मैं घूम फिर कर धरम पर क्यों आता हूँ..क्योंकि धर्मों ने ही सारा बेडा गर्क किया हुआ है इंसानियत का....
धर्मों ने इंसानियत की सोचने समझाने की शक्ति को जकड़ रखा है, इसे पंगु बना रखा है
इंसान को रोबोट बना रखा है
और फिर चालक लोग, तैयार हैं इसका फायदा उठाने को
उन्हें पता है कि कैसे लोगों को उलझाए रखा जा सकता है
आसान राजनीति
दुनिया बेहतर न होगी जब तक धर्मों की गुलामी की जडें न काटी जायेंगी
पड़ोस में माता का जागरण हो रहा है..तेज़ लाउड स्पीकर....मैंने फ़ोन करके आवाज़ कम करने को कहा तो थोडा कम कर दी थी............अब किसी ने पुलिस बुला ली है.....स्पीकर हटा लिए गए हैं.........लेकिन बिन स्पीकर के भी बहुत जोर लगा कर गाया बजाया जा रहा है........मेरा घर तो थोडा दूर है......लेकिन बिलकुल साथ वाले...उनका हाल वो ही जाने......यह धर्म है.......?
चाहे मुस्लिम मस्जिद से लाउड स्पीकर लगा कर बोले, चाहे कोई गुरुद्वारे से...... सब बंद होना चाहिए
सब धर्म मात्र कुछ अंध-विश्वासों का पुलिंदा हैं......भला उसका पुलिंदा मेरे पुलिंदे से सफेद कैसे.....बस यह है सोच......
क्या ज़रुरत है किसी खूंटे से बंधने की.......क्या ज़रुरत है गीता, रामायण, कुरान, बाइबिल से बंधने की....हम अपनी समझ से क्यों नहीं जी सकते.......?
"सब धर्म गुनाहगार हैं"
सब धर्म गुनाहगार हैं मानव को अँधा करने के
दंगों की असल वजह क्या है?....वजह अंध धार्मिकता है और कुछ नहीं
अंध विश्वास की वजह क्या है?....वजह अंध धार्मिकता है और कुछ नहीं
हर वैज्ञानिक विचार के विरोध की वजह क्या है?....वजह अंध धार्मिकता है और कुछ नही
धर्म-उन्मादी शक्तियों के राजनैतिक उठान की वजह क्या है?....वजह अंध धार्मिकता है और कुछ नही
किसी ने गाय की पूँछ काट कर मंदिर में फैंक दी...दंगे, मौतें
किसी ने धर्म ध्वज जला दिया..........दंगे..मौतें
किसी ने पवित्र ग्रंथ जला दिया.........दंगें, मौतें
इंसानियत को इस अंधेपन से बाहर आना होगा...
और पूरा दम लगा रखा है तथा कथित धर्मों के ठेकदारों ने और राजनेताओं ने कि इंसान बुधू, लल्लू, उल्लू बना रहे
वक्त आ गया है खुल कर कहने का कि दफा हो जाओ, हमें इस पृथ्वी पर न कोई तथा कथित धर्म चाहिए, न इन धर्मों को आधार बना कर खड़े राजनेता
हमें आत्मा परमात्मा को खोजना होगा हम खुद खोज लेंगे....उसके लिए क्या हिन्दू, मुस्लिम, सिख होना ज़रूरी होता है?
आज ज़रुरत है ऐसे लोगों कि जो घोषणा करें कि वो किसी धर्म से नहीं बंधे....मुझे पता है बहुत मुश्किल है....असम्भव जैसा...
खुशवंत सिंह जैसे व्यक्ति जो जीवन भर स्वयं को फ्री थिंकर कहते रहे लेकिन अपने सिख रूप को न छोड़ सके......
बहुत मुश्किल है, अमूमन तो व्यक्ति जिस धर्म में पैदा होता है, सारी उम्र उसे ही ठीक मानता, सबसे ठीक मानता है....
जब तक इस जंजाल से बाहर नहीं आयेगी दुनिया....दुनिया तरक्की नहीं कर पायेगी....वैज्ञानिक उपकरण तो आगे बढ़ जायेंगे लेकिन मानवीय सभ्यता न बढ़ पायेगी, वो जंगलों में ही भटकती रह जायेगी......
बहुत कड़ा कदम होगा, लेकिन इंसानियत को उठाना ही पड़ेगा...
आज ऐसे लोगों की ज़रुरत नहीं है जो यह कहते हों कि ईश्वर अल्लाह तेरो नाम.................आज ऐसे लोगों की ज़रुरत है जो कहते हों, बस बहुत हुआ यह सब.....सब नाम मनुष्य के दिए हैं.........और जिसे खोजना है, खोज ले चुपचाप....दूसरों को परेशान न करे,
ईश्वर, आत्मा परमात्मा की खोज के नाम पर सब गिरोहबाज़ी, गुटबाजी बंद
IPP का नियंता होने के नाते यह घोषित करता हूँ कि हम सब धर्मों को इस पृथ्वी से विदा करने को कटिबद्ध हैं
अछूत को छू लो तो धर्म भंग
भंगी के हाथ का पानी पी लो तो धर्म भंग
इनकी बहू बेटियों से बलात्कार करो तो कोई धर्म भंग नहीं ?
और ऐसा अभी ही नहीं, सदी सदी होता आ रहा है
और कोई बोले तो इनके सनातन धर्म पर चोट हो जाती है
संस्कृति को खतरा हो जाता हैजब तक यह समाज अपनी सड़ी गली मान्यताओं से झूझना स्वीकार न करेगा, यह सब चलता रहेगा
मैं नास्तिक नहीं हूँ, शायद आस्तिक की आम परिभाषा में न आ पाऊँ
मेरे लिए सारा अस्तित्व पूजनीय है.........मुझे नहीं लगता कोई प्रभु अस्तित्व से अलग है..प्रभु ही स्वयंभू है........निराकार और साकार अलग नहीं.....सूक्षम स्थूल अलग नहीं ....पदार्थ और उर्जा अलग नहीं......नृत्य और नर्तक एक हैं......
