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वैलेंटाइन डे स्पेशल

किस को "किस ऑफ़ लव" पसंद न होगी. नहीं पसंद तो वो इन्सान का बच्चा/बच्ची हो ही नहीं सकता/सकती. जब सबको लव पसंद है, किस ऑफ़ लव पसंद है तो फिर काहे का लफड़ा, रगड़ा? लेकिन लफड़ा और रगडा तो है. और वो भी बड़ा वाला. समाज का बड़ा हिस्सा संस्कृति-सभ्यता की परिभाषा अपने हिसाब से किये बैठा है. इसे भारत की हर सही-गलत मान्यता पर गर्व है लेकिन इसे कोई मतलब ही नहीं कि यही वो पितृ-भूमी है, मात-भूमी, पुण्य-भूमी है जहाँ वात्स्यान ने काम-सूत्र गढा और उन्हे ऋषि की उपाधि दी गयी, महर्षि माना गया. यहीं काम यानि सेक्स को देव यानि देवता माना गया है, “काम देव”. यहीं शिव और पारवती की सम्भोग अवस्था को पूजनीय माना गया और  मंदिर में स्थापित किया गया है. यहीं खजुराहो के मन्दिरों में काम क्रीड़ा को उकेरा गया. काम और भगवान को करीब माना गया. न सिर्फ स्त्री-पुरुष की काम-क्रीड़ा को उकेरा गया है, बल्कि पुरुष और पुरुष की काम-क्रीड़ा को भी दर्शाया गया है. बल्कि पुरुष और पशु की काम क्रीड़ा को भी दिखाया गया है. मुख-मैथुन दर्शाया है और समूह-मैथुन भी दिखाया गया है और असम्भव किस्म के सम्भोग आसन दिखाए गए हैं. और ऐसा ह...