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Thursday 9 March 2017

स्वास्थ्य

बड़ा विषय है. जो कुछ भी लिखने जा रहा हूँ, वो बस कुछ-कुछ ही है. बहुत पहले लिखा था कहीं कि इंसान बूढ़ा उम्र से नहीं, ग्रेविटी से होता है. आपने कभी पढ़ा-सुना हो कि जो लोग स्पेस में रहे बीस-तीस साल, जब वो वापिस आये तो उनके बच्चे उनके बराबर की उम्र के दिख रहे थे.स्पेस में रहने वाले लोगों की उम्र रुक गई थी. आगे ही नहीं बढ़ी. मुझे नहीं पता कि यह कितना सत्य है. लेकिन मेरी समझ से सत्य होना चाहिए. वजह है. वजह है ग्रेविटी. ग्रेविटेशनल पुल. आपका वज़न क्या है? मानो सत्तर किलो. इसका मतलब है कि आपके शरीर पर प्रतिपल सत्तर किलो का खिचांव पड़ रहा है नीचे को. मान लीजिये कि आपके कंधों पर बीस किलो वज़न डाल दिया गया, तो आपको क्या लगता है कि आप सिर्फ बीस किलो उठा रहे हैं? नहीं. अब आप नब्बे किलो वज़न उठा रहे हैं. सत्तर अपना मिला कर. अब धरती आप को नीचे की तरफ नब्बे किलो वज़न से खींच रही है. अब जिस चीज़ को कोई लगातार सत्तर किलो वज़न से नीचे को खींचा जा रहा हो तो उसका मांस नहीं लटकेगा क्या? उस के जोड़ों में खिंचाव नहीं आएगा क्या? उसके बाकी सिस्टम में कोई नेगेटिव फर्क नहीं आएगा क्या? बिलकुल आएगा. आपके अंडर-वियर का इलास्टिक साल-छह महीने में ढीला हो जाता है, अंडर-वियर जॉकी का ही क्यूँ न हो, जिसे दिखाने की आप में कभी-कभी छद्म इच्छा जागृत हो उठती है. तो यह इलास्टिक क्यूँ ढीला हो जाता है? चूँकि लगातार खिंचाव पड़ रहा होता है. तो जस्ट इमेजिन. जब आपके-हमारे शरीर पर लगातार अपने वज़न जितना खिंचाव पड़ेगा तो उसका क्या हाल होगा? तो वज़न कम रखें. कितना कम? मैं आपको इंचों में, किलो में नहीं बताने वाला. मेरा पैमाना सीधा है. जब आप सीधे खड़े हों तो आप अपने पैर देख सकें. मतलब बीच में पेट न आता हो. आपने बच्चे देखे हों. मैं शहर के, अमीरों के बच्चों की बात नहीं कर रहा. मैं भुखमरी के शिकार इलाकों के बच्चों की बात भी नहीं कर रहा. आम घरों के बच्चे. आपको शायद ही कोई आड़ा-टेड़ा दीखता हो. सब फिट. बस वैसा शरीर आदर्श है. किसी डॉक्टर के पैमाने पर मत जाएं. मेरी छोटी बिटिया को आज भी अंडर-वेट कहते हैं, लेकिन वो कल भी स्वस्थ थी और आज भी है. तो वज़न सही होगा तो फालतू गुरुत्व-आकर्षण नहीं पड़ेगा शरीर पर. आप देर से बूढ़े होंगे, कम बीमार होंगे. अब यह क्या बात? वज़न कम रखें. यह तो अक्सर सुनते आये हैं आप. ठीक. लेकिन जो वजह मैंने बताई, जैसे बताई, वो सब नहीं सुना होगा. अब इलाज पढ़िए. इलाज है योग-आसन. यह एकमात्र विधि है जो गुरुत्व-आकर्षण के खिलाफ काम करती है. मैंने अनेक तरह की व्यायाम किये हैं जीवन में. एक समय में लोग अपने व्यायाम छोड़ मुझे देखते थे कि यह आदमी मशीन की तरह कैसे इतनी हरकत कर लेता है. लगातार. मान लीजिये आप रस्सी कूद रहे हैं. ठीक. यह आपको व्यायाम दे रही है लेकिन आप के शरीर पर गुरुत्व बल उतना ही पड़ रहा है जितना हमेशा पड़ता है. आप