Tuesday 29 June 2021

चोर को मत मारो, चोर की माँ को मारो.

"चोर को मत मारो, चोर की माँ को मारो." कहावत है

एक कहानी मेरे पिता सुनाते थे

एक बार एक चोर पकड़ा गया चोरी करते हुए, हुक्म हुआ राजा का कि चोर के हाथ काट दिए जाएँ. जिन हाथों से चोरी करता है, वो हाथ काट दिए जाएँ.

चोर ने सर झुका के बोला, "जनाब लेकिन गुनाहगार मेरे हाथ नहीं हैं."

"तो फिर कौन है?"

चोर ने कहा, "मेरी माँ को बुला दीजिए, पता लग जायेगा."

माँ को बुला दिया गया.

जैसे ही चोर की माँ चोर के सामने आई, चोर ने माँ के मुंह पे थूक दिया और बोला, "जनाब मेरी माँ है असल गुनाहगार. सजा इसे दीजिये. "

"कैसे?

"ऐसे चूँकि जब मैं पहली बार चोरी कर के आया तो मेरी माँ ने मेरे मुँह अपर थूका नहीं, बल्कि इस ने हसंते हुए मुझे सपोर्ट किया. वो जो थूक मैंने फेंकी, वो यदि मेरी माँ ने मेरी चोरी पर फेंकी होती तो आज मैं इस कटघरे में न खड़ा होता. असल गुनाहगार माँ है"

राजा ने चोर को छोड़ दिया और माँ को सजा दी

असल गुनाहगार माँ है

माँ कौन है.

कुरान

हदीस

इन पर तर्क से , एक एक आयत, एक एक घटना को तर्कपूर्ण छीन-भिन्न कर देना चाहिए पूरी दुनिया में.

इतना कि इन को जवाब न सूझे.

वो सूझेगा भी नहीं. बस जरा तर्क की ज़रूरत है

और सही जगह चोट की ज़रूरत है

चोट जड़ पे करने की ज़रूरत है. वरना पत्ते काटते रहो, कुछ न होगा.

रोहिंग्या पत्ते हैं, बच्चे हैं.

माँ, कुरान है, हदीस है

चोट चोर की माँ पर करो

जड़ कुरान है, हदीस है.

चोट जड़ पे करो.

और दुनिया के हर कोने से करो.

और बोले सो निहाल, सत श्री अकाल.


तुषार कॉस्मिक 

Monday 28 June 2021

जायेगा तो मोदी ही

हालाँकि मैं इस लोकतंत्र से बनी सरकारों को जनता कई प्रतिनिधि ही नहीं मानता. वैकल्पिक व्यवस्था मैंने दे रखी है. जिसे बहुत कम लोगों ने देखा, सुना.

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खैर, वर्तमान व्यवस्था में मैने जो समझा वो यह कि इस्लाम के अंधेरों से बचाने के लिए मोदी सरकार ही सही है. लेकिन यह सरकार बाकी सब मुद्दों पर फेल है. इनको कुछ नहीं पता क्या काम करना है, कैसे करना है. कोई ट्रेनिंग नहीं. आरएसएस की शाखाओं में भी नहीं. बस मौज मार रहे हैं इडियट्स.

और सबसे बड़ी बात, मोदी सरकार आज वैसे ही घमण्ड में दिखती है जैसे एक समय कांग्रेस दिखती थी.

हो सकता है कृषि कानून सही हों, लेकिन विरोध में बैठे किसानों को भी कोई हल देना बनता था, बनता है कि नहीं?

इन कानूनों को राज्य सरकारों के ऊपर क्यों नहीं छोड़ दिया गया?

और इन कानूनों का जब विरोध शुरू हुआ तो जन-जन में जा कर, गली-गली जा कर इन कानूनों के विरोध में उठते पॉइंट्स को क्लियर क्यों नहीं किया गया?

और फिर इन कानूनों पर ही जनता का वोट क्यों नहीं ले लिया गया?

यदि किसी राज्य विशेष के लोग नहीं चाहते कि इन कानूनों से जो विकास मिलना है वो मिले तो क्यों जबरन उस तथा-कथित विकास को थोपना?

