सोशल मीडिया के पैंतरे

भारत में जब आप सामाजिक या राजनीतिक पोस्ट करते हैं तो ज़्यादातर लोगों की राय तर्क या तथ्य पर आधारित नहीं होती.

जैसे खालिस्तानी को हिन्दू सरकार नागवार गुज़र रही है तो उसकी पोस्ट और कमेंट अक्सर हिन्दू के खिलाफ और मुस्लिम के पक्ष में होते हैं.
तथाकथित वामपंथी खुलकर इस्लामपरस्त हैं।
ऐसा ही आरक्षण भोगी तथाकथित "वे" करते हैं. वो आरक्षण के फायदे भी लेते हैं और हिन्दू समाज को गाली भी देते हैं.
ऐसे ही कांग्रेस से जुड़े अधिकांश लोग करते हैं.
इनको कोई पोस्ट/कोई विचार मुस्लिम के खिलाफ समझ नहीं आएगा.
वैसे तथाकथित हिन्दू भी कम नहीं, उनको लाख तर्क बता दो उनकी मान्यताओं के खिलाफ, मानते वो भी नहीं जल्दी. बस एग्रेसिव नहीं हैं मुस्लिम जितने. कहीं कम.
सो तर्क देने वाला क्यों तर्क दे रहा है, वो भी मायने रखता है.
घोड़ा गाड़ी के आगे नहीं, गाड़ी के पीछे बाँधने वालों के तर्क मात्र राजनीति हैं, न कि कोई बढ़िया "समाजनीति" ।
ऐसों के साथ मगज़-मारी करने का कोई फायदा नहीं.
बकने दीजिए. लिखने दीजिए .इग्नोर करिए. कम से कम कमेन्ट संख्या तो बढ़ाते हैं. वो भी ज़रूरी है. सो बने रहने दीजिये .

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