Showing posts with label काम-शास्त्र. Show all posts
Showing posts with label काम-शास्त्र. Show all posts

Saturday 20 June 2015

किस ऑफ लव

किस को "किस ऑफ़ लव" पसंद न होगी. नहीं पसंद तो वो इन्सान का बच्चा/बच्ची हो ही नहीं सकता/सकती. जब सबको लव पसंद है, किस ऑफ़ लव पसंद है तो फिर काहे का लफड़ा, रगड़ा? लेकिन लफड़ा और रगडा तो है. और वो भी बड़ा वाला. समाज का बड़ा हिस्सा संस्कृति-सभ्यता की परिभाषा अपने हिसाब से किये बैठा है. इसे भारत की हर सही-गलत मान्यता पर गर्व है लेकिन इसे कोई मतलब ही नहीं कि यही वो पितृ-भूमी है, मात-भूमी, पुण्य-भूमी है जहाँ वात्स्यान ने काम-सूत्र गढा और उन्हे ऋषि की उपाधि दी गयी, महर्षि माना गया. यहीं काम यानि सेक्स को देव यानि देवता माना गया है, “काम देव”. यहीं शिव और पारवती की सम्भोग अवस्था को पूजनीय माना गया और मंदिर में स्थापित किया गया है. यहीं खजुराहो के मन्दिरों में काम क्रीड़ा को उकेरा गया. काम और भगवान को करीब माना गया. न सिर्फ स्त्री-पुरुष की काम-क्रीड़ा को उकेरा गया है, बल्कि पुरुष और पुरुष की काम-क्रीड़ा को भी दर्शाया गया है. बल्कि पुरुष और पशु की काम क्रीड़ा को भी दिखाया गया है. मुख-मैथुन दर्शाया है और समूह-मैथुन भी दिखाया गया है और असम्भव किस्म के सम्भोग आसन दिखाए गए हैं. और ऐसा ही कुछ कोणार्क के मंदिर में है. यहीं पंडित कोक ने "रति रह्स्य/ कोक शास्त्र " की रचना की है. यहीं राजा भर्तृहरि ने श्रृंगार शतक लिखा है. यहीं महाकवि कालिदास अपने काव्य "कुमार सम्भवम" में शिव और पार्वती के सम्भोग का बहुत बारीकी से वर्णन करते हैं, मैंने सुना है कि संघी मित्रगण कहते हैं शेक्सपियर को मत पढ़ो, कालिदास पढ़ो, हमारे स्थानीय महाकवि. ठीक है, पढ़ लेते हैं, मस्तराम को मात करते हैं आपके महाकवि, पढ़ कर देख लीजिये. और यहीं लड़कियों के नाम 'रति' रखे जाते हैं, रति अग्निहोत्री फिल्म एक्ट्रेस याद हों आपको. तो रति क्रिया में संलग्न हो, यह आसानी से स्वीकार्य नहीं है. यहीं #वैलेंटाइन डे से सदियों पहले वसंत-उत्सव मनाया जाता था, जिसमें स्त्री पुरुष एक-दूजे के प्रति स्वतन्त्रता से प्रेम प्रस्ताव रखते रहे हैं. और यहीं पर कृष्ण और गोपियों की प्रेमलीला गायी जाती है. और यहीं 'गीत गोविन्द' के गायक जयदेव ने अपनी लघु पुस्तिका ‘रतिमंजरी’ में कामसूत्र का सार संक्षेप प्रस्तुत किया है और मैंने अभी पढ़ा कि जयदेव को भगत माना गया है, गुरु ग्रन्थ साहेब तक में उनका ज़िक्र है. और यहीं के पवित्र ग्रन्थ 'वाल्मीकि रामायण' के अनुसार 'अशोक वाटिका' में बैठी सीता को राम की पहचान बताते हुए हनुमान राम के लिंग और अंडकोष तक की रूप-रेखा बताते हैं. यहीं लिखे महान ग्रन्थ वाल्मीकि रामायण के रचयिता जब भी माँ सीता का ज़िक्र करते हैं तो उन्हें पतली कमर वाली, भारी नितंभ वाली, सुडौल वक्ष वाली बताते हैं...