Friday 9 October 2015

आरक्षण पर ओशो से मेरा मत विरोध

"आरक्षण पर ओशो से मेरा मत भेद"

प्रस्तुत लेख में मैं आरक्षण के विषय में उनके और फिर बाद में अपने ख्यालात पेश कर रहा हूँ.....ओशो आरक्षण  का समर्थन करते हैं और मैं विरोध...पढ़िए, आशा है अच्छा लगेगा-----

"ओशो की दृष्टि में आरक्षण"

यही ब्राह्मण.... इस देश में, इस देश की बड़ी से बड़ी संख्या शूद्रों को सता रहे हैं, सदियों से........... ये कैसे शान्त लोग हैं?........ और अभी भी इनका दिल नहीं भरा, अभी भी वही उपद्रव जारी है....... अभी सारे देश में आग फैलती जाती है.... और गुजरात से क्यों शुरू होती है आग?...... पहले भी गुजरात से शुरू हुई थी, तब ये जनता के बुद्धू सिर पर आ गये थे, अब फिर गुजरात से शुरू हुई है.... गुजरात से शुरू होने का कारण साफ़ है..... ये ‘’महात्मा गाँधी’’ के शिक्षण का परिणाम है, वे दमन सिखा गये हैं, और सबसे ज्यादा गुजरात ने उनको माना है, क्यों कि गुजरात के अहंकार को बड़ी तृप्ति मिली है, की गुजरात का बेटा और पूरे भारत का बाप हो गया..... अब और क्या चाहिए?

गुजराती का दिल बहुत खुश हुआ, उसने जल्दी से खादी पहन ली. मगर खादी के भीतर तो वही आदमी है जो पहले था, महात्मा गाँधी के भीतर खुद वही आदमी था जो पहले था, उसमे भी कोई फर्क नहीं था, महात्मा गाँधी बहुत खिलाफ थे इस बात के, कि शूद्र हिन्दू धर्म को छोड़ें, उन्होंने इसके लिए उपवास किया था, आजन्म आजीवन मर जाने की धमकी दी थी............ आमरण अनशन............. कि, शूद्र को अलग मताधिकार नहीं होना चाहिए......

 क्यों?........पांच हजार सालों में इतना सताया हैं उसको, कम से कम उसको अब कुछ तो सत्ता दो? .........कुछ तो सम्मान दो?..... उसके अलग मताधिकार से घबराहट क्या थी? ...........घबराहट ये थी कि शूद्रों की संख्या बड़ी है.......... और शूद्र, ब्राह्मणों को पछाड़ देंगे, अगर उन्हें मत का अधिकार प्रथक मिल जाये.......... तो मत का अधिकार रुकवाया गाँधी ने........आमरण अनशन की धमकी हिंसा है, अहिंसा नहीं ! और एक आदमी के मरने से, या ना मरने से, कोई फर्क नहीं पड़ता.....यूं ही मारना है....लेकिन .......दबाव डाला गया शूद्रों पर सब तरह का, कि तुम पर ये लांछन लगेगा की महात्मा गाँधी को मरवा डाला.......यूं ही तुम लांछित हो, ऐसे ही तुम अछूत हो, ऐसे ही तुम्हारी छाया भी छु जाये किसी को तो पाप हो जाता है... तो तुम्हे और लांछन अपने सिर लेने के झंझट नहीं लेनी चाहिए...........बहुत दबाव डाला गया, दबाव डाल कर गाँधी का अनशन तुडवाया गया...........और शूद्रों का मताधिकार खो गया............

