कभी नन्हे बच्चे की किलकारी सुनी है......कभी उसकी आँखों में झाँका है......मूर्ख जंग करने चले हैं...मरने मारने चले हैं........
"आओ प्यारे सर टकरायें"
1) हलवाई यदि सिर्फ हलवा ही नहीं बनाता तो उसे हलवाई कहना कहाँ तक उचित है ...?
2) कोई ग्लास पीतल या स्टील का कैसे हो सकता है जब ग्लास का मतलब ही कांच होता है?
3) स्याही को तो स्याह (काली) ही होना था, फिर नीली स्याही, लाल स्याही क्योंकर हुयी?
4) सब गंदगी पानी से साफ़ करते हैं, लेकिन जब पानी ही गन्दा कर देंगे तो किस को किस से साफ़ करेंगे?
5) जल जब जल ही नहीं सकता तो इसे जल कहना कहाँ तक ठीक है?
6) जब कोई मुझे कहता है ,"आ जा "तो मुझे कभी समझ नहीं आता कि वो मुझे आने को कह रहा है, या जाने को या आकर जाने को, क्या ख्याल है आपका?
7) जित्ती भी आये, लगता है कम आई...तभी तो कहते हैं इसे कमाई....मुझे नहीं अम्बानी से पूछ लो भाई.... क्या ख्याल है आपका?
8) जब हम राजतन्त्र से प्रजातंत्र में तब्दील हो गए हैं तो क्या राजस्थान का नाम प्रजास्थान न कर देना चाहिए. नहीं?
9) वेस्ट बंगाल भारत के ईस्ट में है , फिर भी इसे वेस्ट बंगाल क्यों कहते हैं..?
10) गुजरात में शायद सिर्फ गूजर तो नहीं रहते अब फिर भी इसे गुजरात क्यों कहते हैं?
11) छोटे डब्बे में बड़ा डिब्बा तो नहीं समाता, फिर राष्ट्र में महाराष्ट्र कैसे है?
12) सिंध तो भारत में नहीं है अब, फिर भी वो जो राष्ट्र गान है न,,,,,,,,उसमें पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा ...ऐसा कुछ क्यों कहते हैं?
13) आम तो एक ख़ास फ़ल है फिर भी इसे आम क्यों कहते हैं?
14) If the right is right, then is the left wrong?
शेयर करना जायज़ है, चुराना नाजायज़ है, नमन
बढिया कहने का ठेका क्या सुरिंदर शर्मा या अशोक चक्रधर के पास ही है.....हमारे पास भी है.....अभी अभी उठाया है CPWD से
ठेका बोले तो "शराब देसी".....शराब, जिसे पीकर इन्सान ख़राब कहता ही नहीं, जो कहता है बढ़िया ही कहता है
सुना है नेहरु ने नारा दिया था "आराम हराम है".......
नारा गलत है, उथली सोच है, आराम और काम का बैलेंस होना चाहिए.......
यदि आराम हराम हो जाएगा तो काम भी ऊट पटांग हो जाएगा
सरकार किसी की भी हो.....
यदि सरक सरक कर काम करे....
यदि किये वायदे पूरे न करे.....
ज़रूरी नहीं इसे पांच साल तक सरकाना....
इन्हें मंत्री, संत्री मौज मारने को नहीं, काम करने को बनाया गया है
उखाड़ फेंको.....क्योंकि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतेज़ार नहीं करती
बिन खुद की खुदाई, खुदा कहीं न मिलेगा
और खुदा मिले न मिले, जो मिलेगा वो खुदा होगा
प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति थीं या राष्ट्रपत्नी ? I am still confused.
प्रेम प्रेम सब कहें , जग में प्रेम न होए
ढाई आखर बुद्धि का, पढ़े तो शुभ शुभ होए
हमाम में ही हम सब नंगे नहीं होते, कहावत अधूरी है, जिस ने कही वो शायद कपड़े पहन कर पैदा हुआ था और सेक्स भी कपडे पहन कर करता था.
