्थना कुल जमा हिन्दू भूमी, हिन्दू राष्ट्र की समृधी की करते हैं रोज़.......क्या मतलब है?.....धरती को माता कहते हैं लेकिन अपनी प्रार्थना के अंत में जय बुलाते हैं भारत माता की.....क्यों भई धरती माता का हिस्सा नेपाल माता नही है क्या .......श्री लंका माता नही है क्या? सारी कायनात जुडी है...कुछ अलग नही है........ज़र्रा ज़र्रा........फिर यह क्या हिन्दू हिन्दू भूमी रटते रहते हैं....?


इस धरती के टुकड़े पर...जिसे भारत कहा जाए......सिर्फ एक ही तरह के लोगों का झंडा नही रहा.....


धरती का यह टुकड़ा किसी की ज़रख़रीद नही थी


यहाँ......राम को मानने वाले रहते रहे हैं....


और यहाँ सिख भी रहे हैं.....


और मुस्लिम भी और अंग्रेज़ भी


आज हिन्दू का यह कहना कि मुस्लिम ले उड़े हमारा टुकड़ा ..वो गलत है

तुम्हारा था कहाँ? इकलौता तुम्हारा कहाँ था.?

रहा कभी एक अशोक के समय...लेकिन अशोक भी तुम्हारा कहाँ था....वो हिन्दू ही नहीं रहा था......और हिन्दू ने तो बौधों को दफ़ा कर दिया मार मार कर


अब उससे पहले देखें तो आज भी बहुत लोग यह मानते हैं कि आर्य बाहर से आये.....यहाँ के मूल निवासी नहीं थे


असल में यह भी एक व्यर्थ सी बात है.......किसे पता है कि इंसान कहाँ से आया पृथ्वी पर.......कोई कहते हैं अफ्रीका से आया......यदि अफ्रीका से आया तो फिर यहाँ का मूल निवासी तो कोई भी न हुआ.......और फिर कोई पहले आया इससे ही यह भू-भाग उसका कैसे हो गया.......बुद्ध से पहले का तो इतिहास ही ठीक ठीक पता नही है...बात करते हैं मूल निवासी होने की


आर्य-अनार्य का झगड़ा है

हिन्दू -बौध का झगड़ा रहा है
हिन्दू-मुस्लिम का झगड़ा रहा है
सिख-हिन्दू का झगड़ा रहा है

ये जो कुछ हिन्दू बंधू "जम्बू द्वीपे...भरत खंडे" किसी किताब में लिखे होने से ऐसे बात करते हैं जैसे इस धरती माता ने खुद इनके नाम रजिस्ट्री कर दी हो


एक अशोक के समय...वो भी जबकि वो हिन्दू नही रहा....यह भू-भाग हिन्दू भूमि हो गया.?


जो मुस्लिम राज करते रहे, उनका कैसे नही हुआ?

फिर अंग्रेज़ राज करते रहे, उनका कैसे नही हुआ?
फिर जो सिक्ख हरी सिंह नलुआ या रंजीत सिंह की हुकूमत रही, उनका कैसे न हुआ?

और मुझे यह मत बताना कि बौध, सिक्ख आदि तो हिन्दू हैं.......खुद उनसे पूछ लो, कितना हिन्दू मानते हैं खुद को या फिर बेहतर हो बुद्ध को पढ़ें, बाबा नानक को पढ़ें, पता लग जाएगा कहाँ उन्होंने खुद को हिन्दू घोषित किया है


कुल मिल कर कहना यह बन्धुवर कि यह भू-भाग कोई हिन्दुओं की ज़ागीर नहीं था, जिसे गांधी ने बटवा दिया....जिसे मुस्लिमों ने बाँट लिया...........ज़मीन बंटी........हकीकत है 


संघ की विचारधारा का आधारस्तम्भ है राष्ट्रवाद....आ जाईये, मेरा नुक्ता -नज़र देख लीजिये इस मुद्दे पर....वैसे मैं सिरे से नकारता हूँ राष्ट्रवाद को


सबसे बुनियादी है कॉस्मिक समझ होना, अब इसका मतलब यह नहीं है कि देश का हित न सोचें, इसका मतलब मात्र यह है कि देश, प्रदेश को मात्र राजनीतिक इकाई मानें, मैनेजमेंट के लिए, जैसे किसी काम को अलग अलग एरिया के हिसाब से काम बांटा जाता है, कुछ उस तरह से...


आज यदि हम मात्र पृथ्वी को टुकड़ा टुकड़ा करके ही ...देश-प्रदेश तक की सोच से समस्याओं का हल सोचेंगे तो कुछ हल नहीं होगा....असल में समस्या पैदा ही इस लिए हुई हैं कि इंसान बड़ी छोटी सोच का है, वो बस खुद तक सोचता है, सीमित सोचता है......ओजोन लेयर में छेड़खानी कोई भी करे भुगतना सबको पड़ेगा !!!


यदि किसी भी धर्म-विशेष के लोग हत्या, बलात्कार , आतकवाद में ज्यादा शामिल होते दिख रहे हैं तो भुगतना सबको, सारी दुनिया को पड़ेगा.......और बिना चाहे सारी दुनिया की ज़िम्मेदारी बन जाती है कि हर मज़हब के ज़हर को उतारे..............


आज यदि आप बहुत गहरा नहीं सोचते......यदि कॉस्मिक स्तर पर नहीं सोच सकते तो कम से कम वसुधा स्तर पर तो सोचें.....उससे ही देश, आपके प्रदेश, आपके शहर, आपके मोहल्ले की समस्या जुडी हैं.....


भूकंप, सूनामी, बाढ़ और कितनी ही प्राकृतिक आपदाएं जो कहीं भी प्रकट हो जाती हैं....आप सोचते रहे देश, प्रदेश स्तर पर......वो हो सकता है किसी और देश की बेवकूफी की वजह से हो


इसलिए ज़रूरी है वसुधा, कॉस्मिक स्तर पर सोचना....!!!

