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“कासे कहूं?”

इधर कूआं, उधर खाई # नोट  न दें, तो पब्लिक  # वोट  न देगी और दें, तो वोही होगा, जैसा आज तक होता आया है छछूंदर गले अटकी है, न निगली जाए, न उगली जाए ऊँट पहाड़ के नीचे आ चुका, देखें कैसे निकलता है.