रोजाना पैदल चलते हैं, दौड़ते हैं, आपका शरीर उसी स्थिति में होता है, जैसा होता है अक्सर. ज़मीन पर पैरों के बल नब्बे डिग्री पर. गुरुत्व बल वैसे ही अपना काम करता रहता है. एक मात्र योग-आसन ऐसी विधा है जो शरीर को गुरुत्व-बल के खिलाफ खड़ा करती है. जिससे हम जो गुरुत्व बल हमारे खिलाफ काम कर रहा होता है, उसे ही अपने पक्ष में कर लेते हैं. बीमारी को ही इलाज बना देते है. दुश्मन को दोस्त बना लेते हैं. अब यह क्या नई बात बताई मैंने? योग-आसन के फायदे होते हैं, यह तो आपको पहले ही पता था. राईट? लेकिन वो फायदे कैसे होते हैं, उसकी जो एक्सप्लेनेशन मैंने दी, वो शायद आपको नहीं पता था. राईट? योगासन कोई बाबा रामदेव की देन नहीं हैं. उनसे पहले धीरेन्द्र ब्रह्मचारी सिखाते थे टीवी पर. 'भारतीय योग संस्थान' बहुत पहले से पार्कों में योग सिखा रहा है, करा रहा है. बहुत लोग व्यक्तिगत स्तर पर योग कक्षाएं लीड करते आ रहे हैं. विदेशों में विक्रम योगा काफी मशहूर रहा है. योग-आसन पतंजलि के अष्टांग योग का एक हिस्सा है और यह भारत की दुनिया को बड़ी देन में से एक है. तो योग-आसन मात्र ही होने चाहिएं क्या व्यायाम में? मेरा ख्याल है कि नहीं. गुरबाणी में शायद पढ़ा था,"नचणा टप्पणा मन का चाओ.” इंसानी मन का चाव है, नाचना, टापणा. तो कुछ ऐसा ज़रूर करें कि जिसमें कूदना, फांदना, भागना, चलना-फिरना भी हो जाए. क्षमता अनुसार, हालांकि क्षमता भी बढ़ाई जा सकती है और क्षमता की सीमाएं बहुत कुछ मानसिक अवरोधों की वजह से भी बनी होती हैं. रस्सी कूदी जा सकती है. बिना रस्सी के भी कूदा जा सकता है. खड़े-खड़े हाफ स्टेप रनिंग की जा सकती है. बॉक्सिंग किट पर घूंसे-बाज़ी की जा सकती है, किक की जा सकती हैं. और भी बहुत कुछ. खैर, इन्हें हम 'फ्री-हैण्ड एक्सरसाइज' कह सकते हैं. ऐसी सब एक्सरसाइज मानसिक रेचन के लिए भी ज़रूरी हैं. भावनात्मक वाष्पीकरण. अगली महत्व-पूर्ण व्यायाम विधा है वजन उठाना. जैसा मैंने ऊपर लिखा कि योग-आसन हमारा गुरुत्व-बल के खिलाफ हथियार है. वज़न उठाना दूसरा हथियार है. गुरुत्व-बल के ही खिलाफ. प्रतिपल पड़ने वाले गुरुत्व-बल के खिलाफ ही हम अपने शरीर को और मज़बूत कर रहे हैं. दंड पेलना, बैठकें मारना, सब इसमें आता है. ये बॉडी-वेट एक्सरसाइज कहलाती हैं. हम अपने ही शरीर के वज़न को अपने शरीर के ख़ास अंगों पर डाल कर शरीर को मज़बूत करते हैं. या फिर हम डम्ब-बेल, बार-बेल, मशीनों आदि का प्रयोग करते हैं. यह भी असल में है, ग्रेविटी के खिलाफ ही हथियार. यूँ समझें कि एक साठ साल के व्यक्ति का शरीर अगर अस्सी किलो का है और अगर एक बीस साल के लड़के का शरीर भी अस्सी किलो का है तो वज़न तो दोनों का बराबर है लेकिन उनकी क्षमता बराबर नहीं होगी. क्यूँ? साठ साल के व्यक्ति के शरीर में वो ताकत नहीं है जो बीस साल के व्यक्ति के शरीर में है. अंडर-वियर का इलास्टिक ढीला हो चुका है. लेकिन अगर वही व्यक्ति वज़न उठा-उठा कर अपने शरीर को मज़बूत कर ले तो? अब शायद वो बीस साल के आम लड़के का भी मुकाबला कर ले. यह ढीले इलास्टिक को मशीन में डाल फिर से मज़बूत करने का ढंग है. बाकी गुरुत्व बल तो हर हालात में अपना काम एक जैसा ही करता है. तो व्यायाम को तीन हिस्सों में बांटता हूँ. १.