Friday, 19 June 2015

आरक्षण/ Reservation

अब वो.....भागवत जी ..शायद कहा उन्होंने कि आरक्षण ठीक है.....अब अपनी समझ से बाहर है यह सब

आरक्षण जितना जल्दी खत्म हो उतना अच्छा....सिर्फ वोट की राजनीति है यह स्टेटमेंट



समाज में जब भी, जहाँ भी असंतुलन होगा, तनाव बढ़ेगा........एक समय था एक हिस्से को शूद्र कह कर उसका जीवन शूद्र कर दिया गया, नरक कर दिया गया
फिर आरक्षण ला कर समाज में असंतुलन पैदा किया गया, एक हिस्सा जो ज़्यादा कुशल था जब उसे नौकरी छीन कर कम कुशल व्यक्ति को दी जाने लगी तो फिर से तनाव पैदा हो गया.
आज दोनों वर्गों की पीड़ा सच्ची है, आप बात छेड़ लो आरक्षण की, दोनों तरफ से तलवारे खिच जायेंगी
और दोनों अपनी जगह सही हैं
जिसे शूद्र कह कर दलन किया गया वो भी अपनी पीड़ा के प्रति सच्चा है
जिससे काबिल होते हुए रोज़गार छीना गया, वो भी सच्चा है
हल मैंने दिया है ..जरा गौर फरमाएं------


!!!!! आरक्षण, हां, न, या फिर कुछ और , मेरा नज़रिया !!!!!

हम पंजाब से हैं, बठिंडा..........मैं छोटा था......हमारे घर में पाखाना छत पर था.....खुला...बस चारदीवारी थी........हमारा मैला उठाने औरत आया करती थी...जो सर पर टोकरी में ले जाती थी हमारी टट्टी....उन्हें हरिजन कहते थे..उनकी बस्ती शहर से बाहर हुआ करती थी.......और हमारे घरों में उनको चूड़ा कहा जाता था......एक अजीब तरह की हिकारत , नफ़रत के साथ उनका ज़िक्र होता था....और अक्सर कहा जाता था कि नीच नीच ही रहते हैं.......नीच अपनी जात दिखा ही देते हैं......और एक बात बता दूं अब मैं दिल्ली में रहता हूँ...यहाँ भी मादीपुर जे जे कॉलोनी लगती है पास में......यहाँ भी एक ब्लाक चूड़ों का कहा जाता है...और सीवर, नाली साफ़ करने वाले यहीं से आते हैं.....मैंने नहीं देखा कि कोई शर्मा जी, त्रिपाठी जी, कोई अरोड़ा जी, कोई अग्रवाल जी सीवर साफ़ करते हों........ब्रह्मण हमारे घरों से रोटी लेने आता था और जमादार टट्टी.....यह है जिंदा सबूत जात पात के भेद भाव का


अब सवाल है कि आज आरक्षण दिया जाये या नहीं.........मेरा मानना है कि  हिन्दू समाज ने अपने एक अंग को मात्र सेवा लेने के लिए अनपढ़ रखा....उसका उपयोग, दुरूपयोग किया.......लेकिन क्या समाज ने ऐसा सिर्फ शुद्र के साथ किया......नहीं, स्त्री के साथ भी ऐसा ही किया...तभी तो तुलसी बाबा ने कहा...ढोर गवार सूद्र पसु नारी.........सब ताडन के अधिकारी........समाज ने हरेक कमज़ोर के साथ ऐसा ही किया...उसे दबाया...उसका प्रयोग किया.....तो कहना यह है कि जो गरीब है वो भी समाज का ही बनाया है.....पूंजीवाद का बनाया है.....पीढी पीढी दर पूंजी के transfer सिस्टम का बनाया है........



आज नौकरी में आरक्षण का कोई मतलब नहीं है.....सरकारी नौकरी वैसे ही खत्म होती जा रही है...आप कहाँ तक दोगे किसी को नौकरी ........उससे भी बेहतर आप्शन दिया है मैंने IPP में.....पूंजी के आरक्षण को खत्म करने का......आप जितना मर्ज़ी कमाओ, जितना मर्ज़ी जमा करो...आपकी अगली पीढी को पांच करोड़ से ज़्यादा ट्रान्सफर नहीं होगा....बाक़ी पैसा आपको सामाजिक कामों में लगाना होगा..

हम पूरे समाज में ही गरीबी अमीरी का फासला क्यों न कम करें........मैं किसी भी तरह के आरक्षण के खिलाफ हूँ........हाँ, कमज़ोर वर्ग को हर तरह की सुविधा के पक्ष में हूँ......शिक्षा , स्वास्थ्य हर तरह से...वो भी हर गरीब को...

