शंकराचार्य--साईं बाबा प्रकरण

चलो, मैं भी कुछ योगदान करता हूँ, इस गर्म मुद्दे पर...

कोई कहता है इनको मत पूजो, कोइ कहता है पूजो, भक्त गण विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं...बहुत धार्मिक मुद्दा लगता है उपरी तौर पर.

थोड़ा सा गहन देखें, सारे मुद्दे का धर्म से कोइ लेना देना नहीं है
न तो समर्थन में खड़े लोगों का और न ही विरोध करने वालों का कोइ धर्म से मतलब है

शुद्ध राजनीती और व्यापार है

जो विरोध कर रहे हैं, उनको क्या पता धर्म क्या है? वो तो बस चाहते हैं कि ये जो एक अंधी भीड़ जो अपने ऊपर हिन्दू का लेबल लगाए है ये कहीं भटक कर एक नए मुस्लिम जैसे दिखने वाले फ़क़ीर की तरफ ज्यादा झुक कर अपने पुराने देवी देवता, राम, कृष्ण, विष्णु, शंकर , दुर्गा, गणेश आदि को इग्नोर न कर दे...यह जो कहीं इन लोग का जमा जमाया धंधा कमज़ोर न पड़ जाए.....फिर सदियों से जमाये धंधे में क्यों किसी और को हिस्सेदार बनाया जाये?

और जो भक्त गण हैं, उन्हें जैसे धर्म का कुछ पता हो, या धर्म से कोइ लेना देना हो.....अरे भई, वो लोग तो सिर्फ अपनी मन्नते मनवाने के लिए किसी को भी पकड लेते हैं, उन्हें बस एक सम्बल चाहिए होता है, वो कोइ भी देवी, देवता, पीर, फ़क़ीर हो सकता है, कहीं भी भीड़ झुक सकती है. भेड़ चाल.........ये लोग विशुद्ध बिज़नस डील करते हैं......ये काम कर दो, इतना चडावा दूंगा/दूंगी.......इतने चक्कर आऊँगा/आऊँगी इत्यादि

और धर्म समझना हो तो समझ लें, कि साईं हैं क्या

साईं, नाथ, स्वामी.....इन सब शब्दों का एक ही मतलब है, खुद का मालिक होना.......हम नही हैं मालिक खुद के......वहम हो सकता है कि हैं, लेकिन नहीं हैं.....हम एक रोबोटिक मन के गुलाम हैं जो ...बस चलता रहता है.......साईं इस मन का मालिक है........इसे अपने अधीन चलाता है........बंद कर सकता है.......चला सकता है

यह है धर्म...

और इसका किसी चमत्कार से क्या मतलब?
और इसका हिन्दू, मुस्लिम होने से क्या मतलब?
और इसका किसी की मन्नत से क्या मतलब?
इसका चडावे से क्या मतलब?

है कोई समझने को तैयार?
है कोई तैयार?

झूठे गुरु, झूठे चेले
झूठे देवी देवता, झूठे पुजारी, महंत और झूठे पूजने वाले
अंधे अँधा ठेलिया दोनों कूप पडंत


शंकराचार्य जी साईं बाबा को वेश्या पुत्र बता रहे हैं .
कोई किसी का पुत्र या पुत्री होने से अपने माता पिता के कर्मों का भागीदार नहीं हो जाता...
और फिर वेश्या तो वैसे भी एक समाजसेविका होती है उसके बिना यह समाज, जो एक पति, एक पत्नी की अप्राकृतिक व्यवस्था पर खड़ा है कहाँ टिक सकता है, वेश्या इस समाज का आधार स्तंभ है.....

यह समाज दोगला है, जो वेश्या को भोगता है लेकिन उस के अस्तित्व तक को नकारता है.....बजाए वेश्या के पार्टी कृतज्ञ होने के उसे हिकारत की नज़र से देखता है......

और वेश्या का अस्तित्व शायद सबसे पुराने ग्रन्थों तक में मिल जाएगा...रामायण में गणिका है...बुध के समय में नगरवधू...कहते हैं वैशाली की नगरवधू का बुध के समय में बहुत नाम था......आम्रपाली.......

और आज भी दिल्ली में जी बी रोड को बच्चा जानता है लेकिन सरकार कभी सेक्स वर्कर को मान्यता नहीं देगी और ऐसा न सिर्फ दिल्ली में है , भारत के हर कोने में है.........

शंकराचार्य जी को विरोध करना ही है साईं का, तो करें....लेकिन कुछ दमदार मुद्दे लेकर आयें...यह सब अनर्गल है.....



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