भगवान
'भगवान' शब्द का संधि-विच्छेद करें तो यह है भग+वान. भग वाला. योनि वाला. योनि, जहाँ से सब जन्म लेते हैं. ध्यान दीजिये, 'भगवान' शब्द पुरुषत्व और स्त्रीत्व दोनों लिए है. हम भगवान शब्द को पुलिंग की तरह प्रयोग करते हैं. लेकिन वो 'पु-लिंग' है तो 'स्त्री-भग' भी है. वो 'भगवान' है. वो अर्द्ध-नारीश्वर है. वो 'भगवान' है. वो शून्य है अब है तो फिर शून्य कैसे और शून्य तो फिर है कैसे लेकिन वो दोनों कबीर समझायें तो उलटबांसी हो जाए गोरख समझायें तो गोरख धंधा हो जाए वो निराकार है और साकार भी साकार में निराकार और निराकार में साकार वो प्रभु वो स्वयम्भु वो कर्ता और कृति भी वो नृत्य और नर्तकी भी वो अभिनय और अभिनेता भी वो तुम भी और वो मैं भी बस वो ...वो ...वो ...वो मैं नास्तिक नहीं हूँ......हाँ, लेकिन जिस तरह आस्तिकता समझी जाती है, उन अर्थों में आस्तिक भी नहीं हूँ. मेरे लिए हमारा समाज ही भगवान है, हमारी धरती ही भगवती है, हमारा ब्रह्मांड ही ब्रह्मा है. मैं कॉस्मिक हूँ. मैं तुषार कॉस्मिक हूँ. केवल कुछ प्रश्न और सभी धर्म और इन धर्मों पर आधारित संस्कृतियाँ धराशायी ...