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प्राइवेट स्कूलों की ईंट से ईंट बजा दो, वो तुम्हारी ज़मीन पर बने हैं

दिल्ली में हूँ, यहाँ फुटों के हिसाब से ज़मीन बिकती है. उस ज़मीन का टॉयलेट भी खरीदने की भी क्षमता नहीं होती स्कूल के मेनेजर की. अरबों रुपये की ज़मीन होती है स्कूल के पास. है, किसी की औकात की ज़मीन खरीद कर चला ले स्कूल?  किसकी है वो ज़मीन? पब्लिक की. आपकी.  यह जो आप शब्द प्रयोग करते हैं न 'सरकारी'. हकीर है यह शब्द. फ़कीर है यह शब्द. 'सरकारी' शब्द से लगता है पब्लिक का तो कोई हक़ ही नहीं इसमें, सब सरकार का है. नहीं. 'पब्लिक' शब्द का प्रयोग कीजिये 'सरकारी' की जगह. 'सरकारी अफसर' नहीं 'पब्लिक सर्वेंट' कहें. 'सरकारी स्कूल' नहीं 'पब्लिक स्कूल' कहें. और यह जो खुद को 'प्राइवेट स्कूल' कहते हैं , ये भी 'पब्लिक स्कूल' हैं, जो पब्लिक की ज़मीन पर चलाए जाते हैं. रवीश कुमार स्कूलों की लूट पर जन-सुनवाई चला रहे हैं पिछले तीन-चार दिन से, लेकिन सरकारी और प्राइवेट और पब्लिक स्कूलों की परिभाषा नहीं समझ पाए, पॉइंट उठाया, लेकिन कौन सरकारी, कौन प्राइवेट, कौन पब्लिक स्कूल, यह नहीं समझ-समझा पाए. असल में स्कूल का सारा धन्धा दान लेकर ...