न तुम कोई GF/BF साथ लाये थे, न लेकर जाओगे
जो आज तुम्हारा/तुम्हारी है, वो कल किसी और का था /की थी
और फिर कल किसी और का होगा/होगी
ज़रा देखिये अपने विश्वास. शायद ही विश्वसनीय हों.
ज़िंदगी हमेशा ऐसे जिओ जैसे मौत है ही नहीं...यह जानते हुए भी कि अगले पल का भरोसा नहीं है...
और ऐसे जिओ जैसे यही पल आखिरी पल है...कुछ भी बाक़ी मत छोड़ो , जो तुम कर सकते हो
किसी डिग्री का ना होने दरअसल फायेदेमंद है। अगर आप इंजिनियर या डाक्टर हैं तब आप एक ही काम कर सकते हैं, पर यदि आपके पास कोई डिग्री नहीं है, तो आप कुछ भी कर सकते हैं।
~ Shiv Khera
आप डिग्री होते हुए भी कुछ भी कर सकते हैं.....किसी ने रोका है क्या... Tushar Cosmic
जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते, वो चीजों को अलग तरह से करते हैं।
~ Shiv Khera
ग़लत.....वो दोनों करते हैं....यह खेड़ा ने मात्र मीडियाकर लोगों को बहलाने के लिए लिखा है
गलत होना भी अपने आप में गलत नहीं
क्योंकि जो कुछ करेगा वो ही गलत या ठीक करेगा....
गलती भी उसी से होती है जो कुछ करता है.....
और जो जितना ज्यादा करता है...
जितना तेज़ी से करता है
उतनी ही उससे ज्यादा गलती भी होती हैं
इसलिए टेंशन नोट
"Brutus, you too"---- dying Julius Caesar
सज्जना ने फूल मारेया, साडी रूह अम्बरा तक रोई
Fair and Lovely जैसी कंपनियों को मानव द्रोही मान कर इनका सब कुछ ज़ब्त कर लेना चाहिए ...और सज़ा अलग देनी चाहिए
किसी भी ज़बरदस्ती, ज़ुल्म का विरोध हिन्दू मुस्लिम खांचो में बंट कर करेंगे तो दुनिया कभी एक न होगी.......ज़ुल्म और जुर्म को हिन्दू और मुस्लिम आदि रंग नहीं दिया जाना चाहिए.....कोई भी ज़ुल्म करेगा तो इंसान बन कर उसका डट कर विरोध करना चाहिए उसके लिए हिन्दू, ईसाई, सिख आदि होने की कोई ज़रुरत नहीं है........
लेखन मात्र लेखन नहीं होता...वो विचार भी होता है.....आईडिया भी होता है...वो साहित्य भी होता है...वो भविष्य की प्लानिंग भी होता है....वो नए समाज का नक्शा भी होता है...मूर्ख है वो लोग जो एक लेखक को यह कहते हैं कि तुमने समाज के लिए किया ही क्या है
फिर तो मुशी प्रेम चंद, मैक्सिम गोर्की और ऑस्कर वाइल्ड ने भी कुछ नहीं किया
लानत !!