इसका मतलब यह बिलकुल नहीं कि यह सोच देश के हित के विपरीत है..इसका मतलब है कि यह सोच सारी वसुधा, सारी पृथ्वी, सारी कायनात के पक्ष में है.....उसमें हमारे आसपास का हित अपने आप शामिल हो जाता है|

यह है अपनी समझ...जो मैंने सीखी ...अब कहाँ संघ का सीमित राष्ट्रवाद, हिन्दू-भूमी वाद, कहाँ कॉस्मिक होना....मेल कैसे रहता...सो नही रहा... संघ से नाता टूट गया, छूट गया .....बिलकुल वैचारिक स्तर पर हुआ, जो भी हुआ...कहीं जमा ही नहीं संघ?


और अब बाद में जब मैं दिल्ली आ चुका था पंजाब छोड़........राम मंदिर का मुद्दा उठा दिया गया.....कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनायेंगे... क्या नाटक...खतरनाक नाटक खेला गया.......कभी वाल्मीकि रामायण पढवाई संघ ने....ठीक से, खुली बुद्धी से , तर्क से कोई रामायण पढ़ ले तो कसम खा ले की राम को कभी मंदिर में नहीं बिठाएँगे.......लेकिन संघ को क्या लेना देना...क्या मतलब कि समाज की दृष्टि साफ़ हो, दिमाग तेज़ हो...न , इसे तो पोंगापंथी, पुरातनपंथी से समाज के बड़े हिस्से को बांधे रखना था...तुम बस हिन्दू बने रहो, सोचना मत कि तुम्हारे ग्रन्थ, तुम्हारे पूर्वज कहीं गलत तो नही थे..न, न, वे सब तो बहुत महान थे.....सब बकवास


वैसे प्रंसग वश बताये देता हूँ कि राम के एक पूर्वज अपने गुरु की बेटी के साथ बलात्कार करते हैं...रघुकुल रीत.......इडियट


ऐसा नही कि समाज में संघ की ब्क्लौलबाज़ी का कोई विरोध नही हुआ.....सरिता, मुक्ता मैगज़ीन छपती हैं , यहीं दिल्ली झंडे-वालान से......उनके रीप्रिंट ले लीजिये....पढ़िए.....ये जो संघी सोच है न इसे धो धो कर पीटा है, तर्क से.....और ओशो पढ़ लीजिये संघ छोड़ो आप कहीं के भी न रहेंगे.......और अब केजरीवाल....आपको एक बात बता दूं..ये जो मोदी की पतंग उड़ रही हैं न...यह हवा चलाई ही अन्ना और केजरीवाल ने थी........संघ तो राजनीति में कब से है.....क्या उखाड़ लिया था.....


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सप्रेम नमन

(3)  !!!! जाओ जाकर पहले साइन लेकर आओ !!!!


सीधी तरह कहो न कि सिख की, जैन की, बौद्ध की छाती पर सवार होना है.......लगे हो सबको हिन्दू साबित करने ...यह मात्र तुम्हारा अहंकार है, हिन्दू अहंकार, जो दूसरों को अपने नाम तले दबाना चाहता है...


कहते होंगे पुराने लोग यहाँ के रहने वालों को हिन्दू....लिखा होगा देशी विदेशी ग्रन्थों में यहाँ के लोगों को हिन्दू, कहा होगा इकबाल ने यहाँ के लोगों को हिंदी, कहा होगा हिन्दोस्तान.....

लेकिन...लेकिन....लेकिन क्या ज़रूरी है कि इतिहास को वर्तमान अपनी छाती पर ढोए
तुम्हारे पुरखे तो कंप्यूटर प्रयोग नहीं करते थे फिर तुम काहे करते हो....छोड़ो, उठाओ, फेंको इसे बाहर.......हर काम पुरखों और पुरखों जैसी किताबों के हिसाब से जो करनी है तुम्हें...अगली बार जब शौच भी जाओ तो डब्बा लेकर सामने पार्क में बैठ जाना ...तुम्हारे पुरखे तो शायद ही सिटींग टॉयलेट जानते हों, जेट से निकलते तेज़ धार पानी से गुदा धोना तो शायद ही उनको आता हो...फिर तुम भी ऐसा कैसे कर सकते हो ?

शायद तुम्हारी आँखें कुदरत ने आगे न देकर पीछे दी हैं, शायद तुम्हारी कार की हेड लाइट छोटी हैं और टेल लाइट बड़ी हैं क्योंकि कार तो तुम बेक गियर में ही चलाते होगे न?

तुम्हें समझ नहीं आता की इस धरती माता ने कोई इस भूभाग की रजिस्ट्री नहीं लिखी है तुम्हारे नाम....लिखी है तो दिखा दो मुझे...यह तो माँ है.....इसके लिए तो सब बच्चे बराबर हैं......कोई भी इसके आँचल के किसी भी कोने में दुबक सकता है, सो सकता है , खेल सकता है...लेकिन तुम्हें कौन समझाये यह सब?

और तुम्हें यह भी समझ नहीं आता कि मां के शरीर का हर हिस्सा पवित्र है, प्यारा है, पूजनीय है...तुम्हें तो लगता है कि बस माँ का जो अंग तुम्हारे हाथ लग गया बस वो ही सबसे पवित्र...कैसी मूर्ख औलाद हो तुम?