अरे, भाई, एक कहावत है, गरीब की जोरू. हरेक की भाभी........गरीब तो वैसे ही शुद्र होता है...चाहे वो..किसी भी जात का हो

और गरीब वो है समाज की वजह से...वरना एक डॉक्टर क्यों करोड़ो कमाए और एक मोची क्यों बस कुछ सौ...किस ने बनाया यह सब सिस्टम....समाज ने......क्या समाज को नाली, सीवर साफ़ करने वाले की ज़रुरत नहीं...ज़रा, चंद दिन ये लोग, जिनको नाली साफ़ कराने के काम में लगाया जाता है...चंद दिन यदि काम बंद कर दें...सबकी अक्ल ठिकाने आ जायेगी......फिर लाखों देकर भी सीवर साफ़ कराया जाएगा

मेरा ख्याल है कि जो हो गया ..हो गया......अब कोई फ़ायदा नहीं कि हम झगड़ते रहें.....और यह इस तरह का आरक्षण भी बंद होना चाहिए...नौकरी......सरकारी नौकरी तो वैसे भी सब CCTV तले होनी चाहिए....सरकारी नौकर को जमाता जैसा नहीं, एक नौकर जैसा ही ट्रीटमेंट मिलना चाहिए...हाँ नौकर को बेहतर ट्रीटमेंट मिलना चाहिए, वो एक दीगर बात है

और उसकी तनख्वाह भी अनाप शनाप नहीं होनी चाहिए.....बाहर इनको पांच हजार की जॉब न मिले जो पचास हज्जार ले रहे हैं

यह सब तो वैसे भी खत्म हों चाहिए......अब हमें समाज के ताने बाने पर फिर से, पूरी तरह नये सिरे से सोचना चाहिए....

बहुत सुझाव दिए हैं मैंने IPP एजेंडा में...ठीक से पढेंगे तो सब समझ आएगा

और मेरा सुझाव है..मैंने लिखा है IPP एजेंडा में कि डर्टी जॉब्स, पूरे समाज को रोटरी सिस्टम से करनी चाहिए....क्यों कोई ज़िम्मा ले किसी का........हम ऐसा समाज क्यों नहीं बना सकते कि आपके धन से खरीद शक्ति को सीमित क्र दिया जाए...आप जितने मर्ज़ी अमीर होते रहें..लेकिन.....आप अपने लिए एक सफाई वाला नहीं खरीद सकते....आपको अपने हिस्से की डर्टी जॉब खुद करनी ही होगी..इस तरह से कुछ

पुराने दर्दों का नया इलाज दे रहा हूँ.......प्रयोग करने से ही पता लगेगा कि कितना कारगर है....मुझे लगता है कि जैसे हम किसी आविष्कार को बड़े पैमाने पर प्रयोग करने से पहले टेस्ट करते हैं छोटे लेवल पर...वैसा ही समाज के साथ भी किया जा सकता है......मेरे सुझाव हो सकें तो छोटे लेवल पर प्रयोग किये जाएँ

बच्चों का पैदा करने का...संख्या भी व्यक्तिगत नहीं होनी चाहिए...वरना पैदा करते रहेंगे बच्चे और फिर सब सुविधा मांगेंगे......पैदा तुम करो, भरे हम.....यह बिलकुल समझ नहीं आएगा ...और बेचारे बच्चे का क्या कसूर...वो क्यों गरीब......

बच्चे पैदा करने की राशनिंग होनी चाहिए, प्लानिंग होनी चाहिए.........सामूहिक लेवल पर.....एक निश्चित भोगोलिक क्षेत्र कितने बच्चे आसानी से अफ्फोर्ड कर सकता है, बस उतने ही बच्चे पैदा होने चाहिए.........और एक जोड़े को हो सके तो एक से ज़्यादा बच्चे का अधिकार न दिया जाए....और हो सके तो बच्चे सामूहिक हों न कि व्यक्तिगत.......

बहुत कुछ प्रयोग करने लायक है

समाज का एक बड़ा हिस्सा बहुत गरीब है...पूंजी मात्र थोड़े से , चंद लोगों के पास है...........जीवन का स्वर्ग बस चंद लोगों के हिस्से है और नर्क लगभग पूरी मानवता के हिस्से......

इलाज आरक्षण नहीं है....कुछ और सोचना होगा....


