Friday 22 January 2016

इस्लाम- संघ- भारत- दुनिया

मुझे आरएसएस मुस्लिम मुद्दे पर सही लगने लगा है

मैं जैसे-जैसे समझ रहा हूँ ..इस्लाम दुनिया को अगले विश्व युद्ध की और धकेल रहा है
तौबा!

यहाँ भारत का बुद्धिजीवी अभी भी नहीं समझता
और मुझे लगता है कि गांधी भी गलत थे...इस मुद्दे पर
और सावरकर सही थे, मुस्लिम मुद्ददे पर

संघी मुस्लिम के बारे में जो कहते हैं, आज सारी दुनिया लगभग वो ही कह रही है
जबकि यहाँ संघ को गाली पड़ती है
आज लगता है कि गोडसे सही था
गांधी का ईश्वर अल्लाह तेरो नाम गाना....बकवास!
उन्हें पता ही नहीं था कि मुसलमान होना क्या है.

इस्लाम कोई पूजा पद्धति मात्र नहीं है.
जैसा संघी आज भी कहते हैं कि पूजा पद्धति कोई भी हो, लेकिन निष्ठा भारतीय मूल्यों और भारतीय पूर्वजों पर हो
बकवास!
वो भी ठीक ठीक नहीं समझते
यह हो ही नहीं सकता

इस्लाम सोशल आर्डर है
इस्लाम राजनीतिक आर्डर है
और पूजा पद्धति तो है ही

इस्लाम कभी किसी मुल्क का कायदा कानून नहीं मान सकता
उसके कायदे कानून इस्लाम में ही अंतर्निहित हैं
नहीं...संघ मुस्लिम मुद्दे पर बहुत सही है......बहुत.
संघ और सौ जगह गलत है ...इस मुद्दे पर नहीं

मैं कह रहा था कि इस्लाम पूरा आर्डर है....पूजा के लिए, नमाज़, रोज़े, ईद, आदि

लेकिन यह सामजिक ऑर्डर भी है.....जैसे ‘हलाला’...जिसमें तलाकशुदा औरत तब तक वापिस अपने पति के पास नहीं आ सकती, जब तक और जगह शादी न कर ले और तलाक न ले ले

तीन बार का  मौखिक  तलाक, जिसके खिलाफ भारत की मुस्लिम औरतों ने मोदी को लिखित में ज्ञापन दिया है.

बेटी को बेटे से विरासत आधी मिलती है.

औरत की गवाही आदमी से आधी मानी जाती है.

अगर वो आधुनिक कपड़े पहने तो मुस्लिम आदमी उससे बलात्कार कर सकते हैं...सरे आम..'तहरुष' कहते हैं इसे. अभी अभी वेस्ट के किसी मुल्क में मुस्लिम शरणार्थियों ने किया यह, वहां की औरतों के साथ.

पति मर जाए तो औरत को तकरीबन चार महीने बारह साल से ज़्यादा के पुरुष के सम्पर्क में नहीं आने दिया जाता और उसे एक ही कमरे में रह कर मातम मनाना होता है...  “इद्दत” कहते हैं इसे. (अगर कुछ  गलत हो मेरी समझ  इस बारे में तो सही करें, कृपया.) 

और भी बहुत कुछ.

इसके अलावा इस्लाम पोलिटिकल डायमेंशन भी लिए है
गजवा-ए-हिन्द करके भी एक कांसेप्ट है..जिसका मतलब है कि मुसलमानों ने फिर से हिन्द पर अपना कब्जा करना ही है....हर हाल में

फिर इस्लाम का democracy में कोई यकीन नहीं है
जहाँ ज़रा से ज़्यादा होते हैं, वहां शरिया मांगने लगते हैं
यानि कि मुल्क का कायदा कानून गया भाड़ में
संसद भाड़ झोंकेगी
सब पहले से ही तय है
मोहम्मद साहेब कर गए थे
यूरोप की ऐसी-तैसी कर रखी है
वहां ऐसे इलाके हैं, जहाँ उनकी पुलिस को घुसने तक नहीं दिया जाता

जब कुरान यह दावा करे कि आसमानी किताब पर ईमान न लाने वाले और बहुदेववादी लोग जहन्नुम की आग में जलेंगे चूँकि ये सबसे ज़्यादा घटिया प्राणी हैं और जो लोग ईमान लाए और वो प्राणियों में सबसे अच्छे है तो कोई मुझे बताये कि मुसलमान कैसे यह दावा कर सकते हैं कि वो हिन्दुओं के साथ या किसी भी और धर्म को मानने वालों के साथ मिलजुल कर रह सकते हैं? नहीं रह सकते. 

सो मैं उन लोगों के साथ हूँ जो यह कहते हैं कि मुसलमानों को इस्लामी मुल्कों में ही रहना चाहिए. यहाँ भारत में जब कोई कहता है कि मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए तो हंगामा हो जाता है. जब डोनाल्ड ट्रम्प अमरीका में कहते हैं कि मुस्लिम वापिस जाने चाहियें तो लोग गालियाँ देते हैं.

लेकिन जब मुस्लिमों को कुरान ही कहती है कि नॉन- मुस्लिम सबसे घटिया लोग हैं तो फिर काहे ज़िद करते हैं ऐसे घटिया लोगों के संग रहने की भाई? 

जाएँ पाकिस्तान या सीरिया या अरब या किसी भी इस्लामी मुल्क में. क्या गलत है? आपको अपने मज़हब को मानने वाले लोगों संग रहने को ही तो कहा जा रहा है. 

"Indeed, they who disbelieved among the People of the Scripture and the polytheists will be in the fire of Hell, abiding eternally therein. Those are the worst of creatures."-----AL-BAYYINAH (THE CLEAR PROOF) 98:6

"Indeed, they who have believed and done righteous deeds - those are the best of creatures."-----AL-BAYYINAH (THE CLEAR PROOF) 98:7

एक मुस्लिम लड़का मुंबई की किसी व्यस्त सडक किनारे, फुटपाथ पर आँख पर पट्टी बाँध, दोनों हाथ फैलाए खड़ा हो गया, साथ में तख्ती रखे,”मैं मुस्लिम हूँ, क्या आप मुझे गले लगाओगे?”

सैकड़ों या शायद हज़ारों राह चलते लोगों ने उसे गले लगाया. विडियो बनता रहा.YouTube पर लाखों ने देखा, सराहा.टीवी पर उसका इंटरव्यू मैंने भी देखा. वैरी गुड. 

पर भैया जी, काश कि आपने और आपको गले लगाने वालों ने कुरान में यह पढ़ा होता कि सिवा इस्लाम को मानने वाले जहन्नुम के हक़दार हैं और पृथ्वी के सबसे घटिया प्राणी हैं तो आप खुद ही किसी को गले नहीं लगाते और न ही कोई और आपको, सिवा मुसलमानों के.

इन ट्रिक-बाज़ियों से कुछ नहीं होगा भाईजान. 
अगर कर सकते हो तो रोको कि इंसान न बने हिन्दू, न मुसलमान

पीछे एक मित्र ने लिखा था कि जैसे कारों के काले शीशे खतरनाक साबित हो सकते हैं, वैसे ही बुर्के खतरनाक साबित हो सकते हैं. पर्दे के पीछे कौन है, आपको पता नहीं लगता.

आप भारत में कानून बना कर देखो कि बुरका नहीं पहना जाएगा. पहले तो सारा फेसबुक भर जाएगा इसके पक्ष और विपक्ष में. फिर लोग सड़कों पर उतर आयेंगे. मज़हब पर हमला. फिर मुल्क असहिष्णु हो जाएगा. 

लेकिन हर जगह इस तरह के बकवास तर्कों को जगह नहीं दी जा सकती. जब आपको सेकुलरिज्म का फायदा लेना है तो आपको सांझे हित के पक्ष में कायदे क़ानून भी मानने होंगे. स्विट्ज़रलैंड में बुरका पहनने पर भारी जुर्माना लगाया गया है. 

बहुत असहिष्णुता है यह तो. नहीं?

जब इस्लाम शरीर की नुमाइश की इजाज़त नहीं देता तो फिर एक से एक सुंदर बुर्के क्यों बनाये जाते हैं? क्या यह इस बात का सबूत नहीं कि इंसान खुद को सजाना संवरना चाहता है. दिखाना चाहता है?

बहुत चांस हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका का प्राइम मिनिस्टर बन जाए
और वजह है उसका इस्लाम का विरोध

यहाँ भारत में अभी मुस्लिम को लोग मात्र भारतीय ज़रिये से देखते हैं

ओबामा को तो बहुत  पसंद नहीं कर रहे लोग वहां
कहते हैं मुस्लिम-परस्त है
ट्रम्प ने साफ़ कहा है कि अगर वो जीता तो मुस्लिम शरणार्थियों को मुल्क से बाहर कर देगा

इस्लाम जहाँ पैर जमाता है, वहां कि सारी व्यवस्था गड़बड़ा देता है
बाकी धर्मों के लोगों का जीवन दोयम दर्ज़े कर देता है
पाकिस्तान में हिन्दुओं की हालत देखी जा सकती है.
कश्मीर में हिन्दुओं के साथ यही हुआ. आज मुस्लिम चाहे लाख इनकार करते रहें कि वहां कुछ नहीं हुआ ऐसा, लेकिन आप अनुपम खेर से पूछो, कश्मीरी विस्थापितों से पूछो, बात समझ आ जायेगी.

गुरु तेग बहादुर को किसने शहीद किया था?
गुरु गोबिंद किस के खिलाफ लड़ रहे थे ?
खालसा क्यूँ बनाया?
गुरु गोबिंद के बच्चों को किसने शहीद किया था?
गुरु गोबिंद खुद कैसे मारे गए थे?
गुरु गोबिंद सर्व-वंश दानी तो कहते हो लेकिन वो वंश का दान किसके खिलाफ़  करना पड़ा था?

