क्या हर बन्दा अपनी अपनी जगह सही है?

"हर बन्दा अपनी अपनी जगह सही है"

"आपके विचार मात्र आपकी ओपिनियन हैं"

"Don't be judgemental, whatever you think right or wrong, that is only your perception.Far from reality"

इस तरह की बातें...कुछ कुछ

मेरा मानना है कि इस तरह की थ्योरी इंसान को झोलझाल बनाती हैं, उसकी सोच को लुल्ल कर देती हैं (भाषा के लिए माफी.....कृपया PK फिल्म को ध्यान में रखा जाए)

यह थ्योरी ग़लत तो है ही....खतरनाक भी है.....ऐसी थ्योरी ही ज्ञान विज्ञान की तरक्की में बाधा हैं.

ठीक और गलत का फैसला हालात....यानि देश काल...यानि ख़ास सिचुएशन ...यानि तमाम गवाह और मुद्दों की जानकारी की रोशनी में ही किया जाता है

यदि ऐसा न हो तो आप कोई ज्ञान विज्ञान विकसित ही नहीं कर सकते

यदि ऐसा न हो तो कभी आइंस्टीन आइंस्टीन न हो पाते, कभी न्यूटन , न्यूटन न हो पाते

जब यह मानेंगे कि कुछ भी सही गलत नहीं होता, कैसे कोई भी समाजिक विज्ञान विकसित करेंगे......कैसे मनोविज्ञान, राजनीति विज्ञान, समाज विज्ञान...कैसे विकसित करेंगे....सब कोशिश में रहते हैं कि एक बेहतर समाज घड पाएं....कैसे घडेंगे ....जब हम इंसानों की दुनिया में कुछ "ठीक गलत होने" के बेसिक कांसेप्ट को ही नकार देंगे ?

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