जानते हैं मुसलमान 'बे-ईमान' किसे समझता है?
जो 'बिना ईमान वाला' हो.
और कौन है 'बिना ईमान वाला'?
जो 'मुस्लिम' नहीं है.
क्योंकि ईमान तो दुनिया में एक ही है और वो है इस्लाम.
मतलब जो मुस्लिम नहीं है, वो तो वैसे ही चोर, उचक्का, डकैत, हरामी है. आपने पढ़ा होगा, "हलाल मीट शॉप". ये इस्लामी ढंग से जिबह किये गए जानवर का मांस बेचती दुकानें हैं.
लेकिन सब तो उस ढंग से नहीं काटते जानवर. तो जो बाकी ढंग हैं, वो है झटका. लेकिन जो हलाल नहीं, वो तो "हराम" ही हुआ न, चाहे वो झटका, चाहे फटका. इसलिए मुसलमान सिर्फ हलाल मीट खाते हैं.
खैर, अब जो दुनिया यह समझ रही है, वो अपना अस्तित्व बचाए रखने का संघर्ष कर रही है. चाहे उस संघर्ष में वो भी इस्लाम जैसे ही होती जा रही है.
जिससे आप लडेंगे, कुछ कुछ उस जैसे हो ही जायेंगे. आपको लड़ने वाले के स्तर पर आना ही होगा. एक विद्वान भी अगर किसी रिक्शे वाले से सड़क पर भिड़ेगा तो उसे एक बार तो रिक्शे वाले के स्तर पे आना ही होगा. सब किताब-कलम मतलब लैपटॉप-गूगल धरा रह जायेगा. माँ-बहन याद की जाएगी एक-दूजे की.
क़ुरान से भिड़ने के लिए सड़े-गले पुराण खड़े करने ही होंगें. हालाँकि तर्क-स्थान बनाते दुनिया को तो आज यह स्वर्ग होती. लेकिन उसमें मेहनत बहुत है, सो आसान रस्ता चुन लिया गया है.
बस यही कारण है कि भारत भी 'लिंचिस्तान' बनता जा रहा है.
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