इस देश में द्रोण जैसे व्यक्ति के नाम पर द्रोण अवार्ड रखा गया है शायद गुरु दक्षिणा में बिन सिखाये ही शिष्यों के अंग भंग करना भारतीय सभ्यता के लिए आदर्श है
जब जागो, तब सवेर
जब सोवो, तब अंधेर
सीधी बात, नो बकवास--Sprite
टेढ़ी बात, ओनली बकवास---Tushar Cosmic
ताजमहल में कुछ दम नहीं है ....बस ऐसे ही मशहूर कर दिया गया है…है क्या सीधे सीधे संगमरमर के पत्थर लगे हैं …… कभी माउंट आबू में दिलवाड़ा के जैन मंदिर देखें हों … संगमरमर के हैं.... क्या कलाकारी है.……संगमरमर की ये बड़ी चट्टानों को तराश कर, बहुत महीन नक़्क़ाशी की है.... क्या कला है, वाह
अरे, भाई, एक कहावत है, गरीब की जोरू. हरेक की भाभी........गरीब तो वैसे ही शुद्र होता है...चाहे वो..किसी भी जात का हो
चलो अभी बता दो कितने पंडित, कितने क्षत्रिय, कितने वैश्य सीवर साफ़ करते हैं, कूड़ा उठाते हैं...नाली साफ़ करते हैं?.....यह है जिंदा सबूत जात पात के भेद भाव का
ब्रह्मण हमारे घरों से रोटी लेने आता था और शूद्र टट्टी.....यह है जिंदा सबूत जात पात के भेद भाव का
झंडू बाम नामक कंपनी के मालिक कितने झंडू होंगे, ये इस कम्पनी के नाम से ही आप अंदाज़ा लगा सकते हैं---- आपका ख़ादिम, तुषार कॉस्मिक
मोदी जी के मितरो कहने से और फेसबुक लिस्ट में रहने से कोई मित्र नहीं हो जाता मित्र....सो सावधान
आज कल गीता, सीता, राधा घरों में झाड़ू पोचा, बर्तन मांजती हैं
और मोना, सोना, मोनिका, सोनिका टेलीमार्केटिंग करती हैं
अक्सर
"बहन का खसम" और "जीजा जी" आगे भी "जी" पीछे भी "जी"
मतलब एक है और नहीं भी है
तिथि 06-10-12, समय 9 बजे रात्रि , हमारे प्रोग्राम के मुख्य "अतिथि" होंगे अक्ल मंद जी महाराज" मंद बुधि, नहीं नहीं, बंद बुधि जी महाराज मंच पर दहाड़ रहे हैं .
क्या नवरात्रों का गरबा पुरातन भारत के वसंत-उत्सव जैसा नही है?
आवारा घूमने वाले पशुओं और पशुनुमा इंसानों के मालिको के ऊपर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए!
यदि औरत बहादुरी दिखाए तो मर्दानी!
और यदि आदमी बहादुरी दिखाए तो जनाना ........क्यों नहीं? क्यों नहीं?? क्यों नहीं???
जब वैराग्य होने लगे तो वियाग्रा प्रयोग कर सकते हैं, व्यग्र हो जायें
ईश्वर की परिभाषा, उसकी कल्पना, परिकल्पना और उसके इर्द गिर्द बनाया गया पाप पुण्य, स्वर्ग नरक, मंदिर, मस्जिद इस दुनिया का सबसे बड़ा झूठ, फरेब, मक्कारापन और नक्कारापन है.
हम जो भी समझते हैं..दिक्कत यह है कि बस वही समझते चले जाते हैं..
ये जो सरकारी आभूषण/विभूषण/रत्न आदि पदवियां हैं...
ये सम्मान कम और अपमान ज्यादा होती हैं..........नहीं?
आज भी दुनिया लगभग वहीं खडी है जहाँ से शुरू हुई थी, जंगलो में......बस जंगल कंक्रीट के हो गये, इंसान ने तन ढक लिए.....बाकी अंदर से सब जंगली हैं, सब नंगे हैं
एक सीक्रेट वोटिंग करवा लो कि यदि मौका दिया जाए तो कितने लोग अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया के नागरिक बनना चाहेंगे......आपको पता लग जाएगा कितने लोगों को आज भी भारत की महान सभ्यता संस्कृति में यकीन है.
एक सीक्रेट वोटिंग करवा लो कि यदि मौका दिया जाए तो कितने लोग अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया के नागरिक बनना चाहेंगे......आपको पता लग जाएगा कितने लोगों को आज भी भारत के विश्व गुरु बनने की क्षमता में यकीन है.