तुम्हे समझ नहीं आती कि इस पृथ्वी पर, इसके हर कोने पर, हर आदमी औरत का हक़ होना चाहिए और तुम अड़े हो कि नहीं इस भूभाग को हिन्दुस्थान ही कहो


तुम अड़े हो कि यहाँ रहने वालों के लिए सबसे बढ़िया नाम, पुकार हिन्दू शब्द ही है, तुम्हें समझ नहीं आता कि जिसका नाम रखा जाता है उसे भी वह नाम पसंद आना ज़रूरी है


यदि यहाँ रहने वाले लोग, लगभग सब लोग स्वयम को हिन्दू कहलाने को राज़ी हैं तो तुम कह लो इनको हिन्दू....लेकिन मुझे लगता नहीं कि सब लोग राज़ी हैं...और न राज़ी लोगों में सबसे पहले मेरा नाम लिख लेना.....मैंने अपने नाम के साथ Cosmic जानते हो क्यों लिखा, बहुत सी वजहों में से एक वजह यह भी थी कि मैं खुद को तुषार शब्द से हिन्दू पहचाना जाना नहीं चाहता था और मुझे लगता है कि मेरे जैसे बहुत लोग हैं इस देश में जो अलग अलग वजहों से खुद को हिन्दू कहलाना पसंद नहीं करेंगे....


वो डायलाग सुना होगा एक फिल्म का...जाओ जाकर पहले उनके साइन लेकर आओ....जाओ तुम भी जाकर पहले सबके साइन लेकर आओ, क्या सब खुद को हिन्दू कहलाना पसंद करते है.....जब ले आओ तो कह लेना हिन्दू....उससे पहले यह निरर्थक बकवास बंद करो


चोरी न करें, चाहे कितना ही बकवास लिखता होवूं, शेयर कर सकते हैं


(4) आरएसएस जैसे संगठन क्यों खतरनाक हैं----------


आरएसएस की कट्टर और आढी टेढ़ी सोच शर्मा, मिश्र, त्रिवेदी , त्रिपाठी जी आदि को तो स्वीकार हो सकती है लेकिन पूरे भारत को कभी भी नहीं 


अभी भी जो वोट मिले हैं वो सुशासन के लिए मिले हैं, 


कांग्रेस को हराना था इसलिए मिले हैं, 


केजरीवाल दिल्ली छोड़ने की बेवकूफी कर चुके थे  इस लिए मिले हैं 


और बीजेपी के पीछे बेंतेहा पैसा लगाने वाले थे इसलिए मिले हैं, 


बहुतेरे नकली वोट थे  इसलिए मिले हैं 


और वोट मशीनों तक में हेरफेर हुआ है इसलिए मिले हैं.....


आरएसएस की खोटी सोच की मिसाल दता हूँ


बाबरी ढांचा गिराया....

गोधरा हुआ, हिन्दू मरे
फिर गुजरात में मुस्लिम मारे गए
शायद पता न हो, बंगला देश में हिन्दू मारे गए

आरएसएस को बस एक पिछलग्गू भीड़ चाहिए , यदि हिन्दू हितों के इतने ही हितेषी थे तो बजाए राम के नाम पर अफरा तफरी फ़ैलाने के राम की रामायण पर खुली चर्चा करते और देखते कि राम को मंदिर में बैठाने लायक कितनी खूबी हैं, खूबी हैं भी या नही......न....न. इन्हें तो बस भीड़ की मानसिकता का राजनीतिक फायदा चाहिए था 


मुर्दा इमारतों के लिए जिंदा इंसानों का सौदा आरएसएस  जैसे इंसानियत के ठेकेदार ही कर सकते हैं


अत्यचार को जब आप मुस्लिम अत्याचार या हिन्दू अत्याचार की नज़र से देख कर लामबंदी करने की कोशिश करेंगे तो सिवाए नफरत के कुछ नहीं फैलेगा


आरएसएस हो, तालिबान हो या कोई भी धर्म के नाम पर इस तरह का संगठन सब इंसानियत के लिए ज़हर हैं 


यदि सच में इंसानियत के मित्र हैं तो सदियों से जो सड़ी गली मान्यताएं इंसान ढोता आ रहा है उन्हें हटाने में मदद करें 


आसान काम नहीं है क्योंकि इंसान इन बेड़ियों को अपने आभूषण समझता है


इंसान आपको फूलों के हार से नहीं फांसी के हार पहना सकता है


आपको राजगद्दी पर नहीं सूली पर चढ़ाया जा सकता है 


सौदा महंगा तो है, फिर भी कोशिश करें जितनी कर सकते हैं, जैसी कर सकते हैं 


"वन्स अ स्वयंसेवक, ऑलवेज अ स्वयंसेवक, जिसने एक बार ध्वज प्रणाम कर लिया, बस हमेशा के लिए संघ का हो गया"..........कुछ ऐसा भी कहा-सुना जाता है आरएसएस में ...........मैंने तो सुना है कि इस्लाम में इस्लाम को छोड़ने वाले के लिए मौत की सज़ा है....... हर झुण्ड चाहता है कि उसकी भीड़ जुटी रहे....हर झुण्ड चाहता है कि जो एक बार फंदे में आ जाए, छूट न जाए....लेकिन एक इन्सान जिस मर्ज़ी संस्था और विचारधारा को जब मर्ज़ी छोड़ और पकड़ ले यही आज़ादी है....और ये आज़ादी गवारा नही न आरएसएस को और न ही इस्लाम को.....


जब तक यह दुनिया आरएसएस या इसके जैसे संगठनो से निजात नहीं पाती शांत नहीं होगी, संगठन जो किसी ख़ास भू भाग को ही सर्वश्रेष्ट मानते हो, संगठन जो अपने पूर्वजों को ही सर्वश्रेष्ट मानते हों, संगठन जो किसी ख़ास भू-भाग की मान्यतायों को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हों, संगठन जो अपनी मान्यतायों को दूसरों पर थोपने में, गुंडागर्दी करने में यकीन रखते हों, संगठन जो उपरी तौर पर तो सात्विक दीखते हों लेकिन ज़रा सा खरोंच उतारते ही तामसिक दिखाई दें


