ओशो--न भूतो, न भविष्यति
ओशो महान हैं. बेशक. लेकिन 'न भूतो, न भविष्यति'? ऐसा मैंने कईयों को कहते सुना है. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है. ओशो के साथ बहुत कुछ अच्छा घटित होते-होते रह गया. और ज़िम्मेदार खुद ओशो हैं. गोविंदा का एक गाना है, "मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं मेरी मर्ज़ी." ऐसे ही हैं ओशो के कथन. पढ़ते जाएं ओशो को, सब घाल-मेल कर गए हैं. पहले कहा कि कुरआन महान है, बाद में बोले कचरा है और साथ में यह भी बोले कि जान-बूझ कर कुरआन पर नहीं बोले चूँकि मरना नहीं चाहते थे. यह है उनका ढंग. आरक्षण पर बहुत पॉजिटिव थे. शूद्र जिनको कहा गया उनके साथ ना-इंसाफी हुई, ठीक है, लेकिन उसका हल आरक्षण है? आज भारत का युवा जो अनुसूचित जाति का नहीं है, वो विदेशों में बस रहा है, एक वजह आरक्षण है. आरक्षण न पहले हल था, न आज हल है. यह भारत को तोड़ देगा. आरक्षण सिर्फ हरामखोरी है. अभी हरियाणा के जाट रेप तक कर गए हैं आरक्षण लेने के लिए. अब कह रहे हैं कि दिल्ली को दूध नहीं देंगे. सब बकवास. और ओशो आरक्षण के पक्ष में खड़े हैं. मुझे आज तक समझ नहीं आया कि ओशो कम्यून में कौन सा एड्स टेस्ट होता था जबकि एड्स का इं...