एक सीक्रेट वोटिंग करवा लो कि यदि मौका दिया जाए तो कितने लोग अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया के नागरिक बनना चाहेंगे......आपको पता लग जाएगा कितने लोगों को आज भी मोदी जी के "अच्छे दिन" वाले नारे में यकीन है.
जब आपको किसी चीज़ की कीमत धेला भी न चुकानी हो तो आप उसे बेशकीमती का ख़िताब दे देते हैं.नमकीन में से निकाली गई मूंगफली, बिस्कुट के ऊपर से उतारा गया काजू और बच्चे से ली गई आइसक्रीम ज़्यादा ही स्वाद होते हैंहमारी आधी समझदारी तो यह है कि दूसरे हमें बेवकूफ न बना दें और आधी यह कि दूसरों को हम कैसे बेवकूफ बना दें
अब विक्रेता कंपनियों को कार के साथ थोड़ी अक्ल भी देनी चाहिए,पैकेज डील, ताकि लोगों को समझ आये कि उन्होने कार खरीदी है सड़क नहीं, सडक उनके बाप का माल नहीं है.पोस्ट शेयर करने वालों को नमन करेंगे, चोरी करने वालों का दमन करेंगे, हवन करेंगे, हवन करेंगे..........जय हो!मुद्दे ही बहुत गंभीर हैं हमारे मुल्क में, सूर्य नमस्कार किया जाए या नहीं......वाह, वैरी गुड.....गरीबी, भुखमरी, शिक्षा, जनसंख्या वृद्धि.....इस तरह के बकवास मुद्दों के लिए समय नहीं है हमारे पास...इडियट ....आ जाते हैं पता नहीं कहाँ कहाँ से
फुट रेस्ट खुला छोड़ के स्कूटर खड़ा करने वालो, इससे चोट खाने वाले तुम्हें माफ़ नहीं करेंगे
जो मज़ा बच्चे से कुश्ती हारने में है वो शायद दुनिया का सबसे बड़ी जंग जीतने में भी नहीं है ...असल में जंग जीतने का मज़ा तो कोई रुग्ण व्यक्ति ही ले सकता है.
'पेन' कार्ड बनवाएं, एक जगह लिखा था.
कितना सही लिखा था
एक पोस्ट देख रहा हूँ आज कल," जाति देख कर वोट देने वालो, आप अपना नेता चुन रहे हो, जीजा नहीं"
जैसे जाति देख जीजा चुनना कोई सही बात हो
जिनको आँखों में दवा डालने में दिक्कत होती हो उनको कुदरत का सीधा सा नियम समझना चाहिए कि पहाड़ों पर होने वाली बारिश अपने आप घाटियों में पहुँच जाती है
जो लोग व्यवस्था परिवर्तन को इसलिए नकार रहे हों कि नई व्यवस्था में भी कमियां होंगी इनको पूछिए कि तुम्हारा कच्छा सड़ा हो, बदबू मार रहा हो, तो क्या तुम नया कच्छा इसलिए नहीं लोगे कि धोना पड़ेगा या इसलिए नहीं लोगे कि अभी ऐसा कच्छा आविष्कृत नहीं हुआ जो मैला न हो, और सदैव सड़ा कच्छा ही पहनते रहोगे क्या?
लेखन से बहुत बार खुद के विचारों के प्रति भी क्लैरिटी बढ़ती है....बहुधा मैं लिखते लिखते ही विषय को और अच्छी तरह से समझ पाता हूँ......बाकी मित्रों के कमेंट से विषय की समझ और गहरी होती जाती है....जीवन के प्रति समझ बढ़ाने के लिए भी लेखन मददगार है.