याद रखना मेरी बात, वरना जायेगा तो मोदी ही.

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और
सब से बड़ी बात!

दुनिया-जहां में कोरोना को नकली बताया जा रहा है. भारत में भी अनेक लोग इसे बीमारी मान ही नहीं रहे. डॉक्टर भी. लेकिन मोदी सरकार है कि इडियट की तरह वैक्सीन लगाने पर जोर दिए जा रही है. मतलब जो एजेंडा WHO ने पकड़ा दिया, बस वही पेले जा रही है-धकेले जा रही है.

अबे, विरोध में उठते स्वरों को सुन तो लो. जन-जन को सुनने तो दो. फिर देखो, जनता खुद ही तय कर लेगी कि अफवाह क्या है और सच्चाई क्या है. या बस यही सीखा है कि प्रचार से, लगातार प्रचार से, धुआंधार प्रचार से कुछ भी बेचा जा सकता है.

इडियट्स!

याद रखना, सब लोग रोबोट नहीं होते, कुछ प्रचार की मोटी दीवारों को भेद कर सच्चाई देखने की क्षमता भी रखते हैं. सबको अपने जैसा चूतिया मत समझो. बल्कि उन की सुनो, ताकि कुछ अक्ल तुम्हारे भेजों में भी भेजी जा सके.

वरना
याद रखना मेरी बात, "जायेगा तो मोदी ही."

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और इस फर्ज़ी बीमारी, महा-मारी को असली मान कर, मनवा कर मोदी सरकार ने असली हाहा-कारी मचाई है. लॉक-डाउन लगा-लगा कर जन-जन को बेरोजगार किया है. ऐसे `में महान मोदी सरकार घर-घर खुल्ला राशन- पानी, मुफ्त बिजली -पानी और हर सुविधा देती तो फिर कहने के हकदार थी, "घर में रहो, सुरक्षित रहो." लेकिन मोदी सरकार ने उल्टा किया. महंगाई को बढने दिया. इतना की खाने के लाले पड़ रहे हैं. "घर-घर मोदी, चर गया मोदी."

सम्भल जाओ
वरना
"जायेगा तो मोदी ही."

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यदि मेरी बात न समझी गयी तो जल्द ही "जायेगा तो मोदी ही"

तब्दील हो जायेगा, "मोदी तो गीयो में."

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नमन
तुषार कॉस्मिक

Sunday 20 June 2021

Holy-shit

 ईसाई रविवार को छुट्टी रखते थे और चर्च जाते थे. सो इन्होने इस दिन को Holiday कहना शुरू कर दिया. लेकिन जैसे-जैसे ईसाईयों में धर्म के प्रति मोह घटना शुरू हुआ तो वहां Holy-crap यानि पवित्र कचरा और Holy-shit यानि पवित्र टट्टी जैसे शब्द भी चलन में आ गए. .... हमारे यहाँ पता नहीं ऐसा कब होगा?

Thursday 17 June 2021

जन्नत की हकीकत

 "जानते हैं जन्नत की हकीकत हम भी ए ग़ालिब.

मगर दिल के बहलाने को ख्याल अच्छा है."

इस्लाम अमन-पसंद है?

1450 सालों से तीर-तलवार, बम-बनूक से मुस्लिम दुनिया को समझा रहे हैं कि इस्लाम अमन का दीन है, लेकिन अभी भी दुनिया के बहुत से ढीठ लोग मान ही नहीं रहे. बिला शक 50 से ज़्यादा मुल्क तो मान गयें है.

वाह!
वल्लाह!!
सुभान-अल्लाह!!
माशा-अल्लाह!!!
अल्हम्दुलिल्लाह!!!
बाकी भी मान जाएंगे.
इंशा-अल्लाह!!!!
तुषार कॉस्मिक

मैं कौन

 हे पार्थ, मैं हरामियों में महा-हरामी हूँ और शरीफों में महा-शरीफ हूँ. मैं तुषार हूँ. तुषार कॉस्मिक.