 अब गुजरात में जो उपद्रव शुरू हुआ है की शूद्रों को जो भी आरक्षित स्थान मिलते हैं विश्वविधालय में, मेडिकल कॉलेजों में, इन्जीनियरिंग कॉलेजों में............वो नहीं मिलने चाहिए.......... क्यों?...... क्यों कि स्वतन्त्रता में और लोकतन्त्र में सब को सामान अधिकार होना चाहिए................मगर शूद्रों को तुमने पांच हजार साल में इतना दबाया है की उनके विचारों के सामान अधिकारों का सवाल ही कहाँ उठता है?..............सब को गुण के अनुसार स्थान मिलना चाहिए...... लेकिन....... पांच हजार साल से जिनको किताबें भी ना छूने दी गईं, जिनको किसी तरह की शिक्षा मिली, वो ब्राह्मणों से, छत्रियों से, वैश्यों से, कैसे टक्कर ले सकेंगे? उनके बच्चे तो पिट जायेंगे., उनके बच्चे तो कहीं भी नहीं टिक सकते, .उनके बच्चों को तो विशेष आरक्षण मिलना ही चाहिए, और ये कोई दस- बीस वर्षों तक में मामला हल होने वाला नहीं है, पाँच हजार, दस हजार साल जिनको सताया गया है, तो कम से कम १०० –२०० साल तो निश्चित ही उनको विशेष आरक्षण मिलना ही चाहिए., ताकि इस योग्य हो जाएँ कि वो खुद सीधा मुकाबला कर सकें. जिस दिन इस योग्य हो जायेंगे, उस दिन आरक्षण अपने आप ही बंद हो जायेगा.

 लेकिन आरक्षण उनको नहीं मिलना चाहिए, इसके पीछे चालबाजी है..........षड़यंत्र है........ षड़यंत्र वही है क्यों की सब कुछ जाहिर है..........जिनके पैर दस हजार साल तक तुमने बाँध रखे, और अब दस हजार साल के बाद तुमने उनके पैर की जंजीर तो अलग कर ली..... .तुम कहते हो सब को सामान अधिकार है?.......... इस लिए तुम भी दौड़ो दौड में.............लेकिन जो लोग दस हजार साल से दौड़ते रहे हैं, धावक हैं...........उनके साथ, जिनके पैर दस हजार साल तक बंधे रहे हैं, उनको दौड़ाओगे ? तो सिर्फ फज़ीहत होगी इनकी, ये दो चार कदम भी ना चल पाएंगे और गिर जायेंगे..... ये कैसे जीत पाएंगे? ये प्रतिष्पर्धा में कैसे खड़े हो पाएंगे?

थोड़ी शर्म भी नहीं है इन लोगों को, जो आरक्षण विरोधी आन्दोलन चला रहे हैं, और ये आग फैलती जा रही है, अब राजस्थान में पहुच गयी, अब मध्य प्रदेश में पहुचेगी, और एक दफे बिहार में पहुच गयी तो बिहार तो बुद्धुओं का..... अड्डा है, बस गुजरात के उल्लू और बिहार के बुद्धू अगर मिल जाएँ.......तो पर्याप्त हैं...... इस देश की बर्बादी के लिए फिर कोई और चीज़ की जरूरत नहीं है......... और जादा देर नहीं लगेगी........जो बिहार के बुद्धू हैं, वो तो हर मौके का उपयोग करना जानते हैं, जरा बुद्धू हैं इस लिए देर लगती है उनको, गुजरात से उन तक खबर पहुचने तक थोड़ा समय लगता है, मगर पहुच जायेगी, और एक दफे उनके हाथ में मशाल आ गयी ........तो फिर बहुत मुश्किल है.........फिर उपद्रव भारी हो जाने वाला है, और ये आग फैलने वाली है, ये बचने वाली नहीं है...........और इस सब आग की पीछे ब्राह्मण है."

"आरक्षण पर मेरे विचार" 

यदि बाप ने क़त्ल किया हो तो क्या बेटे को फांसी दी जानी चाहिए? 
यदि बलात्कार किया हो किसी ने तो सज़ा के रूप में उसकी बहन से बलात्कार किया जाए क्या? जैसे अक्सर खाप पंचायत के फैसले सुने जाते हैं.
नहीं न. तो फिर इतिहास की सज़ा वर्तमान को क्यों दे रहे हो?
खत्म करो यह आरक्षण की बीमारी

क्या गोली सबके शरीर के आरपार जाती है या कोई भेदभाव करती है?
क्या तलवार का वार सभी के शरीर को काट सकता है या कोई भेदभाव करता है?
क्या बीमारी, तंगहाली, गंदगी, बदबू सबको परेशान करती हैं या कोई भेदभाव करती हैं?
क्या गरीबी की लानत सब पर बराबर बरसती है या कोई भेदभाव करती है?
"गरीब की जोरू सबकी भाभी" क्या यह कहावत हर गरीब के लिए है या किसी ख़ास जात के गरीब के लिए? नहीं समझ आया न कि मैं कहना क्या चाहता हूँ......मित्रवर ......गरीबी गरीबी है और हर गरीब सामाजिक कुव्यवस्था का शिकार है.