शून्य की अस्तित्व , सूक्षम की स्थूल, निराकार की साकार, प्रभु की स्वयंभू की यात्रा ही भवसागर है
माना जाता है कि जो सिद्ध बुद्ध हो गए वो इस भवसागर को पार कर गए...वो फिर इस यात्रा से, इस आवागमन से छूट गए, वो फिर से शून्य हो गए लेकिन चैतन्य होकर...और अस्तित्व के चैतन्य में भी उनके चैतन्य होने से इज़ाफा हुआ.....बूँद के बुद्ध होने से समुद्र भी धन्य धन्य हो गया
और यह सब समझने के लिए...किसी को भी हिन्दू, मुस्लिम आदि होने की जरूरत नहीं है.
राम के नाम में कुछ भी सत्य नहीं है......हर नाम काम चलाऊ है.......व्यक्ति या वस्तु के नाम से सत्य का क्या लेना देना.
हर नाम, मात्र नाम है..........नाम का अपने आप में सत्य, असत्य से कोई मतलब नहीं ....कोई भी नाम अपने आप में सत्य या असत्य कैसे हो सकता है.....एक कोल्ड ड्रिंक का नाम आप COKE रखें या PEPSI, इसका सत्य असत्य से क्या मतलब, यह सिर्फ नाम है...नाम मात्र
मेरा मंतव्य साफ़ था कि मेरी नज़र में राम शब्द में कुछ भी खास नहीं ......मुझे ऐसा लगता है कि यदि "ओम/ आमीन/ओमकार" से नज़दीकी देखी जाए तो "आम" शब्द ज्यादा नजदीक है शब्द "राम" की बजाए..........सीधा गणित है.........ओउम और आम....देखिये कितने नज़दीक है........ओउम में र अक्षर का तो लेना देना ही नहीं
कुछ मित्रों को लगता है कि राम शब्द बहुत अध्यात्मिक है..यह ओम, आमीन, ओंकार के करीब है........
मेरा मानना है कि यदि यही बात है तो राम की बजाए "आम" ओम , आमीन, ओंकार के ज़्यादा करीब है.......
क्या कोइ मित्र कोई तार्किक वैज्ञानिक योगदान करेंगे
यहाँ बात यह है कि कौन सा नाम, शब्द ज्यादा आध्यात्मिक है........जैसे राम नाम सत्य है.....या हरि का नाम सत्य है...आदि कहा जाता है
बिन खुद की खुदाई, खुदा कहीं न मिलेगा
और खुदा मिले न मिले, जो मिलेगा वो खुदा होगा
मज़हब ही है सिखाता, आपस मैं बैर रखना
सीखो अक्ल, सीखो आपस में खैर रखना
धर्म का धंधा ...
बनाए अँधा.......
दो इसे कन्धा......
रफा करो...
इसे दफा करो
प्रेम प्रेम सब कहें , जग में प्रेम न होए
ढाई आखर बुद्धि का, पढ़े तो शुभ शुभ होए
बिन खुद की खुदाई, खुदा कहीं न मिलेगा
और खुदा मिले न मिले, जो मिलेगा वो खुदा होगा
लाउड स्पीकर से दिक्कत तो सभी को होती है.....मेरा मानना है कि यदि किसी ने माता के रात्रि जागरण करने ही हों तो साउंड प्रूफ कमरों में होने चाहिए और ऐसा ही मैं बाकी धर्मों के क्रिया कलापों के बारे में भी सोचता हूँ.....सब लोग बड़े धार्मिक बनते हैं लेकिन प्रॉपर्टी मार्किट मैं सबसे कम कीमत में जो मकान होते हैं , उनमें से मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे के पास वाले होते हैं, और एक बड़ा कारण है ध्वनि प्रदूषण
!!!! सख्त फैसला, तुरत इंसानी ज़रूरत !!!!!!
गाज़ा, इराक में जो नरसंहार हो रहा है, बच्चे तक मारे जा रहे हैं, स्त्रियाँ बेची खरीदी जा रही हैं........क्या यह सब देख ककर समझ नहीं आ रहा कि इस धरती को अब सब धर्मों से, मुक्ति की सख्त तुरत ज़रुरत है......मज़हब के नाम पर बनते हैं सबसे बड़े गिरोह........आज ज़रुरत हिन्दू , मुस्लिम, सिख बनने की नहीं है....ज़रुरत है इन सबसे छुटकारा पाने की.......सबको वहम है कि उनके गुरु, उनके पीर पैगम्बर, उनके अवतार से बेहतर कोई न हुआ है, न होगा.....इडियट.....कुदरत रोज़ नया जन्म लेते है....वर्तमान में देखना, जीना सीखो.....भविष्य की तरफ देखो......भूतकाल सिर्फ सीखने के लिए है, चिपके रहने के लिए नहीं है......बेहतरी भविष्य में देखो, भूतकाल में नहीं.....उतर फेंको यह जुआ अलाने फलाने मज़हब का......
मत रहो इस वहम में कि पवित्र किताबें तो ठीक हैं, इंसान इन पर अम्ल नहीं कर रहा, नहीं..... यदि इंसान अमल नहीं कर रहा, नहीं अमल कर पा रहा सदियों से तो शायद इन किताबों में जो लिखा है वो कुछ इस तरह का है कि अमल किया ही नहीं जा सकता हो, शायद वो इंसानी ज़ेहन के खिलाफ हो, शायद इंसानी स्वाभाव के खिलाफ हो, शायद कुदरती निजाम के खिलाफ हो
वैसे भी इन पवित्र किताबों में कुछ भी ऐसा नहीं रखा जो तुम एक बच्चे की हंसी में नहीं देख सकते....जो तुम एक हरियाले दरख्त में नहीं देख सकते...जो नदी की कलकल में नहीं सुन सकते......जो तुम पंछी की चहचाह्ट में नहीं सुन सकते...और यदि नहीं सुन पा रहे तो तुरंत ज़रुरत है कि तुम इन किताबों को जला दो...समुन्द्र में बहा दो......ज़मीन में दफन कर दो
मत करो, तुम्हे अपने बच्चे जलाने पडेंगे, तुम्हें अपनी औलादें दफन करनी पडेंगी, तुम्हें अपनी नस्लें समन्दर में बहानी पड़ेगी
फ़ैसला तुम्हारा है
ईश्वर की परिभाषा, उसकी कल्पना, परिकल्पना और उसके इर्द गिर्द बनाया गया पाप पुण्य, स्वर्ग नरक, मंदिर, मस्जिद इस दुनिया का सबसे बड़ा झूठ, फरेब, मक्कारापन और नक्कारापन है.