बहुत पहले जब संघ में था तो एक नारा चलता था, शायद आज भी चलता हो

"हाथी घोडा पालकी
जय शिवा प्रताप की"
आज सोचता हूँ कि ये संघ वाले हाथी घोड़ा पालकी तक ही क्यों सोच रहे थे
शायद कार, हवाई जहाज, अन्तरिक्ष यान तो कल्पना तक में नहीं आते होंगे
बात करो तो इनके पूर्वज सब पहले ही इजाद कर चुके थे
फिर वो इजाद गयी कहाँ?
मुझे तो माकूल जवाब नहीं मिला
इजाद हमारे पास थीं तो फिर टुच्चे मुच्चों के गुलाम क्यों हो गए हम?
मुझे तो जवाब नहीं मिला
खैर
हाथी घोडा पालकी
जय शिवा प्रताप की

नमन



(5) आरएसएस कुछ और पहलु-----आरएसएस जो राष्ट्रवाद का तो दम भरता है लेकिन जब बाल ठाकरे और उनके वंशज उत्तर भारतीयों को मुंबई में पीटते है, उनके साथ गुंडागर्दी करते हैं तो कभी विरोध नहीं करता..बल्कि उनके साथ हमेशा राजनीतिक गांठ जोड़ में रहता है


आरएसएस अपनी शाखायों में व्यक्ति निर्माण का दम भरता है लेकिन जिसकी offshoot राजनीतिक पार्टी भाजपा के प्रधान बंगारू लक्ष्मण कैमरा में करेंसी नोट रिश्वत में लेते पकडे जाते हैं, जिनके दुसरे बड़े नेता गडकरी पता नहीं कैसी कैसी असली नकली कंपनी चलाते पकडे जाते हैं..जिनके तीसरे बड़े नेता अपने नौकर के साथ यौन क्रियायों में लिप्त पाए जाते हैं


आरएसएस वो है जो पार्क में बैठे प्रेमी जोड़ों की पिटाई करवाता रहा है, उनके साथ गुंडई करता रहा.....बिना यह समझे कि भारतीय संस्कृति में लिंग का पूजन होता है, खजुराहो के मर्दिरों में मैथुन मूर्तियाँ गढ़ी गयी हैं, भारत में Valentine डे जैसा ही वसंत उत्सव मनाया जाता था, इसे आसानी से समझने के लिए शूद्रक द्वारा लिखित संस्कृत नाटक "मृच्छकटीकम" आधारित हिंदी फिल्म उत्सव देखी जा सकती है , बिना यह समझे कि भारत में ही वात्सयान ने काम सूत्र रचा था , जिसे पूरी दुनिया में पढ़ा जाता है, बिना यह समझे कि यहीं पर पंडित कोक ने कोक शास्त्र रचा था, यहीं पर राजा भर्तृहरी ने शृंगारशतक लिखा था, बिना यह समझे कि भारत में वैश्य/गणिका/नगरवधू रामायण काल में भी होती थी और बुद्ध के काल में भी



आरएसएस को तो बस अपनी ही गलत सलत धारणायों का पोषण करना है, उसे गहराई में तो जाना नहीं है...उसे क्या मतलब कि राम कहाँ गलत है कहाँ सही इसका विवेचन किया जाए...उसे तो मतलब बस यह कि राम पूरे भारत में पूजे जाते हैं....राम के नाम पर हिन्दू को जोड़ा जा सकता है, राम के नामपर राजनीती की जा सकती है....सो कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनायेंगे...जैसे मंदिर बनने से ही हर गरीब अमीर हो जायेगा, भारत सुपर पॉवर बन जाएगा, भारत में ज्ञान विज्ञान पसर जाएगा....बिना यह समझे कि राम के अपने समय में भी भिखारी थे.....खैर वाल्मीकि रामायण यदि पढ़ भर लें एक बार तो बहुत कुछ अनदेखा सामने आ जाएगा ....ध्यान रहे मैं वाल्मीकि रामायण कह रहा हूँ पढने को, तुलसी का मानस नहीं



(6) !!! हिन्दू का दुश्मन मोदी, मुस्लिम का ओवेसी, सावधान !!!


कोई आपको कहे आप मूर्ख हो, उल्लू के पट्ठे हो, आप मान लोगे क्या? गले से लगा घूमोगे इन तमगों को?


लड़ पड़ोगे क्या, यदि किसी ने आपको सयाना, बुद्धिमान कह दिया?....... आपकी भावनाएं आहत हो जायेंगी क्या....पवित्र, धार्मिक भावनाएं? आप मरने, मारने पर उतारू हो जायोगे क्या?


नहीं न...फिर काहे हिन्दू, मुस्लिम, इसाई बने घूम रहे हो..... वह भी सिर्फ कहा गया है आपके कानों में ..कहा गया है कि आप हिन्दू हो या सिख या मुस्लिम आदि ....और हज़ार बार कहा गया है, बारम्बार कहा गया है कि आपका धर्म सर्वश्रेष्ठ है..कहा गया है कि आपके धर्म से जुड़ी भाषा, साहित्य, लिपि, गीत-संगीत सब सर्वश्रेष्ठ है ..और आप माने बैठे हो.......


कहीं पढ़ा मैंने कि बार बार बोला गया झूठ सच हो जाता है...असल में इंसान समझता ही नहीं आम तौर पे सच क्या है, झूठ क्या है...वो बड़ी जल्दी सम्मोहित हो जाता है.....उसकी चेतन बुद्धि बहुत थोड़ी देर ही अनर्गल बातों का विरोध करती है...यदि बोलने वाला ढीठ हो, धूर्त हो, शब्द जाल बुन सकता हो तो वो फंसा ही लेगा लोगों को ...और यही वजह तो है कि पैदा होते बच्चे को पता है पेप्सी कोक क्या है, फिर भी पेप्सी कोक दिन रात चिल्लाये जाती हैं, टीवी पे, अखबारों में, रेडियो पे .....सबके दिमागों में भरे चले जाती हैं कि पेप्सी पीओ, कोक पीओ वरना आपका जीवन असफल हो जाएगा, आपका पृथ्वी पे आना निष्फल हो जाएगा...ये कंपनियां जानती हैं बार बार बोलते चले जाने का फ़ायदा 


मेरी माँ अक्सर कहती हैं कि व्यक्ति को दूसरों के कहने पे नहीं चलना चाहिए, अपनी अक्ल लगानी चाहिए.