इस देश ने एक से एक छिछले विचारक पैदा किये हैं...अम्बेडकर उनमें से एक हैं.....गरीबी इसलिए नहीं है कि जाति पति का भेदभाव है...इसलिए भी है कि जात पात का भेदभाव है...सो तुम यदि समाज की गरीबी को टुकड़ों में बाँट कर देखते हो तो तुम्हारी आँख पक्षपाती है, मोतियाबिंद की शिकार है .....एक जात के गरीबों को उठाओ बाकियों ने जैसे कोई गुनाह किया है
पुरखों के गुनाहों की सज़ा उनके बच्चों को नहीं दी जाती.....अब समय है कि इस आरक्षण नाम की बीमारी से समाज को मुक्त किया जाए......जात पात को हमेशा के लिए खत्म किया जाए...गरीबी को....समाज के हर हिस्से की ग़रीबी को दूर करने का प्रयास किया जाए....अंधे पूंजीवाद...जो सबसे बड़ा आरक्षण है उसके खिलाफ लामबंद हुआ जाए

राम विलास शर्मा के हाथों एक कत्ल हो गया गाँव में...अब क्या फांसी इसके भाई को दे दें जो दिल्ली में रहता है, जिसका इस क़त्ल से दूर दराज़ का कोई नाता नहीं है? नहीं न.
ठीक है भाई कोई आपके साथ जात पात के नाम पर भेद भाव कर रहा है .....दलन कर रहा है..तो आवाज़ उठाइये इनके खिलाफ. दिल्ली में गरीब शर्मा जी, गुप्ता जी, सिद्धू साहेब के बच्चों से आप काहे बदला ले रहे हैं, जिनका इस सब से कोई लेना देना ही नहीं ?

मंदिर में आपको पुजारी बनना है...नहीं घुसने देते बामन लोग.....अपने मंदिर बना लीजिये......और भगवान कौन से मंदिर में बैठे हैं? जहाँ तक मैं जानता हूँ भगवान कहीं भी हो सकते हैं लेकिन मंदिर मस्ज़िद गिरजे आदि में तो बिलकुल नहीं हो सकते.

आरक्षण के पक्ष में पोस्ट उभर रही हैं...दलित पर अत्याचार दिखाया जा रहा है.......स्वार्थी.....जैसे भी बस ..तैसे भी फायदा उठा लें......इन्हें यह बात हज़म ही नहीं कि यदि ये लोग गरीब हैं तो समाज को फर्ज़ है कि इनकी मदद करे, सभी की मदद करे.....न....न....इनको तो बस सरकारी नौकरी चाहिए, उम्र भर की बादशाहत .......मेरा मानना यह है कि जो ऑफर की जाने वाली मदद से इनकार करे और ज़िद करे कि नहीं, आरक्षण ही चाहिए, उसे वो मदद भी नहो मिलनी चाहिए.......मुल्क आजादी से ले कर अब तक एक बकवास में उलझा है..सही समस्या का गलत समाधान......इतिहास की गलती की भरपाई वर्तमान से .... इस मामले में आंबेडकर भारत का भारी नुक्सान कर गए हैं.....आरक्षण कभी भी जात पात को खत्म नहीं होने देगा...बढ़ावा देगा......बहुत पहले किसी ने कहा था जाति जाती ही नहीं...कैसे जायेगी? जब आप जात पर बाँट कर रखेंगे समाज को...कैसे जायेगी.....नेता को लालच है आरक्षण के वोट का...लेकिन आप यदि आरक्षण के विरोध में है तो साफ़ कहिये अपने नेता को कि जब तक आरक्षण खत्म नहीं करेंगे वोट नहीं मिलेगा

और वो संघ के भागवत जी ..शायद कहा उन्होंने कि आरक्षण ठीक है.....अब अपनी समझ से बाहर है यह सब..आरक्षण जितना जल्दी खत्म हो उतना अच्छा....सिर्फ वोट की राजनीति है यह स्टेटमेंट

