बहुत पहले पढ़ा था कि चोरी करना भी भारत में एक कला मानी जाती थी. चोर सेंध लगाते थे तो बड़ी कलाकारी से. ताकि बाद में नाम हो कि किस महान चोर का यह काम होगा. जैसे आपने देखा होगा फिल्मों में कि कातिल कत्ल के बाद जानबूझ कर अपनी कोई निशानी छोड़ता है, सिग्नेचर, ताकि उसके महान काम की पहचान हो. "उत्सव" फिल्म में देखा हो, चोर बहुत ही कलाकारी से सेंध लगाता है.
हमारे यहाँ तो कृष्ण थे ही चोर. उनका एक नाम हरी है. हरी जो हर ले. वैसे मक्खन चुराते थे बचपन से ही. लेकिन भक्त लोग कहते हैं कि दिल चुराते हैं.
रोबिन हुड का नाम सुना होगा आपने. कहते हैं अमीर को लूटता था, गरीब में बाँट देता था. सो चोरी हमेशा गलत ही हो यह ज़रूरी नहीं है.
सरकार भी रोबिन हुड बनने का असफल प्रयास करती है. अमीर से टैक्स द्वारा लूटने का नाटक करती है और गरीब में बांटने का बहाना. लेकिन अमीर गरीब सबको पीसती है और ज़्यादातर खुद ही खा जाती है. नकली रॉबिनहुड.
और जितने भी लोग अमीर बने होते हैं, ज्यादातर कोई न कोई चोरी कर के. आपको सिखाया जाता है कि मेहनत से अमीरी आती है लेकिन वो अधूरी सीख है, पूरी सीख यह है कि चोरी करने में मेहनत से अमीरी आती है.
नौकर शाह, यह नौकर के साथ 'शाह' शब्द इसलिए लगाया जाता है कि वो नौकर नहीं रहता शाह हो जाता है, तो नौकरशाह को चाहे पचास हज़ार तनख्वाह मिले चाहे लाख रुपया, दफ्तर की स्टेशनरी चुरा लाएगा.
करोडपति परचून वाला स्कीम के साथ आने वाली आइटम अक्सर हडपने की कोशिश करेगा.
चोरी कमाल की चीज़ है. कहते हैं चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए. ऐसे ही तो नहीं बुद्ध को अचौर्य की शिक्षा देनी पड़ी. नानक साहेब को रोटी में से लहू और दूध निचोड़ कर हक़ हलाल की कमाई की शिक्षा देनी पड़ी.
चोरी मानवीय स्वभाव है. एक तरफ कोई मलाई मक्खन खाए और कोई भूखा मरे तो चोरी तो होगी न. लेकिन भरे पेट वाला, ज़मीन तक लटके पेट वाला भी चोरी करे, वो मानसिक बीमारी है. वैसे बेहद अमीर, सेलेब्रिटी किस्म के लोग भी CCTV फुटेज में तेल-साबुन चोरी करते पकडे जाते हैं. इसे शायद kleptomania नामक बीमारी माना जाता है. लोग पञ्च-तारा होटल से तौलिये चुरा लेते है, छुरी कांटे चुरा लेते हैं.कमाल का है इंसान! चोर है तभी तो इतने नियम कायदे बनाने पड़ते हैं.
पीछे एक जनरल स्टोर पर कुछ सामन के रहा था. एक बोर्ड टांग रखा था उनने. चोरी करने वाले को शनिदेव कड़ी सज़ा देंगे. साथ में ही CCTV भी लगा रखा था. मैं बहस गया. जब शनिदेव सज़ा देंगे तो ठीक है, मुझे मंज़ूर है. मुझे चोरी करने दी जाए. मैं सज़ा भुगत लूँगा. और फिर CCTV का पंगा काहे डाला है, जब शनिदेव और चोर के बीच ही मामला है तो. बोले नहीं, हम भी तो प्रयास करेंगे न अपनी तरफ से कि चोरी न हो. मैंने कहा फिर तो आप ही करें प्रयास, इन शनि महाराज को क्यूँ परेशान कर रखा है? ज़रूरी नहीं न कि हर व्यक्ति शनि महाराज की कुदृष्टि से डरता हो. और भरोसा तो आपको भी नहीं शनि महाराज पर, अगर होता तो वो ही काफी थे. उनसे बड़ा फिर कौन है? खैर, सब हंसने लगे. कौन किस बात पर, पता नहीं.