पीछे मुस्लिम मित्रों ने बड़ा विरोध किया जब औरंगज़ेब रोड का नाम अब्दुल कलाम रोड किया गया. औरंगज़ेब को महान बताया गया. मैं हैरान इस बात पर हूँ कि आज तक किसी मुस्लिम ने सिक्ख इतिहास पर एतराज़ नहीं जताया. सिक्ख तो अपनी अरदास में ही अत्याचार का ज़िक्र करते हैं. सिक्खों को मुस्लिम बनाने के लिए चर्खियों पर चढ़ा कर मारा गया. आरों से चिरवा दिया गया लेकिन सिंहों ने धर्म नहीं हारा. अब औरंगज़ेब इतना ही महान था तो निश्चित ही सिक्ख उसे दिन रात बदनाम करते हैं. सिक्ख कौम औरंगज़ेब की महानता को स्वीकार क्यूँ नहीं कर रही? यह मज़हबी असहिष्णुता का जिंदा नमूना है. कैसे सह रहे हैं मुस्लिम मित्र यह सब? हैरानी की बात है! नहीं?

पढ़ा था कहीं कि ये जो सिक्खों के बारह बज गए कह कर उनका मज़ाक उड़ाते हैं न, वो मज़ाक की नहीं उन पर गर्व करने की बात है. मुस्लिम आक्रान्ता यहाँ भारत की बेटियों को बंदी बना कर, वहां अपने मुल्कों में टके-टके बेचते थे. उनकी बोलियाँ लगाते थे. लेकिन सिक्ख उन पर हमला कर के, उन बेटियों को छुड़वा के, सही सलामत उनके घरों तक वापिस पहुंचाते थे. सिक्ख गुरिल्ला युद्ध करते थे. संख्या में कम होने की वजह से. रात को अटैक करते थे. आधी रात को. वहां से शुरू हुई यह बात कि सरदारों के बारह बज गए.

और आपको लग सकता है कि मुस्लिम ऐसा कैसे कर सकते हैं? तो देख लीजिये, आज क्या कर रहे हैं ISIS वाले, यज़ीदी औरतों के साथ. 

'बोको हराम' ने क्या किया लड़कियों के साथ? उठा के ले गए न स्कूल से. पढ़ने वाली बच्चियों को. पूरी दुनिया चिल्लाती रही, “ब्रिंग बेक आवर गर्ल्स”. कुछ नहीं हुआ. 

सदियाँ बीत गई, सिर्फ शिकार बदले हैं. शिकारी वही है. 

अब उड़ाओ मज़ाक सिक्खों का! उड़ा सकते हो?

आर एस एस शायद खड़ा ही न होता गर मुस्लिम का थ्रेट न होता तो.

स्थितियां बदली नहीं हैं
यह जो मालदा और कमलेश तिवारी का ड्रामा है, यह मुस्लिम अपनी ताकत दिखा रहे हैं

इन्होने कब बोको हराम के खिलाफ बोला, या तालिबान के, या अलकायदा के, या ISIS के?
इनको कमलेश तिवारी मिला बस.
और जो आज़म खान ने कहा उसका क्या?

एक कम्बल में लिपटा व्यक्ति चला जा रहा था...अपनी मस्ती में. इर्द गिर्द से जैसे कोई लगाव ही न हो. कुछ छिछोरे लड़के उसे घेर मजाक बनाने लगे. पल में खेल बदल गया. किसी को कुछ समझ न आया. सब लड़के आनन फानन पिट गए..किसी का मुंह टूटा , किसी की नाक. 

वो कम्बल वाला martial आर्ट का गुरु था.
फिर ठाणे हाजिरी लगी.

जानते हैं? थानेदार ने अलग से उन लड़कों को पीटा.

जीवन का एक साधारण नियम है जो अक्सर लोग मिस कर जाते हैं. 
देखना यह होता है कि पहली गलती किसकी है. 

"ईंट मारने वालों को पत्थरों की शिकायत नहीं करनी चाहिए चिनॉय सेठ."

होना तो यह चाहिए कि कमलेश तिवारी और आज़म खान, दोनों जेल  में होते और आज़म खान पर बड़ी धारा लगनी चाहिए और उसे बड़ी सज़ा मिलनी चाहिए चूँकि भारत का माहौल खराब करने की शुरुआत उसने की. 

मुस्लिम क्यूँ नहीं खड़े हुए आज़म खान के खिलाफ जब उसने आरएसएस के लोगों को होमोसेक्सुअल कहा था? उनको पता नहीं कि भारत में ईशनिंदा जैसा कोई कानून नहीं. फिर किसलिए मालदा हुआ? धमका रहे हैं हिन्दू को. जानते नहीं कि अंजाम क्या होगा. एक और गुजरात की तरफ बढ़ रहे हैं. डोले फड़फडा रहे हैं. पंगे ले रहे हैं और जानते हैं कि आरएसएस ही है जो जवाब दे सकती है. भगवा आतंकवाद! हुंह! पूरी दुनिया में मुस्लिम ही हैं जो कहीं भी बम्ब बाँध कर उड़ते फिर रहे है, उड़ाते फिर रहे हैं, मरते-मराते फिर रहे हैं और बात करते हैं भगवा आतंकवाद की.

खैर, जो हो रहा है, वो मात्र संघ को नीचा दिखाने के लिए है.
भारतीय मुसलमान को पता है कि हिन्दू में जान नहीं है, वो उसका मुकाबला नहीं कर सकते. सिर्फ संघ है जो इनको जुटाए है, वो भी कुछ हद तक ही, सो संघ का विरोध कर रहे हैं

वो विरोध वैसा नहीं जैसा मैं करता हूँ, मेरा विरोध संघ के साथ और मुद्दों पर है, वो मेरे आर्टिकल “मैंने संघ क्यूँ छोड़ा’ में मैंने लिखा ही है.

यह बस ताकत का खेल है.
और इस्लाम पूरी दुनिया के लिए खतरा है.
सबको सातवीं सदी में धकेलने लगा है

आदमी लोगों को इसलिए पसंद है कि औरतों की लगाम रहती है आदमियों के हाथ में, सो बल्ले बल्ले.

इस्लाम में तो आप छोड़ भी नहीं सकते इस्लाम....वो क़त्ल कर देते हैं, मज़हब छोड़ने वाले को.

एक औरत है अयान हिरसी अली. सोमाली है. .
लेखक है. इस्लाम के खतरे से आगाह करा रही है दुनिया को
इसने एक कहानी लिखी थी, उस पर फिल्म बनी.  "Submission". लेकिन फिल्म बनाने वाले का कत्ल कर दिया गया. और जिस चाकू से किया गया उसके साथ मेसेज था कि अगला नम्बर इसका है. अब यह अमेरिका में है. इस्लामी औरतों के हक़ के लिए लडती है. कॉलेज, यूनिवर्सिटी आदि में इसके लेक्चर होते हैं.

एक और औरत है ब्रिजिट गेब्रियल.
यह लेबनान से भाग कर अमरीका में बसी है
यह इसाई है, बचपने में इसे सालों ज़मीन की नीचे छुप कर  गुज़ारने पड़े, मुसलमानों के डर से.
किसी तरह इस्रायल से अमरीका पहुँची.
आज वर्कशॉप लेती है, लेखक है और स्पीकर भी.
इस्लाम के खतरों के खिलाफ अमरीका को, दुनिया को आगाह करती है.

“मुस्लिम कभी भी अमेरिका के किसी शहर को एटम बम से उड़ा सकते हैं, तब जा कर अमेरिका की नींद खुलेगी और इस्लाम का असल चेहरा सामने दिखेगा. 
वो पूरी दुनिया में हर धर्म के लोगों को कत्ल कर रहे हैं. उनकी नज़र में ईसाई, यहूदी, हिन्दू, बौध सब दुश्मन हैं और कत्ल करने के काबिल हैं. वाज़िबुल-कत्ल. यह जंग है. इस्लाम और बाकी दुनिया की.” 

ये मेरे शब्द नहीं हैं. 
ये किसी संघी के शब्द भी नहीं है. 
ये ब्रिजित गेब्रियल के शब्द हैं.

तारक फतह पाकिस्तान में पैदा हुए एक अन्तर-राष्ट्रीय लेखक है. मुसलमान हैं. इस वक्त कनाडा में रहते हैं और भारत में बसना चाहते हैं. लगातार इस्लाम के बारे मं लिखते बोलते हैं. आप इनको सुनो, लगेगा कोई संघी बोल रहा है. बिलकुल वो ही सब कुछ. 

“ये बड़े भाई का कुरता और छोटे भाई का पायजामा पहनने वाले, दाढ़ी बढ़ा के, मूंछ कटवा के अजीब सी शक्ल बनाये रखने वाले, ये कहाँ से आ गए? कहाँ के मुसलमान हैं ये? हिन्दुस्तानी फिल्म इंडस्ट्री में देखो, एक से एक सुन्दर मुस्लिम लोग हैं, पता नहीं इन लोगों का सुन्दरता का क्या पैमाना है?”

उपर-लिखित शब्द मेरे नहीं हैं. तारेक फ़तेह साहेब के हैं .

और उन्ही का  कहना है कि ज़ाकिर नायक जैसी शक्ल वाले बकरे को भी वो बकरीद के लिए न खरीदें. फैंकता है साला. पता नहीं उसे बीस हज़ार आदमी सुनने कैसे पहुँच जाते हैं?

तारेक मुस्लिम हैं. जाकिर भी. कौन सही है? फैसला आप ही करें, मुस्लिम मित्रगण.

