मैंने घोषणा की हैं
मैं अपना गुरु खुद हूँ, मुझे किसी का हुक्मनामा नहीं चाहिए
मैं अपना पैगम्बर खुद हूँ, मुझे किसी की हिदायत नहीं चाहिए
मैं अपना मसीहा खुद हूँ, किसी और की कमांडमेंट की क्या ज़रुरत?
मैं स्वयम ब्रह्म हूँ, मैं खुद खुदा हूँ खुद का, मुझे क्या ज़रुरत पुराण कुरान की?
मैं स्वयं की रोशनी स्वयं हूँ, मुझे शताब्दियों, सहस्त्राब्दियों पुराने व्यक्तियों की आँखों से नहीं, खुद की आँखों से जीना है
बड़े साधारण शब्द हैं मेरे ..लेकिन काश कि आप भी यह सब कह पाते!
दुनिया चंद पलों में बदल जायेगी.
इन्सान जिस जन्नत का हकदार है, वो दिनों में नसीब होगी
मुल्ले, पण्डे, पुजारी, पादरी विदा हो जायेंगे
मंदर, मसीत, गुरुद्वारे, गिरजे बस देखने भर की चीज़ रह जायेंगे
हिन्दू मुस्लिम, इसाई आदि का ठप्पा लोग उतार फेंकेंगे
सदियों की गुलामी से आज़ादी
लोग आज के हिसाब से जीयेंगे.....
किसी किताब से नहीं बंधेंगे
किताब हो, इतिहास हो, बस उसका प्रयोग करेंगे....जो सीखना है सीखेंगे उनसे लेकिन इतिहास की गुलामी कभी स्वीकार नहीं करेंगे
बहस इस बात की नहीं होगी कि मेरी किताब में यह लिखा है तो यह सही है या गलत है...बहस इस बात की होगी कि तथ्य, प्रयोग यह कहते हैं तो यह सही है और यह गलत है
नेता इस बात पर वोट नहीं मांगेंगे कि वो मंदिर बनायेंगे या मसीत बचायेंगे, बल्कि वोट इस बात पर मांगेंगे कि वो नाली बनायेंगे, सड़क बनायेंगे
बच्चों को अक्ल प्रयोग करना सिखाया जाएगा न कि किसी किताब पर अंधविश्वास करना
जो मानव के लिए उपयोगी है वो अपना लिया जाएगा जो कचरा है वो दफा कर दिया जाएगा
यदि बिजली उपयोगी है तो इससे क्या मतलब कि वो दुनिया के किस कोने से आई?
यदि योग काम का है तो क्या फर्क की वो कहाँ से आया?
आबादी नियंत्रित कर ली जाएगी, सम्पति का असीमित जमाव प्रतिबंधित कर दिया जाएगा.
क्या आज कोई व्यक्ति यदि कहे कि मैं ज़्यादा बुद्धिशाली हूँ, शक्तिशाली हूँ, उद्यमशील हूँ तो मुझे हक़ होना चाहिए ज़्यादा हवा इक्कट्ठा करना का, साफ़ पानी का.....चाहे कोई और लोग प्यासे मरते हों तो मरें....सांस की बीमारी से मरते हैं तो मरें.....नहीं, आप हाँ नहीं कहेंगे लेकिन एक आदमी पृथ्वी पर कई मकान कब्जा ले और अनेक लोग सड़कों पर सोएं, वो आपको स्वीकार हैं...यदि है तो आपकी व्यवस्था लानती है और जो कि है ..लेकिन मेरी बात पर यदि विचार कर लिया जाए तो बहुत सम्भव है कि वैसा आगे न रहे
आबादी पर नियन्त्रण हो, सम्पति का एक सीमा के बाद अगली पीढी को हस्तांरण प्रतिबाधित हों, जीवन वैसे ही खुशहाल हो जायेगा ..पैसे की आपाधापी लगभग खत्म हो जायेगी
अगली बड़ी चुनौती इन्सान के लिए सेक्स है ....सेक्स कुदरत की सबसे बड़ी नियामत है इन्सान को..लेकिन सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है...इंसान अपने सेक्स से छुप रहा है...छुपा रहा है...सेक्स गाली बन चुका है......देखते हैं सब गालियाँ सेक्स से जुड़ी हैं ..हमने संस्कृति की जगह विकृति पैदा की है..
कोई समाज शांत नहीं जी सकता जब तक सेक्स का समाधान न कर ले.....सो बहुत ज़रूरी है कि स्त्री पुरुष की दूरी हटा दी जाए.....समाज की आँख इन सम्बन्धों की चिंता न ले.......सबको सेक्स और स्वास्थ्य की शिक्षा दी जाए....सार्वजानिक जगह उपलब्ध कराई जाएँ.