माँ के दूध के साथ पिलाया जाना वाला धर्म रुपी ज़हर जब तक इस पृथ्वी से रफा दफ़ा नहीं किया जाता, शांति की सिर्फ बातें होंगी, शांति कभी नहीं होगी पृथ्वी पर.
ये धरम नही भरम है ...
ये धरम नहीं गिरोह बाज़ी है
दिक्कत यह है कि पूरी दुनिया इस गिरोह्बाज़ी में जाने अनजाने फंसी है
और दिक्कत यह है कि लगभग पूरी दुनिया अपने गले में पड़े साँपों के हार को सुनेहरा, रत्नजडित, प्राणों से प्यारा आभूषण समझ रही है
और दिक्कत यह है कि दुनिया को समझ ही नहीं आ रही कि जिसे वो अपनी जिंद जान समझे बैठे हैं ...वो ही मज़हब, वो ही धरम उनकी जान का दुश्मन है
(3) बस हम धरम हैं
और तुम भरम हो
(6) जब तक हिन्दू मुसलमान रहेगा
कहाँ कोई इंसान रहेगा
कब तक सदियों पुरानी लाशें ढोयेंगे
कब तक मरे अलफ़ाज़ में ज़िन्दगानी खोयेंगे
कब तक गिरवी रखेंगे अक्ल
कब तक खोयेंगे असली शक्ल
कब तक पुरखों में, चरखों में गवाएंगे रवानी
कब तक बूढों के जाल में, जंजाल में फसायेंगे जवानी
मरी इमारतों में कब तक ज़िन्दा इंसान दफन करेंगे
जिंदा इंसानों में कब तक मरी इमारते दफन करेंगे
कब तक करेंगे बच्चों के कपड़ों को कफ़न
कब तक करेंगे जवानी को, रवानी को दफन
मैं तोडू मंदिर, तुम तोड़ो मस्ज़िद
न हो कोई ज़बरदस्ती, न कोई ज़िद
जब तक हिन्दू मुसलमान रहेगा
कहाँ कोई इंसान रहेगा
(7) हिन्दू, मुस्लिम, सिख इसाई, आपस में सब भाई भाई
भाई भाई तो फिर क्यों हैं हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई
(8) जब से मंदिर हुआ हिन्दू, गुरुद्वारा सिख, और मस्जिद मुसलमान
तभी से रुखसत हुआ वहां से... वाहेगुरु, अल्लाह, भगवान्
(9) !!!!!परवाज़ हो जाओ...परवाज़ हो जाओ......परवाज़ हो जाओ!!!!
जब तक हिन्दू मुसलमान बने रहोगे
बारूद की दूकान बने रहोगे
सियासत ...लगाएगी इक तिल्ली
उड़ाएगी तुम्हारी अक्ल की खिल्ली
कब आएगी तुम को अक्ल
कब पहचानोगे अपनी शक्ल
तुम न हिन्दू हों, न मुसलमान हो
तुम, तुम बस इंसान हो
बारूद नहीं, मोहब्बत की दूकान हो
खुद अल्लाह हो, भगवान हो
उतार फेंको यह हिन्दू मुसलमान का जूआ
क्या कभी कोई बच्चा गुलाम पैदा हुआ
आज़ाद तुम पैदा हुए थे, आज़ाद हो जाओ
मौलवी पंडित के पिंजरे से परवाज़ हो जाओ
जिन्हें खैर ख्वाह मानते हो,शैतान हैं
खूनी हैं, दरिन्दे हैं, हैवान हैं,
कब तक हिन्दू मुसलमान बने रहोगे
बारूद की दूकान बने रहोगे
पहचानो, तुम बारूद नहीं, मोहब्बत की दूकान हो
तुम खुद अल्लाह हो, भगवान हो
पिंजर के पिंजरे को छोड़ने से पहले, आज़ाद हो जाओ
परवाज़ हो जाओ...परवाज़ हो जाओ......परवाज़ हो जाओ
(10) पागलों की कमी नहीं, इक ढूँढो हज़ार मिलतें हैं
हर गली, हर मोहल्ला, हर बाज़ार मिलतें हैं
रोम, काबा, हरिद्वार मिलतें हैं
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वार मिलतें हैं
ईद, दिवाली,क्रिसमस, हर त्यौहार मिलतें हैं
गले मिल, गला काट, मेरे यार मिलतें हैं
इक बार, दो बार नहीं, बार बार मिलतें हैं
पागलों की कमी नहीं, इक ढूँढो हज़ार मिलतें हैं
(12) "सब बस नकल हैं"
आसमानी किताबों का सबसे पंगा है
ज्ञान से, विज्ञान से, संविधान से
सबसे पंगा है.... नंगा है, दंगा है
दुनिया हर कदम आगे बढ़ना चाहती है
आसमानी बापों से बंध, नहीं सड़ना चाहती है
सो मुल्ले, पुजारी, पादरी पाद रहे हैं
चेले चांटे यहाँ वहां सरपट भाग रहे हैं
कायम अभी जलाल है
अंदर बहुत मलाल है
कर रहे कतल हैं
उल्टी सीधी मसल हैं
कुछ भी न असल हैं
सब बस नकल हैं
सब बस नकल हैं
सब बस नकल हैं
(13) ये धरम नही भरम है ...
बहुत ही गरम है
उधर से भी गरम है
इधर से भी गरम है
तेरा धरम भरम है
मेरा धरम धरम है
कट्टरता चरम है
खूनी करम है
न कोई शरम है
दुनिया हरम है
कोई न नरम है
न कोई मरहम है
ये धरम नही भरम है ...