एक और फ्रॉड

 बहुत से फ्रॉड चलते हैं दुनिया में. एक रोज़ होता है तुम्हारे साथ.

तुम से कहा गया कि मसाले ज़्यादा मत खाओ, अचार मत खाओ. असल में ये दोनों दवा है.
लहसुन, अदरक, साबुत नीबूं, किस चूतिया ने कहा कि ये नुकसान करते हैं?
सौंठ, काला नमक, सेंधा नमक, काली मिर्च, दाल चीनी, जीरा, धनिया, पुदीना ये किस ओवर-स्मार्ट इडियट ने समझाया कि हानिकारक हैं?
असल में अंग्रेज़ी दवा-अंग्रेज़ी डाक्टर चलाने के लिए तुम्हारी रसोई में रखी दवाओं के प्रति तुम्हें शंकालु बना दिया गया.
और फ़िर
"In search of Gold, you lost the Diamonds."

मैं भी कबीर

"कंकण्ड पत्थर जोड़ के मस्ज़िद लियो बनाये

ता चढ़ मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय"


अब इस पे भाई-जान कहते कि ये खुदा नहीं, मुसलमान को बुलाने को बांग दी जाती है, तो भी मैं कहना चाहता हूँ


"कंकण्ड पत्थर जोड़ के मस्ज़िद लियो बनाये

sms के ज़माने में, ऊँची-ऊंची बांग दे, मोहल्ला दियो जगाए"


कैसी रही?

रेस्पेक्ट

यदि देश-विदेश में community-wise सर्वेक्षण किया जाए कि कौन सी भारतीय कम्युनिटी की कितनी रेस्पेक्ट है तो मेरे हिसांब से नीचे दी गई तालिका फिट बैठेगी. तालिका में नम्बर 1 पर सबसे ज़्यादा रेस्पेक्ट पाए जाने वाली कम्युनिटी को रखा है मैंने. फिर नम्बर 2 पर उससे कम और नम्बर 3 पर उससे कम. ऐसे चल रही है यह तालिका. 

1.सिक्ख

2.जैन

3.बौद्ध

4.पारसी

5.हिंदू

6.मुस्लिम

बाकी आप बताएं.

तालिका गलत भी हो सकती है, आप अपनी राय दें.

Tuesday 15 June 2021

Religion is Fraud

Religion
is
Fraud.


Focus
on
Reason. 

लिखो तो ऐसे लिखो

मूंछे हों तो नत्थू लाला जैसी वरना न हों. 

लिखो तो जबरस्त, वरना न लिखो. 

ज़बरदस्त. 

जिसे पढ़ने लग जाएँ दस्त. 

उड़ा जाए डस्ट. 

कर दे बे-वस्था को पस्त, अस्त-व्यस्त.

कौन हैं ये चूतिये, जिन्हें प्रोफेशनल कहा जाता है ?

तुम्हें पता है डॉक्टर, वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट को प्रोफेशनल कहा जाता है. मतलब उनका प्रोफेशन ही प्रोफेशन है, वही प्रोफेशनल हैं बस.  बस. बकवास बात है. मेरी नज़र में  तो किसी भी काम  सही ढंग से करने वाला प्रोफेशनल है. चाहे जूते गांठने वाला हो, चाहे बाल काटने वाला हो, चाहे नाली साफ़ करने वाला हो

जिस दिन समाज  में एक गटर साफ़ करने वाले जमादार और एक दांत साफ़ करने वाले डॉक्टर को बराबर सम्मान और बराबर इज्ज़त मिलने लगेगी, समझना समाज सही दिशा में है.

