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~रामलीला, कृष्णलीला: इहलीला लीलती लीलाएं~

आप एक फिल्म कितनी बार देख सकते हैं? आखिर थक जायेंगे. आपकी सबसे पसंदीदा फिल्म भी कई बार देखने के बाद आप देखना छोड़ देते हैं. कितना ठस्स होता है ऐसा व्यक्ति जो यह कहता है कि मैंने फलां फिल्म सत्रह बार देखी, अठारह बार देखी.  हैरान हूँ कि लोग हर साल, साल-दर-साल कैसे राम लीला देखते हैं! वही कहानी, वही पात्र! वही सब कुछ! फिर भी लोग देखते हैं! देखे चले जाते हैं! हर साल रावण मारते हैं, जलाते हैं, वो फिर जिंदा हो जाता है, फिर-फिर जिंदा हो जाता है. असल में तो वो मरता ही नहीं. मरता तो फिर दुबारा मारने की ज़रूरत ही कैसे पड़े? राम सदियों से उसे मारने का असफल प्रयास कर रहे हैं. लेकिन हमें समझ नहीं आती. हम कहते हैं,"बुराई पर अच्छाई की विजय हो गई."  अगर हो ही जाती हो ऐसे  विजय, तो फिर हर साल किस लिए दशहरा मानते हैं, क्या ज़रूरत साल दर साल यह सब दुहाराने की?  यह दोहराना ही साबित करता है कि यह सब करना निष्फल है.सब कुंठित हो चुकी बुद्धि का नमूना है.  असल में तो जो जितना बुद्धिशाली होगा, उतनी ही जल्दी बोर हो जायेगा. एक तेज़ दिमाग प्राणी नई-नई चीज़ें खोजता है. आज मनोरंजन बड़े से बड़े...