Thoughts, not bound by state or country, not bound by any religious or social conditioning. Logical. Rational. Scientific. Cosmic. Cosmic Thoughts. All Fire, not ashes. Take care, may cause smashes.
Monday 18 January 2021
बेटियाँ तो सांझी होती हैं
Sunday 10 January 2021
चीकू
चीकू. वो शुरू से ही सुंदर सा था, सफेद और बीच-बीच में काले धब्बे. कद छोटा। छोटा सा जवान कुत्ता, उसे कोई मोहल्ले में छोड़ गया था या शायद वो खुद ही कहीं से आन टपका था.
जिस घर के सामने वो बैठता था, वो उसे खूब प्यार-दुलार, खाना-दाना देता था लेकिन फिर घर वालों को कोई और कुत्ता भा गया, जो चीकू से कहीं लम्बा -चौड़ा था. अब चीकू और उस नए कुत्ते की लड़ाई होने लगी. चीकू रोज़ाना पिट जाता. हार कर उसे वो जगह छोड़नी पडी.
उसे सुरेश के घर के आगे पनाह मिल गयी. सुरेश को कुत्ते कोई ख़ास पसंद-नापसंद नहीं थे. लेकिन उसके बच्चों को चीकू पसंद आ गया. चीकू को वो बच्चे पसंद आ गए. वो आपस में खेलते. चीकू मस्त. लेकिन कुत्ता तो कुत्ता. वो रात में गली में खूब भौंकता. बिना मतलब भौंकता. सुरेश कहता, "इसे भूत दीखते हैं क्या?" छोटे सटे हुए घर. सुरेश की नींद हराम होने लगी.
एक रात उसने चीकू को भगा दिया. एक दो दिन चीकू गायब रहा. फिर इक दिन वो बुरी तरह से घायल मिला. उसके गले पर गहरा ज़ख्म था. सुरेश ने ख़ास ध्यान न दिया. कुछ दिन बाद किसी ने बताया चीकू को कीड़े पड़ गए हैं. सुरेश ने देखा. उसके गले पर जो ज़ख़्म था, वो और बड़ा हो गया था और उसमें अनगिनत सफेद कीड़े थे. अब चीकू मरने जैसा था.
सुरेश का दिल पसीजा, वो दो बेटियों के साथ कार में बारिश में चीकू को अस्पताल ले गया. कई दिन की तीमार-दारी के बाद चीकू सही हो गया.
अब कुछ ही दिन बाद म्यूनिसिपलिटी वाले चीकू को उठा ले गए और उसका ईलू -पीलू कर वापिस छोड़ गए. चीकू कई दिन घायल सा पड़ा रहा. हैरान-परेशान. फिर धीरे-धीरे ठीक हो गया.
लेकिन फिर उसका किसी बड़े कुत्ते से झगड़ा हुआ जिसने उसके अंड -कोष उधाड़ दिए. मरने जैसा हो गया फिर से चीकू. सुरेश ने बेटियों के साथ मिल फिर से चीकू को ज़िंदा किया. अब चीकू ठीक है, लेकिन रात को बहुत भौंकता है. उसे देख गली के बाकी कुत्ते भी बहुत भौंकते हैं.
अब सुरेश ने प्रण किया है अबकी बार चीकू को नहीं बचाना. "कुत्ता है कोई इंसान थोड़ा न है. क्या हम जूं नहीं मारते? क्या हम चिकन नहीं खाते? क्या हम कॉकरोच नहीं मारते? मरने दो, चीकू को भी, कुत्ता ही है", वो खुद को समझाने लगा.
चीकू फिर से घिर गया कहीं बड़े कुत्तों में. सुरेश को पता लगा. वो पहुँच गया. लहू-लुहान चीकू को उठा चल पड़ा अस्प्ताल की तरफ. चीकू उसकी गोद में था, सुरेश सोचता जा रहा था, "अब यह आखिरी बार है चीकू, अब आगे तुझे नहीं बचाऊंगा.... "
मैं हवा का ही तो बना हूँ
अभी बाहर गली में घूम रहा था.
दिसंबर अपने यौवन पर है.
आधी रात .
मुंह पर ठंडी हवा के थपेड़े पड़ रहे थे.
बर्फीली हवा मुझे अच्छी लग रही थी.
अंदर जाती साँस गीली-गीली थी.
मुझे अपना होना सुखद लग रहा था.
क्यों?
शायद मैं खुद से मिल रहा था.
मैं हवा का ही तो बना हूँ,
और मिटटी का,
और पानी का,
और ज़मीन का,
और आसमान का.
और
हवा में ही मिल जाऊँगा,
और मिटटी में घुल जाऊंगा,
और पानी में,
और ज़मीन में,
और आसमान में.
घटती इज़्ज़त
वो परिवार के साथ खाना खा रहा था.
उसने बच्चों से मुखातिब होते हुए हलके-फुल्के मूड में कह दिया, "मैं अगर तुम्हारी ममी की थाली से दो कौर रोटी मांग लूँगा तो ममी कहेंगी कि देखों मुझे तुम्हारा बाप खाना नहीं देता. "
"सो तो है ही" पत्नी ने कहते हुए दो कौर रोटी उसकी थाली में फेंक दी.
बड़ी बेटी ने नोट करते हुए कहा, "देखना, ममी पापा को रोटी किस ढंग से दे रही हैं!"
"पता है बेटा, जैसे कुत्ते को देती हैं बाहर गली में वैसे ही." उसने कहा.
ममी बोली, "न, न, कुत्ते को तो मैं प्यार से रोटी देती हूँ."
सब हंसने लगे, वो भी हंसने लगा. बात आई गयी हो गयी, सब सो गए, लेकिन सोते हुए उसकी आंख कुछ गीली थी.