तुम्हें पता है वकील, डॉक्टर, चार्टर्ड-अकाउंटेंट को प्रोफेशनल कहा जाता है. मतलब अपने-अपने  प्रोफेशन के परफेक्ट  लोग. लेकिन असल में ऐसा बिलकुल नहीं  है. सबूत यह है कि ये अपने काम को 'प्रैक्टिस' करना बोलते हैं. यानि अपने काम की प्रैक्टिस कर रहे हैं. सही से सीखे नहीं है, प्रैक्टिस कर-कर के उसे ठीक से सीखने का प्रयास कर रहे हैं. वो प्रैक्टिस किस पर की जा रही है? आप पर

वर्तमान राजनीति पर एक दृष्टि

गॉडफादर फ़िल्म में डॉन कोर्लेओनी कहता है, " नजदीक के छोटे फायदे से दूर का बड़ा नुकसान भी होता हो तो भी ज्यादातर लोग नजदीक का फायदा चुनते हैं। क्योंकि लोग दूर-दृष्टि के रोग से पीड़ित होते हैं। क्योंकि लोग मूर्ख होते हैं।"

मैं सहमत हूँ, ये जो दिल्ली के लोग केजरीवाल को इसलिये वोट देते हैं कि वो ये चीज फ्री दे रहा है-वो चीज फ्री दे रहा है, वो लोग क्युटिये हैं। केजरीवाल मूर्ख है, जो गाँधी के 'ईश्वर अल्लाह तेरो नाम' के दर्शन को पकड़े है, बिना अल्लाह वालों से पूछे कि क्या वो भी यही मानते हैं या 'अल्लाह -हु-अकबर' मानते हैं।

इस्लाम किसी और दीन-धर्म को जगह नहीं देता. अल्लाह-हु-अकबर. अल्लाह है सबसे बड़ा. ला-इल्लाह-लिल्लाह. नहीं कोई पूजनीय अल्लाह के सिवा. बात खत्म. 

मेरी समझ यह है कि मुस्लिम कभी भी भाजपा को वोट नहीं देगा. उसे क्लियर है कि भाजपा मुस्लिम विरोधी है.  वो मोदी सरकार से मिले फायदे तो उठा लेगा लेकिन वोट फिर भी नहीं देगा बल्कि भाजपा को हराने के लिए हर सम्भव प्रयास करेगा लेकिन गैर-मुस्लिम बुद्धू है, वो केजरीवाल जैसे लोगों से मिल रहे फायदे में बह जाते हैं और उसे जिता देते हैं. वो इस्लाम के सामाजिक, वैचारिक, आर्थिक  खतरों को नहीं समझते. वो इडियट  हैं. वो दूर तक नहीं देख पाते.

जैसा मैंने लिखा ही है कि मुस्लिम कभी भाजपा को वोट नहीं देगा और मेरे मुताबिक दुनिया को इस्लाम की अंधेरी, गैर-वैज्ञानिक, अतार्किक व्यवस्था से बचाने का हर सम्भव प्रयास  किया जाना  चाहिये तो फिर फिलहाल गैर-मुस्लिम के पास सिवा भाजपा के कोई और विकल्प नहीं बचता.

 भाजपा सिवा मुस्लिम विरोध के मुद्दे के कहीं सही नहीं होती. फिर किया क्या जाए? फिलहाल वोट इन्हें ही दीजिये लेकिन वोट देने के बाद ज़िम्मेदारी खत्म मत समझिए. अपने इलाके के Councilor, MLA, MP को छित्तर मार-मार समझाएँ कि क्या काम करना है, कैसे करना है. इनको e-mail करें, फ़ोन करें, लेटर भेजें. वोट दे के सो मत जाएं. न इनको सोने दें. ये इडियट हैं, इडियट से जूते मार-मार काम लीजिए ~

Thursday 10 June 2021

https://www.jihadwatch.org/

https://www.jihadwatch.org/

इस वेबसाइट को खोलिए. इसके पहले पेज पर ही आपको एक बॉक्स दिखेगा राईट साइड में थोडा सा नीचे जा कर. 39226 Deadly attacks किये गए इस्लामिक टेररिस्ट ने 9/11 आक्रमण के बाद. इस बॉक्स को जब आप  क्लिक करेंगे तो यह आपको बतायेगा कि मई 2021 में 13 मुल्कों में 34 अटैक किये गये हैं जिनमें 149 लोग मारे गए हैं और 84 लोग घायल हुए हैं. आप कहेंगे कि हम कैसे मान लें कि यह वेबसाइट सही जानकारी दे सकती है? तो जवाब यह है कि यह एक खुली वेबसाइट है. अगर झूठ बोलती है तो अब तक भाई लोग इसे कब का बंद करवा चुके होते. आखिरकार 50 के आस-पास मुल्क हैं उनके. नहीं?