बहुत ही गरम है
उधर से भी गरम है
इधर से भी गरम है
(18) "वो"
वो शून्य है
अब है तो फिर शून्य कैसे
और शून्य तो फिर है कैसे
लेकिन वो दोनों
कबीर समझायें तो उलटबांसी हो जाए
गोरख समझायें तो गोरख धंधा हो जाए
वो निराकार है
और साकार भी
साकार में निराकार
और निराकार में साकार
वो प्रभु
वो स्वयम्भु
वो कर्ता और कृति भी
वो नृत्य और नर्तकी भी
वो अभिनय और अभिनेता भी
वो तुम भी
और वो मैं भी
बस वो ...वो ...वो ...वो
"वो"
(19) !!! परमात्मा !!!
हम्म...तो तुम्हें परमात्मा के होने का सबूत चाहिए....
ज़िंदगी बिखरी है हर जगह, फिर भी ताबूत चाहिए
हैरानी है, तुम्हें परमात्मा नज़र न आया,
या शायद नज़र तो आया लेकिन तुम्हारा नजरिया कुछ और है,
मेरी नज़र में जो परमात्मा है वो तुम्हारी नज़र में कुछ और है
और तुम्हारी नज़र में जो परमात्मा है मेरी नज़र में वो कुछ और है
परमात्मा
समन्दर से बना है ,
हवाओं में बहा है,
बादल बन उड़ा है
पेड़ बन खड़ा है
ये बच्चा जो खेल रहा
जो पह्लवान दंड पेल रहा
ये परमात्मा नहीं तो और कौन है
ये जो संगीत है, ये जो मौन है
ये परमात्मा नहीं तो और कौन है
ये परमात्मा नहीं तो और कौन है
(25) धर्म का हिन्दू, मुस्लिम आदि होने से क्या मतलब...........
धर्म है कुदरत को धन्यवाद
धर्म है खुद की खुदाई
धर्म है दूसरे का सुख दुःख समझना.....
धर्म है दूसरे में खुद को समझना
धर्म है विज्ञान ...
धर्म है प्रेम.....
धर्म है नृत्य.....
धर्म है गायन .....
धर्म है नदी का बहना....
धर्म है बादल का बरसना...
धर्म है पहाड़ों के झरने....
धर्म है बच्चों का हँसना......
धर्म है बछिया का टापना.....
धर्म है प्रेम रत युगल......
धर्म है चिड़िया का कलरव......
धर्म का मोहम्मद या राम को मानने न मानने से क्या मतलब.....
धर्म का गीता, कुरआन से क्या मतलब.....
धर्म का मुर्दा इमारतों, मुर्दा बुतों से क्या मतलब .
धर्म है अभी....
धर्म है यहीं....
धर्म है ज़िंदा होना...
धर्म है सच में जिंदा होना....
धर्म का हिन्दू, मुस्लिम आदि होने से क्या मतलब
एक ख़ास तरह के पागलपन/ उन्माद/ अंध विश्वास का जवाब दूसरे तरह का पागलपन/ उन्माद/ अंध विश्वास नहीं होता.....
और इससे कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता कि आपका पागलपन/ उन्माद/ अंध विश्वास हरा है या भगवा
और इससे कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता कि आपका पागलपन/ उन्माद/ अंध विश्वास कम डिग्री का है या ज़्यादा डिग्री का क्योंकि अंततः दोनों तरह के. सब तरह का पागलपन/ उन्माद/ अंध विश्वास दुनिया के लिए घातक साबित होता है
नये धर्म चलाने वाले मानव जाति को एक और हिस्से में तोड़ देते हैं
या टूटन और गहरी कर देते हैं
दुनिया सब धर्मों से मुक्त हो जाए तो ही इलाज है और कुछ नहीं
अब समूह बनाना चाहिए जो यह कहे कि सब धर्म छोड़ो
तर्क को पकड़ों
तथ्य पकड़ो
विज्ञानं पकड़ो
ज्ञान पकड़ो
पुरानी किताब, पुरखों का मोह छोड़ो
छोड़ो यह ज़िद कि तुम्हारे पुरखे गलत नहीं हो सकते
जीवन भविष्य को आगे रख के जीया जाता है न कि भूत काल को
आदर्श भविष्य होना चाहिए भूतकाल नहीं
हिन्दू पुरातन को सनातन मान बैठे हैं
एक और वहम, पुरातन वहम
"लंगर "
लंगरों जैसे प्रयासों से कोई स्थाई हल नहीं होते भाई जी...चाहे वो कोई भी धर्म के लोग चलायें..बेहतर है सामाजिक व्यवस्था के भीतर तक उतरना...यह समझना कि गरीब गरीब क्यों है.....और अमीर अमीर क्यों है.....समाजिक व्यवस्था में तो कोई खराबी नहीं.....और खराबी है तो कहाँ है...और उसे कैसे ठीक किया जा सकता है........गरीब गरीब समाजिक व्यवस्था से है...और अमीर भी एक स्वीकृत समाजिक व्यवस्था की वजह से है......यह लंगर आदि बचकाने प्रयास हैं.......
हमारा जो तबका बहुत नीचे है...उसे कैसे ऊपर लायें......मुल्क की ज़रुरत उसे है....अमीर तो वैसे ही सब खरीद लेगा......उसे क्या फर्क पड़ता है...उनके तो आधे परिवार वैसे ही भारत छोड़ चुके हैं
दिल्ली में शायद ही कोई अमीर परिवार ऐसा हो जिसके नाते रिश्तेदार इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि में न रहते हों
सत्य यह कि आज तक...आज तक अधिकांश इंसानियत गरीब ही पैदा हुई है, गरीब ही जीती रही है और गरीब ही मरती रही है.......और सारी व्यवस्था इसी तरह के निजाम को समर्थन देती रही है.... हमारी जो अधिकांश जनसंख्या जीती है और मरती है गरीबी में ..वो है नियम.....बन गया इक्का दुक्का आदमी अमीर गरीबी से...यह है अपवाद.....और अपवाद सिर्फ नियम को साबित करते हैं न कि उसके खिलाफ जाते हैं.......इसकी गहराए में जाएँ और उसे बदलने का प्रयास करें...यह गरीब अमीर साथ साथ बैठ लंगर खा सकते हैं......लंगर से कोई भूखों का पेट भर सकता है?......कुछ नहीं होना भाई जी, इन सब से...और न हुआ है
वो जो हजार हाथ वाला, आसमान में बैठा.....सबका पिता......वैसा कोई भगवान नही है.............वो बचकानी कल्पना है....कोई भगवान नहीं है उस तरह से
सारी कायनात ही भगवान है...इसमें छुपा है सूक्षम चेतना तत्व...हम में भी हैं........उसी के रूप हैं सब...........
