लाइन वहां से शुरू होती है, जहाँ हम खड़े होते हैं

अमिताभ बच्चन ने बोला है यह dialogue. फेमस है. कीमती शब्द हैं, किन्ही अर्थों में. कैसे? लाइन वहीं से शुरू होनी चाहिए, जहाँ आप खड़े हों. मैं सिनेमा या रेल की टिकट लेने को खड़े लोगों की लाइन की बात ही नहीं कर रहा. न. हर इन्सान कुदरत की नई कृति है. वो किसी और की बनाई लाइन पे क्यों चले? किसी और के पीछे क्यों चले? क्यों खड़ा हो किसी के पीछे? ये बड़े ही सिम्पल से शब्द हैं मेरे. लेकिन और आगे लिखूंगा तो निन्यानवे प्रतिशत इंसानी आबादी की समझ से बाहर हो जाएगी मेरी बात. क्यों खड़े हैं आप किसी अरब के रेगिस्तानों में 1400 साल पहले पैदा हुए आदमी के पीछे? क्यों अंधे हैं आप किसी कृष्ण, किसी राम के नाम के पीछे? जो शायद हजारों साल पहले हुए. क्यों आपने दो हज़ार साल पहले पैदा हुए किसी व्यक्ति को ईश्वर का बेटा मान रखा है? आप क्या किसी और ईश्वर के बेटे हैं? ये लोग सही थे या गलत थे? यह सेकेंडरी सवाल है. प्राइमरी सवाल यह है कि इनके जीवन, इनके कथनों को काहे अंधे हो कर मानना? तुम इनसे एक कतरा भी, एक ज़र्रा भी कमतर नहीं हो. तुम किसी पैगम्बर, किसी अवतार, किसी भगवान से जरा भी कमतर नहीं हो. लाइन वहां से शुरू होती है, जहाँ हम खड़े होते हैं. नमन...तुषार कॉस्मिक

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