सफलता क्या है - मेरा नज़रिया

तुम्हारा सपना क्या होता है? सफलता क्या है तुम्हारी नजर में? खूब सारा पैसा. या फिर शोहरत. यही न. काफी है. इडियट हो तुम! सुशिल कुमार ने दो बार ओलिंपिक मैडल जीता. सब मिल गया था उसे. फिर भी एक लाख रुपये का इनामी भगोड़ा घोषित होने के बाद क़त्ल के केस में बंद है. ज़िंदगी में हार बर्दाश्त करना बहुत ज़रूरी है लेकिन उससे भी ज़रूरी जीत बर्दाश्त करना है. सुशील कुमार जीत हज़म नहीं कर पाया. उलटी कर दी. मेरी नज़र में सफलता हालात के मुताबिक विवेक से जीना है. चाहे हालात जैसे भी हों.

इन्सान उसकी प्रोपर्टी मात्र नहीं है

देखता हूँ, लोग आपस में मिलते हैं तो उनकी बातचीत घूम-फिर के अक्सर पैसे-प्रॉपर्टी पर केंद्रित हो जाती है. फिर वो एक दूसरे को पैसे-प्रॉपर्टी से ही तौलते हैं. 

क्या आपको पता है मैंने सैकड़ों लेख लिखे हैं, बीसियों कहानियां लिखी हैं, कुछ कविताएं और कुछ यात्रा संस्मरण भी? सब है वेब पे. अब यह सब ऐसे ही तो नहीं लिख मारा होगा. बहुत कुछ पढा, बहुत कुछ गढ़ा और घड़ा, बहुत कुछ जीया, बहुत कुछ सीखा तभी तो कुछ लिखा. लेकिन जब कोई मुझे पैसे-प्रॉपर्टी से आँकना चाहता है तो मुझे वो सिर्फ चूतिया लगता है.

एक इन्सान सिर्फ उसका धँधा या उसकी प्रॉपर्टी ही नहीं होता, उससे कहीं ज़्यादा, कहीं इतर भी होता है, हो सकता है. वो वैज्ञानिक, साहित्यकार, खिलाड़ी, पेंटर, मूर्तिकार या फिर कुछ और भी हो सकता है ~~ तुषार कॉस्मिक

क्या जीना डरे-डरे और मरे-मरे

घण्टा!!!

हम न बजाते मन्दर में.

और 

न ही मुँह छुपाते फिरते. 

खुल्ला जीते. 

मौत की आँखों में आँखें डाल.

आ जा, जब आना हो लेकिन जब तक जीएंगे खुल के जीएंगे.

फर्क किताब और ग्रन्थ का

क़िताब दुनिया की बड़ी नेमत हैं, सौगात हैं. 

इन्हें पढ़ो.


लेकिन ग्रँथ,आसमानी किताबें  खतरनाक हैं. 

इनसे बचो.


फर्क पढ़े-लिखे और पढ़ते-लिखते होने का

यदि तुम पढ़े-लिखे हो,

तो तुम निश्चित ही चूतिये हो 

और 

यदि पढ़ते लिखते हो, 

तो तुम सयाने हो भी सकते हो.

विज्ञान कैसे पैदा होगा

कहीं पढ़ा कि हिन्दू-मुस्लिम बस अपने शास्त्रों का अर्थ-अनर्थ ही करते रहे और ईसाई और यहूदी विज्ञान पैदा करते में लगे रहे. सच है कि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान में ईसाई और यहूदी समाज का बहुत योगदान है. 

लेकिन ये ज्ञान-विज्ञान ईसाईयत और यहूदियत की वजह से पैदा नहीं हुआ बल्कि ईसाइयत और यहूदियत के बावजूद पैदा हुआ. इसलिये पैदा हुआ चूंकि ईसाईयत और यहूदियत का मकड़-जाल, जकड़-जाल कहीं ढीला था. वो सोच को आज़ाद सांस लेने देता था, दे रहा है. 

