विनोद दुआ.....youtube पर एक्टिव हैं....The Wire .....नाम से है चैनल....एक एपिसोड में TINA कांसेप्ट को बताया इन्होने. TINA मतलब There is no Alternative.
विनोद जी बताते हैं कि जैसे आज मोदी के बारे में ऐसा कहा जा रहा है कि उनके बिना भारत में कोई और है नहीं जो प्रधान-मंत्री बन सके, कोई और alternative ही नहीं है, तो ऐसा कांसेप्ट पहली बार नहीं है समाज में. ऐसा पहले जवाहर लाल नेहरु के समय में भी कहा जाता था कि उनकी जगह कोई नहीं ले सकता, ऐसा इंदिरा गाँधी के बारे में भी कहा जाता रहा ही, लेकिन लोकतंत्र की खूबसूरती यह है कि लोकतंत्र नए विकल्प पैदा कर ही लेता है, ऐसे विकल्प जो आज शायद नज़र न आ रहे हों.
ठीक. अब विनोद जी ने जो कहा, वो कहा, मैं क्या लस्सी घोल रहा हूँ इसमें?
तो मेरा कहना यह है मित्रगण कि विनोद जी ने बहुत सतही बात कही है. पुराने पत्रकार हैं, करीब 40 साल से एक्टिव हैं, राजनीति-विशेषज्ञ हैं, बहुत से चुनावों की समीक्षा कर चुके हैं, बहुत सी सरकारें देख चुके. लेकिन यहाँ इनकी समझ को मैं बहुत गहन नहीं पाता.
देखिये, विकल्प तो मिल ही जाना है. दुनिया कभी किसी के लिए नहीं रूकती. दुनिया चलती ही रहती है. लेकिन सवाल यह है, पॉइंट यह है, मुद्दा यह है कि विकल्प जो मिलता है, वो कैसे मिलता है और कैसा मिलता है?
अभी तक जो विकल्प मिले भारत को, वो क्या वाकई लोकतंत्र की वजह से मिले थे?
जवाहर गए, इंदिरा आ गईं, यह लोकतंत्र था या परिवार-तन्त्र?
इंदिरा गईं, राजीव आ गए. इसे लोकतंत्र कहते हैं?
मनमोहन गए, अँधा कॉर्पोरेट धन बहा कर मोदी आ गए. यह जन-तन्त्र है या धन-तन्त्र?
लोकतंत्र का अर्थ है, लोक में से कोई भी शीर्ष पद पर पहुँच सके, मात्र इस बल पर कि वो मुल्क के लिए ऐसा बेहतरीन कांसेप्ट, प्रोग्राम, प्लान लेकर आता है, जो दूसरे नहीं ला पा रहे. अब वो इन्सान चाहे झाड़ू मारने वाला ही क्यूँ न हो.
है क्या यह सम्भव? वो बेचारा बिन मोटे पैसे के म्युनिसिपेलिटी का चुनाव न जीत पाए, प्रधान-मंत्री बनना तो ख्वाब है बस.
तो विनोद दुआ साहेब यहीं चूक गए. वो इस गहराई तक नहीं गए कि विकल्प आ तो जायेगा लेकिन क्या वो विकल्प जन-तन्त्र के कांसेप्ट के अनुरूप होगा? मेरा मानना यह है कि फिलहाल तो नहीं होगा.
बहुत से झाड़ू वाले इस मुल्क को दिशा दे सकते हैं. मोदी का विकल्प हो सकते हैं, लेकिन तब जब यह सच में जन-तन्त्र हो. आपने देखे होंगे बहुत से वीडियो कि कोई सफेदी वाला, कोई भीख मांगने वाला, कोई खोमचे वाला बहुत ही शानदार गा रहा है. देखे हैं न? आमिर खान की नई फिल्म भी इसी कांसेप्ट पर है. कोई आम सी लड़की को सिंगिंग स्टार बना देता है. शायद. ट्रेलर देखे हैं मैंने बस.
जिस दिन हम जन में से, आम-जन में से विकल्प ला पायेंगे, उस दिन आप यह कहने के हकदार होंगें दुआ साहेब कि जनतंत्र विकल्प दे ही देता है.
अभी आप बस इतना कह सकते हैं कि मोदी का विकल्प नहीं है, यह सोचने वाले बस मूरख हैं. आप कह सकते हैं कि विकल्प तो मिल ही जाते हैं. आप कह सकते हैं कि TINA कांसेप्ट एक बकवास कांसेप्ट है.
लेकिन आपको आगे जो कहना था, जो आपने ने नहीं कहा, वो यह था कि जो विकल्प मिलते हैं वो लोक-तन्त्र देता है, यह कहना सरा-सर गलत है, चूँकि सही अर्थों में अभी की (अ)व्यवस्था लोक-तन्त्र की अर्थी है, लोक-तन्त्र से कोसों दूर हैं, बल्कि लोक-तन्त्र के खिलाफ़ षड्यंत्र है.
नमन.....तुषार कॉस्मिक.
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