तब भी जब सीता-हरण के बाद राम उन्हें ढूंढते फिरते हैं. और यहीं पर यदि पति बच्चा पैदा करने में अक्षम होता था तो किसी अन्य पुरुष से अपनी पत्नी का सम्भोग करा सन्तान पा लेता था. राम और उनके भाई इसी तरह पैदा हुए थे और कौरव भी और पांडव भी. आपने पढ़ा होगा संस्कृत ग्रन्थों में राजा लोग "अन्तः पुर" में विश्राम करते थे.....वो सिवा हरम के कुछ और नहीं थे....इस वहम में मत रहें कि हरम कोई मुस्लिम शासकों के ही थे. और यहीं पर रामायण काल की 'गणिका' से, बुद्ध के समय की 'नगरवधू' और आज के कोठे की 'वेश्या' मौजूद है. और यहीं पर विधवा और वेश्या दोनों के लिए “रंडी” शब्द प्रयोग होता रहा है. अब समाज का बड़ा हिस्सा यह सब कहाँ सुनने को तैयार है? संस्कृति की इनकी अपनी परिभाषा है, अपने हिसाब से जो चुनना था चुन लिया, जो छोड़ना था छोड़ दिया. अक्सर बहुत से मित्रवर "चूतिया, चूतिया" करते हैं, "फुद्दू फुद्दू" गाते हैं. नई गालियाँ आविष्कृत हो गईं हैं. "मोदड़ी के" और "अरविन्द भोसड़ीवाल". लेकिन तनिक विचार करें असल में हम सब "चूतिया" हैं और "फुद्दू" है, सब योनि के रास्ते से ही इस पृथ्वी पर आये हैं, तो हुए न सब चूतिया, सब के सब फुद्दू? और हमारे यहाँ तो योनि को बहुत सम्मान दिया गया है, पूजा गया है. जो आप शिवलिंग देखते हैं न, वो शिवलिंग तो मात्र पुरुष प्रधान नज़रिए का उत्पादन है, असल में तो वह पार्वती की योनि भी है, और पूजा मात्र शिवलिंग की नहीं है, "पार्वती योनि" की भी है. हमारे यहीं आसाम में कामाख्या माता का मंदिर है, जानते हैं किस का दर्शन कराया जाता है? माँ की योनि का, दिखा कर नहीं छूया कर. वैष्णो देवी की यात्रा अधिकांश हिन्दू करते हैं. कटरा से भवन तक की यात्रा के बीच एक स्थल है, "गर्भ जून". यह एक छोटी सी संकरी गुफ़ा है. इसमें से होकर आगे की यात्रा करनी होती है. काफ़ी मुश्किल से निकला जाता है इसमें से. लेकिन लगभग सभी निकल जाते हैं. यह बहुत ही कीमती स्थल है. इसके गहरे मायने हैं. यह गर्भ जून है. जून शब्द योनि से बना है. तो यह गर्भ योनि है. वो जो गुफ़ा का संकीर्ण मार्ग है, वो योनि मार्ग है. आप जन्म लेते ही बच्चे के दर्शन करो, उसके गाल, नाक सब लाल-लाल होते हैं, छिले-छिले से. संकीर्ण मार्ग की यात्रा करके जो बाहर आता है वो. कुछ ऐसा ही हाल होता है, जब यात्रीगण गर्भ-जून गुफ़ा से बाहर निकलते हैं. अब जैसे ही बच्चा माँ की योनि से बाहर आता है, माँ और बच्चे का मिलन होता है, मां उसे चूमती है, चाटती है, प्यार करती है, ठीक वैसे ही गर्भ जून से निकल यात्री वैष्णो माँ से जा मिलते हैं. यह है योनि का महत्व. और हमारे यहाँ तो प्राणियों की अलग-अलग प्रजातियों को 'योनियाँ' माना गया है, चौरासी लाख योनियाँ, इनमें सबसे उत्तम मनुष्य योनि मानी गयी है. योनि मित्रवर, योनि. यह है योनि का महत्व. और यहाँ मित्र 'चूतिया चूतिया' करते रहते हैं. चलिए अब थोड़ी चूतड़ की बात भी कर लेता हूँ. गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के लगभग मध्य में हनुमान का मंदिर है, नाम