और पूरे सामाजिक ताने बाने को फिर से देखना होगा.......पुराने दर्दों के नए इलाज खोजने होंगे...प्रयोग करने होंगे....तभी कोई रस्ता निकलेगा.......आप अपने सुझाव दे सकते हैं

यह आर्टिकल आदर्श पराशर , दिनेश कुमार और अम्बरीश जी की गरमा गरम बहस में मेरे शुमार से निकला है सो उन्ही को समर्पित है

कॉपी राईट है, चुराएं न, शेयर करें जितना मर्ज़ी


!!!आरक्षण, और और पहलु !!! 

संतुलन के लिए डर्टी जॉब्स सबको मिलजुल कर करनी चाहिए.....और वो सभी को करनी अनिवार्य होनी चाहिए....गरीब आमिर का सवाल नहीं........

बड़े पूंजीपति की व्यक्तिगत पूंजी का पीढी दर पीढी ट्रान्सफर सीमित होनी चाहिए चाहिए......

अब सवाल यह है कि इसके साथ यह भी ज़रूरी है कि बच्चे पैदा करना भी सीमित होना चाहिए......गरीब आमिर का सवाल नहीं...बच्चा पैदा करने का फैसला व्यक्तिगत कैसे हो सकता है जब आप सारी ज़िम्मेदारी सरकार पर थोपते हैं....जब आप शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा हर चीज़ सरकार से मांगते हैं तो फिर बच्चे पैदा करने का हक़ भी सार्वजानिक हितों को ध्यान में रख कर क्यों न हो.....वो हक़ कैसे व्यक्तिगत हो सकता है....वरना बच्चे पैदा कोई करता रहे और फिर सरकार से, समाज से हर तरह की सुविधा की आपेक्षा करता रहे...यह कहाँ का न्याय है?

न्याय यह नहीं कि सरकारी नौकरी दी जाए..न्याय यह है कि अच्छा प्रशासन दिया जाए......और आरक्षित नौकरियां.......दामादों जैसी नौकरियां.........पक्की नौकरियां.... क्या अच्छा प्रशासन देंगी......नौकरी तो वैसे ही पक्की नहीं होनी चाहिए..

सरकारी नौकरी को दुधारू गाय भैंस की तरह प्रयोग किया गया है......मोटी तनख्वाह, छुटियाँ ही छुटियाँ......हरामखोरी......और किसी का डर नहीं.....

इस तरह की नौकरी से सिर्फ नौकर का ही भला हो सकता है और किसी का नहीं...समाज का नहीं.......जिसे यह नौकर सेवा दे रहे हैं पब्लिक..उसका नहीं.....यह एक दुश्चक्र है

इससे बाहर आना ज़रूरी है.....मार्किट अपना रास्ता खुद बनाती है...... सरकारी संस्थान पिटने लगे....प्राइवेट क्षेत्र के आगे.....सरकारी पद अपने आप घटने लगे हैं...ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शुरू से ही एप्रोच गलत थी...

नौकरी को नौकरी न मान कर नौकर के जीवन का आरक्षण मान लिया गया

अगर किसी के साथ भी समाज में अन्याय होता है तो इसका मतलब यह कदापि नहीं कि सरकारी नौकरियां बांटी जाएँ.....वो पूरे समाज के ताने बाने को अव्यवस्थित करना है.....अन्याय की भरपाई सम्मान से की जा सकती है....आपसी सौहार्द से की जा सकती है......मुफ्त शिक्षा से की जा सकती है.....मुफ्त स्वस्थ्य सहायता से की जा सकती है......आर्थिक सहायता से की जा सकती है....लेकिन आरक्षण किसी भी हालात में नहीं दिया जाना चाहिए.....




!!!!आरक्षण से भी भयंकर आरक्षण !!!!
भारत में न सिर्फ गलत ढंग से सरकारी नौकरी बांटने की परम्परा है यहाँ तो सांसद तक गलत ढंग से बनाये जाते हैं...सचिन तेंदुलकर, लता मंगेशकर, रेखा...अब इनका राजनीति में क्या दखल.....होंगे अच्छे कलाकार, होंगे अच्छे खिलाड़ी..लेकिन सांसद होने के लिए अलग तरह की क्षमता होनी दरकार है.....और यहीं थोड़ा ही बस है यहाँ तो मंत्री पद और प्रधानमंत्री पद तक गलत तरीके से बाँट दिए गए हैं.... मात्र सरकारी नौकरी का ही आरक्षण है क्या.....बहुत तरह के आरक्षण हैं......बहुत भयंकर



!!!आरक्षण, कुछ नए पहलु !!!

