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प्रजातंत्र का प्रपंच --कारण और निवारण

वो बड़े दबंग,  नाम "शेर सिंह शेर"..आगे भी शेर, पीछे भी शेर, बीच में शेर.....तो वो बड़े ही दबंग......हमने-आपने कभी जितने लोगों को थप्पड़ मारने का ख्व़ाब भी न लिया हो,  उतने लोगों को मार-कूट चुके, कईयों पर छुरियां चला चुके. लेकिन एक बार कुछ लड़कों के हत्थे चढ़ गये........ज़्यादा कुछ नहीं हुआ, बस उन लोगों ने घेर कर कुछ गाली-वाली दे दी.........फिर अगले दिन उनमें से ही कोई इनके घर की खिड़की का शीशा तोड़ गया.....अब इनको झटका लग गया......हैरान, परेशान.......बीमार हो गए.....मैं पहुंचा. बोले, “किसी ने कुछ घोट के पिला दिया है......भूत चिपक गए हैं....खाना हज़म नहीं होता.........खून के साथ उलट जाता है, भभूत बाहर गिरती है” फिर कुछ किताबें भी पढ़ चुके थे, बोलें,“ऊर्जा कभी मरती नहीं, रूप बदलती है......आत्मा अजर है, अमर है.....भूत भी बन सकती है.” समझाने का प्रयत्न किया कि आपको मानसिक आघात है, आप अपनी ज़रा सी हार बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं....आप भूत-प्रेत का मात्र भ्रम पाले हैं...खुद को धोखा दे रहे हैं.......वहम से खुद को बहला रहे हैं.......लेकिन वो कहाँ मानने वाले? 'शेर सिंह शेर'. मुझ ...