है "चूतड़ टेका मंदिर". यहाँ पर परिक्रमा करने वालों के लिए अपने चूतड़ टेकना अनिवार्य माना जाता है. राजस्थान में इलोजी के मंदिर हैं. यह कोई मूछड़ देवता है. लम्बा लिंग लिए नंग-धडंग. स्त्रियों,पुरुषों दोनों में प्रिय. पुरुष इसके जैसा लिंग चाहते हैं, काम शक्ति चाहते हैं और बेशक स्त्रियाँ भी. सुना है इसके गीत गाये जाते हैं, फाग. नवेली दुल्हन को दूल्हा अपने साथ ले जा इसे पेश करता है, वो इसका आलिंगन करती है, असल में पहला हक़ नयी लड़की पर उसी का जो है. ब्याहता औरतें भी उसके लिंग को आ-आ कर छूती हैं पुत्र की प्राप्ति के लिए भी. वैसे शिवलिंग पूजन और कुआंरी लड़कियों का सोमवार व्रत भी यही माने लिए है. आप शब्द समूह देखते हैं “काम-क्रीड़ा”, यानी सेक्स को खेल माना गया लेकिन यहाँ चुम्बन तक के लिए बवाल मचा है असल में दुनिया की सब पुरानी व्यवस्थाएं विवाह पर आधारित हैं........विवाह बंधन है, विवाह आयोजन है...प्रेम स्वछंदता है......स्वतंत्रता है......बगावत है.... विवाह मतलब एक स्त्री-एक पुरुष, फिर इनके बच्चे, फिर आगे इनकी शादियाँ, फिर बच्चे.......... अब कहाँ ज़रूरी है कि प्रेम इस तरह से ही सोचे? सोच भी सकता है और नहीं भी. प्रेम आग है, जो इन सारी तरह की व्यवस्थाओं को जला कर राख कर सकता है प्रेम अपने आप में स्वर्ग है, किसे पड़ी है मौत के बाद की जन्नत की, स्वर्ग की प्रेम अपने आप में परमात्मा है, किसे पड़ी है मंदिरों में रखे परमात्मा की प्रेम अपने आप में नमाज़ है, किसे पड़ी है अनदेखे अल्लाह को मनाने की प्रेम सब उथल पुथल कर देगा इसलिए प्रेम की आज़ादी जितनी हो सके, छीनी जाती है. कहीं पत्थरों से मारा जाता है प्रेम करने वालों को, कहीं फांसी लगा दी जाती है. लेकिन नहीं, बगावत शुरू हो चुकी है, वहां पश्चिम में FEMEN नाम से स्त्रियों ने नग्न विरोध शुरू कर दिया है, विरोध लगभग सारी पुरातन, समय बाह्य मान्यताओं का. अब यहाँ के युवाओं ने भी साहसिक कदम उठाया है, यह कदम स्वागत योग्य है, जितना समर्थन हो सके देना चाहिए.....अरे, वो युवा क्या चोरी कर रहे हैं, क़त्ल कर रहे हैं, वो कोई डकैत हैं, वो कोई राजनेता हैं ..कौन हैं ..साधारण लडके, साधारण लड़कियां .....लेकिन आसाधारण कदम. जिस से नहीं देखा जाता न देखे, अपनी आँखे घुमा ले........बदतमीज़ सरकारी कर्मचारी देखे जाते हैं......रिश्वतखोर नेता देखे जाते हैं.........एक दूजे को धोखा देते लोग देखे जाते हैं....प्रेम करते हुए जोड़े नहीं देखे जाते..लानत है! एक बात समझ लीजिये सब साहिबान, यह जो एक स्त्री-एक पुरुष आधारित सामाजिक व्यवस्था बनाई गयी है न, यह स्त्री पुरुष सम्बन्धों का “एक” विकल्प रहने वाली है, न कि “एक मात्र विकल्प”. भारत में ही आदिवासी लोगों में एक सिस्टम है,"घोटुल". यह घोटुल बड़ा क्रांतिकारी व्यवहार है, पीछे Aldous Huxley की रचना पर आधारित फिल्म देख रहा था.... Brave New World. घोटुल और इस फिल्म में कुछ समानताएं हैं. घोटुल गाँव के बीच में एक तरह का बड़ी सी झोंपड़ी है.......