संघी सोच है. भारत माता की जय!
असल में भारत माता ध्वस्त होनी चाहिए और चीन माता भी और जापान माता भी और अमेरिका माता भी. और इस तरह की बाकी सब माता. जब तक ये सब माता विदा न होंगी, 'वसुधैव कुटुम्बकम'-'विश्व बंधुत्व' ये शब्द बस शब्द ही रहेंगे.
ये माता बीमारियाँ हैं. आपको शायद ध्यान हो, हमारे यहाँ तो चेचक की बीमारी को भी माता समझा जाता था. इस भारत माता को बीमारी पता नहीं कब समझेंगे?
दीवारें. हमारे घर की दीवारें ही तो हैं, जो मुझ में और आप में एक गैप बनाये रखती हैं. वरना फर्क क्या है, मुझ में और आप में? ये घर, मोहल्ला, प्रदेश, देश सब दीवारें हैं. सब दीवारें ध्वस्त होनी चाहियें. धरती माता की जय हो जाएगी. कल हमारा यह कुटुम्ब और ग्रहों-नक्षत्रों तक फ़ैल सकता है. उनकी भी जय.
लेकिन हम तो यही सोच छोड़ के राज़ी नहीं कि कोई हिन्दू-भूमि है और कोई पाकिस्तान है. जैसे धरती माता ने रजिस्ट्री कर के दे रखी हो अलग-अलग. संघ की शाखा में रोज़ प्रार्थना गाई जाती है, जिसमें एक लाइन हैं, "त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्." हे हिन्दू-भूमि तूने मेरे सुख में वृद्धि की है. और उन्होंने तो अपने मुल्क का नाम ही रख दिया पाकिस्तान, जैसे बाकी सब नापाक-स्तान हों.
शिट मैन, कुछ तो अक्ल लगाओ. या दिमाग में गोबर मतलब शिट ही भरी है?
गोबर गोबर ही होता है, चाहे गाय का हो. उपयोग हो सकते हैं गोबर के भी. उपले बनते हैं, रसोई में ईंधन की तरह प्रयोग होते हैं. लेकिन दिमाग में भरा होने का कोई उपयोग हो, यह मैंने आज तक पढ़ा-सुना नहीं है.
की मैं कोई झूट बोल्या?
की मैं कोई कुफर तोल्या?
ऊं..आहूँ ....आहूँ ....आहूँ !
ऊं..आहूँ ....आहूँ ....आहूँ !
नमन.....तुषार कॉस्मिक
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