देवालय से ज़्यादा ज़रुरत है समाज को सम्भोगालय की......पत्थर के लिंग और योनि पूजन से बेहतर है असली लिंग और योनि का पूजन........सम्भोगालय....पवित्र स्थल...जहाँ डॉक्टर मौजूद हों.....सब तरह की सम्भोग सामग्री...कंडोम सहित..
और भविष्य खोज ही लेगा कि स्त्री पुरुष रोग रहित हैं कि नहीं ...सम्भोग के काबिल हैं हैं कि नहीं ...और यदि हों काबिल तो सारी व्यवस्था उनको सहयोग करेगी .....मजाल है कोई पागल हो जाए.
आज जब कोई पागल होता है तो ज़िम्मेदार आपकी व्यवस्था होती है, जब कोई बलात्कार करता है तो ज़िम्मेदार आपका समाजिक ढांचा होता है...लेकिन आप अपने गिरेबान में झाँकने की बजाये दूसरों को सज़ा देकर खुद को भरमा लेते हैं
समझ लीजिये जिस समाज में सबको सहज रोटी न मिले, साफ़ हवा न मिले, पीने लायक पानी न मिले, सर पे छत न मिले, आसान सेक्स न मिले, बुद्धि को प्रयोग करने की ट्रेनिंग की जगह धर्मों की गुलामी मिले वो समाज पागल होगा ही
और आपका समाज पागल है
आपकी संस्कृति विकृति है
आपकी सभ्यता असभ्य है
आपके धर्म अधर्म हैं
इस पागलपन, विकृति, असभ्यता, इस अधर्म से निकलने के आसान ढंग बताएं हैं मैंने. यदि मेरी बात का सामंजस्य अपने पुराण, कुरान से बिठाने की कोशिश करेंगे तो मेरी बात पल्ले नहीं पड़ेगी....दायें, बायें, ऊपर नीचे से निकल जायेगी, छूएगी तक नहीं आपको. हाँ, थोड़ा ग्रन्थों की ग्रन्थियों से आज़ाद हो पाएं तो निश्चित ही परवाज़ हो जाए
खैर, सोचियेगा ज़रूर, सादर नमन, कॉपी राईट हमेशा की तरह
Tushar Cosmic
मैं अपना गुरु खुद हूँ, मुझे किसी का हुक्मनामा नहीं चाहिए
मैं अपना पैगम्बर खुद हूँ, मुझे किसी की हिदायत नहीं चाहिए
मैं अपना मसीहा खुद हूँ, किसी और की कमांडमेंट की क्या ज़रुरत?
मैं स्वयम ब्रह्म हूँ, मैं खुद खुदा हूँ खुद का, मुझे क्या ज़रुरत पुराण कुरान की?
मैं स्वयं की रोशनी स्वयं हूँ, मुझे शताब्दियों, सहस्त्राब्दियों पुराने व्यक्तियों की आँखों से नहीं, खुद की आँखों से जीना है
बड़े साधारण शब्द हैं मेरे ..लेकिन काश कि आप भी यह सब कह पाते!
दुनिया चंद पलों में बदल जायेगी.
इन्सान जिस जन्नत का हकदार है, वो दिनों में नसीब होगी
मुल्ले, पण्डे, पुजारी, पादरी विदा हो जायेंगे
मंदर, मसीत, गुरुद्वारे, गिरजे बस देखने भर की चीज़ रह जायेंगे
हिन्दू मुस्लिम, इसाई आदि का ठप्पा लोग उतार फेंकेंगे
सदियों की गुलामी से आज़ादी
लोग आज के हिसाब से जीयेंगे.....
किसी किताब से नहीं बंधेंगे
किताब हो, इतिहास हो, बस उसका प्रयोग करेंगे....जो सीखना है सीखेंगे उनसे लेकिन इतिहास की गुलामी कभी स्वीकार नहीं करेंगे
बहस इस बात की नहीं होगी कि मेरी किताब में यह लिखा है तो यह सही है या गलत है...बहस इस बात की होगी कि तथ्य, प्रयोग यह कहते हैं तो यह सही है और यह गलत है
नेता इस बात पर वोट नहीं मांगेंगे कि वो मंदिर बनायेंगे या मसीत बचायेंगे, बल्कि वोट इस बात पर मांगेंगे कि वो नाली बनायेंगे, सड़क बनायेंगे
बच्चों को अक्ल प्रयोग करना सिखाया जाएगा न कि किसी किताब पर अंधविश्वास करना
जो मानव के लिए उपयोगी है वो अपना लिया जाएगा जो कचरा है वो दफा कर दिया जाएगा
यदि बिजली उपयोगी है तो इससे क्या मतलब कि वो दुनिया के किस कोने से आई?