चलते-चलाते एक और काम की बात बताता हूँ, चोरी अक्सर पिछले रास्तों से होती है. लोग फ्रंट मज़बूत रखते हैं, पीछे के जंगले, खिड़कियाँ निहायत कमज़ोर. और चोर यह कमजोरी समझता है. जहाँ आप चूके, वहीं चोर लूटे. पिछले रास्तों पर ध्यान दीजिये. इसका मतलब यह कदापि नहीं कि अगले रास्तों पर ध्यान न दिया जाए. चोर का क्या भरोसा? भरोसेमंद ही हो तो चोर क्यूँ हो?
एक और कहावत है, "चोर-चोर मौसेरे भाई." चोरों में आपस में बहुत पटती है. चोरी के धंधे में बहुत इमानदारी होती है. लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं है, ईमानदारी वहीं तक होती है जहाँ तक किसी को लगता है कि ईमानदार रहने में भलाई है. Honesty is the best policy. यानि ईमानदारी को एक नीति की तरह प्रयोग किया जाता है. ईमानदार होना इसलिए नहीं कि यह कोई गुण है, बल्कि इसलिए कि ईमानदार होना फायदेमंद है.
चोर चोर मौसेरे भाई. अब फुफेरे क्यूँ नहीं, ममेरे क्यूँ नहीं? पंजाबी में मौसी को मासी कहते हैं. माँ जैसी. सो उसके बेटे सगे भाई जैसे हैं. सो मौसेरे भाई, लेकिन मामा तो डबल माँ जैसे हैं, फिर ममेरे भाई क्यूँ नहीं? और सबसे बड़ी बात सगे भाई क्यूँ नहीं? खोज का विषय है. खोजिये.
वैसे भाई लॉग्स तो यह भी कहते हैं कि आनेस्टी शब्द का तर्जुमा ईमानदारी नहीं है चूँकि ईमानदारी का मतलब तो है अल्लाह, कुरान और मोहम्मद साहेब पर ईमान लाना. जो उन पर ईमान लाया वो ईमानदारी. तो फिर हिंदी शब्द क्या है इसके लिए? 'निष्कपट" या कुछ और, पता नहीं.
वैसे यह भी झूठ है कि पुरातन भारत में लोग ताले नहीं लगाते थे घरों पर, इतने सच्चे थे. रावण सीता तक को उठा ले गया था. कृष्ण मक्खन चुराते थे, लडकियों के कपड़े चुराते थे, शायद ताले बनाने की कला अभी थी नहीं.
असल में जीवन में सफलता के लिए आपको चोरों पर मोर बनने की कला सीखनी होगी, जैसा जीवन है अभी. बस किसी से गरीब मार न हो यह ध्यान रखियेगा वरना अपुन को तो कोई ख़ास दिक्कत है नहीं.
चोरों के भी स्टैण्डर्ड होते हैं. कोई "चिंदी-चोर" है, तो कोई चोट्टा है. कोई स्टैण्डर्ड का है तो कोई छोटा है . मेरा मित्र अक्सर छोटी रेड लाइट पर नहीं रुकता. बोलता है उसकी शान के खिलाफ है. रेड लाइट का कोई स्टैण्डर्ड होना चाहिए.
जहाँ चोर है, वहां पुलिस है, वो बात दीगर है कि पुलिस उससे बड़ी चोर है और जज उससे बड़ा चोर और नेतागण की तो पूछो ही मत. इतने पैसे डकार जाता है कि खायेगा कैसे और हगेगा कैसे, समझ न आये. बहुत पहले जयललिता के यहाँ जब छापा पड़ा तो इतने जोड़ी जूते चप्पल पाए गए कि रोज़ एक पहने तो भी पहन न पाए. चोरी ज़रूरत भी हो सकती है और बीमारी भी और मूर्खता भी, इसके बहुत रूप हो सकते हैं. आखिरी किस्म के चोर, जयललिता टाइप, सबसे खतरनाक हैं. इनका इलाज़ सबसे ज़रूरी है.