बिटिया कह रही थी कि जानवर भी तो इन्सान ही हैं, क्यों खाना इनको
"सुना है यदि दिल्ली से बिहार तक कोई ट्रेन में सफर कर रहा हो तो यात्री बिक जाते हैं डकैतों में.... बस मालदार दिखना चाहिए.........कितने बैग हैं, साथ कितने लोग हैं, स्त्रियाँ कितनी, बच्चे कितने, पुरुष कितने, हुलिया, डील डौल ..... सारी जानकारी ...एक गैंग नहीं लूट पाया तो आगे वाला कोई लूट लेगा, सो वो अगले वाले को बेच देता हैं, इस तरह यात्री कितनी बार बिक चुका होता है, उसे कभी पता नहीं लगता, उसे तो पता बस तब लगता है जब वो लुट चुका होता है ."
इन शब्दों का निश्चित ही कॉल सेंटर वालों से सम्बन्ध है
फ़ोन लेते ही कब हम कईयों के लिए व्यापार बन गए, पता ही नहीं चला.
"कौवों की दुआ यदि कामयाब होती तो गाँव के सब ढोर कब के मर चुके होते"
दुआ/प्रार्थना आदि से कुछ नहीं होता, समझ लीजिये...
मुद्दा यह है कि हम समझ ही नहीं रहे कि मुद्दा क्या है
जब से मच्छर मारने के रैकेट आये हैं
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एक मच्छर साला आदमी को बैडमिंटन चैंपियन बना देता है
कोई मित्र बता रहे थे कि ये जो फाइव स्टार सलून खुले हैं, वहां चेहरा शेव कराने के पांच सौ रुपये ज़रूर लगते हैं लेकिन उसके बाद सफ़ेद बाल भी काले ही उगते हैं, सच है क्या?
कोई मित्र बता रहे थे कि ये जो फाइव स्टार सलून खुले हैं, वहां चेहरा शेव कराने के पांच सौ रुपये ज़रूर लगते हैं लेकिन उसके बाद सोने के बाल उगते हैं, सच है क्या?
जहाँ विश्वास होगा वहां विश्वास घात हो सकता है .....यह जानते हुए भी विश्वास करना होता है, कितना करना है, कब करना है यह समझना जीवन की महान कलाओं में से एक है
यदि आप अपने नाम के साथ "जी" लिखें तो लोग आप पर हसेंगे, और यदि "जी जी" लिखें तो लोग आपको पागल समझेंगे लेकिन भारत एक ऐसा महान मुल्क है जहाँ अपने नाम के साथ "श्री श्री" लगाने वालों को महान संत समझा जाता है
बास्केट बाल के लिए लम्बे खिलाड़ी ही क्यों चाहिए? अलग अलग ऊँचाई वाले लोगों के लिए अलग अलग ऊंचाई के गोल पोस्ट भी तो बनाए जा सकते हैं, जैसे कुश्ती या बॉक्सिंग में अलग अलग वज़न के मुताबिक मुकाबले होते हैं, बास्केट बाल में ऊंचाई के मुताबिक मुकाबले नहीं हो सकते क्या?ईश्वर को कोई इनकार कर ही नहीं सकता, नास्तिक भी नहीं....हाँ, परिभाषा सबकी अलग हो सकती है
न कोई शत प्रतिशत खरा है और न ही खोटा........सो खोटे के खोट को जानते हुए भी उसके खरेपन का उपयोग करना जीवन की महान कलाओं में से एक हैखबरदार जो मेरी अर्थी उठाते किसी ने राम नाम सत्य बोला........नाम नाम होता है.........कोई भी हो.......काम चलाऊ .....सो बेहतर हो बोला जाए ""मस्त है जी मस्त है, मुर्दा बिल्कुल मस्त है "
सडक और अपने घर के ड्राइंग रूम में फर्क न समझने वालो, एक्सीडेंट तुम्हे माफ़ नहीं करेंगेमैं मरूं तो मेरे साथ ढेरों लकड़ियाँ न जलाई जाएँ, मुझे नहीं बनना नेपाल जैसे भूकम्प की वजहकाश कोई ऐसा भूकम्प आए कि इस दुनिया से मंदिर, चर्च, मस्ज़िद, गुरूद्वारे जैसी जगहें हमेशा हमेशा के लिए ढह जाएँ.......दुनिया कहीं ज़्यादा खूबसूरत हो जायेगी, आने वाले बच्चे कहीं ज़्यादा खुशनुमा माहौल पायेंगेरोड रेज में कत्ल तक हुए जा रहे हैं........बहुत गलत है....वैसे लोग भी तो रोड और ड्राइंग रूम में फर्क नहीं समझते.......जहाँ मर्ज़ी गाड़ी खड़ी कर देते हैं.........दस साल तक के बच्चों को कारें चलाने को दे देते हैं.
