"चोर को मत मारो, चोर की माँ को मारो." कहावत है
एक कहानी मेरे पिता सुनाते थे
एक बार एक चोर पकड़ा गया चोरी करते हुए, हुक्म हुआ राजा का कि चोर के हाथ काट दिए जाएँ. जिन हाथों से चोरी करता है, वो हाथ काट दिए जाएँ.
चोर ने सर झुका के बोला, "जनाब लेकिन गुनाहगार मेरे हाथ नहीं हैं."
"तो फिर कौन है?"
चोर ने कहा, "मेरी माँ को बुला दीजिए, पता लग जायेगा."
माँ को बुला दिया गया.
जैसे ही चोर की माँ चोर के सामने आई, चोर ने माँ के मुंह पे थूक दिया और बोला, "जनाब मेरी माँ है असल गुनाहगार. सजा इसे दीजिये. "
"कैसे?
"ऐसे चूँकि जब मैं पहली बार चोरी कर के आया तो मेरी माँ ने मेरे मुँह अपर थूका नहीं, बल्कि इस ने हसंते हुए मुझे सपोर्ट किया. वो जो थूक मैंने फेंकी, वो यदि मेरी माँ ने मेरी चोरी पर फेंकी होती तो आज मैं इस कटघरे में न खड़ा होता. असल गुनाहगार माँ है"
राजा ने चोर को छोड़ दिया और माँ को सजा दी
असल गुनाहगार माँ है
माँ कौन है.
कुरान
हदीस
इन पर तर्क से , एक एक आयत, एक एक घटना को तर्कपूर्ण छीन-भिन्न कर देना चाहिए पूरी दुनिया में.
इतना कि इन को जवाब न सूझे.
वो सूझेगा भी नहीं. बस जरा तर्क की ज़रूरत है
और सही जगह चोट की ज़रूरत है
चोट जड़ पे करने की ज़रूरत है. वरना पत्ते काटते रहो, कुछ न होगा.
रोहिंग्या पत्ते हैं, बच्चे हैं.
माँ, कुरान है, हदीस है
चोट चोर की माँ पर करो
जड़ कुरान है, हदीस है.
चोट जड़ पे करो.
और दुनिया के हर कोने से करो.
और बोले सो निहाल, सत श्री अकाल.
तुषार कॉस्मिक
Teri nunni par na chot ki jaye? tujh jaise nafrati chinto ke khan chot ki jaye kise saza di jaye
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