समाज में जब भी, जहाँ भी असंतुलन होगा, तनाव बढ़ेगा........एक समय था एक हिस्से को शूद्र कह कर उसका जीवन शूद्र कर दिया गया, नरक कर दिया गया. फिर आरक्षण ला कर समाज में असंतुलन पैदा किया गया, एक हिस्सा जो ज़्यादा कुशल था जब उसे नौकरी छीन कर कम कुशल व्यक्ति को दी जाने लगी तो फिर से तनाव पैदा हो गया. आज दोनों वर्गों की पीड़ा सच्ची है, आप बात छेड़ लो आरक्षण की, दोनों तरफ से तलवारे खिच जायेंगी..और दोनों अपनी जगह सही हैं...जिसे शूद्र कह कर दलन किया गया वो भी अपनी पीड़ा के प्रति सच्चा है...जिससे काबिल होते हुए रोज़गार छीना गया, वो भी सच्चा है

हम पंजाब से हैं, बठिंडा..........मैं छोटा था......हमारे घर में पाखाना छत पर था.....खुला...बस चारदीवारी थी........हमारा मैला उठाने औरत आया करती थी...जो सर पर टोकरी में ले जाती थी हमारी टट्टी....उन्हें हरिजन कहते थे..उनकी बस्ती शहर से बाहर हुआ करती थी.......और हमारे घरों में उनको चूड़ा कहा जाता था......एक अजीब तरह की हिकारत , नफ़रत के साथ उनका ज़िक्र होता था....और अक्सर कहा जाता था कि नीच नीच ही रहते हैं.......नीच अपनी जात दिखा ही देते हैं......और एक बात बता दूं अब मैं दिल्ली में रहता हूँ...यहाँ भी मादीपुर जे जे कॉलोनी लगती है पास में......यहाँ भी एक ब्लाक चूड़ों का कहा जाता है...और सीवर, नाली साफ़ करने वाले यहीं से आते हैं.....मैंने नहीं देखा कि कोई शर्मा जी, त्रिपाठी जी, कोई अरोड़ा जी, कोई अग्रवाल जी सीवर साफ़ करते हों........ब्रह्मण हमारे घरों से रोटी लेने आता था और जमादार टट्टी.....यह है जिंदा सबूत जात पात के भेद भाव का

अब सवाल है कि आज आरक्षण दिया जाये या नहीं.........मेरा मानना है कि  हिन्दू समाज ने अपने एक अंग को मात्र सेवा लेने के लिए अनपढ़ रखा....उसका उपयोग, दुरूपयोग किया.......लेकिन क्या समाज ने ऐसा सिर्फ शुद्र के साथ किया......नहीं, स्त्री के साथ भी ऐसा ही किया........समाज ने हरेक कमज़ोर के साथ ऐसा ही किया...उसे दबाया...उसका प्रयोग किया.....तो कहना यह है कि जो गरीब है वो भी समाज का ही बनाया है.....पूंजीवाद का बनाया है.....पीढी पीढी दर पूंजी के transfer सिस्टम का बनाया है........

आज नौकरी में आरक्षण का कोई मतलब नहीं है.....सरकारी नौकरी वैसे ही खत्म होती जा रही है...आप कहाँ तक दोगे किसी को नौकरी .......पूंजी के आरक्षण को खत्म करने का......आप जितना मर्ज़ी कमाओ, जितना मर्ज़ी जमा करो...आपकी अगली पीढी को एक निश्चित सीमा  से ज़्यादा ट्रान्सफर नहीं होगा....बाक़ी पैसा आपको सामाजिक कामों में लगाना होगा....या फिर अपने आप पब्लिक डोमेन में चला जायेगा

हम पूरे समाज में ही गरीबी अमीरी का फासला क्यों न कम करें........मैं किसी भी तरह के आरक्षण के खिलाफ हूँ........हाँ, कमज़ोर वर्ग को हर तरह की सुविधा के पक्ष में हूँ......शिक्षा , स्वास्थ्य हर तरह से...वो भी हर गरीब को...