"अगर सच कहूं तो.........."
"हम्म्म्म.... तो आप मानते हैं कि आप अभी तक सच नहीं कह रहे थे?
"नहीं, नहीं, मेरा मतलब..................."
"समझ गये भाई जी, मतलब......और न समझाओ...नमस्ते"
"भाई, सो रहे हो क्या?"
"हाँ, गहरी नीदं में हूँ "
स्कूल में सिखाया जाता था,"मान लो मूलधन सौ" और फिर असल हल तक पहुंचा जाता था.
लेकिन कुछ महान लोग होते हैं, जो अड़ जाते हैं, कि जब पता है कि मूलधन सौ है ही नहीं, तो मानें क्यों.
मूर्ती तोड़ने वाले ऐसे ही लोग थे/हैं
स्कूल में सिखाया जाता था,"मान लो मूलधन सौ" और फिर असल हल तक पहुंचा जाता था.
लेकिन कुछ महान लोग होते हैं, जो अड़ जाते हैं, कि जब पता है कि मूलधन सौ है ही नहीं, तो मानें क्यों.
एक मित्र मेरे किसी हाइपोथिसिस को हवा में यह कह कर उड़ा रहे थे कि यह तो सिर्फ हाइपोथिसिस है
"वैसे कहना तो नहीं चाहिए लेकिन फिर भी कह रहा हूँ........."
"नहीं तो फिर कह ही क्यों रहे हो भाई, और कह रहे हो तो फिर यह क्यों कह रहे हो कि कहना नहीं चाहिए?"
सवाल, "बुरा न मानें तो इक बात पूछूं?"
मेरा जवाब,"क्यों भई, बिना खाए आपको पता लग जाएगा कि चाइना राम हलवाई की मिठाई कैसी है?
सवाल, "बुरा न मानें तो इक बात पूछूं?"
मेरा जवाब," मत पूछो, यह ज़रूर कोई बुरा मानने वाली ही बात होगी"
छोटे बच्चे के साथ बैट बॉल खेलने में जो मज़ा है, वो क्रिकेट वर्ल्ड कप मैच देखने में कहाँ?
कमल में कीचड़ खिला है
मैं अपने जितेन्द्र साहेब यानि जम्पिंग जैक जी को कहना चाहता हूँ कि बच्चे सफल हों यह अच्छी बात है लेकिन एकता कपूर की तरह नहीं, जिसे आधी दुनिया गालियाँ देती फिरे कचरा परोसने की वजह से
धुआं उगलती फैक्ट्रीयों की तसवीरें नहीं लगाते हम अपने कमरों में
लगाते हैं कुदरती नज़ारे, नदियाँ, पहाड़, जंगल, झरने
फिर भी चिंता हमारी यह है कि भारत का उद्योगीकरण कैसे हो
देखो तो दूध पिलाती माँ और पी रहा बच्चा.........मूर्ख फिर भी परमात्मा के होने का सबूत मांगते हैं
माँ अक्सर कहती थीं, जब मैं बच्चा था, "तूने खाया, मैंने खाया एक ही बात है" और खुद न खा मुझे खिला देती थीं
दशकों लग गए समझने में कि एक ही बात कैसे होती है
एक मित्र ने लिखा है,"देश के प्रत्येक नागरिक तक मूल भूत सुविधायें पहुंचे यह सरकार की जिम्मेदारी हैं "
मेरा जवाब है, "लोग बच्चे पैदा करते रहें और ठेका सरकार ने ले रखा है .....सरकार के पास पैसा किसका है......टैक्स का.........उसपे हक़ करेक का कैसे हो गया......?"