यह अस्तित्व ऐसे ही है........
सृष्टि और सृष्टा अलग अलग नही है...
जैसे नर्तक और नृत्य अलग अलग नही हैं
प्रभु ही स्वयं भू है
अलग हो ही नही सकते
चूँकि फिर तो सृष्टा का भी कोई और सृष्टा होना चाहिए
फिर उस सृष्टा का भी कोई और सृष्टा
हम सब उसका ही स्थूल रूप हैं
और इस कायनात का सूक्षम रूप ही हम सब में छुपी चेतना है
उस चेतना के साथ जुड़ना ही ध्यान है
और ध्यान सब को करना चाहिए
शुद्ध विज्ञानं है और कुछ नही
माँ बाप ने सिखा दिया बेटा हम हिन्दू हैं......फिर कोई मिल गया आरएसएस जैसा संस्थान, "गर्व से कहो हम हिन्दू हैं ".....
अब आपकी बुद्धि फंसी है फेर में ........ कैसे गलत हो सकता, वो धर्म, वो सनातन धर्म, जिसमे आपका जन्म हुआ, वो जो आपके पूर्वजों का धर्म है, ऋषि मुनियों का प्रतिपादित किया हुआ..........
आप पता नहीं कब समझेंगे कि यह सब एक सम्मोहन है, जो हर बच्चे को जन्म से ही उसके इर्द गिर्द का समाज देता चला जाता है......इंसान को रोबोट बनाने की प्रक्रिया...........एक सॉफ्ट-वेयर , जो यह भी कहता है रोबोट के दिमाग में कि यह सॉफ्ट-वेयर नहीं है , रोबोट की अपनी/स्वतः स्फूर्त सोच है .....और मरते दम तक रोबोट इस रोबोट-पन से बाहर नही आ पाता.......जिस दिन बाहर आएगा....उसे समझ आना शुरू होगा कि कॉस्मिक होना होता क्या है
किसी भी तरह के धार्मिक/मज़हबी उन्माद का मुकाबला यदि दूसरी तरह के मजहबी उन्माद को पैदा करके किया जाएगा तो दुनिया एक और नयी बीमारी से भर जायेगी..इससे ज्यादा कुछ नही होता है.....
समाज से क्राइम रोकने के लिए पुलिस बनाई जाती है.......क्या क्राइम को मजहबी नज़र से देखा जाता है..या उसे रोकने के लिए कोई पुलिस को मज़हबी रंग दिया जाता है.....क्राइम क्राइम है..हिन्दू मुस्लिम नही...पुलिस पुलिस है..हिन्दू मुस्लिम नही.....इसी तरह से यदि मुस्लिम उग्रवाद फ़ैल रहा है तो उसकी रोकथाम के लिए हिन्दू लामबंदी/इसाई लामबंदी नही चाहिए...उसके लिए मात्र इंसान होना काफी है....ठीक वैसे ही जैसे कोई फ़ौज/पुलिस है ..इंसानों की लामबंदी..
सब धर्मों को वहम है कि वो सदा सदा के लिए हैं ...सनातन हैं.......Eternal हैं......सनातन कहने में ही जड़ता छिपी है...समय की धार के साथ सदा के लिए चिपके रहने की तमन्ना..........होना उल्टा चाहिए हमारी अगली पीढियां ..हमसे समझदार हों......नए जीवन मूल्य गढें ...नया, बेहतर जीवन गढें.....पुराने को नए की छाती पर सवार होने की, हुए रहने की तमन्ना ही गलत है.... ..ये सनातन नहीं rotten हैं
अक्सर देखता हूँ, मुस्लिम मित्रो को "गंगा जमुनी" तहज़ीब का ज़िक्र करते हुए ....मेरे प्यारो, अब गया वक्त .......अब तो ऐसे तहज़ीब विकसित होगी जिसे आपको "गंगा थेम्स अमेज़न" तहज़ीब कहना होगा और यह हिन्दू मुस्लिम इसाई जैसी तहज़ीबों की चिता पर खड़ी होगी
मुस्लिम खुश हो सकता है, मजाक बना सकता है कि हिन्दू उसकी संख्या से डर रहा है, उल्टी पुलटी हरकतें कर रहा है, हिन्दू भी मुस्लिम का किन्ही मुद्दों पर मज़ाक बना सकता है, बनाता है, लेकिन बेहतर हो यदि दोनों वो मजाक देख सकें जो उन्होंने हिन्दू मुस्लिम बन इंसानियत का बना दिया है
वैसे तो सभी मंदिर, गुरूद्वारे, मस्ज़िद बस व्यापार हैं लेकिन सबसे साफ़ सुथरा व्यापार अक्षरधाम मंदिरों का है.
विशुद्ध टूरिस्ट स्थल ......एक बार की इन्वेस्टमेंट, फिर बस बैठे कमाते रहो
यदि कहीं परमात्मा होगा भी तो इन औरतों का कीर्तन नुमा क्रन्दन सुन कर गुफाओं में छुप जाएगा, समन्दर में धंस जाएगा, हवाओं में घुल जाएगा, बादल बन उड़ जाएगा .......तौबा !
मोहल्ले की औरतें लाउड स्पीकर पर गला फाड़ कीर्तन कर रही हैं
मैंने भी लाउड स्पीकर मँगा, शकीरा का हिप्स डोंट लाई (Hips don't lie) बजा दिया है, आवाज़ कीर्तन की आवाज़ से थोड़ी ऊंची रखी है, स्पीकर का मुंह कीर्तन की दिशा में कर दिया है
कानूनी हक़ है भई , सबकावैसे लगभग हरेक को अपना धर्म समन्दर लगता है दूसरे का धर्म कोई कूआँ, और वो भी सूखा हुआ
हम धरम हैं, तुम भरम हो
"धर्म तो ठीक, लेकिन कट्टरता ग़लत --एक पुनर्विचार"
कट्टरता नहीं, घेरेबंद धर्म, गिरोहबंद धर्म ही घातक है.................जो भी किताब, सिस्टम इंसान को बाँध दे, उसकी सोच समझ को बाँध दे वो गलत है.