एक अमेरिकन कंपनी है "लैंडमार्क वर्ल्डवाइड" ...इनका एक शैक्षणिक प्रोग्राम है "लैंडमार्क फोरम" नाम से ...जो कुछ भी सिखाया जाता है इस प्रोग्राम में उसका निष्कर्ष यह है कि आप को किसी ने कह दिया जीवन में कभी कि आप मूर्ख हो, सयाने हो, मज़बूत हो, कमज़ोर हो, ये हो , वो हो ..... और यदि उस परिस्थिति की वजह से, उस व्यक्ति के प्रभाव की वजह से, या किसी भी और वजह से आप ने हृदयंगम कर ली वो बात....तो आपका जीवन चल पड़ेगा उस व्यक्तिगत टिपण्णी को सच करने की दिशा में......सारा का सारा जीवन मात्र किसी और की कोई कही बात मान लेने का नतीजा ....यह है सम्मोहन....और उसका नतीजा 


और सारी मानव जाति इसी तरह के अलग-अलग सम्मोहनों से ग्रस्त है ..और सबसे बड़ा सम्मोहन है धर्म का, मज़हब का....व्यक्ति कोई और आड़ी-टेड़ी बात सुन भी लेगा लेकिन उसके धर्म के बारे में कह भर दो कुछ, चाहे कितना ही तर्कयुक्त हो, चाहे कितना ही वास्तविक हो, कितना ही उचित हो, कोई फर्क नहीं..व्यक्ति रिश्ते ख़राब कर लेगा.....मरने मारने पे उतारू हो जाएगा. ...इतना ज़्यादा जकड़ा है धर्मों के सम्मोहन ने इंसानियत को....इंसान की आत्मा को...असल में इस तरह की मान्यतायें इंसान की आत्मा ही बन चुकी हैं 


मैंने कहीं पढ़ा था कि ईश्वर इंसान के पिछवाड़े पे लात मार के जब उसे पृथ्वी पे भेजता है तो उससे पहले एक मज़ाक करता है उसके साथ...वो हरेक के कान में कहता है कि मैंने तुझ से बेहतर इंसान नहीं बनाया आज तक...तू सर्वश्रेष्ठ कृति है मेरी..बाकी सब निम्न....गधे..उल्लू के पट्ठे.....अब होता यह है कि बहुत कम लोग उम्र भर के सफ़र में समझ पाते हैं कि उस खुदा ने, ईश्वर ने यह सब मज़ाक में कहा था......ज्यादातर इंसान उस मज़ाक को सीने से लगा घूमते हैं सारी उम्र ...और उम्र गवां देते है अपने आप को दूसरों से बड़ा, बेहतर साबित करने में......इतना धन दौलत इकठा करेंगे जिस का कभी उपयोग नहीं कर सकते...सुना नहीं एक नेता सुखराम के घर छापे पड़े तो गद्दों में करेंसी मिली ...एक और नेत्री जय ललिता के यहाँ से जूते चप्पल का अम्बार मिला... ..और बाकी सब लोग भी यही करते रहते है सारी उम्र, मिलता जुलता .....


ईश्वर मज़ाक करता है या नहीं, वो तो पता नहीं लेकिन वैसा ही मज़ाक हम सब के साथ हमारे माँ बाप, रिश्तेदार, परिवार के लोग, शिक्षक, नेता गण, सब करते हैं.. सब फूंकते जाते हैं शुरू से ही बच्चे के कानों में.....तुम अमुक धर्म के हो, अमुक जाति के, अमुक प्रदेश के, अमुक शहर के..... और तुम्हारा धर्म, जाति, प्रदेश, शहर सबसे महान हैं ....


अब कोई बोल भर दे इस सम्मोहन के खिलाफ़......आपकी धार्मिक, पवित्र भावनाएं आहत हो गयी......आप समझ ही नहीं रहे.....आपको आगाह किया रहा है कि आप मूर्ख बनाये गए हो, गधे बनाये गए हो... उल्लू के पट्ठे बनाये गए हो 


एक कहानी सुनी होगी बचपन में आपने भी...एक लकडहारे ने नेवला पाल रखा था.....वो गया बाहर...पीछे पालने में उसका बच्चा सो रहा था.....और एक सांप आया उस बच्चे की ताक में .....लेकिन नेवले ने देख लिया उसे......घमासान युद्ध हुआ....नेवले ने काट दिया सांप को..सांप खतम......अब थोड़ी देर में वापिस आया लकडहारा.....नेवला भाग के गया अपने मालिक का स्वागत करने.....लकडहारे ने नेवले के मुंह पे खून लगा देखा तो समझा कि नेवला खा गया उसके बच्चे को......आव देखा न ताव, नेवले को काट दिया कुल्हाड़ी से....जब अन्दर गया तो हँसते खेलते बच्चे को देख और पास पड़े मरे सांप को देख सब माजरा समझ गया ...लगा मत्था पकड़ के रोने..जिसे दुश्मन समझा वो मित्र निकला....अपनी जान पे खेल के उसके बच्चे की रक्षा करने वाला निकला 


अब बात यह है कि जिसे आप दुश्मन समझते हैं ..वो ही सबसे बड़ा मित्र हो सकता है...वो ही सब से बड़ा खैरख्वाह हो सकता है ...लेकिन आप उस नेवले की तरह उसे मारने को दौड़ते हैं....उसे दुश्मन समझते हैं....और जिसे आप अपना दोस्त, शुभचिंतक समझते हैं वो ही आपका सबसे बड़ा दुश्मन हो सकता है.....