हनुमान जयंती विशेष-- हनुमान असल में सुपरशक्तियुक्त व्यक्ति थे …………… जैसे आयरनमैन, सुपरमैन, बैटमैन, स्पाइडर मैन........ हनुमैन
लेकिन भारत में हो गए हनुमान … नहीं विश्वास?
देखिये क्या वो उड़ते नहीं सुपरमैन की तरह, क्या वो कूदते नहीं स्पाइडरमैन की तरह ……… उनमें तो सूरज तक को खा जाने की शक्ति है, ख़ाक मुकाबला करेगा उनका कोई पश्चिम का सुपरमैनहनुमान जयंती विशेष-- हनुमान असल में सिक्ख थे …………… गुरदास मान, हरभजन मान, भगवंत मान , हनुमानहनुमान जयंती विशेष-- हनुमान असल में मुसलमान थे …………… रहमान, लुक़्मान, हनुमान ………… मुसलमान!यदि कहीं परमात्मा होगा भी तो इन औरतों का कीर्तन नुमा क्रन्दन सुन कर गुफाओं में छुप जाएगा, समन्दर में धंस जाएगा, हवाओं में घुल जाएगा, बादल बन उड़ जाएगा .......तौबा !
अक्सर देखता हूँ, मुस्लिम मित्रो को "गंगा जमुनी" तहज़ीब का ज़िक्र करते हुए ....मेरे प्यारो, अब गया वक्त .......अब तो ऐसे तहज़ीब विकसित होगी जिसे आपको "गंगा थेम्स अमेज़न" तहज़ीब कहना होगा और यह हिन्दू मुस्लिम इसाई जैसी तहज़ीबों की चिता पर खड़ी होगी
मुस्लिम खुश हो सकता है, मजाक बना सकता है कि हिन्दू उसकी संख्या से डर रहा है, उल्टी पुलटी हरकतें कर रहा है, हिन्दू भी मुस्लिम का किन्ही मुद्दों पर मज़ाक बना सकता है, बनाता है, लेकिन बेहतर हो यदि दोनों वो मजाक देख सकें जो उन्होंने हिन्दू मुस्लिम बन इंसानियत का बना दिया है
वैसे तो सभी मंदिर, गुरूद्वारे, मस्ज़िद बस व्यापार हैं लेकिन सबसे साफ़ सुथरा व्यापार अक्षरधाम मंदिरों का है.
विशुद्ध टूरिस्ट स्थल ......एक बार की इन्वेस्टमेंट, फिर बस बैठे कमाते रहो
कस्टमर कष्ट से मर रहा होता है लेकिन कंपनियों की कस्टमर हेल्पलाइन उसे फुटबॉल की तरह इधर उधर उछालती रहती हैं
सब नहीं...लेकिन ज्यादातर...ख़ास करके सरकारी
कस्टमर हेल्पलाइन का मतलब ही यह देखना है कि कस्टमर की हेल्प हो न जाए कहीं
मोहल्ले की औरतें लाउड स्पीकर पर गला फाड़ कीर्तन कर रही हैं
मैंने भी लाउड स्पीकर मँगा, शकीरा का हिप्स डोंट लाई (Hips don't lie) बजा दिया है, आवाज़ कीर्तन की आवाज़ से थोड़ी ऊंची रखी है, स्पीकर का मुंह कीर्तन की दिशा में कर दिया है
कानूनी हक़ है भई , सबका
दुनिया में सिर्फ देश एक ही है......जिसका नाम है
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जिसका नाम है बांग्ला देश
अक्सर आप और हम रोष प्रकट करते रहे हैं कि PUT पुट है तो फिर BUT बुट क्यों नहीं है
चलिए आज थोड़ा रोष इसलिए प्रकट करें कि यदि साढ़े तीन या साढ़े चार हो सकते हैं तो साढ़े एक और साढ़े दो क्यों नहीं, डेढ़ और अढाई क्यों?