क्या Newton को समझने वाला,महान मानने वाला व्यक्ति Newton की थ्योरी ऑफ़ ग्रेविटी से आगे न सोचे, आगे प्रयोग न करे? और प्रयोग करते कहीं Newton गलत साबित होते दिखें तो क्या यह Newton का अपमान हो गया या सम्मान हुआ?Newton के काम को आगे बढ़ाना सम्मान है
Newton का या अपमान है चूँकि Newton कहीं गलत साबित हो रहे हैं?
धर्म की माने तो अपमान है, ज्ञान, विज्ञान, बुद्धि की माने तो सम्मान है .
धर्म, तथाकथित धर्म इंसान को एक लगे बंधे ढाँचे में बांधता है, उसकी बुद्धि को गुलाम करता है, उसे एक ढाँचे का गुलाम करता है...अब कोई भी बात उस ढाँचे से बाहर दिखेगी तो वो भयभीय होगा, यह धार्मिक व्यक्ति भयभीत होगा, और कहते हैं डरा आदमी दूसरों को डराता है, यह धार्मिक व्यक्ति डरेगा कि कहीं उसकी सारी सोच समझ, सारी उम्र की कमाई, सारी ज़िंदगी गलत साबित न हो जाए. सो उसे बर्दाश्त नहीं कि कोई भी, कोई एक बात भी उसके धर्म, उसके मज़हब के खिलाफ चली जाए, वो मरने मारने पर उतारू रहता है, मार ही देता है......
सो इलाज एक ही है ......सब धर्मों का बहिष्कार.....सब लगे बंधे धर्मों का बहिष्कार.......
जीवन के नियम जीवन निर्धारित करता है, जीवन रोज़ बदलता है.
कोई गीता पढ़ कर बदलता है, कोई कुरआन सुन कर बदलता है?
ट्रैफिक के नियम क्या गीता, कुरआन, बाइबिल से लिए जाते हैं?
जीवन की ज़रूरत थी, इंसान ने खुद गढ़ लिए.......
इसी तरह से कैसे शादियाँ हों, तलाक हों, बच्चे कैसे पाले जाएँ,इसके लिए क्या ज़रूरी है कि कुरआन की ही मानी जाए? खाना शाकाहारी हो या मांसाहारी हो, क्या ज़रुरत है कि महावीर की ही सुनी जाए? हम खुद बहस सकते हैं, खुद विचार कर सकते हैं, महावीर के तर्क या मोहम्मद के ही तर्क से क्यों तालमेल बिठाना? अहिंसा हो या हिंसा का कड़ा जवाब, इसके लिए बुद्ध की ही क्यों सुने? वक्त की ज़रुरत के मुताबिक, हालात के मुताबिक हम खुद क्यों न सोचें?
सो कहना मेरा यह कि "कट्टरता गलत है", यह कह कर अक्सर हम लोग यह ज़ाहिर कर जाते हैं कि व्यक्ति का धर्म के घेरे में स्वयं को बांधना सही है लेकिन इसके लिए उसे कट्टर नहीं होना चाहिए....मेरा कहना यह है कि धर्म के घेरे में जो बंधेगा वो कट्टर होगा ही, और जब जब ये गिरोह शक्तिशाली होते हैं तब तब कत्ले-आम मचाते हैं, चाहे वो मुस्लिम हों, चाहे इसाई, चाहे सिक्ख, चाहे कोई भी........सो सवाल यह नहीं कि कट्टरता नही होनी चाहिए, मुद्दा यह है कि ये मज़हब की गिरोहबंदी, यह गुलामी ही नहीं होनी चाहिए, यह कट्टरता के अलावा कुछ नहीं हो सकती, अन्ततोगत्वा
कहानी चाहे, कबीर की हो, चाहे सरमद की, चाहे मंसूर की, चाहे सुकरात की.....चाहे पेरिस के कार्टून बनाने वालों की, चाहे गैलिलियो की ...........लगभग एक जैसी हैं.........
खुली सोच और मजहबी गिरोहबंदी का टकराव, धर्म कभी नहीं चाहता कि सोच खुले, लोग गुलाम रहें इसी में तो उसका फायदा है, लोग जाहिल रहें, बच्चे पैदा करते रहें , जो फिर आगे जाहिल रहें, इसी में तो उसका फायदा है ....
हम जो ज्ञान , विज्ञान प्रयोग करते हैं अपने दैन्मदैन्य जीवन में धर्मों ने पैदा किये हैं क्या?
आज इस विज्ञान के बिना दुनिया वैसे ही मर जाए, लेकिन फिर भी बजाए अपने वैज्ञानिकों के शुक्रगुजार होने के, उनको अपने सर पर ढोने के हम ढोते हैं मरी मराई किताबें, मुर्दा किताबें, इन्हें हम जीवित मानते हैं, गुरु मानते हैं.
नहीं, कोई किताब ताज़ा ज़िंदगी से ज़्यादा कीमती नहीं है.....कोई किताब, कोई कुरआन कबीर से ज़्यादा कीमती नहीं है, कबीर को मानने वाला, मनवाने वाला कोई रामपाल कीमती नहीं है, कीमती है ज़िंदगी से निकली सोच समझ, ताज़ा समस्या का ताज़ा हल, बुद्धिगत, तर्कानुसार न कि धार्मिक ग्रन्थानुसार ....सब ग्रन्थ, महान ग्रन्थ इंसान की ग्रथियाँ बनते जा रहे हैं, सावधान, बहुत सावधान रहने की ज़रुरत है
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!!कार्टून मत बनाओ!!