यदि योग काम का है तो क्या फर्क की वो कहाँ से आया?
आबादी नियंत्रित कर ली जाएगी, सम्पति का असीमित जमाव प्रतिबंधित कर दिया जाएगा.
क्या आज कोई व्यक्ति यदि कहे कि मैं ज़्यादा बुद्धिशाली हूँ, शक्तिशाली हूँ, उद्यमशील हूँ तो मुझे हक़ होना चाहिए ज़्यादा हवा इक्कट्ठा करना का, साफ़ पानी का.....चाहे कोई और लोग प्यासे मरते हों तो मरें....सांस की बीमारी से मरते हैं तो मरें.....नहीं, आप हाँ नहीं कहेंगे लेकिन एक आदमी पृथ्वी पर कई मकान कब्जा ले और अनेक लोग सड़कों पर सोएं, वो आपको स्वीकार हैं...यदि है तो आपकी व्यवस्था लानती है और जो कि है ..लेकिन मेरी बात पर यदि विचार कर लिया जाए तो बहुत सम्भव है कि वैसा आगे न रहे
आबादी पर नियन्त्रण हो, सम्पति का एक सीमा के बाद अगली पीढी को हस्तांरण प्रतिबाधित हों, जीवन वैसे ही खुशहाल हो जायेगा ..पैसे की आपाधापी लगभग खत्म हो जायेगी
अगली बड़ी चुनौती इन्सान के लिए सेक्स है ....सेक्स कुदरत की सबसे बड़ी नियामत है इन्सान को..लेकिन सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है...इंसान अपने सेक्स से छुप रहा है...छुपा रहा है...सेक्स गाली बन चुका है......देखते हैं सब गालियाँ सेक्स से जुड़ी हैं ..हमने संस्कृति की जगह विकृति पैदा की है..
कोई समाज शांत नहीं जी सकता जब तक सेक्स का समाधान न कर ले.....सो बहुत ज़रूरी है कि स्त्री पुरुष की दूरी हटा दी जाए.....समाज की आँख इन सम्बन्धों की चिंता न ले.......सबको सेक्स और स्वास्थ्य की शिक्षा दी जाए....सार्वजानिक जगह उपलब्ध कराई जाएँ.
देवालय से ज़्यादा ज़रुरत है समाज को सम्भोगालय की......पत्थर के लिंग और योनि पूजन से बेहतर है असली लिंग और योनि का पूजन........सम्भोगालय....पवित्र स्थल...जहाँ डॉक्टर मौजूद हों.....सब तरह की सम्भोग सामग्री...कंडोम सहित..
और भविष्य खोज ही लेगा कि स्त्री पुरुष रोग रहित हैं कि नहीं ...सम्भोग के काबिल हैं हैं कि नहीं ...और यदि हों काबिल तो सारी व्यवस्था उनको सहयोग करेगी .....मजाल है कोई पागल हो जाए.
आज जब कोई पागल होता है तो ज़िम्मेदार आपकी व्यवस्था होती है, जब कोई बलात्कार करता है तो ज़िम्मेदार आपका समाजिक ढांचा होता है...लेकिन आप अपने गिरेबान में झाँकने की बजाये दूसरों को सज़ा देकर खुद को भरमा लेते हैं
समझ लीजिये जिस समाज में सबको सहज रोटी न मिले, साफ़ हवा न मिले, पीने लायक पानी न मिले, सर पे छत न मिले, आसान सेक्स न मिले, बुद्धि को प्रयोग करने की ट्रेनिंग की जगह धर्मों की गुलामी मिले वो समाज पागल होगा ही
और आपका समाज पागल है
आपकी संस्कृति विकृति है
आपकी सभ्यता असभ्य है
आपके धर्म अधर्म हैं
इस पागलपन, विकृति, असभ्यता, इस अधर्म से निकलने के आसान ढंग बताएं हैं मैंने. यदि मेरी बात का सामंजस्य अपने पुराण, कुरान से बिठाने की कोशिश करेंगे तो मेरी बात पल्ले नहीं पड़ेगी....दायें, बायें, ऊपर नीचे से निकल जायेगी, छूएगी तक नहीं आपको. हाँ, थोड़ा ग्रन्थों की ग्रन्थियों से आज़ाद हो पाएं तो निश्चित ही परवाज़ हो जाए
खैर, सोचियेगा ज़रूर, सादर नमन, कॉपी राईट हमेशा की तरह
Tushar Cosmic
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