!! वो नायक हैं, अपुन नालायक है !!
अबे कोई बताओ जाकिर नायक को कि किसी किताब के चैप्टर नम्बर फलां, पैराग्राफ नंबर फलां, लाइन नंबर फलां में लिखे होने से ही कुछ ठीक गलत साबित नहीं होता
किताबें पढने में कोई बुराई नहीं, पढनी चाहिए...लेकिन किताबों मात्र को ही अक्ल का खजाना मान लेना गलत है , सही गलत का पैमाना मान लेना गलत है,
वैसे यह गलती सदियों से दोहराई जाती रही है, डिबेट के नाम पर "शास्त्रार्थ" होता रहा है, किसी को याद है मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच शास्त्रार्थ हुआ था, जिसमें मंडन मिश्र हार गये थे..
शास्त्रार्थ हुआ था, बहस इस बात पर हुई थी कि शास्त्र में जो लिखा है उसका अर्थ क्या है...झगड़ा शास्त्र में लिखे के अर्थ पर था.....सही गलत का पैमाना शास्त्र में जो लिखा है वो
अब इसे कोई डिबेट कहे तो भाई मुझे उससे डिबेट ही नहीं करनी
एक डिबेट कबीर भी करते हैं.....मस कागद छुओ नहीं......पता नहीं काग़ज छूया या नहीं लेकिन उनका कहा आज भी दिल छू रहा है और कागज़ी लोगों के पंजे छक्के छुड़ा रहा है
एक डिबेट नानक साहेब करते हैं......किताबों के हवाले नहीं देते....सीधा जा हरिद्वार गंगा में उतर उल्टी दिशा में पानी देने लगते हैं.......और समझा देते हैं कि तुम्हारा धरम कितना धरम है और कितना भरम......और ऐसा ही वो मक्का में करते हैं
एक बार मैंने कहीं पढ़ा, एक वक्ता कबीर के दोहे फरीद के नाम से सुना रहा था, बुल्ले शाह के रहीम के नाम से....सब गड़बड़ किये दे रहा था......अब पीछे बैठे थे जाकिर नायक साहेब.....उठ खड़े हुए....चिल्ला कर बोले.....ये क्या कर रहे हो,...चैप्टर नंबर.....पैराग्राफ नंबर......लाइन नंबर ......
वक्ता प्यार से बोला, जाकिर साहेब, आप बनो नायक, हम ठहरे फक्कड़......आप करो पीएचडी......हमें रहने दो फिस्सडी....आप हो नायक...........हम ठहरे नालायक
सो मित्रवर......हम ठहरे नालायक, हमारी बहस थोड़ी जुदा है, यह किताबों की इज्ज़त करती है, पढ़ना ज़रूरी तो मानती है लेकिन किताबों में अटके रहना ज़रूरी नहीं मानती....यह नहीं मानती कि फलां लेखक की फलां किताब के फलां चैप्टर के फलां पैराग्राफ में कुछ लिखा होने से ही कुछ ठीक गलत हो जाता है...चाहे वो किताब आसमानी किताब ही क्यों न हो
और यही वजह है कि वो नायक हैं, अपुन नालायक है
जाकिर नायक/ नालायक---- श्रीमान जी से किसी ने पूछा कि ऐसा क्यों है कि मुस्लिम बहुल देशों में मंदिर, गुरुद्वारा या चर्च आदि नहीं बनाने दिया जाता जबकि बहुत से अन्य मुल्कों में मस्जिद बनाई जा चुकी जहाँ मुस्लिम अल्प संख्यक हैं......
जवाब सुनिए, मज़ा आएगा
साहिब फरमाते हैं," यदि कोई टीचर दो और दो छह बताये या कोई टीचर दो और दो तीन बताये और फिर यदि कोई टीचर दो और दो चार बताये तो आप अपने बच्चे के लिए कौन सा टीचर रखेंगे...ज़ाहिर है दो और दो चार वाला, बाकियों को तो आप आस-पास भी फटकने न देंगे.......ठीक वही है दीन के मामले में...सिर्फ मुस्लिम ही है सही दीन ..दो और दो चार जैसा बताने वाला.....बाकी सब बेकार हैं "
अब भये, यह जो आप कह रहे हैं न यही सब दीन, धर्म, मज़हब वाले बोलते हैं....कभी सुन के देखो, सब के पास अपने अपने तर्क हैं, जो दूसरों को कुतर्क दीखते हैं...............सब को यही लगता है कि वो ही हैं दो और दो चार वाले, बाकी सब दो और दो तीन या फिर छह वाले हैं....