यहाँ नौजवान लड़के लड़कियों की ट्रेनिंग होती है, आगामी जीवन के लिए...सिखलाई. यह विद्यालय है, लेकिन यहाँ कुछ ऐसा है जिसे हमारा तथा-कथित सभ्य समाज तो शायद ही स्वीकार कर पाए. यहाँ की लड़कियां और लडके आपस में सम्भोग करते हैं......कुछ नियम हैं कि कोई भी लड़का /लडकी एक ही व्यक्ति के साथ ही सम्भोग करता/करती नहीं रह सकता/सकती. और कहते हैं कि बहुत ही कामयाब सिस्टम है. बहुत ही शांत व्यवस्था. अब हमारे तथा-कथित समाज सुधारक चले हैं इनका विरोध करने .... खैर ठीक से देख लीजिये, हम आदिवासी हैं या घोटुल व्यवस्था वाले लोग. कल तक आपके पवित्र समाज में प्रेम-विवाह की चर्चा महीनों तक होती थी, मोहल्ले भर होती थी, प्रेम-विवाह बड़ा क्रांतिकारी कदम माना जाता था, आज कोई कान तक नहीं धरता कि किसका विवाह कैसे हुआ. कल तक आप कल्पना नहीं कर सकते थे कि स्त्री-पुरुष बिन विवाह के कानूनी रूप से साथ रह पायेंगे, लेकिन आज रहते हैं. आज जो आप कल्पना नहीं कर सकते वो होने वाला है आगे, यहाँ लिव-इन तो है ही, यहाँ "ग्रुप-लिव-इन" भी आने वाला है. यहाँ पारम्परिक शादी भी रहेगी, अभी तो रहेगी, यहाँ लिव-इन भी रहेगा और यहाँ “ग्रुप-लिव-इन” भी आयेगा. यह जो "किस ऑफ़ लव" का विरोध है, वैलेंटाइन डे का विरोध है, वो सिर्फ पारम्परिक शादी व्यवस्था का खुद को बचाने का जोर है, पुराने समाज का खुद को बचाने का प्रयास है. और सब धर्मनेता, राजनेता की शक्ति पुरानी, पारम्परिक शादी व्यवस्था से आती है, यह व्यवस्था क्षीण हुयी तो सारा सामजिक ढांचा उथल-पुथल हो जाएगा. नयी व्यवस्था में कौन परवा करने वाला है इनकी? बच्चे पता नहीं कैसी व्यवस्था में पलेंगे? हिन्दू का बच्चा पता नहीं हिन्दू रहे न रहे? और फिर जब जीवन ही मन्दिर हो जाए तो पता नहीं कोई राम मंदिर की परवाह करे न करे, जब ज़िंदगी पाक़ हो तो किसे परवाह पाकिस्तान की-हिंदुस्तान की? इसलिए लफड़ा है और रगडा है...और वो भी बड़ा वाला. लेकिन होता रहे यह लफड़ा, रगड़ा, अब बहुत लम्बी देर नहीं टिकने वाला....पूरी दुनिया के ढाँचे टूट रहे हैं.....बगावतें हो रही हैं.....भविष्य...भविष्य उम्मीद से ज़्यादा निकट है...'भविष्य वर्तमान है'. लाख गाली देते रहें संघी सैनिक, लाख कहते रहें कि ये लड़कियां रंडियां है, ये लड़के रंडपना कर रहे हैं, अपने माँ-बाप के सामने यह सब करें, लाख कहते रहें कि जो समर्थक हों इस मुहिम के अपनी बेटियों, बहनों को भी यह छूट दें..... कुछ नहीं होने वाला. और लगाते रहें लेबल कि यह तो कम्युनिस्ट का षड्यंत्र है, यह तो पश्चिम का अंध-अनुकरण है......नहीं है, यदि षड्यंत्र है तो फेसबुक का है, whatsapp का है, इन्टरनेट का है, कंप्यूटर का है, मोबाइल फ़ोन का है ....विचार बिजली की गति से यात्रा करता है.....आप रोक नहीं पायेंगे. और कहते रहे कि यह वामपंथ है.....खुद ही टैग लगा दिया कि हम दक्षिणपंथी हैं और जो विरोध में वो वामपंथी......