अरे, भाई, एक कहावत है, गरीब की जोरू. हरेक की भाभी........गरीब तो वैसे ही शुद्र होता है...चाहे वो..किसी भी जात का हो

और गरीब वो है समाज की वजह से...वरना एक डॉक्टर क्यों करोड़ो कमाए और एक मोची क्यों बस कुछ सौ...किस ने बनाया यह सब सिस्टम....समाज ने......क्या समाज को नाली, सीवर साफ़ करने वाले की ज़रुरत नहीं...ज़रा, चंद दिन ये लोग, जिनको नाली साफ़ कराने के काम में लगाया जाता है...चंद दिन यदि काम बंद कर दें...सबकी अक्ल ठिकाने आ जायेगी......फिर लाखों देकर भी सीवर साफ़ कराया जाएगा

मेरा ख्याल है कि जो हो गया ..हो गया......अब कोई फ़ायदा नहीं कि हम झगड़ते रहें.....और यह इस तरह का आरक्षण भी बंद होना चाहिए...नौकरी......सरकारी नौकरी तो वैसे भी सब CCTV तले होनी चाहिए....सरकारी नौकर को जमाता जैसा नहीं, एक नौकर जैसा ही ट्रीटमेंट मिलना चाहिए...हाँ नौकर को बेहतर ट्रीटमेंट मिलना चाहिए, वो एक दीगर बात है

और मेरा सुझाव है कि डर्टी जॉब्स, पूरे समाज को रोटरी सिस्टम से करनी चाहिए....क्यों कोई ज़िम्मा ले किसी का........हम ऐसा समाज क्यों नहीं बना सकते कि आपके धन से खरीद शक्ति को सीमित कर दिया जाए...आप जितने मर्ज़ी अमीर होते रहें..लेकिन.....आप अपने लिए एक सफाई वाला नहीं खरीद सकते....आपको अपने हिस्से की डर्टी जॉब खुद करनी ही होगी..इस तरह से कुछ

बच्चे पैदा करने की राशनिंग होनी चाहिए, प्लानिंग होनी चाहिए.........सामूहिक लेवल पर.....एक निश्चित भोगोलिक क्षेत्र कितने बच्चे आसानी से अफ्फोर्ड कर सकता है, बस उतने ही बच्चे पैदा होने चाहिए.........और एक जोड़े को हो सके तो एक से ज़्यादा बच्चे का अधिकार न दिया जाए....और हो सके तो बच्चे सामूहिक हों न कि व्यक्तिगत.......

समाज का एक बड़ा हिस्सा बहुत गरीब है...पूंजी मात्र थोड़े से , चंद लोगों के पास है...........जीवन का स्वर्ग बस चंद लोगों के हिस्से है और नर्क लगभग पूरी मानवता के हिस्से......इलाज आरक्षण नहीं है....कुछ और सोचना होगा...और पूरे सामाजिक ताने बाने को फिर से देखना होगा.......पुराने दर्दों के नए इलाज खोजने होंगे...प्रयोग करने होंगे....तभी कोई रस्ता निकलेगा....

ज़रूरी है कि बच्चे पैदा करना भी सीमित हो......गरीब आमिर का सवाल नहीं...बच्चा पैदा करने का फैसला व्यक्तिगत कैसे हो सकता है जब आप सारी ज़िम्मेदारी सरकार पर थोपते हैं....जब आप शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा हर चीज़ सरकार से मांगते हैं तो फिर बच्चे पैदा करने का हक़ भी सार्वजानिक हितों को ध्यान में रख कर क्यों न हो.....वो हक़ कैसे व्यक्तिगत हो सकता है....वरना बच्चे पैदा कोई करता रहे और फिर सरकार से, समाज से हर तरह की सुविधा की आपेक्षा करता रहे...यह कहाँ का न्याय है?

यह सब तुरत बंद होना चाहिए, हाँ बड़े पूंजीपति की व्यक्तिगत पूंजी का पीढी दर पीढी ट्रान्सफर  खत्म होना चाहिए......

