Monday, 29 June 2015

"सरकारी नौकर"





यह निज़ाम पब्लिक के पैसे से चलता है, जिसका बड़ा हिस्सा सरकारी नौकरों को जाता है…सरकारी नौकर जितनी सैलरी पाते हैं, जितनी सुविधाएं पाते हैं, जितनी छुट्टिया पाते है … क्या वो उसके हकदार हैं?.... मेरे ख्याल से तो नहीं … …


सरकारी नौकर रिश्वतखोर हैं, हरामखोर हैं, कामचोर हैं ....

ये जो हर ऐरा गैरा नत्थू खैरा सरकारी नौकरी पाने को मरा जाता है, वो इसलिए नहीं कि उसे कोई पब्लिक की सेवा करने का कीड़ा काट गया है, वो मात्र इसलिए कि उसे पता है कि सरकारी नौकरी कोई नौकरी नहीं होती बल्कि सरकार का जवाई बनना होता है, जिसकी पब्लिक ने सारी उम्र नौकरी करनी होती है ....

सरकारी नौकर कभी भी पब्लिक का नौकर नहीं होता, बल्कि पब्लिक उसकी नौकर होती है....

सरकारी नौकर को पता होता है, वो काम करे न करे, तनख्वाह उसे मिलनी ही है और बहुत जगह तो सरकारी नौकर को शक्ल तक दिखाने की ज़रुरत नहीं होती, तनख्वाह उसे फिर भी मिलती रहती है

सरकारी नौकर को पता होता है, उसके खिलाफ अव्वल तो पब्लिक में से कोई शिकायत कर ही नहीं पायेगा और करेगा भी तो उसका कुछ बिगड़ना नही है

सीट मिलते ही सरकारी नौकर के तेवर बदल जाते हैं, आवाज़ में रौब आ जाता है ……आम आदमी उसे कीडा मकौड़ा नज़र आने लगता है .…

अपनी सीट का बेताज बादशाह होता है सरकारी नौकर…

सरकार नौकरी असल में सरकारी मल्कियत होती है, सरकारी बादशाहत होती है.... इसे नौकरी कहा भर जाता है, लेकिन इसमें नौकरी वाली कोई बात होती नहीं … .. इसलिए अक्सर लोग कहते हैं की नौकरी सरकारी मिलेगी तो ही करेंगे

लगभग सबके सब सरकारी उपक्रम कंगाली के करीब पहुँच चुके हैं .... वजह है ये सरकारी नौकर, जिन्हें काम न करने की हर तकनीक मालूम है.…

लानत है, जब मैं पढता हूँ कि सरकारी नौकरों की तनख्वाह,, भत्ते, छुट्टियां बढ़ाई जाने वाली हैं, मुझे मुल्क के बेरोज़गार नौजवानों की फ़ौज नज़र आती हैं .... जो इनसे आधी तनख्वाह, आधी छुट्टियों, आधी सुविधाओं में इनसे दोगुना काम खुशी खुशी करने को तैयार हो जाएगी. .....लेकिन मुल्क को टैक्स का पैसा बर्बाद करना है, सो कर रहा है....लानत है

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