एक कॉलेज के लड़के ने पूछा जाकिर नायक से कि डार्विन की ‘थ्योरी ऑफ़ एवोलुशन’ सही है या गलत. जाकिर साहेब कहते हैं कि यह मात्र थ्योरी है, सत्य नहीं है. थ्योरी का मतलब नहीं समझते? मात्र थ्योरी. सत्य से कोई लेना देना नहीं. इसलिए हम इसे नहीं मानते. हम मानते हैं ‘थ्योरी ऑफ़ क्रिएशन’, जैसी इस्लाम में बताई गयी हैं. 

वाह! 'थ्योरी ऑफ़ एवोलुशन' गलत है चूँकि यह मात्र एक थ्योरी है लेकिन 'थ्योरी ऑफ़ क्रिएशन' सही है चूँकि इस्लाम कहता है, वाह! जाकिर साहेब वाह! भूल ही गए कि थ्योरी सिर्फ थ्योरी होती है.

श्रीमान ज़ाकिर नायक  से किसी ने पूछा कि ऐसा क्यों है कि मुस्लिम बहुल देशों में मंदिर, गुरुद्वारा या चर्च आदि नहीं बनाने दिया जाता जबकि बहुत से अन्य मुल्कों में मस्जिद बनाई जा चुकी जहाँ मुस्लिम अल्प संख्यक हैं......

जवाब सुनिए, मज़ा आएगा

साहिब फरमाते हैं," यदि कोई टीचर दो और दो छह बताये या कोई टीचर दो और दो तीन बताये और फिर यदि कोई टीचर दो और दो चार बताये तो आप अपने बच्चे के लिए कौन सा टीचर रखेंगे...ज़ाहिर है दो और दो चार वाला, बाकियों को तो आप आस-पास भी फटकने न देंगे.......ठीक वही है दीन के मामले में...सिर्फ मुस्लिम ही है सही दीन ..दो और दो चार जैसा बताने वाला.....बाकी सब बेकार हैं "

अब भये, यह जो आप कह रहे हैं न यही सब दीन, धर्म, मज़हब वाले बोलते हैं....कभी सुन के देखो, सब के पास अपने अपने तर्क हैं, जो दूसरों को कुतर्क दीखते हैं...............सब को यही लगता है कि वो ही हैं दो और दो चार वाले, बाकी सब दो और दो तीन या फिर छह वाले हैं....

लगभग हरेक को अपना धर्म समन्दर लगता है दूसरे का धर्म कोई कूआँ, और वो भी सूखा हुआ

हम धरम हैं,
तुम भरम हो


एक विडियो ध्यान आ गया, जिसे लेकर आज कल बहुत बवाल कट रहा है. किसी मुस्लिम महिला प्रोफेसर ने यह कहा है कि मुस्लिम औरतों को अपने दुश्मनों की औरतों को बंदी बना कर उनसे सेक्स करने की इजाज़त है.

मुस्लिम बड़ा विरोध कर रहे हैं इस प्रोफेसर के कथन का.

काश कि विरोध करने वालों ने कुरान पढ़ी होती.

Also (forbidden are) women already married, except those (captives and slaves) whom your right hands possess. Thus has Allah ordained for you. All others are lawful, provided you seek (them in marriage) with Mahr (bridal money given by the husband to his wife at the time of marriage) from your property, desiring chastity, not committing illegal sexual intercourse, so with those of whom you have enjoyed sexual relations, give them their Mahr as prescribed; but if after a Mahr is prescribed, you agree mutually (to give more), there
is no sin on you. Surely, Allah is Ever All-Knowing, All-Wise.

4.24/ Noble Quran



लिंक दिया है, कुरान इजाज़त देता है, दासियों के साथ सेक्स करने की मुसलमान को. और वो लेडी प्रोफेसर सही कह रही है, उसे कोसने से क्या होगा, वो तो वही बता रही है, जैसा इस्लाम में है

तसलीमा नसरीन मुस्लिम होते हुए यदि कुछ लिख दे अपने मज़हब की मान्यताओं के खिलाफ तो उसे गाली दी जाती है.

सलमान रुश्दी की किताब सैटेनिक वर्सेज बैन कर दी जाती है. उस पर मौत का फरमान जारी कर दिया जाता है. क्यूँ भाई, दुनिया को पढने दो, समझने दो. कैसी गुंडागर्दी है? डरते हो कि कहीं पोल न खुल जाए. 

बंगला देश के ब्लोगरों को सरे-आम काट दिया जाता है. कैसी आज़ादी है? आपको आज़ादी है लेकिन कैसे वो हमारा मज़हब तय करेगा. वाह!

और उस  तुर्रा यह   कि  मानो  कि इस्लाम शांति का मज़हब है, दीन है, धर्म है.

जावेद अख्तर कहते हैं कि वो किसी धर्म को नहीं मानते. आगे कहते हैं कि हिन्दू लिबरल है, उसे कतई मुसलमानों जैसा नहीं होना चाहिए. वो लोग तो आलोचना सुनने तक को तैयार नहीं हैं. गर्दन काट देते हैं. भारत एक ऐसी जगह है, जहाँ हर कोई खुल कर अपनी बात कह सकता है. आदि आदि आदि. 

मैं जावेद साहेब की सब बात से सहमत हूँ. मैं सहमत हूँ कि हिन्दुओं को मुस्लिम जैसा नहीं होना चाहिए. लेकिन मुस्लिमों को भी ऐसा नहीं होना चाहिए, जैसे वो हैं, काश कि यह भी कहने की हिम्मत जुटा पाते जावेद साहेब!

मुसलमान बहुत दुखी हैं कि बाबरी मस्ज़िद तोड़ दी गई. और ओवेसी बंधु अकसर एक्शन के रिएक्शन की बात करते हैं. क्या कोई मुसलमान यह देखने को राज़ी है कि कितने ही मंदिर तोड़-तोड़ कर मस्जिदें बनाई गईं.

क़ुतुब मीनार असल में क्या है?


सपरिवार क़ुतुब मीनार जाना हुआ. बहुत पहले पी. एन. ओक. साहेब की किताब पढ़ी थी, "भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें", जिसमें वो ज़िक्र करते हैं कि बहुत सी ऐतिहासिक इमारतें जो मुगलों की बनाई कही जाती हैं, वो असल में हिन्दू राजाओं ने बनवाई थी. इन्हीं इमारतों में वो क़ुतुब मीनार का ज़िक्र भी करते हैं. मुझे उनके दिए कोई भी तर्क याद नहीं. लेकिन आज जब वहां जाना हुआ तो उनकी बहुत याद आई.


"लौह स्तम्भ" के प्रांगण में घुसने से पहले ही जो 'परिचय पत्थर' पर लिखा है उसी ने दिमाग में उथल-पुथल मचा दी.

लिखा है, “कुवुतल इस्लाम ( इस्लाम की शक्ति) नाम से प्रसिद्ध यह इमारत भारत में प्राचीनतम मस्ज़िद है. इसके दालान में प्रयुक्त खम्बे और दूसरी सामग्री सताईस हिन्दू और जैन मंदिर ध्वस्त करके प्राप्त की गई. मुख्य इमारत के सामने पांच मेहराबों की पंक्ति बाद में लगाई गई. ताकि इसमें इस्लामिक वास्तुकला की विशेषता दृष्टिगोचर हो. इन मेहराबों पर अंकित धार्मिक लेख अरबी ढंग का अलंकरण है पर इनके गठन में हिन्दू शिल्प की छाप स्पष्ट है.”

यानि कि इतिहासकार मानते हैं कि मंदिर ध्वस्त करके मस्ज़िद बनाई गई. सबसे पहली मस्ज़िद ही भारत में मंदिर ध्वस्त करके बनाई गई, यह थी इस्लाम की शक्ति यानि 'कुवुतल इस्लाम'.

और हिन्दू शिल्प को अरबी वास्तुकला दर्शाने की बदमाशी की गई, यह थी इस्लाम की शक्ति यानि 'कुवुतल इस्लाम'.

और वो मस्ज़िद कहाँ से हो गई, उसके बीचों-बीच तो दो कब्रें हैं, कौन सी मस्ज़िद में ऐसा होता है? और अगर वो मस्ज़िद थी तो उसके बीचो- बीच "लौह स्तम्भ" का क्या काम? इस्लाम की शक्ति यानि 'कुवुतल इस्लाम' दिखाने को क्या?

और कौन सी मस्ज़िद ऐसे खम्बों पर बनाई जाती है जिन पर मंदिर की घंटियाँ उकेरी गई हों? इस्लाम की शक्ति यानि 'कुवुतल इस्लाम' दिखाने को क्या?

जब कभी आपका जाना हो वहां, तो सेल्फी लेने और फोटो निकालने से थोड़ा ज़्यादा दिमाग लगाइयेगा. ध्यान दीजियेगा, वहां क़ुतुब मीनार के इर्द- गिर्द जो प्रांगण खड़ा है, वो क़ुतुब मीनार से सदियों पुराना दिख रहा है, उसकी शिल्प कला बिलकुल भिन्न है. और 'लौह स्तम्भ' पर कोई भारतीय लिपि लिखी है, शायद ब्राह्मी और 'लौह स्तम्भ' के इर्द-गिर्द प्रांगण है वो भी क़ुतुब मीनार के समय से बहुत पुराना लगता है. और ध्यान से देखना, अर्ध- निर्मित या अर्ध- ध्वस्त मेहराबों के ऊपर-ऊपर जो पत्थर लगे हैं, सामने की तरफ, जिन पर अरबी/ उर्दू की इबारत लिखी हैं, वो साफ़ ऐसा प्रतीत होते हैं कि बाद में लगे हैं और उनके पीछे के पत्थर कहीं पुराने हैं. और शायद यही इतिहासकार ऊपर कह रहे हैं.

अगर कभी अजमेर जाएँ तो देखें , वहां "अढाई दिन का झोंपड़ा" नाम से एक ऐसी ही आधी अधूरी सी इमारत है. यह एक मंदिर था जिसे तोड़ कर अढाई दिन में मस्ज़िद जैसा रूप देने का प्रयास किया गया. जो न मंदिर रहा न मस्ज़िद. इसके प्रांगण में तो मंदिर के भग्न- अवशेष भी रखे हैं. और लिखा है वहां के परिचय पत्थर पर कि यह निर्माण मंदिर तोड़ कर किया गया.