समाजवाद और पूंजीवाद का सम्मिश्रण होना चाहिए 

न्याय यह नहीं कि सरकारी नौकरी दी जाए..न्याय यह है कि अच्छा प्रशासन दिया जाए......और आरक्षित नौकरियां.......दामादों जैसी नौकरियां.........पक्की नौकरियां.... क्या अच्छा प्रशासन देंगी......नौकरी तो वैसे ही पक्की नहीं होनी चाहिए..

सरकारी नौकरी को दुधारू गाय भैंस की तरह प्रयोग किया गया है......मोटी तनख्वाह, छुटियाँ ही छुटियाँ......हरामखोरी......और किसी का डर नहीं.....

इस तरह की नौकरी से सिर्फ नौकर का ही भला हो सकता है और किसी का नहीं...समाज का नहीं.......जिसे यह नौकर सेवा दे रहे हैं पब्लिक..उसका नहीं.....यह एक दुश्चक्र है

इससे बाहर आना ज़रूरी है........ सरकारी संस्थान पिटने लगे....प्राइवेट क्षेत्र के आगे.....सरकारी पद अपने आप घटने लगे हैं...ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शुरू से ही एप्रोच गलत थी...

नौकरी को नौकरी न मान कर नौकर के जीवन का आरक्षण मान लिया गया

अगर किसी के साथ भी समाज में अन्याय होता है तो इसका मतलब यह कदापि नहीं कि सरकारी नौकरियां बांटी जाएँ.....वो पूरे समाज के ताने बाने को अव्यवस्थित करना है.....अन्याय की भरपाई सम्मान से की जा सकती है....आपसी सौहार्द से की जा सकती है......मुफ्त शिक्षा से की जा सकती है.....मुफ्त स्वस्थ्य सहायता से की जा सकती है......आर्थिक सहायता से की जा सकती है....लेकिन आरक्षण किसी भी हालात में नहीं दिया जाना चाहिए.....

आज ही पढ़ रहा था कि कोई हरियाणा की महिला शूटर को सरकार ने नौकरी देने का वायदा पूरा नहीं किया तो वो शिकायत कर रही थीं...अब यह क्या मजाक है....कोई अगर अच्छी शूटर है तो वो कैसे किसी सरकारी नौकरी की हकदार हो गयी....उसे और बहुत तरह से प्रोत्साहन देना चाहिए..लेकिन सरकारी नौकरी देना...क्या बकवास है.....एक शूटिंग मैडल जीतना कैसे उनको उस नौकरी के लिए सर्वश्रेष्ठ कैंडिडेट बनाता है..? एक नौकरी के अलग तरह की शैक्षणिक योग्यता चाहिए होती है.....अलग तरह की कार्यकुशलता चाहिए होती है......और एक अच्छा खिलाड़ी होना...यह अलग तरह की योग्यता है...क्या मेल है दोनों में?

लेकिन कौन समझाये, यहाँ तो सरकारी नौकरी को बस रेवड़ी बांटने जैसा काम मान लिया गया है, बस जिसे मर्ज़ी दे दो......

कोई दंगा पीड़ित है , सरकारी नौकरी दे दो
कोई किसी खेल में मैडल जीत गया, नौकरी दे दो
कोई शुद्र कहा गया सरकारी नौकरी दे दो

जैसे दंगा पीड़ित होना, दलित होना, खेल में मैडल जीतना किसी सरकारी नौकरी विशेष के लिए उचित eligibility हो

भारत में न सिर्फ गलत ढंग से सरकारी नौकरी बांटने की परम्परा है यहाँ तो सांसद तक गलत ढंग से बनाये जाते हैं...सचिन तेंदुलकर, लता मंगेशकर, रेखा...अब इनका राजनीति में क्या दखल.....होंगे अच्छे कलाकार, होंगे अच्छे खिलाड़ी..लेकिन सांसद होने के लिए अलग तरह की क्षमता होनी दरकार है.....और यहीं थोड़ा ही बस है यहाँ तो मंत्री पद और प्रधानमंत्री पद तक गलत तरीके से बाँट दिए गए हैं.... मात्र सरकारी नौकरी का ही आरक्षण है क्या.....बहुत तरह के आरक्षण हैं......बहुत भयंकर

कितना ही अन्याय हुआ हो.....लेकिन उस मतलब यह नहीं है कि मुफ्त में सरकारी नौकरियां बांटी जाएँ ....