गाँव में चोरी हो गई, पुलिस खोज न पाई कुछ, कुछ भी समझ न आये उनको. कोई सुराग नहीं. चोरी बड़े घर में हुई थी, बहुत प्रेशर था, अब प्रेशर के आगे तो पुलिस को वैसे ही प्रेशर बनने लगता है और वो प्रेशर कुकर की तरह उनकी सीटी बजने लगती है. सो जासूस लालबुझकड़ दास को बुलाना पड़ा. उनकी बड़ी तारीफ. बड़ा नाम. वो आये और घंटों अपना जासूसी लेंस लिए देखते रहे. इधर देखें, उधर देखें. उधर देखें, इधर देखें. शाम तक सारा गाँव इकट्ठा हो गया. जासूस लालबुझकड़ दास जी ने नतीजा सुना दिया. “यह काम तो किसी चोर का लगता है.”
कभी ध्यान से देखिएगा CID नामक टीवी प्रोग्राम में, वो प्रद्युमन सिंह ACP क्या कहते हैं. "दया, यह काम तो ज़रूर किसी चोर का लगता है." शेर्लोक्क होल्म्स की अक्ल को भी लोक लगा जाए. वाह, हमारे जासूस महोदय! जासूस को, पुलिस की अक्ल सोचना चाहिए. उससे चार कदम आगे. और वो सोचते हैं. बिलकुल. वो सोचते हैं कि किस तरह चोर से ज़्यादा लूटा जाए.
एक और बात है कि चोर सबसे ज़्यादा शोर मचाता है. ताकि खुद से ध्यान हट सके. ताकि कम से कम यह साबित हो सके कि वो खुद तो चोर नहीं. नेतागण यही करते हैं. ध्यान रखियेगा आगे से. नहीं तो "चोर मचाये शोर" नाम की फिल्म भी देख सकते हैं, मैंने भी नहीं देखी. कैसी है बता दीजियेगा.
कहते हैं कि चोर बड़ा ही सतर्क होता है. ध्यानस्थ. उसे पता है कि जीवन दाँव पर लगा है, सो चूक नहीं सकता. हर हरकत बड़ा चौकन्ना हो के करता है. सतर्क. यह शब्द ध्यान से देखें, इसका शाब्दिक मतलब यह है कि आप चौकन्ने हैं. चौतरफा कान होना. अपने इर्द गिर्द के प्रति जाग्रत. लेकिन इस शब्द को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि आप तर्कयुक्त हैं. सतर्क. आपको कोई उलझा नहीं सकता बकवासबाज़ी में. आप भावनाओं में नहीं बहने वाले. आप लालच में नहीं आने वाले. आप हर चीज़ के लिए फैक्ट मांगेंगे, तर्क मांगेंगे. यह है सतर्कता. सतर्कता आपके जीवन का बेसिक नियम होना चाहिए. लेकिन आप तो निर्मल बाबा की कृपा के लिए हजारों रुपये खर्च करते हैं. कुछ भी मान लेते हैं, क्या ख़ाक सतर्कता है आपमें. आपका तो जीवन अतर्कता पर खड़ा है. चोर से थोड़ा सीख लीजिये. वो सतर्क भी है, चौकन्ना भी, जाग्रत भी.
लेकिन चोर भी चोरी से पहले-पीछे देवी देवता के यहाँ मत्थे रगड़ता है. आपने सुना होगा कि डकैत देवी माँ के यहाँ छुपते-छुपाते ज़रूर पहुँचते रहे हैं. कितना तर्क होगा इस के पीछे?
या अतर्क? खोजिये.
चोर की सतर्कता, उसका चौकन्नापन सीखा जा सकता है. हम सोये-सोये जीते रहते हैं. मशीन की तरह. अब तो मनोविज्ञान भी कहता है कि आप जो काम दायें हाथ से करते हैं उसे बाएं से भी करें बीच-बीच में. ताकि मशीनीपन तोडा जा सके. सीधे चलते हैं तो कभी उलटे भी चलें. चोरी नहीं करते तो चोरी भी करें, न, न, यह मैं नहीं कहता, यह गलत बात है. लेकिन चोर जैसी जाग्रत अवस्था के लिए कुछ और कर सकते हैं. सीखना हो तो पत्थरों से भी सीखा जा सकता है. एकलव्य मिसाल है. चेला सच्चा होना चाहिए. चेला गुड़ होना चाहिए, गुरु चाहे गुड़-गोबर ही क्यूँ न हो. सीखना हो तो चोर से भी सीख सकते हैं.