अगर किसी के साथ भी समाज में अन्याय होता है तो इसका मतलब यह कदापि नहीं कि सरकारी नौकरियां बांटी जाएँ.....वो पूरे समाज के ताने बाने को अव्यवस्थित करना है.....अन्याय की भरपाई सम्मान से की जा सकती है....आपसी सौहार्द से की जा सकती है......मुफ्त शिक्षा से की जा सकती है.....मुफ्त स्वस्थ्य सहायता से की जा सकती है......आर्थिक सहायता से की जा सकती है....लेकिन आरक्षण किसी भी हालात  में नहीं दिया जाना  चाहिए.....

आज ही पढ़ रहा था कि कोई हरियाणा की महिला शूटर को सरकार ने नौकरी देने का वायदा पूरा नहीं किया तो वो शिकायत कर रही थीं...अब यह क्या मजाक है....कोई अगर अच्छी शूटर है तो वो कैसे किसी सरकारी नौकरी की हकदार हो गयी....उसे और बहुत तरह से प्रोत्साहन देना चाहिए..लेकिन सरकारी नौकरी देना...क्या बकवास है.....एक शूटिंग मैडल जीतना कैसे उनको उस नौकरी के लिए सर्वश्रेष्ठ कैंडिडेट बनाता है..? एक नौकरी के अलग तरह की शैक्षणिक योग्यता चाहिए होती है.....अलग तरह की कार्यकुशलता चाहिए होती है......और एक अच्छा खिलाड़ी होना...यह अलग तरह की योग्यता है...क्या मेल है दोनों में?

लेकिन कौन समझाये, यहाँ तो सरकारी नौकरी को बस रेवड़ी बांटने जैसा काम मान लिया गया है, बस जिसे मर्ज़ी दे दो......

कोई दंगा पीड़ित है , सरकारी नौकरी दे दो
कोई किसी खेल में मैडल जीत गया, नौकरी दे दो
कोई शुद्र कहा गया सरकारी नौकरी दे दो

जैसे दंगा पीड़ित होना, दलित होना, खेल में मैडल जीतना किसी सरकारी नौकरी विशेष के लिए उचित eligibility हो

यह सब तुरत बंद होना चाहिए, हाँ बड़े पूंजीपति की व्यक्तिगत पूंजी का पीढी दर पीढी ट्रान्सफर  खत्म होना चाहिए......

समाजवाद और पूंजीवाद का सम्मिश्रण


!!आरक्षण, कुछ और पहलु !!! 

कितना ही अन्याय हुआ हो.....लेकिन उस मतलब यह नहीं है कि मुफ्त में सरकारी नौकरियां बांटी जाएँ ....

सरकारी नौकरी वैसे ही कम होती जा रही हैं और ये सरकारी नौकर बहुत गैर ज़िम्मेदार रहे हैं...यह सब तो वैसे भी नहीं चलाना चाहिए.......समाज के जिस भी हिस्से से कोई अन्याय हुआ है उसे हर सम्भव मदद करनी चाहिए.....लेकिन वो मदद अंधी मदद न हो, यह भी देखना ज़रूरी है.....

उद्धरण अन्याय के और भी बहुत मिल 
जायेंगे......पाकिस्तान बना.....बहुत लोग सब कुछ गवा दिए...

अक्सर दंगे होते हैं, लोगों का सब कुछ लुट, पिट जाता है.....बहुत मदद दी भी जाती है..लेकिन मदद का मतलब यह नहीं की सरकारी नौकरी दी जाए...व्यक्ति काम कर सकता है या नहीं, यह देखा ही न जाए.....और एक ज्यादा सक्षम व्यक्ति को काम न देकर कम सक्षम आदमी को काम दिया जाए.....यह अन्याय उन लोगों के प्रति भी है जो वो सर्विस लेंगे.....पूरे समाज के प्रति अन्याय है....

शुद्र जिनको किया गया...और उसके लिए आंबेडकर ने जो आरक्षण का हल दिया....वो तो शुरू से ही गलत था....है......सरकारी नौकर से रोज़ पाला पड़ता है, क्या हाल करते हैं वो आम पब्लिक का.....पब्लिक को गुलाम समझते हैं.....हरामखोरी, रिश्वतखोरी ही की ज्यदातर ऐसे लोगों ने.....बिलकुल खत्म होना चाहिए यह सब..

समाज में बराबरी का मतलब यह है कि सरकारी तंत्र को निकम्मा कर दो? क्या बकवास है....?

समाज के एक हिस्से से अन्याय हुआ तो सारे समाज के ताने बाने को ख़राब कर दो....यह कोई ढंग नहीं था...न है...

गलत ढंग था....नतीज़ा सामने है....सरकारी तंत्र बर्बाद है.....