सरकारी नौकरी वैसे ही कम होती जा रही हैं और ये सरकारी नौकर बहुत गैर ज़िम्मेदार रहे हैं...यह सब तो वैसे भी नहीं चलाना चाहिए.......समाज के जिस भी हिस्से से कोई अन्याय हुआ है उसे हर सम्भव मदद करनी चाहिए.....लेकिन वो मदद अंधी मदद न हो, यह भी देखना ज़रूरी है.....

उद्धरण अन्याय के और भी बहुत मिल 
जायेंगे......पाकिस्तान बना.....बहुत लोग सब कुछ गवा दिए...

अक्सर दंगे होते हैं, लोगों का सब कुछ लुट, पिट जाता है.....बहुत मदद दी भी जाती है..लेकिन मदद का मतलब यह नहीं की सरकारी नौकरी दी जाए...व्यक्ति काम कर सकता है या नहीं, यह देखा ही न जाए.....और एक ज्यादा सक्षम व्यक्ति को काम न देकर कम सक्षम आदमी को काम दिया जाए.....यह अन्याय उन लोगों के प्रति भी है जो वो सर्विस लेंगे.....पूरे समाज के प्रति अन्याय है....

शुद्र जिनको किया गया...और उसके लिए आंबेडकर ने जो आरक्षण का हल दिया....वो तो शुरू से ही गलत था....है......सरकारी नौकर से रोज़ पाला पड़ता है, क्या हाल करते हैं वो आम पब्लिक का.....पब्लिक को गुलाम समझते हैं.....हरामखोरी, रिश्वतखोरी ही की ज्यदातर ऐसे लोगों ने.....बिलकुल खत्म होना चाहिए यह सब..

समाज में बराबरी का मतलब यह है कि सरकारी तंत्र को निकम्मा कर दो? क्या बकवास है....?
समाज के एक हिस्से से अन्याय हुआ तो सारे समाज के ताने बाने को ख़राब कर दो....यह कोई ढंग नहीं था...न है...गलत ढंग था....नतीज़ा सामने है....सरकारी तंत्र बर्बाद है.....सरकारी संस्थान घाटे में हैं..पब्लिक सरकारी आदमी से त्रस्त है, चाहे कोई भी महकमा हो.शुद्र कह के समाज के एक बड़े हिस्से के प्रति अन्याय किया गया, सत्य है, तथ्य है......लेकिन हल सरकारी नौकरी का आरक्षण नहीं है ...

समाज में जब भी, जहाँ भी असंतुलन होगा, तनाव बढ़ेगा........एक समय था एक हिस्से को शूद्र कह कर उसका जीवन शूद्र कर दिया गया, नरक कर दिया गया.

फिर आरक्षण ला कर समाज में असंतुलन पैदा किया गया, एक हिस्सा जो ज़्यादा कुशल था जब उसे नौकरी छीन कर कम कुशल व्यक्ति को दी जाने लगी तो फिर से तनाव पैदा हो गया.

आज दोनों वर्गों की पीड़ा सच्ची है, आप बात छेड़ लो आरक्षण की, दोनों तरफ से तलवारे खिच जायेंगी.और दोनों अपनी जगह सही हैं.जिसे शूद्र कह कर दलन किया गया वो भी अपनी पीड़ा के प्रति सच्चा है.जिससे काबिल होते हुए रोज़गार छीना गया, वो भी सच्चा है.

इलाज आरक्षण  नहीं है लेकिन जो पिछड़ गया उसके लिए आर्थिक, शैक्षणिक, न्यायिक, समाजिक मदद दी जानी चाहिए न कि आरक्षण......हर तरह का आरक्षण खत्म होना चाहिए....आरक्षण दुनिया की निकृष्टतम सोच है

इलाज आरक्षण  नहीं है लेकिन व्यक्तिगत पूँजी का पीढी दर पीढ़ी आरक्षण का खात्मा है

इलाज आरक्षण  नहीं है लेकिन समाज के ताने-बाने का पुनर्गठन है, सन्तान उत्पति को व्यक्तिगत न होकर समाजगत करना है  

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TUSHAR COSMIC

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