एक तरफ चंद लोगों के पास दुनिया की हर सुविधा मौजूद है, दूसरी तरफ लोग पूरे-सूरे-अधूरे हैं , चोरी न होगी तो और क्या होगा? चोर को सज़ा दो, बढ़िया है. लेकिन जो व्यवस्था एक बच्चे को कोठी में और एक को कोठड़ी में खड़ा करती हो उसे सज़ा न दो, यह कहाँ का इन्साफ है?
कहते हैं कि चोरी का गुड बहुत मीठा होता है. वैसे बच्चे के खाने में से आँख चुरा कर कुछ खाना, उसका मज़ा ही कुछ और है और जब बच्चा विरोध करे तो उसे मनाना, उसे बहकाना, उससे माफ़ी माँगना उसका मज़ा स्वर्गिक है.
खैर, मैं बहुत बुरा लिखता हूँ यार, मित्रगण इत्ता खफा होते हैं कि रोज़ ब्लोकास्त्र चलाना पड़ता है और कुछ हैं कि मेरा लेखन चोरी करते रहते हैं. मैं असहिष्णु हूँ, तुरत विरोध कर देता हूँ.
वैसे लेखन का एक टिप देता हूँ, किसी को चोरी करने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी. कल्पना करें कि खुले पार्क में हैं, जहाँ कोई अवरोध नहीं. अब आँख पर पट्टी बाँध लें और खुद को खुला छोड़ दें, जिधर मर्ज़ी चलते जाएँ, जिधर बहना हो बहते जाएँ. बस. मतलब अपने मन के घोड़ों को आज़ाद कर दें और टीपते जाएँ. हो सकता है बहुत बढ़िया लेख जन्म ले ले. क्या कहा बकवास! खैर, मैं तो यूँ ही बकवास लिखता हूँ. कुछ मित्र फिर भी चोरी कर लेते हैं.
वैसे चोरी गर कोई करता है तो यह अपने आप में इनाम है. चोरी भी भरे घरों में होती है, सूने घरों में नहीं. सो आपका प्रेम बरसता रहना चाहिए.
नमन/ चुराएं न करें, चोरी करना पाप है/ कॉपी राईट मैटर/ तुषार कॉस्मिक
हमारे यहाँ तो कृष्ण थे ही चोर. उनका एक नाम हरी है. हरी जो हर ले. वैसे मक्खन चुराते थे बचपन से ही. लेकिन भक्त लोग कहते हैं कि दिल चुराते हैं.
रोबिन हुड का नाम सुना होगा आपने. कहते हैं अमीर को लूटता था, गरीब में बाँट देता था. सो चोरी हमेशा गलत ही हो यह ज़रूरी नहीं है.
सरकार भी रोबिन हुड बनने का असफल प्रयास करती है. अमीर से टैक्स द्वारा लूटने का नाटक करती है और गरीब में बांटने का बहाना. लेकिन अमीर गरीब सबको पीसती है और ज़्यादातर खुद ही खा जाती है. नकली रॉबिनहुड.
और जितने भी लोग अमीर बने होते हैं, ज्यादातर कोई न कोई चोरी कर के. आपको सिखाया जाता है कि मेहनत से अमीरी आती है लेकिन वो अधूरी सीख है, पूरी सीख यह है कि चोरी करने में मेहनत से अमीरी आती है.
नौकर शाह, यह नौकर के साथ 'शाह' शब्द इसलिए लगाया जाता है कि वो नौकर नहीं रहता शाह हो जाता है, तो नौकरशाह को चाहे पचास हज़ार तनख्वाह मिले चाहे लाख रुपया, दफ्तर की स्टेशनरी चुरा लाएगा.
करोडपति परचून वाला स्कीम के साथ आने वाली आइटम अक्सर हडपने की कोशिश करेगा.
चोरी कमाल की चीज़ है. कहते हैं चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए. ऐसे ही तो नहीं बुद्ध को अचौर्य की शिक्षा देनी पड़ी. नानक साहेब को रोटी में से लहू और दूध निचोड़ कर हक़ हलाल की कमाई की शिक्षा देनी पड़ी.