लगभग हरेक को अपना धर्म समन्दर लगता है दूसरे का धर्म कोई कूआँ, और वो भी सूखा हुआ
हम धरम हैं,
तुम भरम हो
पर असल बात यह कि आप सब में से कोई भी दो और दो चार वाला नही है...सब ने मिल कर इंसान का उल्लू खींचा है, इंसानियत को बांटा है, काटा है, दुनिया में जितना गंदा आप लोगों ने किया है किसी ने नहीं, अब वक्त आ गया है कि आप इस धरती से ही विदा हो जाएँ, हम खुद देख लेंगे, कि दो और दो कितने होते हैं, चाहे मामला गणित का हो, चाहे ज़िन्दगी का, चाहे आत्मा का परमात्मा का, चाहे इस जन्म का हो, चाहे मौत का, चाहे मौत के बाद का...हम खुद देख लेंगे....नही चाहिए तुम्हारी सदियों पुरानी किताबें और इनमें लिखे फरमान, हिदायतें और commandment और निर्देश
"महामूर्ख जाकिर नायक"
जाकिर नायक एक बार ओशो को जज करते हैं....लेकिन कसौटी कुरान को रखते है...........बढ़िया.
मैंने एक से एक बेवकूफ देखें हैं, जाकिर नायक सबसे महान बेवकूफों में से है.
हैरानी है इतनी भीड़ कैसे उनके भाषण सुनती है, शायद अधिकाँश लोग वो हैं जो पहले से ही ठीक गलत का फैसला करे बैठे होते हैं, बस अपने फैसलों के पक्ष में ही सुनने के इच्छुक होते हैं.
खैर, मैं भी जाकिर नायक को जज करता हूँ और मेरी कसौटी भी एक पन्द्रह हज़ार साल पुरानी किताब होगी.....आप मुझे मूर्ख न कहें तो हैरानी होगी........ठीक गलत का फैसला किन्ही किताबों को कसौटी मान कर होता है क्या?
आइंस्टीन के सिधान्तों का फैसला उसकी किताबों में लिखे शब्दों को ही मान कर होगा या उस दिशा में किये गए नए प्रयोगों पर?
ठीक गलत का फैसला कुरान करेगी या फिर कोई भी आसमानी किताब?
नहीं....... बुद्धि, तर्क, तथ्य और प्रयोग .........ये हैं कसौटी ..ओशो हों, कुरान हो, कोई भी ज्ञान हो......बुद्धि, तर्क, तथ्य और प्रयोग ......इनसे हम तय करेंगे कि क्या सही है और क्या गलत
घोड़े को गाड़ी के पीछे नहीं, आगे बाँधा जाता है .
उम्मीद है समझ गए होंगे कि मैं जाकिर नायक को नालायक क्यों कहता हूँ, महामूर्ख क्यों कह रहा हूँ
जाकिर नायक/ नालायक----
जाकिर नायक/ नालायक फरमाते हैं कि जानवरों को जिबह करने का इस्लामी तरीका सबसे ज्यादा मानवीय है, वैज्ञानिक है, इससे जानवर को दर्द नही होता, जो वो तड़ -फ़ड़ करता है वो तो बस, उसके मसल खिंच रहे होते हैं खून के निकलने की वजह से......
जाकिर साब, कभी जानवर को भी पूछा है कि उसे दर्द हो रहा है या नही, वो भी अल्लाह के पास जाना चाहता है या नही? या बस अपनी अपनी ही गाये जाओगे ? जरा उसकी भी रज़ामंदी ले लो, फिर मान लेते हैं आपकी बात.
