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पटाखे

पटाखे बंद होना स्वागत-योग्य है. पटाखों का हिन्दू धर्म से-दीवाली से कोई लेना-देना है ही नहीं. और हो भी तब भी कोई भी बकवास चाहे वो किसी भी धर्म से सम्बन्धित हो, बेहिचक बंद कर दी जानी चाहिए. मुझे याद है, जब बड़ी बिटिया पैदा हुई तो उसकी पहली दीवाली पर मैं उसे गोदी लेके बैठा था. यूरेका फोर्ब्स का एयर प्यूरी-फायर नया-नया लिया था. बब्बू के कानों को ढक रखा था अपने हाथों से और एयर प्यूरी-फायर चला रखा था. बब्बू अब इतनी समझदार हो चुकी है कि पटाखों को सिरे से बकवास मानती है. अब छोटी वाली को खांसी रहती है. बाजारी खाना भी ज़िम्मेदार है, कितना ही मना करो बच्चे गंद-मंद खा ही लेते हैं. लेकिन एक वजह दिल्ली की खराब हवा भी समझता हूँ. मुझे ख़ुशी है कि पटाखे नहीं मिल रहे. और उम्मीद करता हूँ कि न मिलें और दीवाली बिना धुयें-धक्कड़ के बीते. कोर्ट को धन्य-वाद. जज साहेब को मेरे बच्चों की तरफ से बेहद प्यारभरा नमन. वरना इस मुल्क में राजनेताओं के हाथों तो कुछ भी अच्छा होने से रहा. कैसे हो सकता है? जो आते ही पागल भीड़ का फायदा उठा कर हैं, वो उस भीड़ के पागल-पन के खिलाफ कोई भी फैसला कैसे कर सकते हैं? सो मौजदा हाल...

हमारी दिवाली-हमारे पटाखे

बड़ा दुखित हैं मेरे हिन्दू वीर. कोर्ट ने पटाखों पर बैन लगा दिया दिवाली पर. धर्म खतरे में आ गया. धर्मों रक्षति रक्षतः. व्हाट्स-एप्प और फेसबुक का जम कर प्रयोग हो रहा है, हिन्दुओं को जगाने में. मैंने सुना था कि लोगों ने ख़ुशी से घी के दीपक जलाए थे राम जी वापिस आये थे तो. दीपावली शब्द का अर्थ ही है दीपों की कतार. लेकिन पटाखे भी चलाये थे, यह तो मैंने नहीं सुना. शायद आविष्कृत भी नहीं हुए थे. चीन ने आतिश-बाज़ी का आविष्कार किया था शायद. नहीं, लेकिन यह कैसे हो सकता है? हम तो पुष्पक विमान, एटम बम तक खोज चुके थे. निश्चित ही आतिश-बाज़ी भी हमारी खोज है. पटाखे निश्चित ही हम ने चलाए थे, जब राम जी लौटे थे तो. लेकिन वाल्मीकि रामायण तो कहती है कि राम के आगमन पर सारा ताम-झाम भरत की आज्ञा से शत्रुघ्न ने करवाया था, लेकिन उसमें पटाखों का तो कोई ज़िक्र नहीं है. रास्तों के खड्डे भरे गए थे, उन पर पानी छिड़का गया था, फूल बिखेरे गए थे. घरों पर झंडे लगाए गए थे और स्वागत में गण्य-मान्य लोगों के साथ गणिकाएं (वेश्याएँ) तक खड़ी की गयीं थी राम के स्वागत में. सो यह बकवास भूल जायें कि लोग राम के आगमन पर खुश थे और स्वय...