ज़मीन पर अग्निवेश नहीं, भारत की खुली सोच गिरा दी गई है. सदियों तक जंगल-राज की तैयारी है.
"मुसीबत आने वाली है तेरी बरबादियों के चर्चे हैं आसमानों में, ना संभलोगे तो मिट जाओगे ए हिंदोस्तां वालों तुम्हारी दास्तां भी न होगी दास्तानों में", इकबाल ने सही लिखा था.
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