राईट इस ऑलवेज राईट एंड लेफ्ट इज़ रॉंग. सुना है कि जब पहली बार हवाई जहाज उड़ा तो बस थोड़ा ही उड़ पाया, चंद मीटर और फिर गिर गया.......जब पहली बार कार बनाई गयी तो उसमें बेक गियर नहीं लगाया जा पाया.....आज हवाई जहाज उड़ता है मीलों और अन्तरिक्ष यान भी......और तो और कार भी उड़ने की तैयारी में है. यदि पारम्परिक विवाह से हट के कोई सामाजिक व्यवस्था ठीक से स्थापित नहीं हो पायी तो यह कैसे मान लिया गया कि आगे भी न हो पायेगी? कार में बैक गियर लगा न.....हवाई जहाज उड़ा न ..और कार हवाई जहाज बनने को है न और हवाही जहाज कार बनने को है न ...है न? मूर्ख यह नहीं समझते कि आप लोगों के सख्त विरोध की वजह से ही लड़के-लड़कियां सडकों पर उतर आते हैं .....काश कि आपने प्यार से उन्हें समझाया होता कि प्रेम करने में, चुम्बन में कोई अपराध नहीं.......लेकिन बेहतर हो इसे तमाशा न बनाया जाए....हजार तरह से समझाया जा सकता है....लेकिन नेगेटिव रवैये ने सारा मामला सड़क पर उतर आता है. इसी तरह के सख्त विरोध की वजह से पीछे लड़के-लड़कियों ने "किस ऑफ़ लव" नाम से जेहाद छेड़ दी थी. मूर्ख तो यह तक कह रहे थे कि "किस ऑफ़ लव" क्यों कहा गया, क्या कोई बिना लव के भी किस होती है....... होती है बंधुवर, होती है, किस तो एक बलात्कारी भी कर सकता है, लेकिन यह किस "किस ऑफ़ लव" तो कदापि नहीं होती. और मूर्ख तो यह कह रहे हैं कि सड़क पर प्रेम तो कुत्ते बिल्ली करते हैं, हम इंसान हैं, हमें शोभा देता है क्या? देता है शोभा, बिलकुल शोभा देता है.......यदि आप समझते हैं कि यह कुछ अशोभनीय है तो आप कुत्ते बिल्लियों से ऊपर नहीं उठ गए हैं, नीचे गिर गए हैं........समझते ही नहीं मित्रवर, भाई जी, बहिन जी, सेक्स को हमारे यहाँ पूजनीय माना गया है, मन्दिरों में रखा गया है, भगवान माना गया है और आप कहते हैं कि सार्वजनिक स्थलों पर चुम्बन तक न करो, आलिंगन न करो....मंदिर सार्वजनिक स्थल नहीं हैं क्या? इनसे ज्यादा पवित्र, सार्वजनिक स्थल क्या होंगे? नहीं? हाँ, लेकिन बधुगण की तकलीफ दूसरी है, इन्हें चाहिए ऐसा समाज जो बस आँख बंद करके, शीश नवा के चलने वाला हो, दिमाग मत लगाए, जो ऐसे भगवानों को पूजे जो खुल के काम-क्रीड़ा में सलग्न हों लेकिन उनसे प्रेरित हो भक्तगण खुद कभी वैसा करने की सोचें भी न. इन्हें चाहिए ऐसा समाज जो रोज़ शिवलिंग पर जल चढ़ाता रहे लेकिन शिवलिंग है क्या यह न सोचे, यह न सोचे कि वो शिवलिंग ही है या पार्वती कि योनी भी है, यह न सोचे कि क्या वो शिव लिंग पार्वती की योनी में स्थित है, कि क्या वो शिव पार्वती का मैथुन है, कि क्या मैथुन पूजनीय है, कि यदि शिव पार्वती का मैथुन पूजनीय है तो उनका मैथुन भी क्यों पूजनीय नहीं है. बड़ी चुनौती है सेक्स इन्सान के लिए ....सेक्स कुदरत की सबसे बड़ी नियामत है इन्सान को..लेकिन सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है...इंसान अपने सेक्स से छुप रहा है...छुपा रहा है...सेक्स गाली बन चुका है......