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इमोशनल इंटेलिजेंस

मैं तर्क का हिमायती हूँ. इतना कि मेरा मानना है कि गली-गली नुक्कड़-नुक्कड़ तर्क युद्ध होना चाहिए. तर्क की अग्नि से गुज़रे बिना मानव मन पर सदियों-सदियों से पड़े अंध-विश्वासों की मैल गलेगी नहीं. लेकिन आज बात इमोशन की, भावनाओं की. क्या तार्किक होना इमोशनल होने के खिलाफ है? और यह 'इमोशनल इंटेलिजेंस' क्या है? आईये देखिये. आपने अक्सर खबरें सुनी होंगी, ज़रा सी बात पर कत्ल हो जाते हैं. मरने वाला तो मर जाता है लेकिन मारने वाला भी मर जाता है. उसके पीछे उसका परिवार भी मारा जाता है. “ज़रा सी बात”. दिल्ली में रोड़ रेज की खबरें लगभग रोज़ सुनते-पढ़ते होंगे आप. ऐसे में हो सकता है कि कोई इंसान किसी की बदतमीज़ी बर्दाश्त कर ले. हो सकता है कि वो बुज़दिल दिखाई दे, लेकिन उसकी यह वक्ती बुजदिली उसे ख्वाह्मखाह की मुसीबतों से बचा भी सकती है. इसे कहते हैं 'भावनात्मक बुद्धिमत्ता'. इमोशनल इंटेलिजेंस. अब अगली बात. मर्द को दर्द नहीं होता. लेकिन मर्द को सेक्स का मज़ा भी नहीं आता क्या? दर्द होता है, मर्द हो चाहे औरत. लेकिन मर्द ज़ाहिर नहीं करता. ज़ाहिर करेगा तो उसकी मर्दानगी पर शक किया जाएगा. लेकिन वो इत...