जुगाड़ अपने आप में एक काम चलाऊ आविष्कार होता है, हमें नज़रिया बदलना होगा, जुगाड़ और जुगाडू दोनों को सम्मान देना होगा, जुगाड़ को विस्तार देना होगा, इतना कि वो जुगाड़ से वास्तविक अर्थों में आविष्कार हो सकेउदासीन होने का अर्थ यह नहीं है कि उदास रहो.
इसका मतलब यह भी नहीं है कि अपनी कोई राय ही न रखो, लुल्ल हो जाओ
इसका मतलब है कि जब भी किसी विषय विशेष पर अपनी राय बनानी हो तो त्रित्य व्यक्ति की तरह विषय को देखो, अपनी व्यक्तिगत लाग लपेट बीच में मत लाओ
मात्र नियत अच्छी होने से नियति नहीं बदला करती उसके लिए बुद्धि का निमित्त होना भी ज़रूरी है
कहते हैं, "बूढ़े तोते नहीं सीखते "
कहता हूँ, "जो नहीं सीखते वो ही बूढ़े होते हैं, और तोते नहीं, खोते (गधे) होते हैं"यह दुनिया ...यहाँ "एक तीर से दो शिकार" करना बढ़िया माना जाता है
अंग्रेज़ी में कुछ ऐसा कहते हैं, "To kill two birds with one stone"
....और यह दुनिया सुसंस्कृत है
प्रेशर पॉइंट...जैसे शरीर में होते हैं वैसे ही किसी भी आर्टिकल में होते हैं....दिक्कत यह कि लोग गलत पॉइंट पकड़ते हैं जल्दी!!SEXPEER!!
अभी कहीं किसी मित्र ने एक शब्द लिखा था सेक्सपीर/ Sexpeer
वाह! आज से मैं भी SHAKESPEARE को लिखूंगा SEXPEERसीरियस न लें मेरी कोई बात...आय ऍम जस्ट मज़ाकिंग......मज़ा-किंग भई.....हाँ, मज़ा सीरियसली ले सकते हैं
हमारी मांगें पूरी करो----- राम मंदिर नहीं, काम मंदिर बनाओ, वो भी एक नहीं अनेक....गली गली
सबसे ज़्यादा काम की बात है "काम" की बात....लगभग सब बीमारियों का राम-बाण, काम-बाण
सुना है बाबर ने मंदिर तोड़ा था
सुना है संघियों ने मस्जिद तोडी थी
मेरे ख्याल से दोनों बधाई के पात्र हैं
चूँकि इस दुनिया से मंदिर मस्जिद दोनों विदा करने चाहिए
तथा कथित धर्म एक सामाजिक व्यवस्था है, सड़ी गली सामाजिक व्यवस्था जो ज्ञान, विज्ञान और बुद्धि से तालमेल नहीं रख पाती, जो समय के साथ पीछे छूट जाती है लेकिन फिर भी इंसानियत की छाती पर चढी रहती है
किसी वहम में मत रहें कि डॉक्टर कोई फ़रिश्ता होता है....वो एक इन्सान है...साधारण इन्सान...सब इंसानी, सामाजिक कमियों से लैस......उसके अपने स्वार्थ होते हैं....जहाँ सुई से इलाज हो जाना होता है वहां भी वो तोप चलवा सकता है
हमारे विश्वास, हमारी श्रधा विचारगत होनी चाहिए, न कि संस्कारगत....मामला चाहे कुछ भी हो.....
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