बाकी आप भजते रहो-- हरे रामा हरे कृष्णा. और करते रहो --अल्लाह-हु-अकबर.

जनसंख्या और वोटिंग का अधिकार

रामदेव कहते हैं तीसरा बच्चा होते ही छिन जाये वोटिंग का अधिकार।

मैं कहता हूँ जिनके पहले से ही ज़्यादा बच्चे हों, उन परिवारों को भी वोट देने का हक नहीं होना चाहिए क्योंकि एक ख़ास मज़हब बच्चे ज्यादा एक रणनीति के तहत पैदा करता है.... ताकि तख्त पलट सके।

पशु और इन्सान का फर्क

पशु शब्द का मतलब समझते हैं? जो पाश में बंधा है. पाश यानि जाल. जानवर शब्द का मतलब है जान-वर. जिसमें जान है. लेकिन इन्सान को पशु या जानवर क्यों नहीं माना जाता है? जान है उसमें लेकिन फिर उसे जानवरों से अलग क्यों माना जाता है? चूँकि वो मनुष्य है. मानुस. मनस. यानि मनन करने वाला. मतलब यह कि स्वयंभू ने इन्सान तक आते-आते दो चीज़ों की इजाद की. एक फ्री-विल और दूसरी इंटेलिजेंस. इन दोनों के मेल से ही मनन होता है. लेकिन इन्सान क्युटिया निकला. उसने यह गिफ्ट मन्दिर, मस्जिद , गिरजे को गिरवी रख दी और आज तक छुड़ा नहीं पाया. वो फिर से पाश में बंध गया. वो पशु हो गया. वो जानवर हो गया. ..

मुस्लिम का एजेंडा

मुस्लिम का एक ही एजेंडा है मोदी सरकार गिराओ. मतलब मोदी से नहीं है और न ही हिन्दू से. मतलब एक ही है. किसी काफिर की सरकार क्यों? मुस्लिम को जितनी मर्ज़ी सुविधा दे दो, वो काफ़िर सरकार से कभी खुश नहीं होगा. वो एक जुट हो कर वोट देता है काफिर के ख़िलाफ़. लेकिन काफिर क्युटिया है, वो समझता ही नहीं कि मुस्लिम काफ़िर को बेलने के लिए ही काफ़िर का इस्तेमाल करता है. सावधान! मुस्लिम पावर में आते ही सब गैर-मुस्लिम को बेलेगा. इतिहास गवाह है. वो सिवा अल्लाह-रसूल-क़ुरान के कुछ नहीं मानते, सब फलसफा धरा रह जाएगा, सब "फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन" घुस जाएगी.

सोशल मीडिया के पैंतरे

भारत में जब आप सामाजिक या राजनीतिक पोस्ट करते हैं तो ज़्यादातर लोगों की राय तर्क या तथ्य पर आधारित नहीं होती.

जैसे खालिस्तानी को हिन्दू सरकार नागवार गुज़र रही है तो उसकी पोस्ट और कमेंट अक्सर हिन्दू के खिलाफ और मुस्लिम के पक्ष में होते हैं.
तथाकथित वामपंथी खुलकर इस्लामपरस्त हैं।
ऐसा ही आरक्षण भोगी तथाकथित "वे" करते हैं. वो आरक्षण के फायदे भी लेते हैं और हिन्दू समाज को गाली भी देते हैं.
ऐसे ही कांग्रेस से जुड़े अधिकांश लोग करते हैं.
इनको कोई पोस्ट/कोई विचार मुस्लिम के खिलाफ समझ नहीं आएगा.
वैसे तथाकथित हिन्दू भी कम नहीं, उनको लाख तर्क बता दो उनकी मान्यताओं के खिलाफ, मानते वो भी नहीं जल्दी. बस एग्रेसिव नहीं हैं मुस्लिम जितने. कहीं कम.
सो तर्क देने वाला क्यों तर्क दे रहा है, वो भी मायने रखता है.
घोड़ा गाड़ी के आगे नहीं, गाड़ी के पीछे बाँधने वालों के तर्क मात्र राजनीति हैं, न कि कोई बढ़िया "समाजनीति" ।
ऐसों के साथ मगज़-मारी करने का कोई फायदा नहीं.
बकने दीजिए. लिखने दीजिए .इग्नोर करिए. कम से कम कमेन्ट संख्या तो बढ़ाते हैं. वो भी ज़रूरी है. सो बने रहने दीजिये .

