"जब इस देश में सारे फैसले कोर्ट को ही करने है-
जैसे के रोहिंग्या मुसलमान हिंदुस्तान में रहेंगे या नहीं रहेंगे,
कश्मीर में सेना पैलेट गन चलाएगी या कौनसा गन चलाएगी,
दिवाली पर पटाखे चलाएंगे या नहीं चलाएंगे,
मूर्ति विसर्जन होगा कि नहीं होगा,
दही हांडी की ऊंचाई कितनी होगी,
राम मंदिर बनेगा या नहीं बनेगा
तो फिर यह वोट डाल कर सरकार बनाने की क्या जरूरत है कोर्ट से ही पूछ लिया करो -
कि प्रधानमंत्री भी कौन बनाना है...?" Ambrish Shrivastava जी ने लिखा है.
मैंने जवाब दिया है, "सरकार की शक्ति और कम होनी चाहिए......कोर्ट, सीबीआई, इलेक्शन कमीशन जैसी ही स्वतंत्र संस्थाएं होनी चाहिए...जनतंत्र का यही अर्थ है....वरना यह पूरी तरह से डिक्टेटरशिप हो जाएगी....और प्रधान-मंत्री कौन तो नहीं लेकिन कैसे बने इस पर निश्चित ही कोर्ट को संज्ञान लेना चाहिए....यह जिस तरह से 'पैसा फेंक तमाशा देख' चलता है चुनाव में, यह तो लोकतंत्र नहीं लोक के खिलाफ षड्यंत्र है..."
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