और तुम जो पूरी दुनिया का कार्टून बना दो वो सही है
मज़हब के नाम पर गिरोहबंदी कर लो, वो सही है
स्कूल से लड़कियां अगवा कर लो और फिर उन्हें गायब कर दो वो सही है
शहर के शहर जला दो वो सही है
बच्चे काट दो, लड़कियां टके टके बेच दो , वो सही है
मैं कहता हूँ, जिसे तुम मज़हब कहते हो मज़हब है ही नहीं
मज़हब किताबों से नहीं निकलते, ताज़ा ज़िन्दगी की ताज़ा समझ से निकलते हैं
और मुझसे मत कहना कि आसमानी किताबें तो सही हैं, लोग गलत हैं , वो नहीं मानते, नहीं.....सदियों से यदि लोग नहीं मानते तो फिर शायद किताबें ही ऐसी हैं कि उनमें जो लिखा है वो इंसान के हिसाब से लिखा ही नही गया ..नहीं यह किताबें ही गलत हैं
तुम लोग बस गैंग हो , दुनिया समझने लगी है, पहले कोई कबीर होता था, कभी सुकरात होता था...या फिर होता भी था तो अकेला अकेला, दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक खबर नहीं लगती थी
आज ओ. माय . गॉड बनती है, PK बनती है दुनिया देखती है
क्या है, ये फिल्में, कार्टून ही है तुम्हारा कार्टूनों
आज तुम्हें फेसबुक पर यदि मजहबी, उन्मादी लोग मिलेंगे तो अनेक ऐसे लोग भी मिलेंगे जो मजहबी गूंडा गर्दी, मजहबी गर्द को हटाने में लगे रहते हैं
कार्टून मत बनायो
बनायो, हर मज़हब का बनाओ, इन्होने पूरी इंसानियत का कार्टून बना दिया अब इनका बनाओ, तभी पिंड छूटेगा इनसे
तुम दिन रात मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, चर्चों से प्रचार करते रहो कि परमात्मा, भगवान, गॉड ऐसा है वैसा है.....
और यदि कोई थोड़ा सा भी लिख दे, कह दे, गा दे कि नहीं कोई परमात्मा, गॉड, भगवान नहीं है, उस तरह से तो बिलकुल नहीं जिस तरह से तुम समझाते हो
बस तुम मारने दौड़ते हो, कत्ल कर देना तुम्हारे लिए महान कार्य हो जाता है
तुम धार्मिक हो?
नहीं, तुम धर्म के नाम सिर्फ गिरोह हो
"नव- अध्यात्मिक बकवास"
जितना ज़रूरी पुराने सड़े गले धर्मों को दफा करना है, उतना ही ज़रूरी नव- अध्यात्मिक बकवास पर चोट करना है......
कुछ नव-गुरु पुराने ज़हर नयी बोतलों में पेश कर रहे हैं........पुरानी सड़ी गली मान्यताओं को आधुनिक वैज्ञानिक खोजों और मान्यताओं का खोल चढ़ाते हैं...
इन लोगों को पता है कि समाज से पंगा लेना खतरनाक है, सो आसान रस्ता अख्तियार करते हैं......पुराने विचारों पर नया मुलम्मा चढ़ा कर पेश करने का........वर्कशॉप बना, प्रशिक्षण शिविर बना सीट बेचते हैं......
और बेवकूफ लोग और ज़्यादा बेवकूफ बन खुश हो जाते हैं, अब उनके पास अपने अंध-विश्वासों के लिए एक वैज्ञानिक आधार जो हो जाता है .....लानत!
स्कूल में सिखाया जाता था,"मान लो मूलधन सौ" और फिर असल हल तक पहुंचा जाता था.
लेकिन कुछ महान लोग होते हैं, जो अड़ जाते हैं, कि जब पता है कि मूलधन सौ है ही नहीं, तो मानें क्यों.
मूर्ती तोड़ने वाले मुस्लिम ऐसे ही लोग थे/हैं
"भरम परिवर्तन"
भरम बदलने को धरम परिवर्तन समझा जा रहा है ....
धर्म तो कभी कोई परिवर्तन कर ही नहीं सकता,
क्या नदियाँ पहाड़ों से नीचे बहना बंद कर सकती हैं, क्या पक्षी उड़ना छोड़ सकते हैं, क्या पेड़ हवा में नाचना बंद कर सकते हैं, ...नहीं न?
तो मेरे समझदार भाईओं और बहनों और मित्रो, आप कैसे अपना धर्म बदल सकते हो?
हाँ, भरम बदले जा सकते हैं, गिरोह बदले जा सकते हैं, सो वो जारी हैं
!!! परमात्मा !!!
हम्म...तो तुम्हें परमात्मा के होने का सबूत चाहिए....
ज़िंदगी बिखरी है हर जगह, फिर भी ताबूत चाहिए
हैरानी है, तुम्हें परमात्मा नज़र न आया,
या शायद नज़र तो आया लेकिन तुम्हारा नजरिया कुछ और है,
मेरी नज़र में जो परमात्मा है वो तुम्हारी नज़र में कुछ और है
और तुम्हारी नज़र में जो परमात्मा है मेरी नज़र में वो कुछ और है
परमात्मा
समन्दर से बना है ,
हवाओं में बहा है,
बादल बन उड़ा है
पेड़ बन खड़ा है
ये बच्चा जो खेल रहा
जो पह्लवान दंड पेल रहा
ये परमात्मा नहीं तो और कौन है
ये जो संगीत है, ये जो मौन है
ये परमात्मा नहीं तो और कौन है
ये परमात्मा नहीं तो और कौन है
"सब धर्म ज़हर हैं"
"सब धर्म ज़हर हैं"
एक मित्र ने लिखा था,"जो हिंदुत्व के मुद्दे राष्ट्रीय स्तर पर उठाना चाहते हैं, वो मुझसे संपर्क करें"
मेरा जवाब था," और जो इस तरह की मूर्खताओं का विरोध करना चाहते हैं मुझे से सम्पर्क करें...."
एक और मित्र ने लिखा था," क्या आपको हिन्दू होने का गर्व हैं? ":
मेरा जवाब था,"Idiotic question..only an idiot can be proud of being Hindu, Muslim or Christian....being human...being Label-less is enough."
तथा कथित धर्म पीढी दर पीढ़ी चलती गुलामी है.
हर पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी पर खुद को थोपती है.