सर गंगा राम की मूर्ति

सर गंगा राम की एक संगमरमर की मूर्ति लाहौर में माल रोड पर एक सार्वजनिक चौक में खड़ी थी। प्रसिद्ध उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो ने उन लोगों पर एक व्यंग्य लिखा जो विभाजन के दंगों के दौरान लाहौर में किसी भी हिंदू की किसी भी स्मृति को मिटाने की कोशिश कर रहे थे। 1947 के धार्मिक दंगों के दौरान लिखी गई उनकी व्यंग्य कहानी "द गारलैंड" में....लाहौर में एक उग्र भीड़ ने एक आवासीय क्षेत्र पर हमला करने के बाद, लाहौर के महान लाहौरी हिंदू परोपकारी सर गंगा राम की प्रतिमा पर हमला किया। उन्होंने पहले पथराव किया। पत्थर से मूर्ति; फिर उसके चेहरे को कोयले के तार से दबा दिया। फिर एक आदमी ने पुराने जूतों की माला बनाई और मूर्ति के गले में डालने के लिए ऊपर चढ़ गया। पुलिस पहुंची और गोली चलाई। घायलों में माला वाला साथी था जैसे ही वह गिर गया, भीड़ चिल्लाई: "चलो उसे सर गंगा राम अस्पताल ले जाएं"....

विडंबना यह है कि वे उसी व्यक्ति की स्मृति को मिटाने की कोशिश कर रहे थे जिसने उस अस्पताल की स्थापना की थी जहां उस व्यक्ति को ले जाया जाना था। जो उसकी जान बचा रहा है। कंटेंट मेरा लिखा नहीं है, विकिपीडिया से लिया है. और मैंने सुना है कि इन्हीं सर गंगा राम के नाम पर दिल्ली में गंगा राम अस्पताल है.

कब्जा

सब देश जमीन कब्जा कर बनते हैं, जितना कब्जा उतना बड़ा देश. यह कब्जा घटता-बढ़ता रहता है. एक-दूसरे पर हमला करते रहते हैं. जमीन की छीना-झपटी करते रहते हैं. सीमा-विवाद चलते रहते हैं.

लेकिन हाँ, आपको जमीन खरीद के ही मिलेगी. बाकायदा रजिस्ट्री होगी तभी जमीन आपको मिलेगी. वही जमीन जो हो सकता है, आपकी सरकार ने, मुल्क ने, समाज ने छीनी हो किसी और से.
इस सब के चलते धरती माता हैरान है कि उसे लोग माता भी कहते हैं और उसकी बेच-खरीद भी करते रहते हैं! बेचारी माता!!

Belief System

धर्म को अंग्रेज़ी में Belief System भी कहते हैं.

Belief System यानि विश्वास व्यवस्था. कुछ विश्वासों पर टिकी व्यवस्था.
विचार नहीं, ज्ञान नहीं, विज्ञान नहीं बस विश्वास. कुछ विश्वासों का टोकरा. "कोई" दुनिया बनाने वाला है, चलाने वाला है, बिगाड़ने वाला है. अब यह "कोई" सब का अलग है, अलग ढँग से काम करता है.
कभी सोचते हैं, ये विश्वास व्यवस्थाएं विश्वासों पर नहीं अंध-विश्वासों पर टिकी हैं और इन व्यवस्थाओं ने पूरी दुनिया को अव्यवस्थित कर रखा है.
सोचते हैं कभी?