क्यूँ ज़िक्र कर रहा हूँ "अढाई दिन का झोंपड़ा" का? वजह है. क़ुतुबमीनार के साथ खड़े लौह स्तम्भ के गिर्द निर्माण को देखिये और "अढाई दिन का झोंपड़ा" को भी. 


आपको Dejavu जैसा कुछ अहसास होगा. ऐसा लगेगा कि आप ने जो देखा है, वैसा ही कुछ आप फिर से देख रहे हैं. और इन निर्माण के पीछे की कहानी? वो तो इतिहासकार मान रहे हैं कि काफी कुछ एक जैसी है.

सवाल यह है कि लौह-स्तम्भ हिन्दू निर्माण, उसके इर्द गिर्द प्रांगण हिन्दू निर्माण, क़ुतुब मीनार के इर्द गिर्द का प्रांगण हिन्दू निर्माण तो फिर क़ुतुब मीनार कैसे इस्लामिक निर्माण हो सकता है? सोच के देखिये. मुझे यहीं P.N. Oak साहेब की ज़रूरत महसूस हो रही है. मुझे पूरी-पूरी शंका है कि क़ुतुब मीनार भी कहीं बहुत पहले भारतीय राजाओं ने बनवाया हो सकता है और बाद में इसे इस्लामिक दिखाने के लिए ऊपर से अरबी/ उर्दू लिखे पत्थर जड़ दिए गए. यहाँ ध्यान रहे, क़ुतुब के सामने खड़े बड़े-बड़े मेहराबों के साथ ऐसा ही किया गया, इतिहासकार मान चुके हैं कि ऐसा किया गया था और इंट्रोडक्टरी पत्थर पर लिख चुके हैं.

तो क्या किया जाए? मेरे ख्याल में विज्ञान की मदद ली जाए, P.N. Oak साहेब क्या कहते हैं, वो पढ़ा जाए. पत्थरों के कार्बन टेस्ट या फिर कोई भी टेस्ट जो उनकी उम्र बता सकें, वो किये जाएं, कुछ नया निकल सकता है. याद रखियेगा मेरी बात.

अगर हिन्दू मांग रहे हैं कोई दो-चार मस्जिदें कि यह हमारे राम, कृष्ण, शिव से जुड़ी हैं, तो दे क्यूँ नहीं दी सहर्ष मुसलमान ने? नहीं, इनको तो विरोध करना है. फिर कहते हैं कि गुजरात क्यूँ हुआ? वो तीन मस्जिद दे दोगे तो बड़ा कोई तोप चल जायेगी, इस्लाम खतरे में आ जाएगा? उल्टा इस्लाम की शान बढ़ती. हिन्दू मुस्लिम में प्रेम बढ़ता. हिन्दू खुद तुम्हें कितनी ही मस्ज़िद बना के अपने हाथ से देता. 


नहीं, मुसलमान को मिला ओवेसी जैसा कचरा. जो पन्द्रह मिनट में हिन्दूओं को खत्म करने की बात करता है.

कभी मुसलमानों ने थाणे जलाए, कि ओवेसी ने गलत कहा है? बस कमलेश तिवारी ने कुफ्र तौल दिया है.

"बाबरी गिरने पर खूब परेशान हैं मुसलमान
कभी बोलते तो जब तोडा गया था बामियान"

यहाँ भारत में पाकिस्तान के झंडे लहराए जाते हैं और ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ के नारे लगाये जाते हैं और उधर बलोच पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगा रहे हैं और पाकिस्तान से अलग होने की जद्दो-जहद कर रहे हैं.

जब यह सब देखते हैं और भारत को तो देखते हैं तो लगता है कि यहाँ गांधी और उसके पीछे की सब जमात...यानि नेहरु आदि...सब ना-समझ हैं  और  इस मामले में संघ सही था.
लेकिन संघ को मोदी जैसा निक्कमा बन्दा मिला है, अक्ल से खाली
हिन्दू का जो बम्पर वोट मिला है, उसे कुछ गंवा चुका है और गंवा देगा
इडियट है, उसे कुछ नहीं पता कि क्या करना है, क्या करना चाहिए
दुनिया घूम ट्रेनिंग लेता फिर रहा है

मात्र  मुस्लिम विरोध से बेरोजगारी तो दूर नहीं होगी
ग़रीबी तो कम नहीं होगी
वो सब पर काम करना होगा, जिनका हल तो  अभी तक तो मोदी के आस पास भी नहीं फटक रहा

लेकिन फिर भी भारतीय पटल पर संघ रहेगा ही
चूँकि इस्लाम है और उसके साथ जुड़े खतरे हैं 
खैर, मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूँ कि इस्लामिक खतरे कि नज़र से संघ सही है और केजरीवाल, रवीश कुमार  और अन्य सेक्युलर लोग धोखा खायंगे, खिलवायेंगे भारत को
जैसे गांधी ने खिलवाया.

लेकिन इसका मतलब कतई यह नहीं कि मैं कोई संघ या हिन्दू समर्थक हूँ. सब तथा-कथित धर्म बकवास हैं.   हर धर्म जेहनी हिंसा तो करता ही  है. जीते-जागते इंसान को ज़ोम्बी में बदल देता है. इस्लाम ज़ेहनी के साथ-साथ जिस्मानी हिंसा भी कर रहा है. अंततः इस दुनिया से हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई आदि सबको विदा होना चाहिए. तभी शांति होगी.

आपको इखलाक वाली घटना  पता होगी लेकिन जो मैं बताने वाला हूँ वो शायद न पता हो. 

अफगानिस्तान में २०१५ की शुरुआत में एक लड़की, फर्खंदा,  की किसी मुल्ला से कहा सुनी हो गई. मुल्ला ने खबर उड़ा दी कि लड़की ने कुरआन जलाया है. भीड़ इकट्ठा हो गई. पुलिस भी मौजूद थी. भीड़ ने उस लड़की को पीटना शुरू कर दिया. पुलिस ने उस लड़की को बचाने की कोशिश की. उसे एक छत पार कराने की कोशिश की गई. लेकिन भीड़ में से लोगों ने फर्खन्दा को नीचे खींच लिया. उसे बेतहाशा पीटा गया. फिर एक बड़ी कार के पहियों के नीचे उसे कुचला गया. फिर उसे काबुल नहर के किनारे पत्थर मारे गए और अंत में जला दिया गया.लड़की खत्म.

बाद में  अफगानिस्तान की सरकार ने माना कि फर्खन्दा ने कोई कुरआन नहीं जलाई थी. 

अब आप इस सारे वाकया को इखलाक वाले वाकया से मिला कर देखिये. कोई ख़ास फर्क नज़र नहीं आएगा. इखलाक के मामले में भीड़ शायद हिन्दू हो, इस मामले में मुसलमान. 

ईसाईयत ने पन्द्रह-सोलह साल की लडकी ‘जॉन ऑफ़ आर्क’ को जिंदा जला दिया था और बाद में उसे ही संत की उपाधि दे दी.

नतीजा मेरा यही है कि भीड़  बस भीड़ है. बिना दिमाग की. यदि आप हिन्दू, मुस्लिम आदि हैं तो आप एक पागल भीड़ के हिस्से से ज़्यादा कुछ भी नहीं.

जब तक दुनिया हिन्दू, मुस्लिम, इसाई आदि बनी रहेगी, एक अंधेरी गुफा में रहेगी, रोशनी से बहुत दूर.

आपको ऐसी घटनाएँ, एक नहीं अनेक मिलेंगी. पीछे भी और आगे भी, अगर दुनिया दीन, धर्म, से बाहर नहीं आती तो.

"BE ALARMED AGAINST MUSLIM ATROCITIES WORLD-WIDE"

Muslims better condemn Peshawar attack, better condemn ISIS's raping Yazidi girls, better condemn idiots challenging Indian Constitution and demanding death sentence for Kamlesh Tiwari, better condemn Azam Khan calling  RSS people gays and inciting a communal tension, better condemn Boko Haram, better condemn  killings of innocent people in California by random shooting of a Muslim couple, better condemn why almost every terrorist in the world is a Muslim. 

No, you will not. You are to condemn, why some Hindus are getting armed.

Why not? Everyone should be armed.

Why Guru Gobind Singh armed Sikhs?
Against Muslim atrocities.

Why RSS attached people getting armed?
Against Muslim atrocities.

Nothing wrong.

Instead everyone in the world should get alarmed and armed against Muslim atrocities.

People in America are alarmed, they are getting training through workshops against Muslims atrocities, when Indian will get alarmed in the same way, is a question.

You challenge  a Muslim and invoke history of Muslim invaders and they will ask back about Aryans attacks or Buddhist attacks by Hindus. Good logic.

May be Aryans attacked Adiwasees, may be Hindus attacked Buddhist but are Hindus supporting any kinda attacks on Buddhist now?

No, in India Tibbeti Buddhists  have found asylum, just visit Dharmshala in Himachal.

Have you visited Majnu ka Teela in Delhi? It is a small Tibbet. 
You will find Tibbeti market in Paschim Vihar, Delhi. 
You can find Buddhist temple anywhere in India.

Do Hindus support killing of adiwaees now?
No, I do not see any support from Hindus.
Have you seen any call from RSS that Buddhist be killed, adiwasi be killed?

That is the difference.

If people will not get alarmed & armed against Muslims, they will see Malda like incidents everywhere.

Islamic terrorism is a world-wide reality, everyone should be armed against them, everyone should be alarmed.

Though Sikhism or Hinduism or any "ism" is not gonna help humanity in the long run. All should evade.

Every religion is a poison.
But Islam is Potassium Cyanide.

