पटाखे

पटाखे बंद होना स्वागत-योग्य है. पटाखों का हिन्दू धर्म से-दीवाली से कोई लेना-देना है ही नहीं. और हो भी तब भी कोई भी बकवास चाहे वो किसी भी धर्म से सम्बन्धित हो, बेहिचक बंद कर दी जानी चाहिए. मुझे याद है, जब बड़ी बिटिया पैदा हुई तो उसकी पहली दीवाली पर मैं उसे गोदी लेके बैठा था. यूरेका फोर्ब्स का एयर प्यूरी-फायर नया-नया लिया था. बब्बू के कानों को ढक रखा था अपने हाथों से और एयर प्यूरी-फायर चला रखा था. बब्बू अब इतनी समझदार हो चुकी है कि पटाखों को सिरे से बकवास मानती है. अब छोटी वाली को खांसी रहती है. बाजारी खाना भी ज़िम्मेदार है, कितना ही मना करो बच्चे गंद-मंद खा ही लेते हैं. लेकिन एक वजह दिल्ली की खराब हवा भी समझता हूँ. मुझे ख़ुशी है कि पटाखे नहीं मिल रहे. और उम्मीद करता हूँ कि न मिलें और दीवाली बिना धुयें-धक्कड़ के बीते. कोर्ट को धन्य-वाद. जज साहेब को मेरे बच्चों की तरफ से बेहद प्यारभरा नमन. वरना इस मुल्क में राजनेताओं के हाथों तो कुछ भी अच्छा होने से रहा. कैसे हो सकता है? जो आते ही पागल भीड़ का फायदा उठा कर हैं, वो उस भीड़ के पागल-पन के खिलाफ कोई भी फैसला कैसे कर सकते हैं? सो मौजदा हालात में सरकार किसी की भी हो, बेहतरी कोर्ट-चुनाव कमीशन जैसी स्वतंत्र संस्थाओं के हाथों ही हो सकती है. शेषन को लोग आज तक याद करते हैं. वो आज भी शेष हैं. विशेष हैं......नमन.

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