अब आज आरएसएस हिन्दुओं की, तालिबान मुसलमानों की, पोप लीला ईसाओं की सबसे बड़ी दुश्मन है ...ये चाहते हैं कि आप लोग हिन्दू, मुस्लिम, इसाई वगैहरा बने रहें....आप उल्लू के पट्ठे बने रहें...ये आपके हर तरह के अंधविश्वासों को पोषित करते रहेंगें.....आपको धर्म के नाम पे लड़वाते, मरवाते रहेंगें...धर्म के नाम पे आप से वोट लेते रहेंगें...धर्म के नाम पे आपकी जनसंख्या बढ़वाते रहेंगें.....


और यदि खुद को हिन्दू मानते हैं तो आपको मुस्लिम का डर दिखाते रहेंगें और यदि मुस्लिम मानते हैं तो हिन्दू का डर दिखाते रहेंगें .......


और आप भी सोचते हैं कि बात तो ठीक है, इनके सिवा कौन है जो हिन्दुओं की रक्षा करेगा, हिन्दुओं का हित सोचेगा और ऐसा ही कुछ मुस्लिम भी सोचते हैं या कहें कि उनसे सोचवाया जाता है ......हिन्दू, मुस्लिम, इसाई सबसे ऐसा ही कुछ सोचवाया जाता है .......


आप यह सोच ही नहीं पाते कि आप हिन्दू, मुस्लिम आदि हैं ही नहीं 


याद है वो मशहूर डायलाग नाना पाटेकर का, जिसमें वो बताता है कि यदि हिन्दू का खून और मुस्लिम का खून निकाल लिया जाए तो दुनिया की कोई ताकत नहीं बता सकती कि हिन्दू का खून कौन सा है, मुस्लिम का कौन सा ........


बच्चा क्या हिन्दू, मुस्लिम की तरह पैदा होता है, हिन्दू घर में जन्मा बच्चा यदि मुस्लिम घर में पाला जाए तो वो निश्चित ही मुस्लिम होगा...मतलब आपका हिन्दू, मुस्लिम होना बस सिखावन है, ऊपर से थोपी गयी चीज़ है .......


ध्यान रहे मुस्लिमों के सबसे बड़े दुश्मन हैं ओवेसी जैसे लोग और तालिबान, हिन्दुओं के सब से बड़े दुश्मन हैं मोदी जैसे लोग और इसाईओं के सबसे बड़े दुश्मन हैं पोप जैसे लोग 


ये आपको सिखाते रहेंगें कि गर्व से कहो आप हिन्दू हैं, ये हैं, वो हैं ...इनका असल मकसद है आपकी लगाम अपने हाथों में थामे रखना ....सो ये तमाम कोशिश करेंगें कि आप में बुद्धि का कोई अंश जागृत न हो पाए.....चूँकि यदि ऐसा हो गया तो इनका सब मायाजाल ख़त्म हो जाएगा....इनका सम्मोहन आप पे से टूट जाएगा......और आप रोबोट से असल इंसान बन जायेंगें......और तब आप गर्व नहीं, शर्म करेंगें कि आप अब तक हिन्दू, मुस्लिम, सिख वगैहरा बने रहे ..


और आपके दोस्त हैं ..तसलीमा नसरीन जैसे, मलाला युसुफजई जैसे...नरेंदर दाभोलकर जैसे लोग..लेकिन आप इन्हें सम्मान कहाँ देंगें?....वो याद है न नेवले सांप वाली कहानी...इन्हें तो आप गाली देंगें या गोली 


चाहे ओवेसी हो, चाहे नरेंदर मोदी, चाहे तालिबान, चाहे चर्च, इनके हाथ में कभी कोई सत्ता नहीं आनी चाहिए.....


एक समय था सारी शक्ति मंदिर, चर्च के पास थी..सियासी, क़ानूनी, मज़हबी...सब....धीरे धीरे सब अलग अलग हुआ.....न्याय पालिका अलग हुयी, सियासत अलग, मज़हब अलग...


लेकिन पूरी तरह से अलग कुछ भी नहीं हुआ.. ..मज़हब सब पहलुओं पे हावी है.....


और मज़ा यह है कि मज़हब बस पीढी दर पीढी चलने वाला सम्मोहन है....चालाक, धूर्त लोगों द्वारा पोषित किया जाने वाला सम्मोहन, और कुछ भी नहीं 


आज ज़रुरत है इस सम्मोहन को तोड़ने की..

हिन्दू, मुस्लिम के केंचुल को छोड़ने की.....
और शक्ति में ऐसे लोगों को लाने की जो अच्छे प्रबंधक हों, जो कुछ काबिलियत रखते हों....आविष्कारक बुद्धि रखते हों..

सप्रेम नमन /कॉपी राईट मैटर/ चुराएं न, समझें


(7) !!! वाम मार्ग/ आरएसएस/ कम्युनिज्म/ भविष्य !!! 


वाम मार्ग, या वाम पंथ नामक कुछ नहीं होता......समाज पर हावी विचारधारा ने खुद को दक्षिण पंथी कहा और विपरीत विचार वालों को वामपंथी कहा  है  हमेशा

Right is right and left is wrong.

भारत में ब्राह्मणवाद के जो भी खिलाफ पड़ता है उसे वाम मार्गी कहा जाता रहा है

जाबाली, चार्वाक, बुध, मार्क्स सब

भारत में राम के जमाने से वेद्पन्थी, हवन करने वालों का बोलबाला रहा है...इनके विरुद्ध जो था सब वाम मार्गी और ये दक्षिणमार्गी


आरएसएस  उसी का तामझाम है

यानि तथा कथित दक्षिण पंथी
स्वयंसिद्ध
स्वनामधारी

बाकी सब इनकी नज़र में वाममार्गी हैं

बुध, रावण, मार्क्स, ओशो सब

आरएसएस का एजेंडा पुरातनपंथी है...