चोरी मानवीय स्वभाव है. एक तरफ कोई मलाई मक्खन खाए और कोई भूखा मरे तो चोरी तो होगी न. लेकिन भरे पेट वाला, ज़मीन तक लटके पेट वाला भी चोरी करे, वो मानसिक बीमारी है. वैसे बेहद अमीर, सेलेब्रिटी किस्म के लोग भी CCTV फुटेज में तेल-साबुन चोरी करते पकडे जाते हैं. इसे शायद kleptomania नामक बीमारी माना जाता है. लोग पञ्च-तारा होटल से तौलिये चुरा लेते है, छुरी कांटे चुरा लेते हैं.कमाल का है इंसान! चोर है तभी तो इतने नियम कायदे बनाने पड़ते हैं.
पीछे एक जनरल स्टोर पर कुछ सामन के रहा था. एक बोर्ड टांग रखा था उनने. चोरी करने वाले को शनिदेव कड़ी सज़ा देंगे. साथ में ही CCTV भी लगा रखा था. मैं बहस गया. जब शनिदेव सज़ा देंगे तो ठीक है, मुझे मंज़ूर है. मुझे चोरी करने दी जाए. मैं सज़ा भुगत लूँगा. और फिर CCTV का पंगा काहे डाला है, जब शनिदेव और चोर के बीच ही मामला है तो. बोले नहीं, हम भी तो प्रयास करेंगे न अपनी तरफ से कि चोरी न हो. मैंने कहा फिर तो आप ही करें प्रयास, इन शनि महाराज को क्यूँ परेशान कर रखा है? ज़रूरी नहीं न कि हर व्यक्ति शनि महाराज की कुदृष्टि से डरता हो. और भरोसा तो आपको भी नहीं शनि महाराज पर, अगर होता तो वो ही काफी थे. उनसे बड़ा फिर कौन है? खैर, सब हंसने लगे. कौन किस बात पर, पता नहीं.
चलते-चलाते एक और काम की बात बताता हूँ, चोरी अक्सर पिछले रास्तों से होती है. लोग फ्रंट मज़बूत रखते हैं, पीछे के जंगले, खिड़कियाँ निहायत कमज़ोर. और चोर यह कमजोरी समझता है. जहाँ आप चूके, वहीं चोर लूटे. पिछले रास्तों पर ध्यान दीजिये. इसका मतलब यह कदापि नहीं कि अगले रास्तों पर ध्यान न दिया जाए. चोर का क्या भरोसा? भरोसेमंद ही हो तो चोर क्यूँ हो?
एक और कहावत है, "चोर-चोर मौसेरे भाई." चोरों में आपस में बहुत पटती है. चोरी के धंधे में बहुत इमानदारी होती है. लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं है, ईमानदारी वहीं तक होती है जहाँ तक किसी को लगता है कि ईमानदार रहने में भलाई है. Honesty is the best policy. यानि ईमानदारी को एक नीति की तरह प्रयोग किया जाता है. ईमानदार होना इसलिए नहीं कि यह कोई गुण है, बल्कि इसलिए कि ईमानदार होना फायदेमंद है.
चोर चोर मौसेरे भाई. अब फुफेरे क्यूँ नहीं, ममेरे क्यूँ नहीं? पंजाबी में मौसी को मासी कहते हैं. माँ जैसी. सो उसके बेटे सगे भाई जैसे हैं. सो मौसेरे भाई, लेकिन मामा तो डबल माँ जैसे हैं, फिर ममेरे भाई क्यूँ नहीं? और सबसे बड़ी बात सगे भाई क्यूँ नहीं? खोज का विषय है. खोजिये.
वैसे भाई लॉग्स तो यह भी कहते हैं कि आनेस्टी शब्द का तर्जुमा ईमानदारी नहीं है चूँकि ईमानदारी का मतलब तो है अल्लाह, कुरान और मोहम्मद साहेब पर ईमान लाना. जो उन पर ईमान लाया वो ईमानदारी. तो फिर हिंदी शब्द क्या है इसके लिए? 'निष्कपट" या कुछ और, पता नहीं.