वैसे यदि कोई शक्तिशाली प्राणी, या फिर इंसान ही इसी तरह से मुस्लिमों को इसी तरह से ज़िबह करे और यही सब कहे जो आप बाक़ी जानवरों के बारे में कहते हैं, तो फिर आप उसे गलत कैसे ठहरायेंगे........जस्ट इमेजिन
समझे मिस्टर नायक
वैसे क्यूट बहुत हैं आप
सादर नमन
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अबे कोई बताओ जाकिर नायक को कि किसी किताब के चैप्टर नम्बर फलां, पैराग्राफ नंबर फलां, लाइन नंबर फलां में लिखे होने से ही कुछ ठीक गलत साबित नहीं होता
किताबें पढने में कोई बुराई नहीं, पढनी चाहिए...लेकिन किताबों मात्र को ही अक्ल का खजाना मान लेना गलत है , सही गलत का पैमाना मान लेना गलत है,
वैसे यह गलती सदियों से दोहराई जाती रही है, डिबेट के नाम पर "शास्त्रार्थ" होता रहा है, किसी को याद है मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच शास्त्रार्थ हुआ था, जिसमें मंडन मिश्र हार गये थे..
शास्त्रार्थ हुआ था, बहस इस बात पर हुई थी कि शास्त्र में जो लिखा है उसका अर्थ क्या है...झगड़ा शास्त्र में लिखे के अर्थ पर था.....सही गलत का पैमाना शास्त्र में जो लिखा है वो
अब इसे कोई डिबेट कहे तो भाई मुझे उससे डिबेट ही नहीं करनी
एक डिबेट कबीर भी करते हैं.....मस कागद छुओ नहीं......पता नहीं काग़ज छूया या नहीं लेकिन उनका कहा आज भी दिल छू रहा है और कागज़ी लोगों के पंजे छक्के छुड़ा रहा है
एक डिबेट नानक साहेब करते हैं......किताबों के हवाले नहीं देते....सीधा जा हरिद्वार गंगा में उतर उल्टी दिशा में पानी देने लगते हैं.......और समझा देते हैं कि तुम्हारा धरम कितना धरम है और कितना भरम......और ऐसा ही वो मक्का में करते हैं
एक बार मैंने कहीं पढ़ा, एक वक्ता कबीर के दोहे फरीद के नाम से सुना रहा था, बुल्ले शाह के रहीम के नाम से....सब गड़बड़ किये दे रहा था......अब पीछे बैठे थे जाकिर नायक साहेब.....उठ खड़े हुए....चिल्ला कर बोले.....ये क्या कर रहे हो,...चैप्टर नंबर.....पैराग्राफ नंबर......लाइन नंबर ......
वक्ता प्यार से बोला, जाकिर साहेब, आप बनो नायक, हम ठहरे फक्कड़......आप करो पीएचडी......हमें रहने दो फिस्सडी....आप हो नायक...........हम ठहरे नालायक
सो मित्रवर......हम ठहरे नालायक, हमारी बहस थोड़ी जुदा है, यह किताबों की इज्ज़त करती है, पढ़ना ज़रूरी तो मानती है लेकिन किताबों में अटके रहना ज़रूरी नहीं मानती....यह नहीं मानती कि फलां लेखक की फलां किताब के फलां चैप्टर के फलां पैराग्राफ में कुछ लिखा होने से ही कुछ ठीक गलत हो जाता है...चाहे वो किताब आसमानी किताब ही क्यों न हो
और यही वजह है कि वो नायक हैं, अपुन नालायक है
जाकिर नायक/ नालायक---- श्रीमान जी से किसी ने पूछा कि ऐसा क्यों है कि मुस्लिम बहुल देशों में मंदिर, गुरुद्वारा या चर्च आदि नहीं बनाने दिया जाता जबकि बहुत से अन्य मुल्कों में मस्जिद बनाई जा चुकी जहाँ मुस्लिम अल्प संख्यक हैं......
जवाब सुनिए, मज़ा आएगा
साहिब फरमाते हैं," यदि कोई टीचर दो और दो छह बताये या कोई टीचर दो और दो तीन बताये और फिर यदि कोई टीचर दो और दो चार बताये तो आप अपने बच्चे के लिए कौन सा टीचर रखेंगे...ज़ाहिर है दो और दो चार वाला, बाकियों को तो आप आस-पास भी फटकने न देंगे.......ठीक वही है दीन के मामले में...सिर्फ मुस्लिम ही है सही दीन ..दो और दो चार जैसा बताने वाला.....बाकी सब बेकार हैं "
अब भये, यह जो आप कह रहे हैं न यही सब दीन, धर्म, मज़हब वाले बोलते हैं....कभी सुन के देखो, सब के पास अपने अपने तर्क हैं, जो दूसरों को कुतर्क दीखते हैं...............सब को यही लगता है कि वो ही हैं दो और दो चार वाले, बाकी सब दो और दो तीन या फिर छह वाले हैं....
