"मानव मनोविज्ञान नमूना--2"
अक्सर देखता हूँ, मुझ से सीखा होता मित्रों ने कुछ और भूल ही जाते हैं कि मुझ से सीखा है, मुझे ही सिखाने लगते हैं उल्टा.....
चलो यहाँ तक तो खैर है, लेकिन हद तब होती है जब मुझ से सीखा कोई ढंग मेरे ही खिलाफ इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकते.....
आपके साथ भी ऐसा कुछ होता है क्या?
या फिर आप भी मेरे मित्रों जैसी ही कोई हरकत करते हैं क्या? अगर हाँ, तो ख्याल रखिये जैसा मैं समझ रहा हूँ शायद आपका मित्र भी ऐसा ही समझ रहा हो
खैर, मानवीय मनोविज्ञान का नमूना है बस
"मानव मनोविज्ञान नमूना--1"
अक्सर देखता हूँ, मेरे लेख पढ़ते हैं लोग ...यकीन नहीं कर पाते कि मैंने लिखे हैं
टिप्पणी करते हैं कि लेखक का नाम दिया होता तो बेहतर था......और नाम दे भी दे तो कईयों को लगता है कि चोरी किया होगा
एक पड़ोसन हैं हमारी, उनको सुना रहा था......मैं कह चुका था कि मैंने लिखा है...फिर भी अंत में कहती हैं कि जिसने भी लिखा है, अच्छा लिखा है
वजह क्या होती है, इस तरह कि सोच की?
मात्र एक हीन भाव, कैसे कोई यकीन कर ले कि थोड़ी भी गुणवत्ता किसी ऐसे व्यक्ति में हो सकती है, जो उनके सामने बैठा है, जो उनके ही जैसा जीवन जीता है.....वैसी गुणवत्ता फिर उनमें क्यों नहीं...........बस यही भाव उन्हें यह समझने से रोक देता है कि लेखक , कलाकार, पेंटर उनके जीवन में से ही कोई हो सकता है.....वो खुद ही खुद को समझने से रोके रखते हैं
खैर, मानव मनोविज्ञान का एक नमूना है
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