वैक्सीन के फ्रंट-बेक-साइड इफ़ेक्ट

ये क्या बकवास है? जिस ने वैक्सीन नहीं लगवाई वो ऑफिस नहीं जाएगा, फ्लाइट नहीं ले पायेगा, दुकान नहीं खोल पायेगा?

मतलब सवाल भी तुम, जवाब भी तुम.

बीमारी भी तुम ने तय कर दी और इलाज भी तुम ने थोप दिया. अच्छे भले लोगों पर वैक्सीन को थोप दिया. वो वैक्सीन जिसके लगवाने से फ्रंट-बेक-साइड इफ़ेक्ट की, काले-पीले फंगस की ज़िम्मेदारी वैक्सीन बनाने वाले भी नहीं ले रहे.
क्या है बे ये?

UPSC

UPSC. ये कोई इम्तिहान होता है. पार करते ही बनते हैं भारत में सबसे बड़ा अफ़सर. IAS. IPS. और ये बनते ही गाड़ी-घोड़ा, कार-कोठी, रौब-रुतबा सब हाज़िर.

चलिए बता दूं. मेरी नज़र में ज़्यादातर सरकारी नौकर मंद-बुद्धि और बंद-बुद्धि होते हैं जिन को फाइल में क्या है वो तब तक नहीं दिखता जब तक उन की जेब गर्म न की जाए. ज़्यादातर ये बदतहजीब और रिश्वत-खोर होते हैं. आज तक IAS हो IPS हो या कोई भी और, इन्होने प्रशासनिक सेवाओं में कुछ भी सुधार नहीं किया है. ये लकीर के फकीर रहे हैं. रट्टू-तोते.निरे बुद्धू,अविष्कार करने वाली बुद्धि ही कुछ और होती है.

गोडसे द्वारा गाँधी वध

मुझ से भाईजान बहस रहे थे.

उन्होंने कहा, "इस्लाम शांति का मज़हब है."

मैंने कहा, "तो फिर जगह-जगह बम बने क्यों फटते फिरते हैं मुस्लिम?"
"ऐसा बिलकुल नहीं है. वो तो उनको बदनाम किया जाता है. असल आतंकी तो संघी हैं, इन्होने गाँधी को मार दिया."
"लेकिन दोनों में फर्क है भाई. मुस्लिम कत्ल इसलिए करते फिरते हैं चूँकि इस्लाम फॉलो नहीं हो रहा. और गांधी इसलिए मारे गए चूँकि मुल्क बंटा चूँकि हिन्दू-मुस्लिम साथ नहीं रह सकते थे, लेकिन फिर भी मुस्लिम को भारत में बने रहने दिए गए. जिस वजह से मुल्क बंटा उन्होंने वो वजह भी बनी रहने दी और मुल्क के टुकड़े भी करा दिए. सिर्फ इतना ही नहीं हुआ लाखों लोग बेघर हुए, दर-बदर हुए. कितने ही बलात्कार हुए, कत्ल हुए. गाँधी और उन का 'इश्वर-अल्लाह तेरों नाम' का गलत फलसफा इस का ज़िम्मेदार था. तो भाई जी ज़रूरी नहीं कि आप कत्ल गन से ही करते हों. आप कत्ल किताब से भी करते है. ज़रूरी नहीं आप वार तलवार से करते हो, आप वार विचार से भी करते हो. और यही था गाँधी का वार. विचार का वार. गलत विचार का वार. अहिंसा के पुजारी की हिंसा. अब बदले में हिंसा मिली, हत्या मिली तो उसका ज़िम्मेदार कौन है? गाँधी खुद. वो सिर्फ अपनी ही नहीं, लाखों हिन्दू-मुस्लिम की हत्या के ज़िम्मेदार हैं और नाथू राम गोडसे की फांसी के भी ज़िम्मेदार हैं. तो यह है फर्क. ध्यान से देखिये. कौन आतंकी है. मुस्लिम का आतंकी बन जाना, यूरोप, अमेरिका, भारत में बम-बारूद बन जाना और गोडसे का गांधी को मारना दोनों ही अलग हैं. ठीक से देखना सीखो, ठीक से दिखना शुरू हो जायेगा."

तुषार कॉस्मिक