Islam is the most aggressive, the most violent. 
Every Muslim is not a terrorist but almost every terrorist is a Muslim.

So it should be confronted anyhow.

But meanwhile everyone should invoke the light of rationality so that 
humanity may come outta dark ages of religions, so called holy-faiths.

Holy-shits, you know.

नमन/ कॉपी राईट/ तुषार कॉस्मिक

Tuesday 19 January 2016

"ओवेसी"

जब भी बड़े वाले से छोटे ओवेसी के हिन्दुओं को 15 मिनट में मारने के बोल बच्चन के बारे में पूछा गया तो इसने कहा कि कानून अपना काम कर रहा है...मामला अदालत में है, मेरा टिप्पणी करना सही नहीं....

अब यह होता है बकवास जवाब.

इससे किसी ने यह नहीं पूछा पलट कर कि किस किताब में लिखा है कि आप अदालत में चलते मामले पर टिप्पणी नहीं कर सकते.....तेरी पर्सनल राय पूछी है, वो बता....बता कि सहमत कि असहमत......

और असहमत तो फिर तूने अपने भाई के बोल बच्चन के खिलाफ आज तक कोई पब्लिक ब्यान क्यूँ नहीं दिया?

और सहमत तो फिर तुझ में और तेरे भाई में क्या फर्क?

और तेरा अपने भाई के ब्यान का खंडन न करना क्या यह साबित नहीं करता कि तू अपने भाई से सहमत है?.

और फिर तेरे जैसों को भारत में रहने का क्या हक़?

या फिर यह कहता है कि मुझ से छोटे वाले के किसी ब्यान के लिए क्यूँ पूछते हों, उसी से पूछो....अरे भाई, क्यूँ नहीं पूछें? आप बाबरी मस्ज़िद तोड़ने वालों के लिए अपनी राय ज़ाहिर करते हो न? तो फिर हिन्दुओं को पन्द्रह मिनट में मारने वालों के लिए अपनी राय क्यूँ नहीं रखते? इसलिए कि वो आपका सगा भाई है, आपकी पार्टी का मेंबर है. इसलिए कि हाँ या न दोनों करना, आपको मुश्किल में डाल देगा?

एक इंटरव्यू में इसने यह कहा कि इस्लाम की मान्यता है कि हर बच्चा मुसलमान पैदा होता है.....और इसे हक़ है  संविधान की तरफ से कि यह अपने धर्म को फैलाए.....

 बच्चा सिर्फ बच्चा होता है, इस्लाम के कहने से वो मुस्लिम नहीं हो जाता और न हिन्दू के कहने से हिन्दू, अक्ल में नही घुसती क्या? 

संविधान यह भी कहता है कि वैज्ञानिक विचारधारा का प्रसारण करो और विज्ञान कोई भौतिकी या रसायन विज्ञान ही नहीं होता, ढंग की बात, तार्किक बात भी विज्ञान होता है. पूछिए इससे क्या तर्क है, हर बच्चे को मुस्लिम मानने के पीछे, सिवा इसके कि इस्लाम मानता है ऐसा.

छोटे ओवेसी को कहते सुना......मोदी के जीवन से 2002 निकाल दो, मुस्लिमों का कत्ल निकाल दो तो कुछ भी नहीं बचेगा....क्या है उसके पास? कौन है वो? कोई कलाकार है, कोई साइंस-दान है? क्या बहुत बड़ा शिक्षक हैं? क्या खासियत है उसके पास? (शब्द थोड़े अलग हो सकते हैं).
बात तो बिलकुल सही है.
मैं सहमत हूँ ..अक्ल की बात है....गहरी बात है.
अब मैं यह भी सोच रहा हूँ कि इस ओवेसी के पास क्या है? यदि यह भभकियां न मारता कि पन्द्रह मिनट के लिए पुलिस हटा लो तो मुस्लिम हिन्दुओं को कत्ल कर देंगे....क्या है इसके पास?

मैं देख रहा था कि ओवेसी पार्लियामेंट में हिन्दुओं के किसी उत्सव के लिए छुट्टी की मांग कर रहा था, जैसे ईद पर होती है......बकवास. इस तरह की छुट्टियाँ ईद पर भी बंद होनी चाहिए, क्रिसमस पर भी और दशहरे पर भी.

यदि मेरी याददाश्त सही है तो बिहार इलेक्शन के नतीजों से पहले एक टीवी प्रोग्राम में एक दर्शकों में से एक लड़के ने बड़े ओवेसी को यह कह भर दिया कि आपकी कोई सीट तो आयेगी नहीं वहां.......

अब आगे तो बस ओवैसी जी महाराज चिढ़ गए, बोले, "तुम्हे इल्मे-गैब (अनदेखे का ज्ञान) भी आता है क्या? बैठ जाइये, बैठ जाइए.” 

खैर, बाद में नतीजा वही आया जो वो लड़का कह रहा था.
बेहतर होता कि ओवैसी उस लड़के से उसके विश्लेषण का आधार पूछता और फिर अपने विश्लेषण का आधार बताता लेकिन ओवैसी के पास कोई आधार होगा ही नहीं, सो इस तरह से बात को मोड़ दिया.

सुब्रमनियम स्वामी और ओवासी की एक टीवी बहस हुई “आज तक” पर कोई दो तीन दिन पहले. प्रोग्राम का नाम था "टक्कर". उस बहस में कुछ  बिन्दुओं पर मेरी राय.

ओवेसी कहता है कि यदि मुसलमानों के अत्याचार की भरपाई की बात करते हैं तो हिन्दुओं ने बौधों के साथ जो किया, क्या उस अत्याचार  की भी भरपाई होगी?....बिलकुल होगी भाई, बल्कि हो चुकी है.....आज आपको बौध मंदिर भी मिलते हैं और जैन मंदिर भी...मैं दिल्ली, पश्चिम विहार में हूँ, मेरे इर्द गिर्द जैन मंदिर भी है और बौध मंदिर भी. भारत ने तिब्बिती बौधों को संरक्षण दिया कि नहीं? हिमाचल में ‘धर्मशाला’ में जाओ, बिलकुल बौध मुल्क जैसा लगता है. दिल्ली में मजनू का टीला क्या है? देख है क्या? बौद्ध की दुनिया है.

‘रूल ऑफ़ लॉ’ की बात करता है ओवेसी.....वैरी गुड. कमलेश तिवारी बंद हैं न रूल ऑफ़ लॉ के मुताबिक, फिर मुस्लिम पूरे मुल्क में क्या करते फिर रहे हैं? क्यूँ उसकी गर्दन  मांग रहे हैं? यहाँ कोई ईशनिंदा जैसा कानून नहीं है न. फिर काहे थाणे और कारें, बसें फूंकते फिर रहे हैं? 51 लाख रुपये का इनाम रखने वाला कमलेश तिवारी की गर्दन काटने वाले के लिए, वो मुल्ला बंद हुआ कि नहीं? 

एक और विडियो में एक मुल्ला साफ़ कहता है कि हम अमन-पसंद कौम नहीं हैं. हम मुजाहिद हैं और मुजाहिद रहेंगे. वो साफ़ धमकी देता है कि जिस दिन मुसलमान भडक गए और दिल्ली कूच कर गए तो न पार्लियामेंट रहेगी और न कोई नेता. वो गिरफ्तार हुआ क्या? 

एक और विडियो में एक मुस्लिम नेता पुलिस वाले को एक बाइक सवार का चालान इसलिए नहीं करने देता चूँकि वो बाइक वाला मुसलमान है. यह है रूल ऑफ़ लॉ. दिखा क्या ओवेसी को? आज़म खान आरएसएस वालों को ‘गे’ बोले, उसका विरोध किया ओवेसी ने? शुरुआत किसने की यह ‘गे-गे’ वाले खेल की? रूल ऑफ़ लॉ?

उसी बहस में ओवैसी कहता है कि वो भारत का बेटा है, उसका क्या लेना-देना कि सऊदी में या किसी भी और इस्लामी मुल्क में क्या हुआ? मतलब विदेश में मस्ज़िद तोडी गयी, उसकी जगह कुछ और बनाया गया या नहीं, उससे उसका क्या मतलब. वैरी गुड. अगर ऐसा है तो हज करने क्यूँ मक्का जाते हो भाई? यहीं भारत में कर लो न हज. असल बात यह है कि इस्लाम कोई भारत तक ही सीमित नहीं है. और कुरान एक है. इस्लाम एक है तो फिर उसकी मान्यताएं क्या भारत के लिए अलग होंगी? अगर बाहर कोई मस्ज़िद मुसलमान खुद तोड़ सकते हैं तो फिर भारत में क्यूँ नहीं?

बार-बार बड़े ओवासी ने कहा कि मुल्क के आगे मंदिर मुद्दा नहीं है, विकास है...बढ़िया. तो जब खुद बाबरी मस्ज़िद पर बोलते रहे, तब क्या मुद्दा था? जब खुद गौ माता है या नहीं, उस पर बोलते रहे तब क्या मुद्दा था?

और बहुत बात करते हैं बाबरी और उसके बाद पर ये ओवेसी बंधु.....एक्शन के रिएक्शन की बात ..... अगर यही बात है तो मुसलमानों ने जो मंदिर तोड़े थे उसका कर्जा कौन उतारेगा? बेहतर था कि अयोध्या, काशी, मथुरा आदि की मस्जिदें खुद दे देते हिन्दुओं को...हिन्दू तुम्हें सर आँख पर बिठाते......न कोई एक्शन होता आगे और न ही रिएक्शन...लेकिन तुम जैसे मिले हैं मुसलमानों को जो आज भी औरंगज़ेब को हीरो मानने पर तुले हैं, वो औरंगज़ेब जिसने सरे-आम सिक्ख गुरु और उनके शिष्यों को शहीद किया.

