"नशा शराब में होता तो नाचती बोतल" सुना ही होगा आपने, अमिताभ पर फिल्माया गया गाना. बकवास गणित है यह. आग तिल्ली में नहीं, माचिस की डिब्बी में भी नहीं, लेकिन घिस दो तिल्ली माचिस के पतले पटल पर, आग पैदा हो जायेगी. बच्चा न लड़की में है और न लड़के में, लेकिन सम्भोग-रत हो जायेंगे दोनों तो बच्चा पैदा हो जायेगा. सिम्पल.
खैर, मैंने अपनी ज़िन्दगी में कोई नशा शरीर में नहीं डाला है. और मेरी कभी इच्छा भी नहीं हुई.
पिता जी, शराब पीते थे, लेकिन बहुत सम्भल कर. मीट के भी शौक़ीन थे. खुद बनाते थे और बनाते-बनाते चौथाई मीट खा जाते. जिस रात उनकी मृत्यु हुई, उस रात भी उन्होंने दारू पी थी. अस्सी के करीब थे वो तब. लाल. सीधी कमर. मुझे बस इतना ही कहते थे कि बेटा मैं तो दिहाड़ी करता था, कम उम्र था, समझाने वाला कोई था नहीं, पता नहीं कब पीने लगा लेकिन हो सके तो तू मत पीना.
और मुझे शायद उनका कहा जम गया. जो कहते हैं कि गुड़ छोड़ने की शिक्षा से पहले खुद गुड़ खाना छोड़ो, वो बकवास करते हैं. पिता जी पीते थे, मुझे मना कर गए और मुझे उनकी मनाही पकड़ गई.
फिर मैंने कहीं एक कहानी पढ़ी थी. अकबर बीरबल की.
अकबर ने पूछा बीरबल से,"बीरबल पीते हो?"
बीरबल ने कहा,"जी जनाब."
"कितनी पीते हो?"
"रोज़ाना दो जाम जनाब"
अकबर को शक हुआ. भेष बदल पहुँच गया बीरबल के घर . बीरबल दारू पी रहा था. एक जाम, दो जाम, तीन जाम.....
अगली सुबह अकबर ने कहा,"गर्दन उतार ली जायेगी."
"क्यों जनाब?"
"झूठ बोलते हो, जिल्ले-इलाही के सामने."
"कैसे जनाब?"
"कहते हो दो जाम पीते हो, लेकिन हमने खुद देखा कि तुम जाम पे जाम पीये जा रहे थे."
"जनाब लेकिन मैं तो दो ही जाम पीता हूँ."
"फिर से झूठ. हमने अपनी आँखों से देखा है."
"जी जनाब, आपने देखा सही है, लेकिन समझा गलत है."
"कैसे?"
"जनाब, मैं तो दो ही जाम पीता हूँ, बाकी के जाम तो पहले वाले दो जाम पीते हैं."
बादशाह अवाक! सही कहता है. बीरबल तो बीरबल पहले दो जाम तक ही होता है. उसके बाद कहाँ बीरबल? वो तो मदहोश. फिर कैसा बीरबल? कौन बीरबल? फिर तो जाम ही जाम को पीये जा रहे हैं.
बस ये कहानी मुझे और घर कर गई. काहे इस तरह से होश गवाना. न. न. मुझे मंजूर नहीं. मुझे नहीं लगता कि मुझ में पिता जी जितनी कूवत है सम्भल कर पीने की.
हो सकता है, मैं गलत होवूं. बन्धु-बांध्वियाँ कह सकते हैं कि बिना पीये ही बकवास किये जा रहा है. जो पीया नही, वो जीया नहीं. जिस लाहौर नहीं
डिट्ठा ओ जम्मिया ही नहीं. लेकिन क्या ज़हर की मारक शक्ति परखने के लिए ज़हर पीकर मुझे देखना होगा. क्या डॉक्टर को बीमारी समझने के लिए खुद बीमार होना होगा? नहीं न.
तो बस, मुझे जो समझ आया वो मैंने किया या कहें नहीं किया, नहीं पीया.
और जो समझा आया, वैसा ही मैंने लिख दिया.
नमन....तुषार कॉस्मिक
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