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Wednesday 25 July 2018

बे-ईमान

जानते हैं मुसलमान 'बे-ईमान' किसे समझता है? जो 'बिना ईमान वाला' हो. और कौन है 'बिना ईमान वाला'? जो 'मुस्लिम' नहीं है. क्योंकि ईमान तो दुनिया में एक ही है और वो है इस्लाम. मतलब जो मुस्लिम नहीं है, वो तो वैसे ही चोर, उचक्का, डकैत, हरामी है. आपने पढ़ा होगा, "हलाल मीट शॉप". ये इस्लामी ढंग से जिबह किये गए जानवर का मांस बेचती दुकानें हैं. लेकिन सब तो उस ढंग से नहीं काटते जानवर. तो जो बाकी ढंग हैं, वो है झटका. लेकिन जो हलाल नहीं, वो तो "हराम" ही हुआ न, चाहे वो झटका, चाहे फटका. इसलिए मुसलमान सिर्फ हलाल मीट खाते हैं. खैर, अब जो दुनिया यह समझ रही है, वो अपना अस्तित्व बचाए रखने का संघर्ष कर रही है. चाहे उस संघर्ष में वो भी इस्लाम जैसे ही होती जा रही है. जिससे आप लडेंगे, कुछ कुछ उस जैसे हो ही जायेंगे. आपको लड़ने वाले के स्तर पर आना ही होगा. एक विद्वान भी अगर किसी रिक्शे वाले से सड़क पर भिड़ेगा तो उसे एक बार तो रिक्शे वाले के स्तर पे आना ही होगा. सब किताब-कलम मतलब लैपटॉप-गूगल धरा रह जायेगा. माँ-बहन याद की जाएगी एक-दूजे की. क़ुरान से भिड़ने के लिए सड़े-गले पुराण खड़े करने ही होंगें. हालाँकि तर्क-स्थान बनाते दुनिया को तो आज यह स्वर्ग होती. लेकिन उसमें मेहनत बहुत है, सो आसान रस्ता चुन लिया गया है. बस यही कारण है कि भारत भी 'लिंचिस्तान' बनता जा रहा है.

Saturday 18 February 2017

मैं बे-ईमान हूँ

बहुत शब्द अपने असल मानों से हट जाते हैं तथा उनके कुछ और ही मतलब प्रचलित हो जाते हैं.

राशन शब्द का अर्थ रसोई सामग्री से लिया जाता है. लेकिन इसका असल मतलब है सीमित होना. किसी दौर में एक सीमित मात्रा में दाल, चावल, चीनी ही ले पाते थे लोग. सरकारी सिस्टम से. सरकारी दूकान को राशन ऑफिस कहते हैं. राशन कार्ड तो सुना ही है आपने. सीमित ही मिलता है सामान आज भी वहां से. तो लोगों ने दाल, चावल, चीनी को ही राशन समझ लिया. आज हम किसी भी स्टोर से यह सब लेते हैं तो कहते हैं कि राशन ले रहे हैं. जैसे किसी दौर में लोग दांत साफ़ करने को 'कोलगेट करना' ही बोल जाते थे. जैसे बचपने जब आता 'पेशाब' था तो हम कहते थे, "मैडम, 'बाथरूम' आया है." बेचारा 'बाथ-रूम'.

ईमान-दार और बे-ईमान शब्दों का अर्थ 'Honest' और 'Dishonest'  ले लिया गया लेकिन इन शब्दों का असल मतलब सिर्फ 'मुस्लिम' और 'गैर-मुस्लिम' होना है. Believers & Non-believers. चूँकि इस्लाम  के  मुताबिक ईमान एक ही है और वो है 'इस्लाम'. जो इस्लाम से बाहर है वो बे-ईमान है और जो इस्लाम के अंदर है वो ईमान-दार है.

सो मैं तो बे-ईमान हूँ, आप क्या हैं बताएं?