हर तथा कथित धर्म जबरन थोपा जाता है ... बच्चों पर .........सबसे बड़ा अधर्म.
माँ बाप से ज्यादा नुक्सान बच्चों का कोई भी नहीं करता....सारी दुनिया में जितने फसाद हैं, जितने भेद भाव हैं, वो माँ बाप के अपने बच्चों के प्रति किये गए कुकर्मों का नतीज़ा हैं.....इसलिए आने वाले समाज में न तो बच्चे इस तरह से पैदा होने चाहिए, न ही इस तरह से पाले जाने चाहिए.......सारे समाज को दुबारा से व्यवस्थित करने की ज़रुरत है....
बच्चे के तर्क को विकसित ही नहीं होने दिया जाता, उसके तर्क को मजहबी, धार्मिक किस्से कहानियों, मान्यताओं के तले दबा दिया जाता है....फिर वो हर तरह से माँ बाप और समाज पर निर्भर होता है.....सो उसका तर्क जल्दी ही सरेंडर कर देता है और वो यदि हिन्दू समाज में पैदा हुआ तो हिन्दू बन जाता है, यदि मुस्लिम समाज में तो मुस्लिम.
आप दो जुड़वाँ भाईओं को अलग अलग समाज में पाल लीजिये...सम्भावना यह है कि जो जिस समाज में पला होगा उसी धर्म का हो जाएगा............यह है ज़बरदस्ती, बच्चे के प्रति किया गया गुनाह, जो हर समाज करता है
बजाये कि बच्चा अपनी बुद्धि से सवाल उठाये और जवाब भी ढूंढें, बच्चे से उसके सवाल छीन लिए जाते और फिर सीधे जवाब थोप दिए जाते हैं
मिसाल के लिए जब बच्चे को कोई लेना देना नहीं कि परमात्मा कौन है, क्या है, उसे परमात्मा की प्रार्थना में खड़ा कर दिया जाता है...यह गुनाह माँ बाप, स्कूल समाज सब करते हैं.
बच्चे के ज़ेहन में जब सवाल आता, जब वो खुद-ब-खुद सोचता कि यार, यह दुनिया का गड़बड़ झाला है क्या..किसने बनाया, क्यों बनाया......तब ये सब सवाल असली होते, तब उसका कोई मतलब होता....उसने अभी पूछा ही नहीं कि परमात्मा है नहीं है, है तो कैसा है, नहीं है तो क्यों नहीं है....लेकिन जवाब थमा दिया, प्रार्थना करो, एक परिकल्पना थमा दी, एक किताब थमा दी...यह है ज़हर जो लगभग सारी इंसानियत पीढी दर पीढी अपने बच्चों के ज़ेहन में उड़ेलती है....... जिज्ञासा, प्यास ही हर ली..........यह है गुनाह
फिर उसके बाद के भी इंतेज़ाम हैं कि कहीं तर्क न उठाने लगे कोई.
सब तथा कथित धर्म "ईश निंदा" में यकीन रखते हैं...यह कोई सिर्फ इस्लामी दुनिया तक ही सीमित नहीं है........
आप पीछे जाओ, गैलिलियो को चर्च में जबरन माफी मंगवा दी गयी....क्यों ...क्योंकि उसकी खोज बाइबिल में लिखे के खिलाफ जाती थी......"ईश निंदा"
जॉन ऑफ़ आर्क को जिंदा जला दिया, उसके समय की राजनीति और ईसाइयत ने, सहारा लिया कोई ईसाई कानूनों का......"ईश निंदा"
वो बात जुदा है कि बाद में उसी लडकी को सदियों बाद संत की उपाधि दे दी, पढ़ा तो मैंने यह भी है कि चर्च ने गैलिलियो से भी माफी माँगी है, सदियों बाद
अभी यहाँ भारत में पुणे में नरेंदर दाभोलकर को क्यों क़त्ल किया गया, वो अंध-विश्वास के खिलाफ लड़ रहे थे, भाई लोगों को लगा "ईश निंदा"
और आप सिक्खी पर, ग्रन्थ साब पर खुली चर्चा करने की बात तक कर देखो, चर्चा मतलब अगर कुछ ठीक न लगे तो उसे गलत कहने का हक़ .........करके देखो, पता लग जाएगा कितना उदार है सिक्ख धर्म? मारने को दौड़ेंगे...."ईश निंदा"
सब धर्म, तथाकथित धर्म जाल हैं, जंजाल हैं.........इंसानियत के खिलाफ हैं.
हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई होना अपने आप में कैंसर है, शरीर के कैंसर से ज्यादा खतरनाक......पूरी इंसानियत को खा चुका है....इतिहास लाल कर चुका है...वर्तमान की खाल उतार रहा है
दीन/ मज़हब/ धरम सबकी छुट्टी होनी चाहिए...बहुत हो गया....इन्सान को अपना रास्ता खुद अख्तियार करना चाहिए न कि किसी की सदियों पुरानी हिदायतों/हुक्मनामों/ कमांडमेंट के हिसाब से
ये धर्म ऐसी सामाजिक व्यवस्था हैं, सड़ी गली सामाजिक व्यवस्था जो ज्ञान, विज्ञान और बुद्धि से तालमेल नहीं रख पातीं, जो समय के साथ पीछे छूट जातीं हैं लेकिन फिर भी इंसानियत की छाती पर चढी रहतीं है
इन्सनियात लम्बी अंधेरी गुफा से निकल रही है.........यह जो फेसबुक और whatsapp हैं न.....इसकी अहमियत भविष्य ही आंकेगा....यही है जो दुनिया बदलेगा
अंत में तो जो भी तर्कयुक्त है, मानवता को उसे अपनाना ही होगा, अब मानवता के पास कोई चारा नहीं, या तो वैज्ञानिकता अपनायेगी, या मर जायेगी.
ये धर्म और राजनीति तो आज तक तरक्की की राह में रोड़े ही अटकाती रहे हैं.....फिर भी दुनिया यहाँ तक आयी है......अब चूँकि संचार माध्यम बेहतर हैं तो सम्भावनाएं भी बेहतर हैं....आमीन!
सादर नमन
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