तारक फतह ने बार बार कहा है कि मुझे भारत की नागरिकता दे दो, ओवेसी और जाकिर नायक जैसे लोगों की छुट्टी कर दूंगा. बता दूं कि तारक फतेह मुसलमान हैं, अंतर-राष्ट्रीय स्तर के लेखक हैं, पाकिस्तान में पैदा हुए, कनाडा वासी हैं और  भारत में बसना चाहते हैं.

Copy Right Matter/ Tushar Cosmic/ Namskaar

“असहिष्णुता का मामला – ब्लैक, वाइट या फ़िर ग्रे?”

सहन करना, बर्दाश्त करना, tolerate करना ये सब शब्द सहिष्णुता की पोल खोल देते है.

आप कब कहते हैं कि मैं सहन कर रहा हूँ, बर्दाश्त करता हूँ, tolerate कर रहा हूँ? 

जब आपको कुछ ऐसा करना हो जो करना आपकी मर्ज़ी के खिलाफ  हो, कुछ ऐसा जो आपको ज़बरदस्ती करना पड़ रहा हो, ऐसा जो आपको पसंद नहीं है, आपको प्रिय नहीं है.

कुल मतलब यह है कि एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों के क्रिया कलापों को असल में तो नापंसद करते हैं, फिर भी जैसे-तैसे बर्दाश्त करते हैं.

यह कैसी दुनिया है? हम क्यों ऐसी जीवन शैली नहीं घड़ पा रहे कि जिसमें एक दूजे के प्रति गहन में नापसन्दगी न हो?

क्यूँ हम सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित जीवन पद्धति विकसित नहीं कर पा रहे?

पेप्सी सारी दुनिया पी सकती है, पिज़्ज़ा सारी दुनिया खा सकती, कम्पनी लोकल से Multi- national हो सकती हैं, लेकिन  हम जीवन शैली सार्वभौमिक विकसित नहीं कर पा रहे.

हम ऐसी दुनिया में क्यूँ रहें जहाँ हमें एक दूजे को बर्दाश्त कर कर जीना पड़े?
जहाँ सहिष्णुता को बड़ा गुण माना जाता हो, ऐसे दुनिया के ताने बाने में निश्चित ही कुछ तो गड़बड़ है.

है कि नहीं?

वैसे हमारे समाज का ताना बाना ही ऐसा है कि यहाँ बहुत  सहिष्णुता  है नहीं, जो दीखती भी है वो बहुत ऊपरी है. ज़रा सी तपिश लगते ही सारी कलई धुल जाती है. कुछ बहुत ही आम जुमले पेश करता हूँ. 

"छोटी जात अपनी औकात दिखा ही देती है"
"अन्धा , लूला, लंगड़ा इनकी एक रग फ़ालतू होती है"
"ये मुसलमान साले हर काम हमसे उल्टा ही करते हैं"
"बनिया पुत्रम, कबहु न मित्रम"
"सुनारे किसी के सगे नहीं होते"
"पुलिसवाले की दोस्ती भी बुरी और दुश्मनी भी"

इन कुछ जुमलों से आपको यह अहसास होगा कि हमारा मज़हब, समाज, जात, औकात को लेकर अंदर ही अंदर कितना सहिष्णु है.

मुल्क आजादी के बाद से कितना सहिष्णु है नमूने हाज़िर हैं. छुट-पुट दंगों को छोड़ दीजिये. 47 में हिन्दू मुस्लिम नर-संहार हुआ, 80-84 में हिन्दू सिक्ख नर-संहार हुआ, 2002 में गुजरात के मुस्लिम हिन्दू मारकाट हुई. और कश्मीर के हिन्दू नरसंहार को यदि जोड़ ले. हमें पता लग जाएगा कि धर्म, मज़हब कितने सहिष्णु हो सकते हैं. नहीं, नहीं हो सकते. इतिहास हाज़िर नाज़िर  है. 

शांतिकाल मात्र युद्ध के बाद का वो समय जो अगले युद्ध की तैयारी के लिए प्रयोग होता है.
सब तथा-कथित धर्म बारूद का ढेर हैं. 

आप आज रामायण के खिलाफ कुछ पोस्ट कर देखो, चाहे कुरान के खिलाफ, आपको थोक में, ठोक के गालियाँ और धमकियां मिलेंगी. यह है सहिष्णुता.

हमें हमारे अंध-विश्वासों के साथ जीने दें, बस यही है धार्मिक सहिष्णुता,  सेकुलरिज्म.

सहिष्णुता है कहाँ? 

एक किताब आई थी, "वैनिटी इनकारनेशन". यह कुछ गुरु गोबिंद के खिलाफ थी. आज आपको इस किताब का न तो पता है, न इसके लेखक का.

तसलीमा नसरीन को यहीं भारत में गन्दी गालियाँ दी गई, कहाँ गई सहिष्णुता?
ओवेसी पन्द्रह मिनट में हिन्दू साफ़ करने का एलान करता है, कहाँ गई सहिष्णुता?
दंगों के आरोपी सुप्रीम कोर्ट द्वारा सजा दिए के बाद भी हीरो माने जाते हैं, कहाँ गई सहिष्णुता?
एक मुस्लिम बाप अपनी बेटी को इसलिए जान से मार देता है कि खाना खाते हुए उसने सर नहीं ढका था, कहाँ गई सहिष्णुता?

आज अवार्ड लौटाने वाले सब साहित्यकार, कलाकार, वैज्ञानिक राजनीति प्रेरित हैं, यह कहना अतिश्योक्ति होगी, हाँ, इनके अवार्ड लौटाने के समय को लेकर संशय उत्पन्न होता है. अभी ही क्यूँ.यह अवार्ड वापिसी की बाढ़ अभी ही क्यूँ? शायद इसलिए कि चोट खुद पर लगी. साहित्यकार खुद क़त्ल कर दिए गए. ऐसा होता है, स्वाभाविक भी है.लोग अपने पेशे, अपने हितों पर चोट पड़ती देख सड़कों पर आ जाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वो बाकी मुद्दों पर अपनी अभिव्यक्ति ज़ाहिर नहीं करते.करते हैं, लेकिन अपना मामला तो सर्वोपरि होता ही है. यह कुतर्क है कि साहित्यकार अपने ऊपर चोट को लेकर ही सबसे ज़्यादा उद्विग्न क्यूँ हैं. न, यह गलत बात है.


मुझे लगता है कि पुरस्कार लौटाने वाले इस मुद्दे पर गलत हैं कि असहिष्णुता बढ़ी है, लेखकों पर एक दम बढ़ी है यह बात सत्य है. आम नजरिये  से यदि देखें तो यह हमेशा से मौजूद रही है. और  जो भी घटनाएं अभी हुई हैं फिलहाल उसमें संघी सोच का योगदान है, यह बात सही है.

दोनों तरफ के लोग सही हैं कहीं, तो गलत भी हैं कहीं.

इख़लाक़ का मारा जाना गलत है
बिलकुल
लेकिन मेरे देखते पंजाब में हजारों निर्दोष हिन्दू मारे गए
फिर कश्मीर में हिन्दू

वो सब भी गलत है

वो ज़्यादा बड़े नर-संहार थे, मुझे याद है खुशवंत सिंह ने अपना पुरस्कार लौटाया था, गोल्डन टेम्पल पर फ़ौज द्वारा हस्तक्षेप किये जाने के विरोध में.

इसी तरह हिन्दुओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार के खिलाफ भी काश कोई पुरस्कार लौटे होते!

आज मोदी सरकार की वजह से ही मुद्दा 'बना' जा रहा है क्या? शायद हाँ.
आज मोदी सरकार की वजह से ही मुद्दा 'बनाया' जा रहा है क्या? कुछ हद तक हाँ.

लेकिन फिर भी बहु-संख्यक हिन्दू के साथ ना-इंसाफी हुई है.
ऐसा मुझे लगता है

आज शाहरुख़ खान को लगता है कि मुस्लिम के खिलाफ असहिष्णुता बढ़ रही है
लेकिन मुझे कुछ और लगता है 

सिक्खों को मुआवजा मिलता रहता है....चौरासी पीडित
हिन्दुओं को भी मिला है, लेकिन उनके मुकाबले कम
उनका तो कोई नामलेवा भी नहीं, उनके लिये तो मैं पढ़ता हूँ  कि हिन्दू पंजाब में मारे ही नहीं गए, या मारे भी गए तो इक्का-दुक्का. वाह!

कश्मीरी पंडितों का तो बहुत बुरा हुआ है, उन्हें तो बहुत कम इमदाद मिली है

मुस्लिम हज सब्सिडी का फायदा भी उठाते हैं.
अल्प-संख्यक न होते हुए भी माइनॉरिटी बने हैं व माइनॉरिटी होने का फायदा उठाते हैं
भारत में मुस्लिम अपने लिए अलग सिविल लॉ चलवाए हैं
जबकि दुनिया के कई मुल्कों में, वहां के सिविल कानून मानते हैं
फिर यहाँ भी तो क्रीमिनल कानून अलग अलग हैं ही, कौन सा शरियत के हिसाब से हाथ पैर काट दिए जाते हैं? वहां तो कॉमन क्रिमिनल कोड माने हैं, ताकि सज़ा कठोर न मिल जाए कहीं

लेकिन सिविल कोड में चूँकि एकाधिक शादियाँ करने की छूट है, जल्द तलाक की सुविधा है.....बच्चे पैदा किये जाने की सुविधा है सो वहां कॉमन सिविल कोड मानने को तैयार नहीं

लोकतंत्र की दुहाई देते हैं, सेकुलरिज्म की दुहाई देते हैं लेकिन अपने लिए खास सुविधा भी चाहते हैं

इस मामले में संघी सोच कुछ हद तक सही प्रतीत होती है

फिर कुरान पढ़ी, थोड़ी बहुत मैंने
उसमें अपने मज़हब को फैलाने के लिए लड़ते रहने के आदेश हैं
युद्ध में लूटी गई औरतों से बलात्कार तक का हक़ है...और भी बहुत कुछ है
औरतों के साथ ना-इंसाफी है
किसे नहीं पता कि हिन्दू मंदिर गिरा मसीतें बनाई गई
अजमेर में आज भी अढाई दिन का झोंपड़ा नाम से एक अधूरी से मस्ज़िद है. इसके परिसर में ही मंदिर के अवशेष रखे हैं
इसे अढाई दिन में मंदिर से मस्ज़िद में तब्दील किया गया
मंदिर तोड़ कर
क्यूँ हिन्दू, बौध मूर्तियों के मुंह नाक टूटे मिलते हैं
सब मुस्लिम के काम हैं

आज मुस्लिम को बहुत दुःख है कि बाबरी मस्ज़िद गिरा दी गई. मेरा मानना तो यह है कि मंदिर, मसीद गिराना, बनाना सब नासमझियां हैं लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से देखूं तो कहीं बेहतर होता कि मुस्लिम लीडर हिन्दुओं की बात मान लेते, मस्ज़िद खुद शिफ्ट करते. हिन्दू लोग अपने हाथ से एक मसीत की जगह शायद दस मसीत बना देते उनको. लेकिन कहाँ से लायें ऐसी सहिष्णुता?