योगासन. २.फ्री-हैण्ड एक्सरसाइज (नाचना-कूदना आदि) ३.वज़न उठाना मिला-जुला कर करें, लेकिन योग-आसन को सबसे ऊपर रखें. अष्टांग योग के ही दो अंग हैं. धारणा और ध्यान. स्वास्थ्य में इनका क्या महत्व है, देखिये मेरे साथ. मन ड्राईवर है शरीर का. और अगर ड्राईवर दारू पीये हो, अनाड़ी हो तो वो गाड़ी ठोक देगा. गाड़ी चाहे कितनी ही बढ़िया हो. 'रोल रोयस' ही क्यूँ न हो. तो ये दोनों विधाएं दारू पीये मन को सूफ़ी करने में काम आती हैं. धारणा है धारण कर लेना कुछ. मन में कुछ बिठा लेना. मैंने अक्सर ज़िक्र किया है 'लैंडमार्क फोरम' का. उस वर्कशॉप का एक निचोड़ यह था कि हम वो ही हो जाते हैं, जो हमारे मन में कभी जाने-अनजाने बैठ जाता है, बिठा दिया जाता है. और यह जो बैठता है, अधिकांशत: नेगेटिव होता है. इंसान की सबसे ज़्यादा पिटाई वो खुद ही करता है. ज्यादातर लोगों की 'सेल्फ इमेज' बहुत खराब होती है. कोई अपनी चौड़ी नाक से परेशान है तो कोई अपनी छोटी हाइट से. कोई गंजा हो रहा है तो कोई मोटा. बहुत कम लोग हैं, जो जैसे हैं, वैसे खुश हैं. समाज इस तरह से पेश आता है एक बच्चे से कि उसे अपना बहुत कुछ खराब लगता है, बेकार लगता है. वो लगातार खुद को कोसता रहता है. तो भैया जी, बहिन जी, खुद को जुत्तियां मारनी बंद कीजिये. आप सही हैं और बेहतर हो सकते हैं. यह जो नॉन-स्टॉप रेडियो चलाए रखते हैं अपने खिलाफ़ उसे बंद करें. बस, फुल स्टॉप. 'नेगेटिव सेल्फ-टॉक' से 'पॉजिटिव सेल्फ-टॉक' करें. लेकिन मात्र पॉजिटिव पॉजिटिव पॉजिटिव का गीत गाने से कुछ नहीं होगा यदि उसके पीछे तार्किक ग्राउंड नहीं होगी तो. आपका मन खुद ही ऐसी धारणा को नकार देगा और आप पहले से भी बदतर स्थिति में होंगे. पुराना मन कहेगा, "देखा, मैं न कहता था, यह नहीं हो सकता. आया बड़ा तीस मार खां." तो पॉजिटिव धारणा से मतलब पॉजिटिव बकवास-बाज़ी चलाए जाने से नहीं है. न. उसके पीछे मज़बूत तार्किक ग्राउंड रखने से भी है. अगर आप उम्र में छोटे हैं और दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेना चाहते हैं तो आप बुधिया सिंह की मिसाल ले सकते हैं, जिसने बचपने में ही कई रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. और उम्र में बड़े हैं तो फौजा सिंह को अपने सामने रख सकते हैं, जो सौ साल के होकर भी मीलों दौड़ते हैं रोज़. अब अगर आप कहीं आप असफल भी होते हैं तो आपका पुराना मन आप पर हावी नहीं हो पायेगा. यह एक तरह का आत्म-सम्मोहन है. सम्मोहन में भी यदि कुछ धारणा मन में बिना तार्किक आधार के बिठा दी जायेगी तो वो कितनी ही पॉजिटिव दिखे लेकिन कुछ ही समय बाद बैक-फायर करेगी. तो आत्म-सम्मोहन हो, दूसरे द्वारा सम्मोहन हो, सेल्फ-टॉक हो, पॉजिटिव धारणाएं धारण करें लेकिन तार्किक आधार के