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Wednesday 14 December 2016

#बेईमान कौन है, तुम या हम?#

नौकर पिछली तनख्वाह का हक़ तो अदा कर नहीं रहा और जिद्द कर रहा है, जबरदस्ती कर रहा है तनख्वाह बढ़वाने की. जिस चीज़ के आगे सरकारी शब्द लग चुका है वो सब सड़ चुकी है. सरकारी अस्तपाल बदबू मारता है, सरकारी स्कूल में बच्चों से लेबर कराई जाती है. सरकारी न्याय लेने के लिए पीढियां घिस जाती हैं, दाढ़ी से मूंछे बड़ी हो जाती हैं. #सरकारी सड़क खड़क चुकी हैं. सरकारी बस की बस हो चुकी है. सरकारी पुलिस दोनों तरफ से रिश्वत लेती है. कौन सही, कौन गलत, उसे कोई मतलब नहीं. थाने गुंडागर्दी के अड्डे हैं और पुलिस मुल्क का सबसे बड़ा माफ़िया. हर सरकारी चीज़ बस सरक रही है किसी तरह से. और सरकार को और टैक्स चाहिए. आप चाहे #कैशलेस हो जाओ, चाहे #लेसकैश लेकिन सरकार को और टैक्स चाहिए. कौन समझाए कि सरकार इसलिए बकवास नहीं थी कि उसे जनता टैक्स कम दे रही थी? वो इसलिए बकवास थी चूँकि वो बकवास थी, वो बे-ईमान थी. अगर सरकारी कर्मचारी को कम पैसे मिलते होते तो काहे हर कोई सरकारी नौकरी के लिए मरा जा रहा है? अगर सरकार को पैसे कम पड़ रहे होते तो काहे हर कोई नेता बनने को जान देने को है? काहे रोज़ नेता अरबों रुपये के स्कैम में फंस रहे होते? नहीं. अभी पिछले पैसों का हिसाब ही नहीं दिया और चले हैं और ज़्यादा मांगने. जनता को उठ खड़े होना चाहिए और उस नेता का कालर पकड़ पूछना चाहिए जो टैक्स न देने वालों को रोज़ बे-ईमान कह रहा है, पूछना चाहिए उसे कि बे-ईमान कौन है बे, तुम या हम? उल्टा चोर कोतवाल को डांटे. उल्टा बे-ईमान नौकर मालिक को मारे चांटेे.