और यह जो सलमान, शाहरुख खान कहते हैं कि वो मूर्तिपूजा में शामिल होते हैं, नहीं हो सकते, इस्लाम इजाज़त ही नहीं देता. या तो ये मुस्लिम नहीं हैं, या बस दिखावा करते हैं,

असल में मेरे लिए हिन्दू मुस्लिम सब बकवास हैं लेकिन लोग आज ही तो कोई यह सब छोड़ मेरी समझ अपना नहीं लेंगे

सो तब तक हम इंसानी नज़रिए से यह तो देख सकते हैं कि कोई एक तबका दूसरे का नाजायज़ फायदा न उठा ले. यह तो समझ सकते हैं कि किसी भी एक  तबके के साथ ना-इंसाफी न हो, चाहे कोई खुद को अल्प-संख्यक मानता हो, चाहे बहु-संख्यक. 

जैसे पंजाब में सिक्ख खतरनाक राजनीति खेल रहे हैं
हिन्दुओं को भगाना चाहते हैं
कुल मतलब यह है कि सिवा सिक्ख के कोई न रहे वहां
सिवा गुरुद्वारे के कोई पूजा न जाए, बस
सो मैं इनका विरोध करता हूँ, चूँकि यह हिन्दू के प्रति ना-इंसाफी होगी
मै कश्मीरी पंडितों के पलायन पर विरोध करता हूँ
मैं विरोध गुजरात में मुस्लिम मारने का भी करता हूँ
मैं विरोध पंजाब और दिल्ली में सिक्खों के मारे जाने का भी करता हूँ
लेकिन कुल मिला यह देखना ज़रूरी है कि
कोई एक तबका दूसरे को दबा तो नहीं रहा

और मुझे लगता है कि सिक्ख ने हिन्दू को दबाया है
मुस्लिम ने भी नाजायज़  फायदा उठाया है
और अब ये दोनों रौला डाल रहे हैं
और कांग्रेसी राजनीति और बाकी संघ विरोधी राजनीति इनका साथ दे रही हैं
सो दोनों तरफ राजनीति तो है.

और जब मैं राजनीति शब्द लिखता हूँ तो उसका मतलब राज्य चलाने की नीति से नहीं है बल्कि चालाकी से है, चाल बाज़ी से है. 

दाभोलकर, पनसारे, कलबुरगी आदि लेखकों का मारा जाना निश्चित ही संघी सोच का नतीजा हैं
हिन्दू महासभा के ही किसी व्यक्ति  ने तो ओशो पर भी हमला किया था
सो इनका विरोध तो होना ही चाहिए

मैं नहीं कहता कि असहिष्णुता नहीं है, है, हमेशा रही है, लेकिन इस बार हिन्दू असहिष्णुता है और विरोधी स्वरों का गला घोंटने के लिए गले तक घोंट दिए गए साहित्यकारों के, सो ज़्यादा शोर शराबा है, राजनीति भी मुखर है

संघी कसूरवार हैं, लेकिन कांग्रेसी, मुस्लिम और सिक्ख भी सही नही हैं
सब कहीं सही हैं तो कहीं गलत
वाइट ब्लैक कुछ भी नहीं
सब ग्रे
बस कौन कितना ग्रे, कहाँ ग्रे, वो समझना ज़रूरी है
एक प्रयास

सप्रेम नमन/ कॉपी राईट/ तुषार कॉस्मिक

Monday 4 January 2016

"चौर्य कला"

बहुत पहले पढ़ा था कि चोरी करना भी भारत में एक कला मानी जाती थी. चोर सेंध लगाते थे तो बड़ी कलाकारी से. ताकि बाद में नाम हो कि किस महान चोर का यह काम होगा. जैसे आपने देखा होगा फिल्मों में कि कातिल कत्ल के बाद जानबूझ कर अपनी कोई निशानी छोड़ता है, सिग्नेचर, ताकि उसके महान काम की पहचान हो.  "उत्सव" फिल्म में देखा हो,  चोर बहुत ही कलाकारी से सेंध लगाता है.

हमारे यहाँ तो कृष्ण थे ही चोर. उनका एक नाम हरी है. हरी जो हर ले. वैसे मक्खन चुराते थे बचपन से ही. लेकिन भक्त लोग कहते हैं कि दिल चुराते हैं.

रोबिन हुड का नाम सुना होगा आपने. कहते हैं अमीर को लूटता था, गरीब में बाँट देता था. सो चोरी हमेशा गलत ही हो यह ज़रूरी नहीं है.

सरकार भी रोबिन हुड बनने का असफल प्रयास करती है. अमीर से टैक्स द्वारा लूटने का नाटक करती है और गरीब में बांटने का बहाना. लेकिन अमीर गरीब सबको पीसती   है और ज़्यादातर खुद ही खा जाती है. नकली रॉबिनहुड.

और जितने भी लोग अमीर बने होते हैं, ज्यादातर कोई न कोई चोरी कर के. आपको सिखाया जाता है कि मेहनत से अमीरी आती है लेकिन वो अधूरी सीख है, पूरी सीख यह है कि चोरी करने में मेहनत से  अमीरी आती है.

नौकर शाह, यह नौकर के साथ 'शाह' शब्द इसलिए लगाया जाता है कि वो नौकर नहीं रहता शाह हो जाता है, तो नौकरशाह को चाहे पचास हज़ार तनख्वाह मिले चाहे लाख रुपया, दफ्तर की स्टेशनरी चुरा लाएगा.

करोडपति परचून वाला स्कीम के साथ आने वाली आइटम अक्सर हडपने की कोशिश करेगा.

चोरी कमाल की चीज़ है. कहते हैं चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए. ऐसे ही तो नहीं बुद्ध को अचौर्य की शिक्षा देनी पड़ी. नानक साहेब को रोटी में से लहू और दूध निचोड़ कर हक़ हलाल की कमाई की शिक्षा देनी पड़ी.

चोरी मानवीय स्वभाव है. एक तरफ कोई मलाई मक्खन खाए और कोई भूखा मरे तो चोरी तो होगी न. लेकिन भरे पेट वाला, ज़मीन तक लटके पेट वाला भी चोरी करे, वो मानसिक बीमारी है. वैसे बेहद अमीर, सेलेब्रिटी किस्म के लोग भी CCTV फुटेज में तेल-साबुन चोरी करते पकडे जाते हैं. इसे शायद kleptomania नामक बीमारी माना जाता है. लोग पञ्च-तारा होटल से तौलिये चुरा लेते है, छुरी कांटे चुरा लेते हैं.कमाल का है इंसान! चोर है तभी तो इतने नियम कायदे बनाने पड़ते हैं.

पीछे एक जनरल स्टोर पर कुछ सामन के रहा था. एक बोर्ड टांग रखा था उनने. चोरी करने वाले को शनिदेव कड़ी सज़ा देंगे. साथ में ही CCTV भी लगा रखा था. मैं बहस गया. जब शनिदेव सज़ा देंगे तो ठीक है, मुझे मंज़ूर है. मुझे चोरी करने दी जाए. मैं सज़ा भुगत लूँगा. और फिर CCTV का पंगा काहे  डाला है, जब शनिदेव और चोर के बीच  ही मामला है तो. बोले नहीं, हम भी तो प्रयास करेंगे न अपनी तरफ से कि चोरी न हो. मैंने कहा फिर तो आप ही करें प्रयास, इन शनि महाराज को क्यूँ परेशान कर रखा है?  ज़रूरी नहीं न कि हर व्यक्ति शनि महाराज की कुदृष्टि से डरता हो. और भरोसा तो आपको भी नहीं शनि महाराज पर, अगर होता तो वो ही काफी थे. उनसे बड़ा फिर कौन है? खैर, सब हंसने लगे. कौन किस बात पर,  पता नहीं.

चलते-चलाते एक और काम की बात बताता हूँ, चोरी अक्सर पिछले रास्तों से होती है. लोग फ्रंट  मज़बूत रखते हैं, पीछे के जंगले, खिड़कियाँ निहायत कमज़ोर. और चोर यह कमजोरी समझता है. जहाँ आप चूके, वहीं चोर लूटे. पिछले रास्तों पर ध्यान दीजिये. इसका मतलब यह कदापि नहीं कि अगले रास्तों पर ध्यान न दिया जाए. चोर का क्या भरोसा? भरोसेमंद  ही हो तो  चोर  क्यूँ हो?

