ये मेरा झापढ़ है भैया


Written By My  Australian Friend Veena Sharma 

अक्सर लोग मेरी भारत पे की गयी टीका टिप्पणियों को वैयक्तिगत ले लेते हैं और मुझे हैरान कर देते हैं और सोचने पे मजबूर कि भाई तुम्हें प्यार है भारत से पर मेरा प्यार तुमसे कम है ये तुमसे किसने कह दिया। मैं वो अंधी माँ नहीं जिसे दुनिया में अपने बच्चे के सिवा कोई और सुंदर नहीं लगता। मैं वो बच्चा भी नहीं जिसे बस अपनी माँ ही सबसे बढ़िया दिखायी दे। सत्य का अपनेपन से क्या लेना देना। क्या सत्य भी तेरा या मेरा होता है?

ख़ैर आज अपने अनुभव से भारत के प्राइवट स्कूल माफ़िया की बात करूँगी। बच्चों से जम के फ़ीस ले कर ये अधपढ़ क़िस्म की अध्यापिकाएँ अनपढ़ टाइप के माँ बाप को उल्लू बनाने के लिए रख लेते हैं। मैं स्वयं कई साल भारत के प्राइवट स्कूलो में पढ़ाती रही।सच कहूँ तो कॉलेज में लेक्चरर बनने का सपना तो पूरा हो ना सका अब मरते क्या ना करते। सरकारी स्कूल से पढ़े अंग्रेज़ी साहित्य में M.A तो कर लिया कॉन्वेंट में पढ़े जैसे अंग्रेज़ी बोलनी अब आए नहीं। तो कुछ घसियारे टाइप के स्कूल हमपे कृपा का बैठे। अब अच्छी अंग्रेज़ी बोलने वाले उन स्कूल्ज़ में क्यूँ पढ़ाएँगे जिनके मालिक अनपढ़ लाला लोग।

एक दिन बहुत थक गयी तो कुर्सी पे बैठ गयी। प्रिन्सिपल राउंड पे निकले तो मुझे बाहर बुला के बोले “ मैडम कुर्सी बैठने के लिए नहीं” अब मन हुआ पूछूँ “ कि भाई इस पे तू लटक के फाँसी के फंदे पे झूल ले फिर”

मैडम बच्चों की लाइन सीधी नी बनवा पाते वीना मैडम, वीना मैडम फ़लाँ मैडम से आप ज़्यादा बात ना करो अच्छा नहीं आपके लिए, मैडम आपकी कापी देखी आप तो ग़लतियाँ ढंग से निकालती नहीं, वीना मैडम बहुत नम्बर दे देते हो आप,मैडम छुट्टी के पैसे कटेंगे वग़ैरह वग़ैरह...

जितनी फ़ज़ीहत जितना अपमान उन दिनों सहा उस से अधिक सम्मान मैं अपने घर पे काम करने वाली बाई को देती थी। “ आजा सुनिता बहन चल दोनों चाय पीते हैं फिर करियो सफ़ाई “

सजी धजी साड़ियों में घूमती और स्कूल के प्रांगण को सुशोभित करती ये हसीनाएँ सिवा सजे धजे मज़दूरों के कुछ नहीं।

और यहाँ प्लीज़ सारी थैंक यू , मेरी बॉस भी मुझे एक बात में चार बार कहती है तो वो ग़ुलामी के दिन याद आ जाते हैं मन ही मन कहती हूँ “ अबे वीना तेरी इतनी औक़ात कहाँ है, याद हैं वो दिन जब प्रिन्सिपल राउंड पे आता था कैसे एक मिनट में आगे गीला पीछे पीला हो जाता था, मन चकरा जाता था, घिग्गी बंध जाती थी”

अरे भाई हम पीछे रह गए फिसड्डी देशों से भी उसकी वजह तो होगी और वजह देश की मिट्टी थोड़ा ही है अब वजह कौन है सोच लो। सोचोगे तभी तो सुधरोगे। पर नहीं यहाँ तो गीत भी ऐसे ही बनते हैं “ हम तो ऐसे हैं भैया” गोबर सनी सड़कों पे धूल उड़ाते हुए गाओ “ ये अपना टशन है भैया” मन तो करता है एक रसीद करके कहूँ “ ये मेरा झापढ़ है भैया, ये मेरा थप्पड़ है भैया”

अंत करते हुए कहूँ कि ख़यालों में मैंने उन सब प्रिन्सिपल्ज़ के मुँह पे ख़ूब झापड़ लगाए।अब क्या करें सच में तो लगा नहीं पाए।ख़याली पुलाव ख़ूब बनाए।


Veena Sharma from Australia

Comments

Popular posts from this blog

Osho on Islam

RAMAYAN ~A CRITICAL EYEVIEW