वैसे यह भी झूठ है कि पुरातन भारत में लोग ताले नहीं लगाते थे घरों पर, इतने सच्चे थे. रावण सीता तक को उठा ले गया था. कृष्ण मक्खन चुराते थे, लडकियों के कपड़े चुराते थे, शायद ताले बनाने की कला अभी थी नहीं.
असल में जीवन में सफलता के लिए आपको चोरों पर मोर बनने की कला सीखनी होगी, जैसा जीवन है अभी. बस किसी से गरीब मार न हो यह ध्यान रखियेगा वरना अपुन को तो कोई ख़ास दिक्कत है नहीं.
चोरों के भी स्टैण्डर्ड होते हैं. कोई "चिंदी-चोर" है, तो कोई चोट्टा है. कोई स्टैण्डर्ड का है तो कोई छोटा है . मेरा मित्र अक्सर छोटी रेड लाइट पर नहीं रुकता. बोलता है उसकी शान के खिलाफ है. रेड लाइट का कोई स्टैण्डर्ड होना चाहिए.
जहाँ चोर है, वहां पुलिस है, वो बात दीगर है कि पुलिस उससे बड़ी चोर है और जज उससे बड़ा चोर और नेतागण की तो पूछो ही मत. इतने पैसे डकार जाता है कि खायेगा कैसे और हगेगा कैसे, समझ न आये. बहुत पहले जयललिता के यहाँ जब छापा पड़ा तो इतने जोड़ी जूते चप्पल पाए गए कि रोज़ एक पहने तो भी पहन न पाए. चोरी ज़रूरत भी हो सकती है और बीमारी भी और मूर्खता भी, इसके बहुत रूप हो सकते हैं. आखिरी किस्म के चोर, जयललिता टाइप, सबसे खतरनाक हैं. इनका इलाज़ सबसे ज़रूरी है.
गाँव में चोरी हो गई, पुलिस खोज न पाई कुछ, कुछ भी समझ न आये उनको. कोई सुराग नहीं. चोरी बड़े घर में हुई थी, बहुत प्रेशर था, अब प्रेशर के आगे तो पुलिस को वैसे ही प्रेशर बनने लगता है और वो प्रेशर कुकर की तरह उनकी सीटी बजने लगती है. सो जासूस लालबुझकड़ दास को बुलाना पड़ा. उनकी बड़ी तारीफ. बड़ा नाम. वो आये और घंटों अपना जासूसी लेंस लिए देखते रहे. इधर देखें, उधर देखें. उधर देखें, इधर देखें. शाम तक सारा गाँव इकट्ठा हो गया. जासूस लालबुझकड़ दास जी ने नतीजा सुना दिया. “यह काम तो किसी चोर का लगता है.”
कभी ध्यान से देखिएगा CID नामक टीवी प्रोग्राम में, वो प्रद्युमन सिंह ACP क्या कहते हैं. "दया, यह काम तो ज़रूर किसी चोर का लगता है." शेर्लोक्क होल्म्स की अक्ल को भी लोक लगा जाए. वाह, हमारे जासूस महोदय! जासूस को, पुलिस की अक्ल सोचना चाहिए. उससे चार कदम आगे. और वो सोचते हैं. बिलकुल. वो सोचते हैं कि किस तरह चोर से ज़्यादा लूटा जाए.
एक और बात है कि चोर सबसे ज़्यादा शोर मचाता है. ताकि खुद से ध्यान हट सके. ताकि कम से कम यह साबित हो सके कि वो खुद तो चोर नहीं. नेतागण यही करते हैं. ध्यान रखियेगा आगे से. नहीं तो "चोर मचाये शोर" नाम की फिल्म भी देख सकते हैं, मैंने भी नहीं देखी. कैसी है बता दीजियेगा.