एक और कहावत है, "चोर-चोर मौसेरे भाई." चोरों  में  आपस में बहुत पटती है.  चोरी के धंधे में बहुत इमानदारी होती है. लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं है, ईमानदारी वहीं तक होती है जहाँ तक किसी को  लगता है कि ईमानदार रहने में भलाई है. Honesty is the best policy.  यानि ईमानदारी को एक नीति की तरह प्रयोग किया जाता है. ईमानदार होना इसलिए नहीं कि यह  कोई गुण है, बल्कि इसलिए कि ईमानदार होना फायदेमंद है.

चोर चोर मौसेरे भाई. अब फुफेरे क्यूँ नहीं, ममेरे क्यूँ नहीं? पंजाबी में मौसी को मासी कहते हैं. माँ जैसी. सो उसके बेटे सगे भाई जैसे हैं. सो मौसेरे भाई, लेकिन मामा तो डबल माँ जैसे हैं, फिर ममेरे भाई क्यूँ नहीं? और सबसे बड़ी बात सगे भाई क्यूँ नहीं? खोज का विषय है. खोजिये.

वैसे भाई लॉग्स तो यह भी कहते हैं कि आनेस्टी शब्द का तर्जुमा ईमानदारी नहीं है चूँकि ईमानदारी का मतलब तो है अल्लाह, कुरान और मोहम्मद साहेब पर ईमान लाना. जो उन पर ईमान  लाया वो ईमानदारी. तो फिर हिंदी शब्द क्या है इसके लिए? 'निष्कपट" या कुछ और, पता नहीं.

वैसे यह भी  झूठ है कि पुरातन भारत में  लोग ताले नहीं लगाते थे घरों पर, इतने सच्चे थे. रावण सीता तक को उठा ले गया था. कृष्ण मक्खन चुराते थे, लडकियों के कपड़े चुराते थे, शायद ताले बनाने की कला अभी थी नहीं.

असल में जीवन में सफलता के लिए आपको चोरों पर मोर बनने की कला सीखनी होगी, जैसा जीवन है अभी. बस किसी से गरीब मार न हो यह ध्यान रखियेगा वरना अपुन को तो कोई ख़ास दिक्कत है नहीं.

चोरों के भी स्टैण्डर्ड होते हैं. कोई  "चिंदी-चोर" है, तो कोई चोट्टा  है. कोई   स्टैण्डर्ड का है  तो  कोई छोटा है .  मेरा मित्र अक्सर छोटी रेड लाइट पर नहीं रुकता. बोलता है उसकी शान के खिलाफ है. रेड लाइट का कोई स्टैण्डर्ड होना चाहिए.

जहाँ चोर है, वहां पुलिस है, वो बात दीगर है कि पुलिस उससे बड़ी चोर है और जज उससे बड़ा चोर और नेतागण की तो पूछो ही मत. इतने पैसे डकार जाता है कि खायेगा कैसे और हगेगा कैसे, समझ न आये. बहुत पहले जयललिता के यहाँ जब छापा पड़ा तो इतने जोड़ी जूते चप्पल  पाए गए कि रोज़ एक पहने तो भी पहन न पाए. चोरी ज़रूरत भी हो सकती है और बीमारी भी और मूर्खता भी, इसके बहुत रूप हो सकते हैं. आखिरी किस्म के चोर, जयललिता टाइप,  सबसे खतरनाक हैं. इनका इलाज़ सबसे ज़रूरी है.

गाँव में चोरी हो गई, पुलिस  खोज न पाई कुछ, कुछ भी समझ न आये  उनको. कोई सुराग नहीं. चोरी बड़े घर में हुई थी,  बहुत प्रेशर था, अब प्रेशर के आगे तो पुलिस को वैसे ही प्रेशर बनने लगता है और वो प्रेशर कुकर की तरह उनकी सीटी बजने लगती है. सो जासूस लालबुझकड़ दास को बुलाना पड़ा. उनकी बड़ी तारीफ. बड़ा नाम. वो आये और घंटों अपना जासूसी लेंस लिए देखते रहे. इधर देखें, उधर देखें. उधर देखें, इधर देखें. शाम तक सारा गाँव इकट्ठा हो गया. जासूस लालबुझकड़ दास जी ने नतीजा सुना दिया. “यह काम तो किसी चोर का लगता है.”

कभी ध्यान से देखिएगा CID नामक टीवी प्रोग्राम में, वो  प्रद्युमन सिंह  ACP क्या कहते हैं. "दया, यह काम तो ज़रूर किसी चोर का लगता है." शेर्लोक्क होल्म्स की अक्ल को भी लोक लगा जाए. वाह, हमारे जासूस महोदय!  जासूस को, पुलिस की अक्ल सोचना चाहिए. उससे चार कदम आगे. और वो सोचते हैं. बिलकुल. वो सोचते हैं कि किस तरह चोर से ज़्यादा लूटा जाए.

एक और बात है कि चोर सबसे ज़्यादा शोर मचाता है. ताकि खुद से ध्यान हट सके. ताकि कम से कम यह साबित हो सके कि वो खुद तो चोर नहीं. नेतागण यही करते हैं. ध्यान रखियेगा आगे से. नहीं तो "चोर मचाये शोर" नाम की फिल्म भी देख सकते हैं, मैंने भी नहीं देखी. कैसी है बता दीजियेगा.

कहते हैं कि चोर बड़ा ही सतर्क होता है. ध्यानस्थ. उसे पता है कि जीवन दाँव पर लगा है, सो चूक नहीं  सकता.  हर हरकत बड़ा चौकन्ना हो के करता है. सतर्क. यह शब्द ध्यान से देखें, इसका शाब्दिक मतलब यह है कि आप  चौकन्ने हैं.  चौतरफा कान होना. अपने इर्द गिर्द के प्रति जाग्रत. लेकिन इस शब्द को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि आप तर्कयुक्त हैं. सतर्क. आपको कोई उलझा नहीं सकता बकवासबाज़ी में. आप भावनाओं में नहीं बहने वाले. आप लालच में नहीं आने वाले.  आप हर चीज़ के लिए फैक्ट मांगेंगे, तर्क  मांगेंगे. यह है सतर्कता. सतर्कता आपके जीवन का बेसिक नियम होना चाहिए. लेकिन आप तो निर्मल बाबा की कृपा के लिए हजारों रुपये खर्च करते हैं. कुछ भी मान लेते हैं, क्या ख़ाक सतर्कता है आपमें. आपका तो जीवन अतर्कता पर खड़ा है. चोर से थोड़ा सीख लीजिये.  वो सतर्क  भी है, चौकन्ना  भी, जाग्रत भी.

लेकिन चोर भी चोरी से पहले-पीछे देवी देवता के यहाँ मत्थे रगड़ता है. आपने सुना होगा कि डकैत देवी माँ के यहाँ छुपते-छुपाते ज़रूर पहुँचते रहे हैं. कितना तर्क होगा इस के पीछे?
या अतर्क? खोजिये.

चोर की  सतर्कता, उसका चौकन्नापन सीखा जा सकता है. हम सोये-सोये जीते रहते हैं. मशीन की तरह. अब तो मनोविज्ञान भी कहता है कि आप जो काम दायें हाथ से करते हैं उसे बाएं से भी करें बीच-बीच में. ताकि मशीनीपन तोडा जा सके. सीधे चलते हैं तो कभी उलटे भी चलें. चोरी नहीं करते तो चोरी भी करें, न, न, यह मैं नहीं कहता, यह गलत बात है. लेकिन चोर जैसी जाग्रत अवस्था के लिए कुछ और कर सकते हैं. सीखना हो तो पत्थरों से भी सीखा जा सकता है. एकलव्य मिसाल है. चेला सच्चा  होना चाहिए. चेला गुड़  होना चाहिए, गुरु चाहे गुड़-गोबर ही क्यूँ न हो. सीखना हो तो चोर से भी सीख सकते हैं.

एक तरफ चंद लोगों के पास दुनिया की हर सुविधा मौजूद है, दूसरी तरफ लोग पूरे-सूरे-अधूरे  हैं , चोरी न होगी तो और क्या होगा? चोर को सज़ा दो, बढ़िया है. लेकिन जो व्यवस्था एक बच्चे को कोठी में और एक को कोठड़ी में खड़ा करती हो उसे सज़ा न दो, यह कहाँ का इन्साफ है?

कहते हैं कि चोरी  का गुड बहुत मीठा  होता है. वैसे बच्चे के  खाने में से आँख चुरा कर कुछ खाना, उसका मज़ा ही कुछ और है और जब बच्चा विरोध करे तो उसे मनाना, उसे बहकाना, उससे माफ़ी माँगना उसका मज़ा स्वर्गिक है.

खैर, मैं  बहुत  बुरा लिखता  हूँ यार, मित्रगण  इत्ता खफा होते हैं कि  रोज़ ब्लोकास्त्र चलाना पड़ता है और कुछ हैं कि मेरा लेखन चोरी  करते रहते हैं. मैं असहिष्णु  हूँ, तुरत विरोध कर देता हूँ.

वैसे लेखन का एक टिप देता हूँ, किसी को  चोरी करने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी. कल्पना करें कि खुले पार्क में हैं, जहाँ कोई अवरोध नहीं. अब आँख पर पट्टी बाँध लें और खुद को खुला छोड़ दें, जिधर मर्ज़ी चलते जाएँ, जिधर बहना हो बहते जाएँ. बस.  मतलब अपने मन के घोड़ों को आज़ाद कर दें और टीपते जाएँ. हो सकता है बहुत बढ़िया लेख जन्म ले ले. क्या कहा बकवास! खैर, मैं तो यूँ ही बकवास लिखता हूँ.  कुछ मित्र फिर भी चोरी कर लेते हैं.

वैसे चोरी गर कोई करता है तो यह अपने आप में इनाम है. चोरी भी भरे घरों में होती है, सूने घरों में नहीं. सो आपका प्रेम बरसता रहना चाहिए.

नमन/ चुराएं न करें, चोरी करना पाप है/ कॉपी राईट  मैटर/ तुषार कॉस्मिक