मेरा समाज--एक झलक
मैं पश्चिम विहार, दिल्ली में रहता हूँ. मेरे बगल में ही एक इलाका है मादी पुर. यह एक पुनर्वास कॉलोनी है. इस कॉलोनी के लगभग हर चौक पर मैं अक्सर टोन-टोटके करे हुए देखता हूँ. निश्चित ही यहाँ के परेशान निवासियों की समस्याओं का हल बामन, मौलवी या बाबा ने इनको यह सब करने में बताया होगा.
मादीपुर के एक तरफ पश्चिम विहार और दूसरी तरफ पंजाबी बाग. आपको गलियों या सड़कों के बीचों-बीच इन दोनों इलाकों में इस तरह की बेहूदगी नहीं मिलेगी.
पंजाबी बाग तो वेस्ट दिल्ली के सबसे अमीर इलाका है. जिन्न-भूत-प्रेत लगता है अमीरों से दूर भागते हैं.
असल में सब कहानी अनपढ़ता की है. और जब मैं अनपढ़ लिखता हूँ तो उसका मतलब यह नहीं कि कोई पढ़ना लिखना जानता है तो वो अनपढ़ नहीं हो सकता. नहीं, वो निपट अनपढ़ से ज्यादा अनपढ़ हो सकता है चूँकि उसकों वहम हो जाता है कि वो पढ़ा-लिखा है अब उसको आगे पढ़ने, खुद को गढ़ने की ज़रूरत नहीं है. वो खुद के लिए एवं समाज के लिए अनपढ़ों से भी ज्यादा खतरनाक है.
लोग अनपढ़ हैं, अनगढ़ हैं. जिधर मर्ज़ी हंक जाते हैं. कुछ समय पहले यहाँ दिल्ली के हर मोड़ पर साईं बाबा की विशाल चौकी के लिए पैसे इकट्ठे करने की दूकान लगी होती थी. मोहल्ले के चार चोर जुड़ जाते थे और घर-घर, दूकान-दूकान जा-जा लोगों हलकान कर के वसूली करते थे. फिर होड़ होती थी कि 'हमसर हयात' (तथा-कथित सूफी गायक, जिसे मैंने इन साईं संध्याओं से ही जाना) को बुलाया कि नहीं. लेकिन 'जगत-गुरु शंकराचार्य' ने बोल दिया कि साईं तो मुसलमान थे, मन्दिर में कैसे रख सकते हैं उनकी मूर्ति? व्हाट्स-एप पर साईं के खिलाफ़ मेसेज फ्लोट करने लगे. भला उसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफेद कैसे? भला मेरा ग्राहक तोड़ के वो कैसे ले गया? खैर, वो ज्वार कटा तो नहीं, घटा ज़रूर है.
वैसे ये साहेबान 'जगद्गुरु' कैसे हो गए? यह भी समझ नहीं आया आज तक. विश्व में ईसाई और इस्लाम दो बड़े धर्म ईसा और मोहम्मद को मानते हैं. इनको क्यों मानेंगे अपना गुरु? और यहाँ भारत में, मैं इनको अपना गुरु नहीं मानता तो ये कैसे हो गए जगद्गुरु?
खैर, आज-कल दिल्ली का हिन्दू समाज 'गुरु जी' के पीछे लगा है. ये जब जिंदा थे तो मैंने कभी इनका नाम तक नहीं सुना था. अब दिल्ली में हर तीसरी कार के पीछे लिखा होता है 'गुरु जी'. इनके सत्संग घर-घर होते रहते हैं. ध्यान किया जाता है. किसलिए? आर्थिक और दुनियावी समस्यायों के हल के लिए.
कल पता लगेगा कि किसी और फोटो, मूर्ति, जिंदा-मुर्दा शख्सियत को पकड़ लेगा हमारा समाज. यह सब चलता ही रहता है.
समस्याओं का हल विज्ञान में है. वैज्ञानिक सोच में है. वैज्ञानिकता में है. इन सब बकवास-बाज़ियों में नहीं है.
कांवड़ यात्रा शुरू हो जाएगी. यकीन जानें, कांवड़ लाने वाले अधिकाँश लोग, ये जो मैंने ऊपर ज़िक्र किया मादीपुर, ऐसे इलाकों से हैं. कोई अमीर लोग कांवड़ लेने नहीं जाते. अमीर इनको पोषित ज़रूर करता है, ताकि अपने पाप कटवा सके. एक बकवास होड़ है, हर साल. साल दर साल. सडकें जाम कर दो, जो पहले ही बस रेंगती हैं. हल्ला-गुल्ला करो. ये धर्म है. हिन्दू धर्म. कोई खिलाफ कैसे बोल सकता है? विधर्मी कहीं के. इस्लाम के खिलाफ़ बोल के दिखाओ तो जानें. बोल बम. जय श्री राम.
हिन्दू बड़ा खुश है, ख़ास कर के मन्दिर में बैठा बामन. अग्निवेश को पीट दिया. आपने सुना अग्निवेश का भाषण, वो बता रहे हैं कि अमर नाथ का शिव लिंग मात्र एक कुदरती घटना है, इसमें कुछ भी दिव्यता नहीं है. वो जियोग्राफी का तथ्य बता रहे हैं. मैं भी ऐसा ही लिखता हूँ, बहुत पहले से. बिलकुल सही बात है, वैज्ञानिक बात है. लेकिन यह तो हमला हो गया मंदिर पर. बामन पर. बामन के इर्द-गिर्द खड़ी राजनीति पर. कैसे बरदाश्त किया जा सकता है? सो कूट दो. मार दो. कत्ल कर दो.
मैं कहता हूँ कि समाज जिसके खिलाफ नहीं, वो इन्सान बोदा है, थोथा है. यह सीधी कसौटी है. अग्निवेश में कुछ अग्नि है, जो उन्होंने ऐसा कहा. ऐसे ही लोग चाहिए भारत को.
वरण यह समाज भूत-प्रेत-हैवान-भगवान में फंसा रहेगा.
इसे बाहर निकालो, मितरो.
नमन.....तुषार कॉस्मिक
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