साथ. बुनियाद मज़बूत न हो तो बिल्डिंग कितनी बड़ी खड़ी कर लें, भर-भरा कर गिर जायेगी. दूसरी विधा है 'ध्यान'. बहुत लिखा-कहा जाता है ध्यान पर आज कल. जिन्हें कुछ नहीं पता, उन्हें भी सब पता है. खैर, मेरा भी एक आर्टिकल है इसी विषय पर. शोर्ट में कहता हूँ . ध्यान पर ध्यान ही ध्यान है. हमारी ज्यादातर बीमारियाँ मन से आती हैं. ध्यान भटकता है इधर-उधर. और इसी भटकन में वो एक खिंचाव पैदा किये रहता है और वो खिंचाव शरीर को अंदर से बीमार करता है. तो यह दूसरा खिंचाव है. गुरुत्व-बल बाहर से खींचता है. मानसिक खिंचाव अंदर से खींचता है. रक्त-चाप को अनियमित कर देता है, ह्रदय-रोग दे जाता है, शर्करा बन जाता है, ब्रेन हैमरेज दे जाता है, कुछ भी कर जाता है. तो मित्रवर, ध्यान सीख लीजिये. तुरत काम आता है. आपको जब भी लगे मामला गड़बड़ होने जा रहा है. तुरत ध्यान विषय से हटा लीजिये और ध्यान को ध्यान पर ले आईये. ध्यान का तीर प्रत्यंचा से छूटे नहीं. वो हर दम तैयार है छूटने को. लेकिन आपकी नज़र अगर जमी है उस पर, तो वो नहीं छूटेगा. समन्दर में उठा भंवर शांत होता जाएगा. बस सीखने की विधा है. हर वक्त काम आती है. आपके बगल में बैठे व्यक्ति को पता तक नहीं लगेगा कि आपने कैसे खुद का इलाज कर लिया. वो शब्द है न. स्वस्थ. स्वयं में स्थित. वो यही है. ध्यान पर ध्यान. अपने आप में स्थित होना. आप, हम सिवा ध्यान के कुछ नहीं हैं. और जब आप खुद पर स्थापित हो जाते हैं तो स्वस्थ हो जाते हैं. अगला मुद्दा है "आहार". आहार मात्र भोजन नहीं है. जो भी कुछ हम शरीर में डालते हैं, वो आहार है. जो मन में डालते हैं, वो भी आहार है. तो ज़रूरी है कि हम क्या पढ़ रहे हैं, क्या देख रहे हैं, क्या सुन रहे हैं, वो सब भी स्तरीय हो. स्वास्थ्यकारी हो, कचरा डालेंगे तो कचरा ही बाहर आएगा. गार्बेज इन, गार्बेज आउट. अच्छा डालेंगे तो आउटकम भी अच्छा ही होगा. आजकल हॉलीवुड की फिल्में बनती हैं. "ज़ोम्बी" विषय पर. सीरीज़ बनती चली आ रही हैं. अब यह कचरा नहीं तो और क्या है? हॉरर फिल्मों की सीरीज़ बनती चली आती हैं. बीमार मनोरंजन. बॉक्सिंग क्या है? बीमार मनोरंजन. इंसान इंसान को मार-कूट के धराशाई कर दे, तो यह खेल हुआ? वो रोम में होता था ऐसा. लड़ाके छोड़ दिए जाते थे अखाड़े में. एक दूजे को मारते हुए. दर्शक दीर्घ में बैठे भद्रजन ताली पीटते थे. तो मन में जो डाला जाए, वो स्वास्थ्यकारी होना ज़रूरी है. और तो तन में जो डाला जाए, वो भी स्वास्थ्यकारी होना ज़रूरी है. तन के आहार में भोजन बड़ा हिस्सा है. लेकिन पहले बात धूप की. जितना ज़रूरी अच्छा खाना-पीना है, उतना ही ज़रूरी धूप का सेवन है. गर्मी हो या सर्दी, आधा घंटा, एक घंटा धूप में ज़रूर रहें. हो सके तो कपड़े उतार कर. वो गोरे मीलों दूर उड़ कर समुद्र किनारे नंगे पड़े रहते हैं धूप में और हमारे यहाँ यही चिंता रहती है कि कहीं काले न हो जाएँ. धूप लेंगे तो सर्दी, खांसी ज़ुकाम नहीं होगा. हड्डियाँ कड़-कड़ नहीं बोलेंगी. धूप कुदरत का