एक नावेल है----दो लहरों के टक्कर 
गुरुदत्त हैं लेखक 

मैंने पढ़ा नहीं है


लेकिन जहाँ तक मुझे ध्यान है इसमें  आरएसएस और कम्युनिस्ट विचारधारा की टक्कर वर्णित है 


दुनिया में जब तक आरएसएस जैसे संस्थान रहेंगे दुनिया आगे नहीं बढ़ पायेगी

तालिबान का सॉफ्ट वर्शन है
खैर

कम्युनिस्ट विचारधारा  में से बहुत कुछ लिया जा सकता है.......जैसे हम पुराने टाइपराइटर से कंप्यूटर बना पाए वैसे ही


दुनिया से परिवार विदा होंगे...लोग कम्यून यानि ग्रुप में रहेंगे...लेकिन यह कोई मार्क्स के ही बताये मुताबिक हुबहू नही होगा


कोई विचार कई बार तब कामयाब होते हैं जब उसके साथ की बहुत ज़रूरी इजाद हो चुकी हों


जैसे यदि बिजली न हो तो आप कंप्यूटर शायद ही  इजाद कर पायें और कर  भी लें....वो कामयाब न होगा


मुझे लगता है कि कम्युनिज्म के साथ ऐसा ही कुछ हुआ


और फिर मानो  कंप्यूटर इजाद हो गया, चल भी गया  लेकिन जब तक इन्टरनेट न आये आप उसका सही फायदा न उठा पायेंगे ...सीमित रहेगा इस्तेमाल


सो कहना यह है कि समाजिक विज्ञान की इजाद भी प्रैक्टिकल तब हो पाती है कई बार, जब उसके लिए ज़रूरी भौतिक विज्ञान की इजाद हो जाएँ

जैसे कम्यून जीवन तब तक सही नहीं है जब तक गर्भ निरोधक न हो

जैसे आप प्राइवेट सम्पति छीन लें और सारी ताकत चंद हाथों में दे दें.......यह गलत है जब तक कि आप शासनिक और प्रशासनिक व्यवस्था इतनी सुदृढ़ न कर लें कि जनता अपने लीडरों की हर मूवमेंट, या लगभग हर ज़रूरी मूवमेंट देख पाए.यह सब अब विज्ञान की मदद से काफी  कुछ बदलना सम्भव है.


पहले सीमित अधिकार  ही बेकाबू कर रहे हों तो आप पूर्ण अधिकार कैसे दे सकते हैं?

इसकी एक मिसाल ओशो का अमेरिका ऑरेगोन स्थित कम्यून है, उनकी महानतम गलती जिसे उन्होंने कभी अपनी गलती स्वीकार नहीं किया.....कम्यून बनाया, लेकिन सब अधिकार माँ शीला को दे खुद अलग थलग हो गए.......नतीजा यह हुआ कि वहां कम्यून और कम्यून के इर्द गिर्द का इलाका शीला और उसके साथियों के क्राइम का शिकार हो गया.

समूह जीवन का कुछ कुछ  नमूना है गुरुद्वारों का लंगर, आज हम परिवार को यूनिट मानते हैं, सो हर परिवार की अलग रसोई है, हर गृहणी की आधी ज़िंदगी रसोई में खप जाती है, कम्युनिटी किचन इसका एक आसान हल है.......लंगर को आप एक मिसाल समझ सकते हैं


और कम्युनिज्म को कोई हक़ नहीं कि वो यह थोपे  कि कोई भगवान है या नहीं....धर्म अफीम है, अफीम क्या ज़हर है .........लेकिन दुनिया के लिए विकल्प खुला छोड़ना ज़रूरी है, हाँ  परिवर्तन कर सकते  हैं कुछ , नियम बना सकते हैं  कि एक निश्चित उम्र से पहले बच्चे  को किसी भी धर्म में संस्कारित न किया जाए. इसाइयत में तो नामकरण संस्कार को कहते ही क्रिश्चनिंग हैं ..यानि नाम करण के साथ ही ईसाईकरण .....बच्चा पैदा होते ही इर्द गिर्द का समाज उसकी आत्मा पर हावी हो जाना चाहता है, कहीं बागी न हो जाए, कहीं कुछ इतर न सोच ले, समाज ने आज तक बच्चों को अपनी प्रॉपर्टी समझा है, यह सब बदलना होगा, लेकिन सामाजिक ज़मीन तैयार करनी होगी , वैचारिक ज़मीन  


कम्युनिज्म भविष्य है लेकिन बहुत से परिवर्तनों के साथ और इसे मार्क्स का कम्युनिज्म कहना उतना ही गलत  होगा जैसे कंप्यूटर को टाइप राइटर के आविष्कारकों की इजाद कहना


कॉपी राईट


(8) !!! ओशो प्रेमी ध्यान दें !!!


विलास तुपे नाम के एक कट्टर हिन्दू ने 22/5/1980 को पूना में प्रवचन के बीच में ज़हर बुझी कतार फेंक कर ओशो की गर्दन की सीध में मारा था लेकिन जाती कटार ने एक दम टर्न ली और फर्श से जा टकराई.


मैंने पढ़ा था यह सब बहुत पहले, लेकिन फिर स्वामी अगेहानन्द जी से कन्फर्म किया


और मुझे तो यह भी पता है कि ओशो कभी भी आरएसएस के समर्थन में नहीं थे, लेकिन अभी सन्दर्भ न दे पाऊँगा मित्रो, उसके लिए माफ़ी....


जो ओशो प्रेमी  नरेंदर मोदी के साथ फोटो खिंचाते फिर रहे हैं, शायद उनके काम की हो यह बात. और जो खुद को ओशो प्रेमी भी कहते हैं और संघ से भी जुड़े हैं शायद इनके तो और भी काम की हो यह बात.  


(9) "Is Hinduism  not a way of worshipping, is it a way of life, is it a culture, is it a civilization as RSS says ? Let us re-think."


