यह जनतंत्र नहीं, धनतंत्र है

मोदी जी ने भयंकर आर्थिक ग़लतियाँ की हैं.......अभी तो आर्थिक मंदी चल रही है. जॉब्स जा रही हैं...व्यापारी दुखी हैं....मोदी को नहीं पता कि करना क्या है.

अर्थ-व्यवस्था में सब चीज़ें जुड़ी होती हैं. 
जैसे कोई गाड़ी...एक पुर्ज़ा छेड़ोगे तो उसका असर सारी गाड़ी की परफॉरमेंस पर पड़ेगा. मतलब आपने ब्रेक खराब कर दी....लेकिन उससे सिर्फ ब्रेक खराब नहीं होती, गाड़ी तो पूरी ही ठुकेगी. टुकड़े-टुकड़े जुडी कोई चीज़ हो, एक टुकड़ा छेड़ो, असर उस सारी चीज़ पर पड़ेगा. सारा कुछ छिड़ जायेगा.

मिसाल के लिए, अगर व्यापारी को मिलने वाले पैसे पर ब्याज बढ़ायेंगे तो वो उधार नहीं ले पायेगा.....उधार नहीं ले पायेगा तो व्यापार फैला नहीं पायेगा...और फिर नौकरियों से लोग निकाल देगा.

इनको लगता है कि टैक्स ज्यादा आ जाये तो ये लोग तरह-तरह की स्कीम चला कर लोगों का फायदा करेंगे और फिर-फिर उस जनता का वोट लेंगे जो बिलकुल न के बराबर आर्थिक योग-दान करती है मुल्क की इकॉनमी में. रोबिन हुड मेथड. हिडन कम्युनिज्म. लेकिन इनको वो भी करना  भी नहीं आ रहा. जो जनसंख्या सिर्फ बच्चे पैदा करती है, उसे दिए जाओ सुविधा.....बस !

ये जो गाय-गंगा-हिन्दू राष्ट्र यह सब संघ का मूल-मन्त्र है.

इनकी शाखाओं में यह सब बात चलती ही है.
पोंगा-पंथी.

संघ के पास कोई वैज्ञानिक वैचारिक धारणा नही है. 
आज पहुँच ज़रूर गए राजनीति के शीर्ष पर...लेकिन टिकेंगे...ऐसा कम लगता है.

अब तो लोग कांग्रेस को भी याद करने लगे...वो चोर होंगे......लेकिन फिर भी लोग उनके समय के मुकाबले 
आज ज्यादा दुखी हैं. ठाकरे परिवार.......यशवंत सिन्हा....सुब्रमण्यम  स्वामी.....अरुण शौरी......और वो कौन बड़ा वकील है? .......सब मोदी पर सवाल उठा रहे हैं.

हाँ....जेठमलानी. 
पता नहीं कैसे वो इत्ता बड़ा वकील माना जाता है?

खैर! 
भारत को ज़रूरत है राजनीतिक, सामाजिक नेतृत्व की, लेकिन कोई सिस्टम ही नहीं है कि ढंग के विचार रखने वाले लोग आगे आ सकें.

मुद्दा यह नहीं कि आप घटिया में से कम  घटिया लोग चुन लेंगे...मुद्दा  यह है कि वैचारिक लोग आगे कैसे आयेंगे?


जब तक बिन पैसे के लोग न आ पायेंगे....तब तक नये भी पुराने जैसे ही होंगे.


भाजपा ने लगभग सारे प्रत्याशी बदल दिए MCD में.....वो जीत भी गए...हुआ क्या?

घंटा!

प्रत्याशी...या दल बदलने से कुछ नहीं होगा. 
सिस्टम बदलने होंगे. जब तक बिन पैसे के राजनीति का सिस्टम नहीं आता...यह जनतंत्र नहीं, धनतंत्र रहेगा. इसमें कॉर्पोरेट मनी का बोलबाला रहेगा.

कांग्रेस सीधा खा रही थी....चूँकि चुनाव में फिर से पैसा फेंकना होता था...मोदी घुमा के पैसा खींच रहे हैं....उनको पता है सीधा खींचेंगे तो पकड़े जायेंगे सो वो पूंजी-पतियों को फायदा दे रहे हैं....बड़े वाले पूंजीपतियों को....चुनाव में फिर से इनसे पैसा लेंगे और बेड़ा पार.

इसे जनतंत्र कहते हैं?
जो जीत जाता है, बस खुद को राजा ही समझता है.
यह जनतंत्र का बहुत ही विकृत रूप है.
इसे जनतंत्र कहना भी ठीक नहीं.
यह धनतंत्र है.

सादर नमन.....तुषार कॉस्मिक

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