कहते हैं कि चोर बड़ा ही सतर्क होता है. ध्यानस्थ. उसे पता है कि जीवन दाँव पर लगा है, सो चूक नहीं सकता. हर हरकत बड़ा चौकन्ना हो के करता है. सतर्क. यह शब्द ध्यान से देखें, इसका शाब्दिक मतलब यह है कि आप चौकन्ने हैं. चौतरफा कान होना. अपने इर्द गिर्द के प्रति जाग्रत. लेकिन इस शब्द को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि आप तर्कयुक्त हैं. सतर्क. आपको कोई उलझा नहीं सकता बकवासबाज़ी में. आप भावनाओं में नहीं बहने वाले. आप लालच में नहीं आने वाले. आप हर चीज़ के लिए फैक्ट मांगेंगे, तर्क मांगेंगे. यह है सतर्कता. सतर्कता आपके जीवन का बेसिक नियम होना चाहिए. लेकिन आप तो निर्मल बाबा की कृपा के लिए हजारों रुपये खर्च करते हैं. कुछ भी मान लेते हैं, क्या ख़ाक सतर्कता है आपमें. आपका तो जीवन अतर्कता पर खड़ा है. चोर से थोड़ा सीख लीजिये. वो सतर्क भी है, चौकन्ना भी, जाग्रत भी.
लेकिन चोर भी चोरी से पहले-पीछे देवी देवता के यहाँ मत्थे रगड़ता है. आपने सुना होगा कि डकैत देवी माँ के यहाँ छुपते-छुपाते ज़रूर पहुँचते रहे हैं. कितना तर्क होगा इस के पीछे?
या अतर्क? खोजिये.
चोर की सतर्कता, उसका चौकन्नापन सीखा जा सकता है. हम सोये-सोये जीते रहते हैं. मशीन की तरह. अब तो मनोविज्ञान भी कहता है कि आप जो काम दायें हाथ से करते हैं उसे बाएं से भी करें बीच-बीच में. ताकि मशीनीपन तोडा जा सके. सीधे चलते हैं तो कभी उलटे भी चलें. चोरी नहीं करते तो चोरी भी करें, न, न, यह मैं नहीं कहता, यह गलत बात है. लेकिन चोर जैसी जाग्रत अवस्था के लिए कुछ और कर सकते हैं. सीखना हो तो पत्थरों से भी सीखा जा सकता है. एकलव्य मिसाल है. चेला सच्चा होना चाहिए. चेला गुड़ होना चाहिए, गुरु चाहे गुड़-गोबर ही क्यूँ न हो. सीखना हो तो चोर से भी सीख सकते हैं.
एक तरफ चंद लोगों के पास दुनिया की हर सुविधा मौजूद है, दूसरी तरफ लोग पूरे-सूरे-अधूरे हैं , चोरी न होगी तो और क्या होगा? चोर को सज़ा दो, बढ़िया है. लेकिन जो व्यवस्था एक बच्चे को कोठी में और एक को कोठड़ी में खड़ा करती हो उसे सज़ा न दो, यह कहाँ का इन्साफ है?
कहते हैं कि चोरी का गुड बहुत मीठा होता है. वैसे बच्चे के खाने में से आँख चुरा कर कुछ खाना, उसका मज़ा ही कुछ और है और जब बच्चा विरोध करे तो उसे मनाना, उसे बहकाना, उससे माफ़ी माँगना उसका मज़ा स्वर्गिक है.
खैर, मैं बहुत बुरा लिखता हूँ यार, मित्रगण इत्ता खफा होते हैं कि रोज़ ब्लोकास्त्र चलाना पड़ता है और कुछ हैं कि मेरा लेखन चोरी करते रहते हैं. मैं असहिष्णु हूँ, तुरत विरोध कर देता हूँ.
वैसे लेखन का एक टिप देता हूँ, किसी को चोरी करने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी. कल्पना करें कि खुले पार्क में हैं, जहाँ कोई अवरोध नहीं. अब आँख पर पट्टी बाँध लें और खुद को खुला छोड़ दें, जिधर मर्ज़ी चलते जाएँ, जिधर बहना हो बहते जाएँ. बस. मतलब अपने मन के घोड़ों को आज़ाद कर दें और टीपते जाएँ. हो सकता है बहुत बढ़िया लेख जन्म ले ले. क्या कहा बकवास! खैर, मैं तो यूँ ही बकवास लिखता हूँ. कुछ मित्र फिर भी चोरी कर लेते हैं.
वैसे चोरी गर कोई करता है तो यह अपने आप में इनाम है. चोरी भी भरे घरों में होती है, सूने घरों में नहीं. सो आपका प्रेम बरसता रहना चाहिए.
नमन/ चुराएं न करें, चोरी करना पाप है/ कॉपी राईट मैटर/ तुषार कॉस्मिक
बहुत सुंदर💐🙏🏻
ReplyDeleteShukriya
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