सरकारी संस्थान घाटे में हैं

पब्लिक सरकारी आदमी से त्रस्त है, चाहे कोई भी महकमा हो

शुद्र कह के समाज के एक बड़े हिस्से के प्रति अन्याय किया गया, सत्य है, तथ्य है......लेकिन हल सरकारी नौकरी का आरक्षण नहीं है ...

समाज में जब भी, जहाँ भी असंतुलन होगा, तनाव बढ़ेगा........एक समय था एक हिस्से को शूद्र कह कर उसका जीवन शूद्र कर दिया गया, नरक कर दिया गया

फिर आरक्षण ला कर समाज में असंतुलन पैदा किया गया, एक हिस्सा जो ज़्यादा कुशल था जब उसे नौकरी छीन कर कम कुशल व्यक्ति को दी जाने लगी तो फिर से तनाव पैदा हो गया.

आज दोनों वर्गों की पीड़ा सच्ची है, आप बात छेड़ लो आरक्षण की, दोनों तरफ से तलवारे खिच जायेंगी

और दोनों अपनी जगह सही हैं

जिसे शूद्र कह कर दलन किया गया वो भी अपनी पीड़ा के प्रति सच्चा है
जिससे काबिल होते हुए रोज़गार छीना गया, वो भी सच्चा है

हल दिया है मैंने...

https://www.facebook.com/tushar.cosmic/posts/10202445635403620?comment_id=10202457988592442&offset=0&total_comments=33&ref=notif&notif_t=share_comment

अरे, भाई, एक कहावत है, गरीब की जोरू. हरेक की भाभी........गरीब तो वैसे ही शुद्र होता है...चाहे वो..किसी भी जात का हो
चलो अभी बता दो कितने पंडित, कितने क्षत्रिय, कितने वैश्य सीवर साफ़ करते हैं, कूड़ा उठाते हैं...नाली साफ़ करते हैं?.....यह है जिंदा सबूत जात पात के भेद भाव का

ब्रह्मण हमारे घरों से रोटी लेने आता था और शूद्र टट्टी.....यह है जिंदा सबूत जात पात के भेद भाव का




CASTE BASED RESERVATION, HOW TO DECREASE OR INCREASE -----

A lot has been and being said against caste based reservation.
Great!
A few points to be considered.

1) A large piece of Hindu community was disgraced labeling Shudras.

These so-called-Shudras had been created just for the sake of serving community for low level dirty kinda jobs.

Hence no education, no brains, no intelligence, no temples,  no spirituality,  no freedom, no life.
A lifeless life.
Below animals.

They were humiliated by labeling low caste, then why they should not be given facilities in the name of low caste?

Such was their pain that they chose to be converted as Buddhists, Muslims or Christian rather living a disgraceful life as Hindus.

2) A lot many people say these days that reservation should be removed, of-course, this should be removed but kindly tell me before that have U ever seen a Pandey ji cleaning the drainage or working in a community dustbin or dying while cleaning a gutter? If yes, then U are right.

3) The simple formula of a balanced society is, dirty jobs should be performed on rotary basis.

One day by Sharma ji, another day by Verma ji, another day by Arora ji, another day by Hora ji, another day by Pawar ji, another day by Talwar ji.
Like that, the whole society should participate.

And these jobs should be highly payable. After-all these are very tough jobs. One of the toughest ones.

Implementation of this system may prove a step-stone in removing reservation.

And if our society is not able to do this then the caste based benefits should be increased instead of decreasing

4) The only thing, I wanna change in the reservation system is reservation in the jobs.

The so-called-Shudras should be given more benefits in education. These students should be given more scholarships, free dresses, free food, free shelter.

But there should be no compromise in quality.

The exams for selection of a candidate should be only the written ones, multiple choice type, no interviews type exams, I mean, selectors should not be able to discriminate, if a candidate clears a particular written exam, he/she be selected, who-so-ever, any caste.

Thus there will be no quality compromise.

But again, I wanna say that so-called-Shudras be given more chances of getting free education and other benefits.

Indian society has oppressed this part of their society for millennium, now is the time to re-pay.

Only within a few decades the Suvarns are burning themselves with anguish  & jealousy.

No, let them understand the pain of the downtrodden, let the society be balanced.

5) And do not think that I am supporting facilities to the so-called Shudras because I must had been born as one, no, I was born in a Sikh family and had been adopted by a Hindu-Sikh family, Khatri, Kshatriya.

I support or oppose issues as per my own understanding.

COPY RIGHT MATTER
TUSHAR COSMIC

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