देखते हैं सब गालियाँ सेक्स से जुड़ी हैं ..हमने संस्कृति की जगह विकृति पैदा की है.. कोई समाज शांत नहीं जी सकता जब तक सेक्स का समाधान न कर ले.....सो बहुत ज़रूरी है कि स्त्री पुरुष की दूरी हटा दी जाए.....समाज की आँख इन सम्बन्धों की चिंता न ले.......सबको सेक्स और स्वास्थ्य की शिक्षा दी जाए....सार्वजानिक जगह उपलब्ध कराई जाएँ. देवालय से ज़्यादा ज़रुरत है समाज को सम्भोगालय की.पत्थर के लिंग और योनि पूजन से बेहतर है असली लिंग और योनि का पूजन. सम्भोगालय. पवित्र स्थल. जहाँ डॉक्टर मौजूद हों. सब तरह की सम्भोग सामग्री. कंडोम सहित. और भविष्य खोज ही लेगा कि स्त्री पुरुष रोग रहित हैं कि नहीं. सम्भोग के काबिल हैं हैं कि नहीं. और यदि हों काबिल तो सारी व्यवस्था उनको सहयोग करेगी. मजाल है कोई पागल हो जाए. आज जब कोई पागल होता है तो ज़िम्मेदार आपकी व्यवस्था होती है, जब कोई बलात्कार करता है तो ज़िम्मेदार आपका समाजिक ढांचा होता है...लेकिन आप अपने गिरेबान में झाँकने की बजाये दूसरों को सज़ा देकर खुद को भरमा लेते हैं. समझ लीजिये जिस समाज में सबको सहज सेक्स न मिले, वो समाज पागल होगा ही. और आपका समाज पागल है. आपकी संस्कृति विकृति है. आपकी सभ्यता असभ्य है. सन्दर्भ के लिए बता दूं, जापान का एक त्योहार अपनी खास वजह से खासा लोकप्रिय है, और ये खास वजह है, कि इस त्योहार में लिंग की पूजा होती है। जी हां जापान में यह अनोखा त्योहार कनामरा मसुरी के नाम से जाना जाता है। इस उत्सव में लिंग की शक्ति का जश्न मनाया जाता है। चाहें बूढ़े हों, जवान हों या बच्चे हों सब इस उत्सव को बहुत धूमधाम से और बिना किसी झिझक के मनाते हैं। हर तरफ लिंग के आकार के खिलौने, मास्क, खाने की हर चीजों से दुकानें सजी होती हैं. चीन में Guangzhou Sex Culture Festival का आयोजन किया जाता है. इस दौरान सेक्स चाहने वालों के लिए एक बड़ी exhibition लगायी जाती है. इस एग्जीबिशन में छोटे कपड़े पहनकर महिलाएं सेक्स का मजा लेने पहुंचे दर्शकों के मुंह पर दूध की बौछार करती है. यहीं नहीं फेस्टिवल के ऑर्गेनाइजर लोगों का ध्यान खींचने के लिए नए सेक्स डॉल की प्रदर्शनी लगाते हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग यहां पहुंचें. यह फेस्टिवल हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इसका लुफ्त उठाने के लिए दुनियाभर से पहुंचते है. कोयल कुहू-कुहू गा कर अपने प्रियतम को पुकारती है और मोर नाच कर रिझाता है अपनी प्रियतमा को. पेड़ों में भी मेल-फीमेल होते हैं. यिन यान का पसारा है पूरी कायनात में. नकारना घातक है. नकारना जीवन को ज़हरीला कर चुका है. तो मैं हूँ समर्थक प्रेम का और यदि मेरी बहन, मेरी बेटी प्रेम करेगी, जिससे करेगी यदि उसे चूम रही होगी तो मुझे कतई ग्लानि-शर्मिन्दगी नहीं होगी चूँकि यह बेहतर होगा किसी को लूटने, खसूटने और कत्ल करने से......यह पूरी दुनिया में प्यार की सुगंध फैलाएगा. नमन...तुषार कॉस्मिक