तरीका है, हमारे तन को सेकने का, पकाए रखने का. नहीं लेंगे तो शरीर कच्चा पड़ना शुरू हो जाएगा. मैंने लिखा था कुछ समय पहले कि प्रभु कह रहे हैं इंसान से. "हम ने सर्द दिन बनाये और सर्द रातें बनाई, लेकिन तुम्हारे लिए नर्म नर्म धूपें भी खिलाई. जाओ, निकलो बाहर मकानों से, जंग लड़ो दर्दों, खांसी और ज़ुकामों से" अब भोजन की बात. आग की खोज से हमारे सभ्य होने की यात्रा की शुरूआत मानी जाती है. आग ने बहुत कुछ दिया है हमें. अभी कुछ समय पहले तक ट्रेन आग से चलाई जातीं थी. आग से पानी को गर्म करके भाप बनाई जाती थी और भाप की ताकत से ट्रेन दौड़ती थी. लेकिन आग से हमारा बहुत कुछ नुक्सान भी हुआ है. आग को हम घर ले आए. रसोई घर. हमने वो तक पका लिया जो शायद हमारे खाने के लिए था ही नहीं. बहुत पहले डिस्कवरी चैनल पर एक प्रोग्राम देखा था. कुछ बीमार लोगों को एक जगह इकट्ठा कर लिया गया और उनको कच्चा खाना दिया गया. बिना पका. लगातार. बड़ी मुश्किल से खा पा रहे थे वो लोग. लेकिन कुछ ही समय में उनके बहुत से रोग अपने आप दूर हो गए. खाना हम खाते हैं या खाना हमें खाता है? यह गहन प्रश्न है. इतनी तरह का खाना हम ईजाद कर चुके हैं कि क्या खाएं और क्या न खाएं, यह भी एक विज्ञान बन गया है. डाइट विज्ञान. कुदरत को हम बेवकूफ समझते हैं. हमें लगता है कि हम सबसे सयाने हैं और जो हम करते हैं, वो ही सही है. सूरज किस लिए है? वो अपनी गर्मी से फल-सब्जियां-नारियल पकाता है कि नहीं? उनमें बहुत कुछ ऐसा है कि नहीं जिसे इंसान सीधा खा सकता है? बस वही खाने लायक है. बाकी जो कुछ भी आप-हम खा रहे हैं. बकवास है. सीधी बात, नो बकवास. गली में सर्वे करते फिर रहे थे....आपके बच्चे सूप कौन सी कंपनी का पीते हैं? इडियट. दिल किया थप्पड़ मार कर भगा दूं. एक तो वैसे ही दरवाज़े बजा-बजा कर घर की औरतों को मज़बूर कर रहे थे कि इन महाराज के सवालों का जवाब दें. ऊपर से सवाल इतने बकवास. मैंने कहा, "सूप पीते हैं लेकिन टमाटर का. सब्ज़ियों का. किसी कम्पनी का नहीं." वो अज़ीब शक्ल बना कर देख रहे थे. मुझे लगा नहीं कि उनको मेरी बात समझ में आई. मैं तो इस हक़ में भी नहीं कि सूप भी बनाया जाए. सीधा जो सब्ज़ी खा सकते हैं, खा लेनी चाहिए. लेकिन मुझे आभास है कि एक दम से सब कुछ कुदरत की आग में पका ही आप खाएं, यह लगभग असम्भव है. हाँ, आप अपने भोजन में जितना हो सके कुदरती खाना शामिल करें, यह सम्भव है. तो ये थोड़ी सी बात, खान-पान और व्यायाम के विषय में. हालांकि और भी पहलु हैं. स्वास्थ्य के लिए जीवन स्वस्थ होना चाहिए. जीवन संतुलित होना चाहिए. जीवन में अगर असंतुलन होगा तो यह सब जो लिखा है मैंने ऊपर कुछ काम नहीं आएगा. मिसाल के लिए अगर किसी की आर्थिक स्थिति सही न हो तो यह सारी विधाएं अपनाने के बाद भी वो अस्वस्थ हो सकता है. और अगर ट्रैफिक के नियमों के साथ खिलवाड़ करेगा तो टांग तुड़वा बैठेगा, लाख करता रहे आसन. सेक्स न मिले तो पगला जाएगा. लेकिन ये सब फिर कभी. नमन...मदारी...तुषार कॉस्मिक