First there is no culture...it is only  an un-civilization, which we call civilization... 


A junglee society, just living under the garb of culture, 


Vulture people living under the garb of culture...


Just scratch little a bit and all culture is gone and underneath there is a junglee person.


And to tell you the truth Hindu is no way of life.....it was just a word used for the people living in a particular geographical area.........it had nothing to do with any worshipping or religion or sect or any particular way of life. 


Actually the people who were called Hindus, they had no particular way of life, ..here people were eating flesh, even cow then some people were vegetarian, some worshipped idols, charvak mocked at them.


Here the society admires marriage and you will find brothels everywhere in the history  and in the present times.


Here you will see Ram insulting women in Valmiki Ramayan and female worshipping him in the temples.


Here you will see people like Nanak, Kabir, Cahrvak, Budh, Mahaveer and many more who never said that they were Hindus or propagating Hinduism but still you will find people calling Jains, Sikhs, Buddhist as Hindus. Just an old Brahman backed sect, just trying to overload their theory of Hinduism.


Here you can see so many kinda bullshit.


There was/is no particular set of life,which can be defined as Hindu way of life, nothing. This word Hindu is meaningless.


But it has a general, particular meaning. This word "Hindu" denotes a particular sect of society who goes to temples, who worship Ram, Krishan, Shiv, Durga etc,who celebrates Diwali, Dussehra etc, a particular sect. 


This word cannot be used for all the people living here in Bharat.  The word HINDU denotes a very old, rotten un-civilization. So this word must be discarded as a word for describing almost the whole population of Bharat. 


The word, Bhartiya, bhartawasi is far better, easily acceptable.



(10) !!! RSS (Rashtriya Swyam Sevak Sangh) !!!


It is a wrong socio-religious-political Ideology. It was established in the year of 1925, a faulty socio-religious-political ideology. It declares that all the people living in India, whoever accept Indian traditions and who tie themselves with the Indian culture only, who accept Indian history, Indian mythology as their own heritage, are Hindus. Muslim and Christians cannot be called Hindus because they follow the traditions which came from the land which cannot be called Akhtar Hindustani​an. And Sikhs, Jains, Buddhist, all are Hindus and Hindutava is not a methodology of worshiping but a methodology of living a life. Vinayak Savarkar has written exhaustively in his book ‘Hindutava’ all this. And this land, this piece of land called Bharat is something special, every other part of the earth is under privileged. Only this land could give birth to the great sages, great warriors, great artists and scientists. In fact, everything belonging to this land is superior to the rest of the world and Bharat was a world Guru and is a world Guru. And only the people accepting this philosophy are entitled to live here in India, all the others should either leave or be thrown out.


Now I see, there are serious flaws in this bundle of theories--- 

If India/ Bharat was the best, why it got defeated by the foreign invaders?

Why it remained slave to the foreign cultures for centuries?

If it is the best and all the others are inferior, why the bulb, TV, fridge, computer used in every household, were not invented in India only?

Why Buddhists, Jains, Sikhs are not ready to call themselves Hindus?

Why the players of India did not win Gold medals in Olympics, especially the players from the states led by the BJP (Bhartiya Janta Party), an offspring of the RSS?

And if the Indians can utilize easily the inventions coming from the other parts of the earth, why cannot the great literature, great paintings, sculptures, music, dance, saintly teachings be adopted as ours own?


Why not claim the whole earth’s heritage, why not love the whole world, why not accept all the genius of whole world as ours, why this miserliness?


Why this adamancy of being Hindus, why not expand and call ourselves Earthen, why not further expand and call ourselves Cosmic?


Why not? Why not?”


(11) !!! RSS/ BJP philosophy is Wrong !!!


RSS (mother of BJP), philosophize that all are Hindus, Sikhs, Bodh, Jain etc.... provided they accept themselves products of this piece of land called Bharat and accept its sanskriti also, Foolish, India had no fix sanskriti, Bodh philosophy is against Brahman philosophy, Jain against Bodh, Sikhs left a lot many bullshits of Hindus and RSS is hellbent on proving them all Hindus. Ask Sikhs are they Hindus, ask Bodh are they Hindus, ask others are they Hindus, None will accept themselves as Hindus. And there is no Hindu sanskriti at all, carrying old ideas just because they came through ancestors is no sanskriti, Sankriti means accepting good things like electricity, TV, fridge etc. in our lives, no matter they come from which part of the Earth.

I have read a few books by "Veer Vinayak Damodar Savarkar".I have seen many short sighted people, he is one of the top most.

Pitra Bhoomi, Matri Bhoomi, Punya Bhoomi, Bhaarat Bhoomi. This whole Cosmos is ours and we are of the Cosmos, Cosmic people. The man was deluded and so are RSS (Rashtriya Swayam Sevak Sangh) and BJP people, his followers.

If India is to progress, she should get rid of Idiotic RSS Govt, these are just idiotic bunch of Hindu fanatics, why waste 5 years, come forward young guys and young gals, constitution is man made, made by us , for us, ask for your vote back, let us bring down this Government.



RSS is just a stupid ideology, has come into power because

of political vacuum.


Government is meant for Governance, good Governance, the people who belong to temples, Mosques, they should never be allowed to fight the elections. Any association with any religion, and the party or the person be disqualified from contesting a political election.


Come forward, let us cut short this present stupid Govt and have Govt that indulges in Good Governance only.


NAMSAKAAR

COPY RIGHT MATTER, DO NO STEAL, COMMENTS WELCOME

6 comments:

  1. Amazing
    Glad to have someone like minded

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  2. थैंक्स फ़ॉर द नॉलेज

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  3. Good write up...but political....so it is of no value....

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  4. पूर्वाग्रह और खिचड़ी ज्ञान से सयुक्त है ये लेख ,कोई भी धर्म तभी तक अच्छा है जब तक वह दूसरे की निजता सम्मान करता है ।

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  5. आपने एकदम खरी खरी बता दी।

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