लगभग हरेक को अपना धर्म समन्दर लगता है दूसरे का धर्म कोई कूआँ, और वो भी सूखा हुआ
हम धरम हैं,
तुम भरम हो
पर असल बात यह कि आप सब में से कोई भी दो और दो चार वाला नही है...सब ने मिल कर इंसान का उल्लू खींचा है, इंसानियत को बांटा है, काटा है, दुनिया में जितना गंदा आप लोगों ने किया है किसी ने नहीं, अब वक्त आ गया है कि आप इस धरती से ही विदा हो जाएँ, हम खुद देख लेंगे, कि दो और दो कितने होते हैं, चाहे मामला गणित का हो, चाहे ज़िन्दगी का, चाहे आत्मा का परमात्मा का, चाहे इस जन्म का हो, चाहे मौत का, चाहे मौत के बाद का...हम खुद देख लेंगे....नही चाहिए तुम्हारी सदियों पुरानी किताबें और इनमें लिखे फरमान, हिदायतें और commandment और निर्देश
"महामूर्ख जाकिर नायक"
जाकिर नायक एक बार ओशो को जज करते हैं....लेकिन कसौटी कुरान को रखते है...........बढ़िया.
मैंने एक से एक बेवकूफ देखें हैं, जाकिर नायक सबसे महान बेवकूफों में से है.
हैरानी है इतनी भीड़ कैसे उनके भाषण सुनती है, शायद अधिकाँश लोग वो हैं जो पहले से ही ठीक गलत का फैसला करे बैठे होते हैं, बस अपने फैसलों के पक्ष में ही सुनने के इच्छुक होते हैं.
खैर, मैं भी जाकिर नायक को जज करता हूँ और मेरी कसौटी भी एक पन्द्रह हज़ार साल पुरानी किताब होगी.....आप मुझे मूर्ख न कहें तो हैरानी होगी........ठीक गलत का फैसला किन्ही किताबों को कसौटी मान कर होता है क्या?
आइंस्टीन के सिधान्तों का फैसला उसकी किताबों में लिखे शब्दों को ही मान कर होगा या उस दिशा में किये गए नए प्रयोगों पर?
ठीक गलत का फैसला कुरान करेगी या फिर कोई भी आसमानी किताब?
नहीं....... बुद्धि, तर्क, तथ्य और प्रयोग .........ये हैं कसौटी ..ओशो हों, कुरान हो, कोई भी ज्ञान हो......बुद्धि, तर्क, तथ्य और प्रयोग ......इनसे हम तय करेंगे कि क्या सही है और क्या गलत
घोड़े को गाड़ी के पीछे नहीं, आगे बाँधा जाता है .
उम्मीद है समझ गए होंगे कि मैं जाकिर नायक को नालायक क्यों कहता हूँ, महामूर्ख क्यों कह रहा हूँ
जाकिर नायक/ नालायक----
जाकिर नायक/ नालायक फरमाते हैं कि जानवरों को जिबह करने का इस्लामी तरीका सबसे ज्यादा मानवीय है, वैज्ञानिक है, इससे जानवर को दर्द नही होता, जो वो तड़ -फ़ड़ करता है वो तो बस, उसके मसल खिंच रहे होते हैं खून के निकलने की वजह से......
जाकिर साब, कभी जानवर को भी पूछा है कि उसे दर्द हो रहा है या नही, वो भी अल्लाह के पास जाना चाहता है या नही? या बस अपनी अपनी ही गाये जाओगे ? जरा उसकी भी रज़ामंदी ले लो, फिर मान लेते हैं आपकी बात.
वैसे यदि कोई शक्तिशाली प्राणी, या फिर इंसान ही इसी तरह से मुस्लिमों को इसी तरह से ज़िबह करे और यही सब कहे जो आप बाक़ी जानवरों के बारे में कहते हैं, तो फिर आप उसे गलत कैसे ठहरायेंगे........जस्ट इमेजिन
समझे मिस्टर नायक
वैसे क्यूट बहुत हैं आप
सादर नमन
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